...
Skip to content

Ken Betwa River Link: मुआवजे की नीति पारदर्षी नहीं, एक ही दीवार पर अलग-अलग घरों का सर्वे

Ken Betwa River Link: मुआवजे की नीति पारदर्षी नहीं, एक ही दीवार पर अलग-अलग घरों का सर्वे
Ken Betwa River Link: मुआवजे की नीति पारदर्षी नहीं, एक ही दीवार पर अलग-अलग घरों का सर्वे

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

Ken Betwa River Link: केन-बेतवा रिवर लिंक, 45000 करोड़ रुपये की लागत, 2 राज्य, और ढेर सारे परिवारों की रोजी-रोटी और ढेर सारी अनिश्चितताएं। जल्द ही पन्ना और छतरपुर के 25 गांव दौधन बांध के निर्माण (Ken Betwa River Link) में अधिग्रहित हो जाएंगे। भूमि अधिग्रहण और मुआवजे को लेकर ग्रामिणों की शिकायतें व समस्याओं का समाधान अब तक नहीं हुआ है। इसके चलते केन बेतवा रिवर लिंकिंग प्रोजेक्ट एक रूसी उपन्यास की शक्ल लेता जा रहा है।    

दौधन डैम के निर्माण के लिए  छतरपुर के 9 गाँव (1595.97 हेक्टेयर) और पन्ना के 5 गाँवों का अधिग्रहण किया गया है। इसके अलावा निर्माण के लिए काटे गए वृक्षों के एवज में नए वृक्ष लगाने के लिए छतरपुर के 11 गाँवों को चिन्हित किया गया है। 

इन गांवों में शासन के द्वारा विस्थापन के एवज में एक परिवार को शहरी क्षेत्र में प्लॉट एवं 6.45 लाख रुपये या फिर ग्रामीण क्षेत्र में प्लॉट एवं 7 लाख की राशि देने की बात कही गई है। इसके अलावा कोई परिवार जमीन नहीं लेना चाहता है तो सरकार उसे 12.5 लाख रुपये एक मुश्त मुआवजे की रकम देगी।     

दौधन बाँध के निर्माण से पन्ना के 1400 एवं छतरपुर के गावों के 5228 परिवार विस्थापित हो जाएंगे। यहाँ के लोग अपनी रोजी-रोटी के लिए मछली पालन, वन उत्पादों जैसे की तेंदू पत्ता और कृषि पर निर्भर हैं। ग्रामीण मुआवजे से खुश नहीं हैं। स्थानीय निवासियों की यह चिंता जायज भी है क्योंकि यह मुआवजा उन्हें एक धन राशि तो दे रहा है लेकिन भविष्य में उनकी आजीविका के लिए ठोस विकल्प देने में सक्षम नहीं है। इन गावों की वर्तमान जमीन कृषि के लिए उपयुक्त जमीन है। बुंदेलखंड सूखे से प्रभावित क्षेत्र है, ऐसे में यह खतरा स्पष्ट  है की कहीं विस्थापन इनके भविष्य को अधर में न लटका दे। 

वहीं सितम्बर में सरकार के विशेष पैकेज की घोषणा के बाद से ही छतरपुर और पन्ना में विरोध प्रदर्शन जारी है। बिजवार से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार रहे सामजसेवी अमित भटनागर ने इसे अपना चुनावी मुद्दा बनाया था। 

LARR Act 2013 के अनुसार सिंचाई प्रोजेक्ट में भूमि अतिक्रमण में प्रत्येक कृषि परिवारों को कम से कम एक एकड़ जमीन प्रोजेक्ट के कमांड एरिया में दी जानी चाहिए, ताकि वे परियोजना का लाभ उठा सकें। केन-बेतवा के विषय में ये सारी चीजें अब तक स्पष्ट नहीं हो पाई है।

मुआवजे के लिए सरकारी प्रक्रिया भी काफी अस्पष्ट एवं अपारदर्शी नजर आती है। छतरपुर के शाहपुरा गाँव के लोगों के अनुसार उनके खेतों में सर्वे और मार्किंग हो गई है लेकिन अभी तक कुछ ही परिवारों को मुआवजे का नोटिस मिला है। वहीं छतरपुर के कूपी गाँव में सर्वे का आलम यह है की एक ही घर की दीवार दो अलग-अलग घरों का पंजियन लिखा गया लेकिन मुआवजा सिर्फ एक ही घर को दिया जा रहा है, दूसरे को नहीं। गाँव के लोगों ने स्थानीय प्रशासन से शिकायतें की है लेकिन इस पर अब तक कोई ठोस कार्यवाही (Prociding) होती नहीं दिख रही है। 

गहदरा गाँव के लोगों ने बताया की गाँव का जो क्षेत्र अब डैम के लिए लिया जा रहा है वही क्षेत्र 2012 में टाइगर रिज़र्व के लिए बफर क्षेत्र क तौर पर माँगा गया था, तब गांव वालों ने खुले दिल से शासन की मदद की थी, और अब वे ऐसी ही मदद की अपेक्षा शासन से कर रहें हैं।  

गंगऊ बाँध बनने के बाद पहले से ही केन में पानी सीमित है। बेतवा पर 5 डैम बने हुए हैं। ऐसे में एक और बाँध और नई जगह पर विस्थापन यहाँ की कृषि पर निर्भर आबादी की आजीविका पर एक बड़ा संकट बन सकता है। गौरतलब है की जल सुरक्षा के लिए रिवर इंटर लिंकिंग इकलौता विकल्प नहीं है। बुंदेलखंड के बांदा जिले के गाँव ने 2014 से जल सरंक्षण, दूषित जल प्रबंधन, फार्म पॉन्ड और भारी मात्रा में वृक्षारोपण कर अपने गाँव के लिए जल सुरक्षा सुनिश्चित कर ली है। 

जिस प्रोजेक्ट को लेकर पहले से ही पर्यावरणीय (Environmental), जलवायवीय (जलवायु से संबंधित/Climatic) इत्यादि प्रकार के संशय मौजूद हो उसके लिए ग्रामवासियों का अपनी जमीन छोड़ कर जाने का निर्णय स्वाभाविक रूप से कठिन है। ऐसे में एक ऐसी नीति की जरूतत है जो मुआवजे को स्पष्ट, पारदर्शी और सुलभ बनाने के साथ ही आजीविका के वैकल्पिक अवसर भी तैयार  करे।   

Hit And Run: ट्रक चालकों कीआर्थिक मुश्किलें जिनपर कभी ध्यान नहीं दिया गया

खाद्य संकट : भारत में बढ़ती ज़रूरत के बीच आनाजों की घटती गुणवत्ता

मध्यप्रदेश के पूर्व वन मंत्री द्वारा वन नियमों के उल्लंघन की जांच आरोपी अधिकारी के हाथ में

बैतूल का बांचा गांव जहां हर घर में बनता था सौर ऊर्जा से खाना दोबारा चूल्हे की तरफ लौटा

Follow Ground Report for Climate Change and Under-Reported issues in India. Connect with us on FacebookTwitterKoo AppInstagramWhatsapp and YouTube. Write us on GReport2018@gmail.com

Author

  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins