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आज की किताब: ठिठुरता हुआ गणतंत्र- हरिशंकर परसाई

आज की किताब: ठिठुरता हुआ गणतंत्र- हरिशंकर परसाई
आज की किताब: ठिठुरता हुआ गणतंत्र- हरिशंकर परसाई

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ठिठुरता हुआ गणतंत्र में परसाई हंसाने की हड़बड़ी नहीं करते। वो पढ़नेवाले को देवता नहीं मानते न ग्राहक, वो सिर्फ उन्हें एक नागरिक मानते हैं, वह भी उस देश का जिसका स्वतंत्रता दिवस बारिश के मौसम में पड़ता है और गणतंत्र दिवस कड़ाके की ठंड में। परसाई की निगाह से यह बात नहीं बच सकी तो सिर्फ इसलिए कि ये दोनों पर्व उनके लिए सिर्फ उत्सव नहीं, सोचने-विचारने के दिन भी हैं। वे नहीं चाहते कि इन दिनों को सिर्फ थोथी राष्ट्र-श्लाघा में व्यर्थ कर दिया जाए, जैसा कि आम तौर पर होता है।

गणतंत्र दिवस का समारोह देखने पहुंचे परसाई राजपथ से निकलने वाली झांकियों पर भी वय्ंग्य करने से नहीं चूकते वो कहते हैं कि ये झांकियां अपने झूठ बोलती हैं। इनमें विकास कार्य, जनजीवन इतिहास रहते हैं। असल में इन झांकियों में राज्य की वो घटनाएं प्रदर्शित होनी चाहिए जिस वजह से वह चर्चा में रहा। गुजरात की झांकी में इस साल दंगे का दृश्य होना चाहिए, जलता हुआ घर और आग में झोंके जाते बच्चे। पिछले साल मैने उम्मीद की थी कि आंध्र की झांकी में हरिजन जलाते हुए दिखाए जाएंगे। मगर ऐसा नहीं दिखा। यह कितना बड़ा झूठ है कि कोई राज्य दंगे के कारण अंतर्राष्ट्रीय ख्याति पाए लेकिन झांकी सजाए लघु उद्योगों की। दंगों से अच्छा गृह उद्योग तो इस देश में दूसरा है नहीं।

परसाई का ठिठुरता गणतंत्र भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर व्यंग्य करता है।

परसाई कहते हैं जैसे दिल्ली की अपनी अर्थनीति नहीं है, वैसे ही अपना मौसम भी नहीं है। अर्थिनीति जैसे डॉलर, पौंड, रुपया अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष या भारत-सहायता क्लब से तय होती है, वैसे ही दिल्ली का मौसम कश्मीर, सिक्किम, राजस्थान आदि तय करते हैं।

स्वतंत्रता दिवस भी तो भरी बरसात में होता है। अंग्रेज़ बहुत चालाक हैं। भरी बरसात में स्वतंत्र करके चले गए। उस कपटी प्रेमी की तरह भागे जो प्रेमिका का छाता भी ले जाए।

ठिठुरता हुआ गणतंत्र हरिशंकर परसाई के व्यंग्य का एक संकलन है जिसमें वो अपनी जानी मानी व्यंग्य़ शैली से खूब हंसाते हैं और हंसाते हंसाते गहरी बात कह जाते हैं।

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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