...
Skip to content

मध्य प्रदेश: गांवों में बाढ़ आने पर कैसे काम करती हैं एसडीआरएफ की टीम?

मध्य प्रदेश: गांवों में बाढ़ आने पर कैसे काम करती हैं एसडीआरएफ की टीम?
मध्य प्रदेश: गांवों में बाढ़ आने पर कैसे काम करती हैं एसडीआरएफ की टीम?

REPORTED BY

Follow our coverage on Google News

देश भर में मानसून अपना असर दिखा रहा है। जहां एक ओर अच्छा मानसून हरियाली और अच्छी उपज का संकेत देता है वहीं दूसरी तरफ मानसून का एक दूसरा पहलू भी है। मानसून कई बार अपने साथ बाढ़ जैसी आपदाएं भी ले कर आता है। बाढ़ कई बार मानव समाज के लिए एक भयानक विभीषिका के तौर पर सामने आती हैं।

इसकी मिसाल के तौर पर एनसीआरबी (राष्ट्रीय आपराधिक रिकॉर्ड ब्यूरो) की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2021 और 2022 में देश भर में बाढ़ के कारण 1203 मौतें हुई हैं। वहीं गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 2018 से 2021 के बीच  6,811 ऐसी मौतें हुई हैं जिनके पीछे की वजह जल-मौसमी आपदाएं हैं। वहीं मध्यप्रदेश में इन तीन सालों में ऐसी 917 मौतें हुईं हैं। 

अगर बाढ़ को मध्यप्रदेश के आलोक में देखा जाए तो प्रदेश का एक बड़ा हिस्सा, जिसके दायरे में बड़ी ग्रामीण आबादी है, बाढ़ के प्रति सुभेद्य है। आइये जानते हैं की किस प्रकार मध्यप्रदेश के गांव बाढ़ के खतरे में हैं, और इस प्रबंधन के लिए सरकारें कैसे प्रयास कर रही है। 

प्रदेश के कई गांवों पर है बाढ़ का खतरा 

मानसून के दौरान ठीक-ठाक बारिश होने के बाद नदियां उफान पर आ जातीं हैं, और बांधों के गेट खोलने पड़ते हैं। इसके बाद से ही प्रदेश में बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है। मध्य प्रदेश आपदा प्रबंधन के पोर्टल पर मौजूद दस्तावेजों के अनुसार पिछले 25 वर्षों में प्रदेश के 36 जिले ऐसे जिले हैं जो 6 से 11 वर्षों तक बाढ़ से प्रभावित रहे हैं, और अब भी हैं। इनमें से जबलपुर, मंडला, और दमोह जैसे कई जिले हैं। उपलब्ध जानकारियों के अनुसार प्रदेश के 1,150 से भी अधिक गांव हैं जो बीते वर्षों में बाढ़ से प्रभावित रहे हैं। ये इलाके नर्मदा, धसान, और गोपद जैसी कई नदियों के तट पर बसे हुए हैं जो कि बाढ़ प्रवण नदियां मानी जाती हैं। 

अगर वर्तमान समय के मद्देनजर देखा जाए तो मध्यप्रदेश के आवदा, कुशालपुरा, और कुंडलिया बांध अपने फुल रिजर्वायर लेवल पर पहुंच गए हैं। आसान भाषा में कहा जाए तो ये बांध पूरी तरह से भर चुके हैं। इसके बरगी, बारना, और बावनथड़ी जैसे कई बांध लगभग भरने की कगार पर हैं। राजघाट, मोहनपुरा बांध के 8 और बरगी बांध के 7 गेट अब तक खोले जा चुके हैं। इनके अतिरिक्त अन्य भी कई बांधों के गेट खोले जा चुके हैं। 

ऐसे में डिंडोरी, मंडला, छिंदवाड़ा, अशोक नगर, सागर, सीहोर, टीकमगढ़, जबलपुर, और पन्ना जिले में आने वाले दिनों में बाढ़ की स्थिति बनने की आशंका जताई जा रही है। अगर यहां बाढ़ आती है तो इस स्थिति में प्रदेश के तकरीबन 578 से अधिक गांव इसकी जद में आ जाएंगे। 

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस साल अब तक प्रदेश में कम से कम 235 लोग जलभराव से प्रभावित हुए हैं, और 28 लोग बाढ़ में डूब कर इस आपदा का शिकार हो चुके हैं। इसके अलावा तकरीबन 126 लोग आकस्मिक बाढ़ का शिकार हुए हैं। हालांकि इन आंकड़ों से यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि ऐसी घटनाओं से अब तक कितनी मृत्यु हुई हैं। 

बीते दिनों बन सुजारा बांध में पानी बढ़ जाने के कारण इसके गेट खोलने पड़े थे। इस घटना के कारण कटनी जिले की 40 गांव प्रभावित हुए थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस वजह से 3000 से भी अधिक लोग वहां फंस  रह गए थे, और जबलपुर-कटनी रेलमार्ग भी जलमग्न हो गया था। 

कैसे आपदा प्रबंधन की तैयारियां करती हैं संस्थाएं 

भारत में आपदाओं से निपटने के लिए आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005 लाया गया था। इसके अंतर्गत राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल, एवं राज्य स्तर पर राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल का गठन किया गया। राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की अध्यक्षता प्रदेश के मुख्यमंत्री करते हैं।

इसी तरह से हर जिले में एक जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का गठन होता है, जिसकी अध्यक्षता जिले के कलेक्टर करते हैं। एसडीआरएफ की हर जिले में एक पल्टन होती है, और हर पल्टन में कुल 10 व्यक्ति होते हैं। इसी प्रकार मध्यप्रदेश एसडीआरएफ में कुल 616 लोग हैं। 

