यह ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ का डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट का 52वां एपिसोड है। गुरुवार, 30 अक्टूबर को देश भर की पर्यावरणीय ख़बरों के साथ पॉडकास्ट में बात कम होती क्लाइमेट फाइनेंसिंग और देश के किसान संकट पर।
मुख्य सुर्खियां
हरिकेन मेलिसा के चलते हयाती में 25 लोगों की मौत हो गई. यह तूफान अब क्यूबा की ओर बढ़ गया है.
पब्लिक सेक्टर कंपनी हिन्दुस्तान पेट्रोलियम कारपोरेशन और प्राइवेट स्टील टाईकून लक्ष्मी मित्तल के जॉइंट वेंचर वाली रिफाइनरी कंपनी HPCL-मित्तल एनर्जी ने कहा कि उनके द्वारा आगामी सूचना तक रुसी तेल नहीं खरीदा जाएगा. यह फैसला US, UK और यूरोपीय यूनियन द्वारा राशियन ऑइल पर लगाए गए सेंक्शन के बाद लिया गया है.
दिल्ली में GRAP II लागू होने के बाद नॉर्थ DMC ने शहर में ऑफ़ रोड और इनडोर पार्किंग चार्जेस दोगुना कर दिए हैं. वहीं प्रदूषण के साथ बढ़ने वाली भीड़ के मद्दे नज़र दिल्ली मेट्रो ने 40 एक्स्ट्रा ट्रिप्स ऐड की हैं. यानि अब मेट्रो 40 फेरे अधिक लगाएगी इससे भीड़ को मैनेज किया जा सकेगा.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के रिसर्चर द्वारा किए गए एक शोध के अनुसार साऊथ delhi में बीते 30 सालों में 97% वेटलैंड ख़त्म हो गए हैं. शोध में बताया गया है कि इसी दौरान राजधानी में बिल्ड अप लैंड 70% तक बढ़ी है.
मोंथा तूफ़ान के चलते आंध्रप्रदेश में 3 लोगों की मौत हो चुकी है. इससे 1.50 लाख एकड़ में फसल ख़राब हुई है और लगभग 42 मवेशी मारे गए हैं.
उत्तराखंड सरकार के फैसले के बाद अब नैनीताल-मसूरी आने वाली निजी और व्यावसायिक गाड़ियों को 80 रूपए ग्रीन सेस के साथ दिन भर का कुल 880 रूपए देना होगा.
केन्द्रीय खनन मंत्री पियूष गोयल ने बुधवार को भोपाल में खनन व्यापारियों से मुलाक़ात की. इस दौरान व्यापारियों ने कहा कि उन्हें पर्यावरण मंज़ूरी देरी से मिलती है इस पर मंत्री जी ने कहा कि पर्यावरण प्रक्रिया सरल करने के लिए जल्द ही पर्यावरण मंत्रालय से बैठक की जाएगी.
श्योपुर में बुधवार को एक किसान ने खुद ख़ुशी कर ली. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार किसान ने हाल ही में 5 लाख का क़र्ज़ लिया था जिसे वह धान की फसल बेंचकर चुकाना चाहता था मगर फसल बर्बाद होने के कारण वह ऐसा नहीं कर सका.
मध्य प्रदेश का शीतकालीन सत्र 1 से 5 दिसंबर के बीच प्रस्तावित है. इस दौरान कुल 4 बैठकें होंगी.
भोपाल में महज 48 घंटे के भीतर AQI दोगुना बढ़ गया. 2 दिन पहले शहर के टीटी नगर में बारिश के बाद AQI 43 था जो बुधवार को 127 पहुँच गया.
