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गोंडलपुरा गांव जल, जंगल और ज़मीन बचाने के लिए कर रहा है संघर्ष

गोंडलपुरा गांव जल, जंगल और  ज़मीन बचाने के लिए कर रहा है संघर्ष
गोंडलपुरा गांव जल, जंगल और ज़मीन बचाने के लिए कर रहा है संघर्ष

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झारखंड गोंडलपुरा (Gondalpura) के लोग अपनी ज़मीन बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। ये लोग अडानी इंटरप्राईज़ लिमिटेड (AIL) के मल्टी बिलियन डॉलर के माईनिंग प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे हैं जिसकी वजह से उनकी खेती की ज़मीन छीन ली जाएगी। 2011 के सेंसस के आधार पर देखें तो इससे 4,029 लोग विस्थापित होंगे. माईनिंग की वजह से यहां की नदी का पानी भी प्रदूषित होने का खतरा है, जिसपर ये गांव वाले अपनी सभी कामों के लिए निर्भर हैं।

दामोदर और ब्रह्मडिहा नदी के किनारे बसा है झारखंड का गोंडलपुरा (Gondalpura) गांव। दामोदर नदी की ट्रिब्यूटरी ब्रह्मडिहा इस क्षेत्र को तीन भागों में विभाजित करती है, जहां कई खनन कंपनियां काम कर रही हैं। उत्तरी करनपुरा कोल फील्ड (North Karanpura) में काफी मिनरल्स पाए जाते हैं।

अडानी ग्रुप को गोंडलपुरा कोल ब्लॉक नवंबर 2020 में आवंटित हुआ था। इस जगह पर 176 मिलियन टन कोयले का रिज़र्व है, जिसके लिए 513 हेक्टेयर लैंड की ज़रुरत है। इसमें 219 हेक्टेयर जमीन जंगल की है। इस प्रोजेक्ट की कुल कॉस्ट 99,800 लाख रुपए के आसपास है।

यहां की खेती की ज़मीन जंगलों से घिरी हुई है। माईनिंग की वजह से जंगल के पैच ही यहां बचे हुए हैं। अभी भी इन जंगलों में कई वन्य प्राणी रहते हैं जो माईनिंग एक्टिविटी की वजह से प्रभावित हो रहे हैं।

गोंडलपुरा (Gondalpura) में धान और ग्रेन अच्छी पैदावार होती है, यहां के गन्ने से बना गुड़ काफी फेमस है। माईनिंग की वजह से यहां की खेती बर्बाद हो जाएगी।

2010 में तत्तकालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने 9 कोल फील्ड में नो गो एरिया चिंहिंत किए थे। जिसमें सिंग्रौली, आईबी वैली, मांड राएगढ़, सोहागपुर, तालचेर, वर्धा वैली, हसदेव अरण्य, नॉर्थ करनपुरा और वेस्ट बोकारो शामिल थे। गोंडलपुरा कोल ब्लॉक भी इसमें शामिल था क्योंकि वो नॉर्थ करनपुरा (North Karanpura Coal field) का हिस्सा है। ये वो इलाकें हैं जहां काफी ग्रीन पैच हैं।

क्या होते हैं NO GO Area?

नो गो एरिया वो हैं जहां के 10 प्रतिशत एरिया में घने जंगल हैं या 30 प्रतिशत जमीन पर फॉरेस्ट्स हैं। तब जयराम रमेश ने चेताया भी था कि अगर जंगल की ज़मीन को कोल माईनिंग के लिए खोला गया तो इसके पर्यावरण पर बेहद बुरे प्रभाव होंगे।

टीवीएनल और डीवीसी कंपनी जो गोंडलपुरा (Gondalpura) में कोल माईनिंग कर रही हैं उसने 2011 में सरकार को पत्र लिखकर कहा कि गोंडलपुरा कोल ब्लॉक को नो गो ज़ोन बनाने पर फिर से विचार किया जाए।

साल 2020 में सभी नियम कायदों को ताक पर रखकर आडानी इंटर्प्राईज़ को गोंडलपुरा माईन आवंटित कर दी गई।

Gondalpura Protests: अब विरोध प्रदर्शन

अब ग्रामीण इसका पुर्जोर विरोध कर रहे हैं। माईनिंग एक्टिवटी ग्राम सभा की मंज़ूरी के बगैर शुरु नहीं हो सकती। लेकिन ग्रमीणों का आरोप है कि ग्राम सभा में उनकी बातों को सुनने की जगह उनको मानाने का काम प्रशासन कर रहा है। वो किसी हाल में अपनी ज़मीन पर खनन नहीं होने देंगे।

सुप्रीम कोर्ट की गाईडलाईन के अनुसार किसी भी माईनिंग एक्टिविटी को गांव, जंगल, नदी और खेतों से 100 मीटर दूर रखना अनिवार्य है। माईनिंग और किसी विकास कार्य की वजह से निकलने वाले मलबे को नदी में डालना भी मना है। लेकिन ये कंपनियां मनमाने ढंग से काम कर रही हैं, और कोल ब्लॉक को खेतों, जंगलों की तरफ ले जा रही हैं।

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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