उक्त संस्थाएं अपने क्षेत्राधिकार में आपदा प्रबंधन का कार्य करती हैं। प्रदेश में बाढ़ को लेकर आपदा प्रबंधन की तैयारियों को जानने के लिए हमने प्राधिकरण के एक बड़े अधिकारी सौरभ कुमार जी से संपर्क किया। हमसे बातचीत के दौरान सौरभ कुमार ने बताया की आपदा का पूर्वमानुमान करते हुए ऐसे स्थान जहां बाढ़ के दौरान दुर्घटनाएं हो सकती हैं, वहां चेतावनी का बोर्ड लगा कर निगरानी के लिए जवानों की तैनाती की जाती है।   

सौरभ ने आगे बताया कि प्रदेश के हर जिले में ऐसे क्षेत्र जहां आपदा का खतरा अधिक होता है वहां डीआरसी (डिजास्टर रेस्पोंस सेंटर) बनाए जाते हैं। प्रदेश भर में ऐसे 280 डीआरसी बनाए गए हैं। इन सभी डीआरसी में राहत कार्य के लिए आवश्यक उपकरण मौजूद होते हैं। इसके अलावा प्रदेश भर में 93 क्यूआरटी (क्विक रेस्पॉन्स टीम) भी बनाई गईं हैं, जिनकी मदद से त्वरित बचाव कार्य संभव हो पाता है। 

sdrf
11 जुलाई को बैतूल में बचाव कार्य करती एसडीआरफ की टीम, स्त्रोत: आपदा सुरक्षा पोर्टल 

इसके अलावा बाढ़ को ध्यान में रखते हुए विशेष डैम ऑब्जरवेशन पॉइंट बनाए जाते हैं। इन पॉइंट्स पर एसडीआरएफ के जवान पूरी चौकसी रखते हैं। इसके अलावा बाढ़ से बचाव के लिए जिला और तहसील स्तर पर टास्क फोर्स भी गठित की गई है। इन टास्क फोर्स में एसडीआरएफ के अलावा पुलिस, राजस्व, और लोक निर्माण विभाग जैसे अन्य विभागों को भी शामिल किया जाता है। इन सभी टास्क फोर्स की ट्रेनिंग भोपाल में कराई जाती है। इसके अलावा बाढ़ के लिए एसडीआरफ की एक ड्रिल भी कराई जाती है, जो कि एसडीआरएफ के प्रोटोकॉल का हिस्सा है।

राज्य और जिला स्तर पर कमांड कंट्रोल सेंटर बनाए गए हैं। इनमे कोई भी व्यक्ति 1079 हेल्पलाइन नंबर पर आपदा की सूचना देता है तो, उसकी लोकेशन को चिन्हित कर के त्वरित बचाव कार्य शुरू किया जाता है। सौरभ ने अपने अनुभवों से बताया की इस साल अधिकांश मामले गांवों से ही आएं हैं और एसडीआरफ उनके बचाव में सफल रही है। इसका उदाहरण देते हुए सौरभ ने 1 अगस्त की ही घटना का जिक्र किया, जहां मंडला के एक गांव में एक महिला नदी के बीच में फस गई थी, जिसका सफल रेस्क्यू किया गया है। 

इसके अलावा एसडीएमए (राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) विशेष स्थिति आने पार एनडीआरएफ से भी संपर्क स्थापित करता है। वर्तमान में मध्यप्रदेश में एनडीआरएफ की 4 टीम (एक-एक टीम जबलपुर, ग्वालियर में और दो टीमें भोपाल में) तैनात की गई हैं। सौरभ ने आगे कहा कि,

इस दौरान अधिकांश घटनाएं एक्सीडेंटल होती हैं। चेतावनी के बाद भी लोग पानी के ऊपर से वाहन निकालने का प्रयास करते हैं, या प्रतिबंधित पिकनिक-स्पॉट्स पर जोखिम उठा कर जाते हैं। पिछले दिनों ही महेश्वर में तीन लोग ऐसी ही दुर्घटना का शिकार हुए थे। लोगों को इसे लेकर जागरूक रहना चाहिए, और अगर आवश्यकता पड़ने पर जाना पड़ता ही है, तो भी अपनी सुरक्षा का पूरा प्रबंध कर के जाना चाहिए। 

गांव बाढ़ से सर्वाधिक लोग प्रभावित होते हैं। इसके कई बुनियादी कारण हैं जिसमे सीमित अवसंरचना, सुविधाओं से दूरी और पर्याप्त जानकारी का न होना प्रमुख है। संचार और संपर्क की सीमित व्यवस्था के कारण भी कई बार गांव तक जानकारी और मदद देर से पहुंचती है। इसके अलावा बाढ़ के दौरान कई संचारी बीमारियां, दूषित जल,और सर्पदंश जैसी समस्याएं भी बढ़ जाती हैं। स्वास्थ सुविधाएं और संसाधनों की सीमितता इस आपदा को और भी भीषण बना देती हैं।

यह भी पढ़ें

हाथियों की मदद के लिए कृत्रिम बुद्धि 

कार्बन बाज़ारों के विकास के लिए उन्हें समझना ज़रुरी: विशेषज्ञ 

जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में स्वैच्छिक कार्बन बाज़ारों का विस्तार ज़रूरी

पर्यावरण से जुड़ी खबरों के लिए आप ग्राउंड रिपोर्ट को फेसबुकट्विटरइंस्टाग्रामयूट्यूब और वॉट्सएप पर फॉलो कर सकते हैं। अगर आप हमारा साप्ताहिक न्यूज़लेटर अपने ईमेल पर पाना चाहते हैं तो यहां क्लिक करें।

 

Author

  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins