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ICAR ने जीन-एडिटेड धान पर आरोपों पर दी सफाई, लेकिन विवाद जारी

Record rice production in Kharif 2024-25, while pulses decline
Record rice production in Kharif 2024-25, while pulses decline

भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने 26 नवंबर को “कोएलिशन फॉर ए जीएम-फ्री इंडिया” के आरोपों का विस्तार से जवाब दिया है। इस समूह ने दावा किया था कि दो जीन-एडिटेड धान की किस्मों: पूसा डीएसटी-1 और डीआरआर धान 100 (कमला) के ट्रायल डेटा को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है ताकि उनका प्रदर्शन बेहतर दिखे। यह जवाब प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) की वेबसाइट पर जारी किया गया। यह विवाद अक्टूबर 2025 में तब शुरू हुआ था जब इस गठबंधन ने यूनियन कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की 4 मई की उस घोषणा पर सवाल उठाया था, जिसमें उन्होंने इन किस्मों को अधिक पैदावार और तनाव-सहनशीलता के लिए “बड़ी उपलब्धि” बताया था।

क्या हैं कोएलिशन के आरोप

इस कोएलिशन में किसानों, पर्यावरण और उपभोक्ता समूहों के सदस्य शामिल हैं। इसके प्रमुख कार्यकर्ता कविता कुरुगांति, ने अपने आरोप ICAR की खुद की “ऑल इंडिया कोऑर्डिनेटेड रिसर्च प्रोजेक्ट ऑन राइस” (AICRPR) की 2023 और 2024 की रिपोर्टों पर आधारित किए हैं।

समूह ने कहा कि पूसा डीएसटी-1, जो MTU1010 से विकसित की गई है और क्षारीय सहनशीलता के लिए बनाई गई थी, 2023 के खरीफ सीज़न में 20 में से 12 स्थानों पर कमजोर साबित हुई है। वहीं 2024 के स्ट्रेस ट्रायल्स में भी इसे लगातार बढ़त नहीं मिली है। उनका आरोप था कि ICAR ने सिर्फ कुछ चुनिंदा जगहों के डेटा दिखाकर किस्म को बेहतर बताया गया है।

डीआरआर धान 100, जो सांबा महसूरी का एक रूप है, पर भी आरोप लगा कि यह कई जोनों में कमजोर प्रदर्शन कर रही थी। समूह ने कहा कि तुलना के लिए चुने गए चेक एंट्रीज़ में असंगतियां थीं, और कुल मिलाकर इसके नतीजे 17% बेहतर पैदावार के दावे से मेल नहीं खाते हैं।

30 अक्टूबर की प्रेस कॉन्फ्रेंस में कविता कुरुगांति ने ICAR पर “वैज्ञानिक धोखाधड़ी” का आरोप लगाया और मांग की कि जब तक बायोसुरक्षा नियम सख्त नहीं होते, तब तक इस पर रोक लगाई जाए और स्वतंत्र जांच कराई जाए।

कोएलिशन के आरोपों पर आईसीएआर के जवाब

ICAR ने इन आरोपों को “भ्रामक और गैर-वैज्ञानिक” बताया है। संस्था का कहना है कि कोएलिशन ने पूरे भारत का औसत निकालकर डेटा का गलत विश्लेषण किया है। जबकि 2017 के AICRPR दिशानिर्देशों के मुताबिक ऐसे ट्रायल्स को केवल ‘टारगेट परफॉर्मेंस एनवायरनमेंट्स’ (TPEs) यानी दक्षिण भारत के ज़ोन VII राज्यों पर केंद्रित करना चाहिए था, जहां ये किस्में अनुकूल हैं।

ICAR ने कहा कि ट्रायल्स ब्लाइंड-कोडेड थे और 100 से ज्यादा जगहों पर किए गए। सिर्फ उन्हीं जगहों के नतीजे शामिल किए गए जहां ट्रायल सही तरीके से हुआ, स्ट्रेस पर्याप्त था और सांख्यिकीय रूप से नतीजे मान्य थे।

ICAR के अनुसार, पूसा डीएसटी-1 ने सामान्य परिस्थितियों में समान पैदावार दी, लेकिन स्ट्रेस में बेहतर प्रदर्शन किया है। जैसे कि क्षारीय मिट्टी में 14.66% अधिक (3731 किलो प्रति हेक्टेयर बनाम 3254 किलो प्रति हेक्टेयर) और तटीय लवणीय मिट्टी में 30% अधिक। डीआरआर धान 100 ने तीन सीज़न में 9–22% की बढ़त और जल्दी पकने का गुण दिखाया।

ICAR ने यह भी कहा कि रबी 2023-24 के आंकड़े, जिन्हें कोएलिशन ने नजरअंदाज किया, उनमें 21.95% की बढ़त दर्ज हुई थी। दाने की गुणवत्ता में जो फर्क था, वह भी तय मानकों के भीतर था। संस्था ने पक्षपात के आरोपों को सिरे से खारिज किया और कहा कि सभी डेटा सार्वजनिक हैं, और 5000 से ज्यादा किसान ट्रायल साइट्स का दौरा कर चुके हैं। ICAR ने इसे तकनीक-विरोधी मानसिकता से प्रेरित हमला बताया।

फिर भी आलोचक सवाल उठा रहे हैं कि अगर गैर-TPE डेटा महत्वहीन था, तो उसे इकट्ठा ही क्यों किया गया। कुछ विशेषज्ञ यह भी पूछ रहे हैं कि डेटा को बाहर रखने का फैसला वैज्ञानिक कारणों से था या सुविधा के लिए। कोएलिशन ने ICAR के ताज़ा जवाब पर अब तक कोई नई प्रतिक्रिया नहीं दी है। लेकिन भारत की पहली जीन-एडिटेड धान किस्मों को लेकर विवाद अब भी जारी है।


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