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महिलाओं के विकास के लिए शिक्षा क्यों है ज़रुरी?

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अनुपम, दिल्ली | मनुष्य के जीवन में जितना महत्व भोजन, कपड़े, हवा और पानी का होता है, उससे कहीं अधिक महत्व शिक्षा का होता है. इसलिए हमेशा यह कहा जाता है कि यह मानव सभ्यता के विकास का वास्तविक वाहक है. दरअसल शिक्षा ही एक ऐसा माध्यम है जिससे मनुष्य में ज्ञान का प्रसार होता है. उसकी बुद्धि का विकास शिक्षा प्राप्त करने से ही होता है. यह जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा है चाहे वह लड़का हो या लड़की हो, उसके सर्वांगीण विकास में शिक्षा का विशेष महत्व है. इतिहास साक्षी है कि शिक्षा के बिना किसी भी सभ्यता को विकसित नहीं माना गया है. कई दस्तावेज़ों से यह साबित हुआ है कि मनुष्य में जबतक शिक्षा का प्रसार नहीं हुआ था, उस समय तक वह बर्बर सभ्यता कहलाई है क्योंकि उसे न तो अपने अधिकारों का पता था और न ही अपने अंदर छुपी प्रतिभा का ज्ञान था.

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अशिक्षा का सबसे अधिक नुकसान नारी जाति को उठानी पड़ी है. पुरुषसत्तात्मक समाज ने उसे जब तक शिक्षा से वंचित रखा तब तक न केवल वह घर की चारदीवारियों तक कैद थी, बल्कि उसे कदम कदम पर अग्नि परीक्षा देनी पड़ती थी. शादी के नाम पर उसके अधिकारों को कुचल कर किसी के साथ भी ब्याह दी जाती थी. अत्याचारों की इंतेहा तो यह थी कि पति की मृत्यु के बाद महिला को भी पति के शव के साथ ज़िंदा जला दिया जाता था. लेकिन शिक्षा के प्रसार ने ही उसे इस अत्याचार से मुक्ति दिलाई है. महिला के अधिकारों की रक्षा करने में शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. यह लिंग के आधार पर भी भेदभाव को रोकने में भी मदद करती है. शिक्षा महिलाओं को जीवन के मार्ग को चुनने का अधिकार देने का पहला कदम है, जिस पर वह आगे बढ़ती है. एक शिक्षित महिला में कौशल, सूचना, प्रतिभा और आत्मविश्वास होता है, जो उसे एक बेहतर देश का नागरिक बनाता है. महिलाएं हमारे देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं. पुरुष और महिलाएं एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह हैं और उन्हें देश के विकास में योगदान करने के समान अवसर की आवश्यकता होती है. महिलाओं के बिना किसी देश की कल्पना तो दूर, किसी सभ्यता के विकास की कल्पना भी अधूरी है. ऐसे में महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखकर विकसित समाज और देश का ख्वाब भी अधूरा है.

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लेकिन अफ़सोस की बात यह है कि 21वीं सदी के विकसित भारत में आज भी बहुत से ऐसे जिले और गांव है जहां किशोरियों को शिक्षा से वंचित रखा जाता है. कभी घर की आर्थिक स्थिति के नाम पर तो कभी स्कूल दूर होने का बहाना बना कर समाज लड़कियों को पढ़ने से रोकने का प्रयास करता है. भारत के कई हिस्सों में विशेषकर पहाड़ी क्षेत्रों में प्राथमिक विद्यालय गांवों से बहुत दूर स्थित हैं. जहां पहुंचने के लिए 4-5 घंटे का पैदल सफ़र करना पड़ता है. सुरक्षा और अन्य कारकों को ध्यान में रखते हुए माता-पिता लड़की को स्कूल जाने के लिए मना कर देते हैं. हालांकि लड़कों के साथ ऐसी कोई बंदिश नहीं होती है. आम तौर पर लोग यह भी सोचते हैं कि लड़की को पढ़ाई से ज्यादा घर का काम करना सीखना चाहिए जैसे खाना बनाना, घर को साफ़ सुथरा रखना और घरेलू कार्यों इत्यादि. इसे लड़की के जीवन का प्रथम कर्तव्य समझा जाता है. घर के काम में उनका योगदान, उनकी शिक्षा से अधिक मूल्यवान बन जाता है. देश के अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी किशोरियों की शिक्षा पर पैसे खर्च करना व्यर्थ माना जाता है. यह संकुचित सोच हावी है कि लड़कियों को एक दिन शादी करके दूसरे घर जाना है तो उन्हें पढ़ा कर क्या करना है? जबकि लड़के को इसलिए पढ़ाना चाहिए क्योंकि वह उनके बुढ़ापे का सहारा बनेगा. वही बाहर पैसे कमा कर लाएगा और घर खर्च चलाने में भी मदद करेगा.

पहले समय में लड़कियों की शिक्षा को जरूरी नहीं माना जाता था. लेकिन समय गुज़रने के साथ लोगों ने लड़कियों की शिक्षा के महत्व को महसूस किया है. यह अब आधुनिक युग में लड़कियों के प्रोत्साहन के रूप में माना जाता है. अब महिलाएं जीवन के सभी क्षेत्रों में पुरुषों के साथ बराबरी की प्रतिस्पर्धा कर रही हैं. लेकिन फिर भी कुछ ऐसे लोग हैं जो लड़कियों की शिक्षा का विरोध करते हैं क्योंकि उनका मानना है कि लड़की का काम घर तक सीमित होनी चाहिए. अगर लड़कियों की जल्दी शादी न की जाए तो वह भी शिक्षित होकर लेखक, शिक्षक, वकील, डॉक्टर और वैज्ञानिक के रूप में देश की सेवा कर सकती है. वह बिना किसी संदेह अपने परिवार को एक पुरुष की तुलना में अधिक कुशलता से संभाल सकती है. यह कहना गलत नहीं है कि एक आदमी को शिक्षित करके हम केवल एक व्यक्ति को शिक्षित करते हैं जबकि एक महिला को शिक्षित करके पूरे देश को शिक्षित किया जा सकता है. इसलिए भारत में शिक्षा का अधिकार न केवल पुरुष को बल्कि महिलाओं को भी समान रूप से प्रदान किया जाता है और संविधान में इसे मौलिक अधिकार के रूप में प्रदान किया गया है.

देश की लगभग आधी आबादी महिलाओं की है. आज महिलाएं शिक्षित होकर समान रूप से देश के विकास में योगदान दे रही हैं. देश के कई ऐसे महत्वपूर्ण पद हैं जहां आसीन होकर महिलाएं कुशल नेतृत्व कर रही हैं जिससे देश दोगुनी रफ़्तार से तरक्की कर रहा है. आज समय की ज़रूरत है कि माता-पिता को लड़कियों की शिक्षा और उससे होने वाले लाभों के बारे में जागरूक किया जाए. यह न केवल सरकार का कर्तव्य है बल्कि समाज की भी जिम्मेदारी है. अच्छी बात यह है कि हमारे प्रधानमंत्री ने ‘बेटी बचाओ बेटी पढाओ’ अभियान के माध्यम से लड़कियों की शिक्षा के लिए एक बहुत अच्छी पहल की है. उनके अनुसार यदि हम अपने देश को विकसित करना चाहते हैं तो हमें सभी लड़कियों को समान रूप से शिक्षित करने की ज़रूरत है. यही सभ्य समाज की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी भी है. (चरखा फीचर)

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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