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महंगाई और मंडी की अव्यवस्था से जूझता भोपाल का बिट्टन मार्किट

महंगाई और मंडी की अव्यवस्था से जूझता भोपाल का बिट्टन मार्किट

शाम के 6 बज रहे हैं. भोपाल के आईएसबीटी से बिट्टन मार्किट की ओर आने वाली सड़क दो और चार पहियाँ वाहनों से भरी हुई है. काम से घर की ओर लौटते लोग बिट्टन मार्किट के सब्ज़ी बाज़ार में फल और सब्ज़ी खरीदने के लिए आ रहे हैं. तबरेज़ खान ऐसे ही एक ग्राहक को अनार तौलते हुए हमसे अपनी समस्या बता रहे हैं. वह यहाँ 20 साल से फल का ठेला लगा रहे हैं. तबरेज़ कहते हैं,

“20 साल में बाज़ार बहुत बदल गया है. लोग भी बदल गये हैं. अब फल से ज़्यादा बाज़ार का समान (fastfood) खाते हैं लोग.”


तबरेज़ खान बिट्टन मार्किट में 20 साल से फलों का ठेला लगा रहे हैं, फ़ोटो – ग्राउंड रिपोर्ट

कैसे होता है मंडी का संचालन 

यह एक खुला बाज़ार है. इसे साधारण शब्दों में कहें तो शहर के बीच में एक ख़ाली जगह है जहाँ लोग खुले आसमान के नीचे बैठते हैं. यानि धूप और बारिश से बचने के लिए सरकार की ओर से कोई भी सुविधा नहीं दी गई है. यहाँ दुकान लगाने वाले ज़्यादातर व्यापारी खुद के खर्च से पन्नी का तिरपाल लगाते हैं. बिट्टन मार्किट में दोपहर 2 बजे से ज़्यादातर दुकानदार अपनी दुकान लगा लेते हैं. यहाँ किसी को भी कोई जगह नगर पारिषद की ओर प्रदान नहीं की गई है. “जो जहाँ सालों से बैठ रहा है उसकी वही जगह फिक्स हो गई है.” एक अन्य फल विक्रेता मोहम्मद शमशाद खान बताते हैं.   

मार्किट में है सुविधाओं का आभाव

तबरेज़ मार्किट में सुविधाओं के आभाव का ज़िक्र करते हुए कहते हैं कि यहाँ शौचालय का न होना एक समस्या है. वह बताते हैं कि जितने लोग इस बाज़ार में धंधा करते हैं उनकी संख्या के अनुरूप शौचालय नहीं है.

“एक-दो ही टॉयलेट हैं उसमें सबको जाना पड़ता है. वह भी अच्छे से साफ़ नहीं रहते हैं.”

हमने उनसे इस बारे में और भी बात करते हुए पानी की सुविधा के बारे में भी पूछा. वह बताते हैं कि प्रशासन की ओर से पानी की सुविधा नहीं की गई है.  कमाल की बात यह है कि इस बाज़ार का नाम कांग्रेस के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह की पत्नी के नाम पर रखा गया था. यह इलाका दक्षिण-पश्चिम विधानसभा के अंतर्गत आता है. यहाँ से कांग्रेस विधायक पीसी शर्मा हैं.

Bittan Market Bhopal
बिट्टन मार्किट में बिजली की समस्या काफी गंभीर है. फ़ोटो – ग्राउंड रिपोर्ट

“न छत है न बिजली”

यहाँ सब्ज़ी की दुकान लगाने वाले सोनू बताते हैं कि टीन या प्लास्टिक की छत न होने के कारण बरसात के वक़्त उन्हें दिक्कत का सामना करना पड़ता है. तेज़ बारिश और हवा के कारण पन्नी के तिरपाल उड़ने लगते हैं ऐसे में उनका समान और वह दोनों भीग जाते हैं. भोपाल के इस बाज़ार में लगभग सभी दुकानदार बैट्री से चलने वाली लाईट का इस्तेमाल करते हैं. मार्किट के इलाके में कुछ स्ट्रीट लाईट भी लगी हुई हैं. मगर यदि दुकानदारों के इन बैट्री वाली लाइटों को कम कर दिया जाए तो सब्ज़ी और फ़ल विक्रेताओं के लिए लाईट कम पड़ेगी. एक व्यापारी नाम न छापने की शर्त पर कहते हैं, “यहाँ बिजली की बहुत समस्या है. हम सभी को अपनी इस लाईट से काम चलाना पड़ता है. सरकार ने लाईट लगवाकर नहीं दी है.” अपनी दुकान के तिरपाल और लैंप को दिखाते हुए वह कहते हैं, “अपने पास न छत है न बिजली.”

महंगाई की मार झेलते फल विक्रेता

बाज़ार में सीताफल (Sugar Apple) मोहम्मद शमशाद खान बीते 45 सालों से यहाँ फल का व्यापार कर रहे हैं. पहले यहाँ उनकी एक लम्बी-चौड़ी जगह हुआ करती थी जिसमें वह कई तरह के फल रखते थे. मगर अब वह केवल सीज़न में मिलने वाले फल एक छोटे से ठेले में रखते हैं. वह इसका कारण महंगाई को बताते हैं. वह सीताफल का उदाहरण देते हुए कहते हैं, 

“मेरा ये माल अगर आज नहीं बिका तो कल आधे दाम में बेंचना पड़ेगा. महंगाई नहीं होती तो मैं भी 4 तरह के फल रखता तब एक का घाटा दूसरे में कवर हो जाता.”

वह ग्राउंड रिपोर्ट को बताते हैं कि एक बॉक्स में बड़े आकार के 6 सीताफल होते हैं. मौजूदा रेट के हिसाब से 25 रूपए का एक फल होता है. चूँकि यह एक नाज़ुक फल होता है ऐसे में अक्सर कुछ फल फूट जाते हैं जिसका नुकसान उनको होता है. 

बाज़ार में महंगाई का कारण

बिट्टन मार्किट के ज़्यादातर फल विक्रेता करोंद स्थित मंडी से फल खरीद कर लाते हैं. बाज़ार में महँगे फलों का कारण पूछने पर तबरेज़ कहते हैं, “हमें फल महँगा मिल रहा है तो हम बेचते भी महँगा हैं.” वह इसके पीछे का गणित समझाते हुए कहते हैं, “अभी अनार 200 रूपए किलो है ये हमको 150 का पड़ता है. पहले हमने 100 का पड़ता था तो हम 150 में बेंचते थे.” तबरेज़ कहते हैं कि मार्जिन पहले जितना ही होने के कारण फल के रेट बढ़ने पर उनको कोई फायदा नहीं होता. एक अन्य दुकानदार रहीम कहते हैं कि भाव ज़्यादा हो जाने पे ग्राहकों की संख्या कम हो जाती है जिसके कारण उनको घाटा होता है.

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Author

  • Shishir Agrawal

    Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.


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