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भारत को चीते अफ्रीका से क्यों इंपोर्ट करने पड़ रहे हैं, हमारे कहां गए?

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भारत को चीते अफ्रीका से क्यों इंपोर्ट करने पड़ रहे हैं, हमारे कहां गए?

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African Cheetah in India: 70 सालों बाद भारत चीतों को फिर से बसाने के लिए भारत सरकार ने नमीबिया के साथ एक एमओयू साईन किया है। इसके तहत दो बैच में 8 चीते मध्यप्रदेश के कूनो अभ्यारण लाए जाएंगे।

इसके लिए ग्वालियर के पास श्योपुर में कूनो अभ्यारण का चयन किया गया है। यहां पर 15 अगस्त को चीते के पहले बैच की अगवानी के लिए पूरी तैयारियां कर ली गई है।

इसके अलावा भारत को 12 चीते साउथ अफ्रीका से भी मिलेंगे, जिसके लिए दोनों देशों के बीच एक एग्रीमेंट साईन हो चुका है, फाईनल एग्रीमेंट पर साईन होना बाकि है।

कहां गए हमारे चीते?

भारत में आखिरी चीता 1952 में देखा गया था जिसका छत्तीसगढ़ में शिकार हो गया था। अब 69 सालों बाद दोबारा चीतों के भारत में बसाने की तैयारी की जा रही है। इसका मकसद वाईल्डलाईफ कंज़रवेशन और सस्टेनेबल बायोडायवर्सिटी यूटिलाईज़ेश करना है।

यह दुनिया का पहला इंटरकॉन्टीनेंटल वाईल्ड टू वाईल्ड चीता ट्रांस्फर होगा। 100 साल पहले मध्यप्रदेश का कूनो अभ्यारण चीतों का घर हुआ करता था, जहां परदेसी चीतों को दोबारा बसाया जाएगा।

सुप्रीम कोर्ट ने चीतों के लिए उचित जगह के चयन का जिम्मा एक पैनल को सौंपा था जिसने 2010-2012 में 10 जगहों का सर्वे करने के बाद कूनो अभ्यारण को एज ऐ हैबिटाट ऑफ चीता चुना था।

चीतों को बसाने के लिए कूनो अभ्यारण ही क्यों चुना गया?

कूनो अभ्यारण को चुनने का एक कारण यह भी था कि सरकार यहां एशियाटिक लायंस को बसाने के लिए पहले ही काफी इंवेस्टमेंट कर चुकी थी। इसके लिए 500 हेक्टेयर एरिया में हाईली सेक्योर्ड सेमी कैप्टिव केज बनाए गए हैं।

(African Cheetah in India) चीतों के आगमन की तैयारी पूरी हो चुकी है। इसके लिए विशेष वैन तैयार करवाई गई है। ग्वालियर एयरपोर्ट से पिंजरों में रखकर चीतों को लाया जाएगा। शुरु के दो महीने नर मादा को अलग अलग रखा जाएगा ताकि वो वातावरण के अभ्यस्त हो जाएं। नर और मादा दोनों ही अलग-अलग देशों के होंगे ताकि उनमें कोई ब्लड रिलेशन न हो। जब एक ही ब्लड के दो चीता संबंध बनाते हैं तो उनमें कई तरह की जेनेटिक बीमारियों की आशंका होती है। इसीलिए नमीबिया और (African Cheetah in India) साउथ अफ्रीका से अलग अलग जीन ब्लड वाले चीते भारत आ रहे हैं।

इस प्रोजेक्ट पर उठ रहे हैं सवाल

2013 में सुप्रीम कोर्ट ने कुनों में एशियाटिक लायंस को बसाने का आदेश दिया था। 15 साल बाद सरकार अफ्रीका से चीते लेकर आ रही है। जिनके मैग्ज़ीमम संख्या 21 तक हो सकती है, जो कि सेल्फ सस्टेनिंग नहीं है। सरकार एशियाटिक लायंस को कूनों लाने के प्रोजेक्ट से ध्यान भटकाने के लिए अफ्रीका से चीते ला रही है।

चीतों के रखरखाव और उनके इनवायरमेंट को समझने के लिए भारत की और से स्पेशलिस्ट्स को नमीबिया भेजा गया था। (African Cheetah in India) नमीबिया से भी एक टीम कूनो अभ्यारण आई थी जिसने यहां के वातावरण और इंतेज़ाम को देखकर संतुष्टि ज़ाहिर की थी।

हालांकि मध्यप्रदेश सरकार के पास इस सपीशीज़ के रखरखाव के लिए फंड्स नहीं है। इस प्रोजेक्ट के लिए इंडियन ऑईल कॉर्पोरेशन ने सीएसआर के तहत 50 करोड़ का फंड दिया है। मध्यप्रधेश टाईगर फाउंडेशन फंड से अभी 8-10 करोड़ की व्यवस्था कर रही है।

प्रधानमंत्री मोदी अफ्रीकी चीतों (African Cheetah in India) के भारत आगमन का ऐलान 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से करेंगे।

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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