चर्चा
क्लाइमेट फाइनेंसिंग पर संयुक्त राष्ट्र (UN) की रिपोर्ट
हमारे सहयोगी चंद्र प्रताप तिवारी ने बताया कि यूएन की रिपोर्ट के अनुसार, क्लाइमेट फाइनेंसिंग की वर्तमान उपलब्धता जरूरत से 12 से 14 गुना कम है। क्लाइमेट फाइनेंसिंग: यह वह आर्थिक मदद है जो बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों द्वारा प्रगतिशील या छोटी अर्थव्यवस्था वाले देशों को क्लाइमेट चेंज को अडॉप्ट करने में मदद करने के लिए दी की जाती है। जिम्मेदारी का कारण: बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देशों द्वारा किए गए इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट का खामियाजा छोटी अर्थव्यवस्था वाले देश सबसे ज्यादा भुगत रहे हैं। इसलिए विकसित देशों को यह सहायता देनी चाहिए।

2035 तक हर साल 310 से 365 बिलियन डॉलर फाइनेंस की जरूरत होगी, लेकिन 2023 का आंकड़ा सिर्फ 26 बिलियन है। यह फाइनेंसिंग साल दर साल घट रही है (2020 में 28 बिलियन थी, जो 2021 में घटकर 21 बिलियन हो गई)। यूएन के सेक्रेटरी जनरल एंटोनियो गुट्रेस ने चेतावनी दी है कि यदि यही ट्रेंड रहा और फाइनेंसिंग कम रही, तो लाखों लोग एक बड़े रिस्क में आ जाएंगे। बड़े देश क्लाइमेट चेंज के लिए काम करने का दावा तो करते हैं, लेकिन क्लाइमेट फाइनेंसिंग नहीं करना चाहते। उदाहरण के लिए, ग्लासगो क्लाइमेट पैक्ट में 2025 तक 40 बिलियन की फाइनेंसिंग की बात की गई थी।
लगभग 87 कंट्रीज के पास अपना नेशनल क्लाइमेट एडप्टेशन प्लान है, लेकिन संसाधनों की कमी के कारण वे इन्हें लागू करने में संघर्ष कर रही हैं। यह भी देखा गया है कि केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को वायु प्रदूषण जैसे पर्यावरणीय मसलों के लिए दिए गए पैसे भी कई बार खर्च नहीं किए गए हैं।
किसानों का आर्थिक संकट और ऋण
हमारे सहयोगी अब्दुल वसीम अंसारी ने बताए प्रदेश के कृषि संकट के बारे में कि गई उनकी रिपोर्टिंग के अनुभव के बारे में।
अत्यधिक बारिश के कारण बीज अंकुरण में समस्याएं आईं, जिससे किसानों को फसल दो से तीन बार बोनी पड़ी। इससे उनकी लागत डबल से तिबल हो गई (उदाहरण के लिए, ₹6000 प्रति बीघा की लागत बढ़ गई)। पीला मोजक वायरस: फसल बड़ी होने पर वह पीला मोजक वायरस के कारण पीली पड़कर बर्बाद हो गई और दाना खराब हो गया। अपर्याप्त फसल बीमा: फसल बीमा का मुआवजा ‘क्रॉप कटिंग’ के आधार पर वितरित किया जाता है, लेकिन किसानों को ₹80, ₹85, ₹100, ₹150 जैसी बहुत कम राशि प्राप्त होती है, जिससे उन्हें निराशा होती है।

किसानों को मंडी में उनकी फसल के लिए अक्सर एमएसपी से कम भाव मिलते हैं। कई किसान भावान्तर योजना जैसी सरकारी योजनाओं में रजिस्ट्रेशन तक नहीं कराते और यदि वे सोसाइटी से लिया गया ऋण अदा नहीं कर पाते हैं, तो उन्हें डिफ़ॉल्टर घोषित कर दिया जाता है। डिफ़ॉल्टर घोषित होने के बाद किसानों को खाद और अन्न के आगे लेनदेन से वंचित कर दिया जाता है। इस कारण उन्हें अगली (रबी) फसल बोने के लिए साहूकारों (प्राइवेट मनीलेंडर) से कर्ज लेना पड़ता है। सरकारी योजनाएं अक्सर धरातल पर नहीं उतरतीं और छोटे किसान आज भी संघर्ष कर रहे हैं।
विकास परियोजनाओं की दोहरी मार:
किसान आर्थिक संकट के साथ-साथ डेवलपमेंट प्रोजेक्ट्स की भी दोहरी मार झेल रहे हैं, जो उनके हितों के विरुद्ध जा रहे हैं। गुना जिले के घाटाखेड़ी में पार्वती-काली सिंध-चंबल लिंक प्रोजेक्ट के किसान शिकायत कर रहे हैं कि सरकार उनकी जमीन डुबोने के लिए एक बड़ा डैम बनाना चाहती है। किसान, जो पहले से ही तीन फसलें (जैसे टमाटर और हरी मिर्च) ले रहे थे, ने सुझाव दिया कि यदि दो छोटे-छोटे डैम बना दिए जाएं, तो पुनर्वास की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। महाराष्ट्र के नागपुर में कृषि ऋण माफी के लिए पूर्व विधायक बच्चू कड़ू के नेतृत्व में प्रदर्शन चल रहा था।
बॉम्बे हाई कोर्ट के निर्देश के बाद प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रीय राजमार्ग 44 खाली करने और पास के एक मैदान में जाने का निर्णय लिया। आगे की रणनीति गुरुवार को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडनवीस से बच्चू कड़ू की मुलाकात के बाद तय होगी।
यह था हमारा डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट। ग्राउंड रिपोर्ट में हम पर्यावरण से जुडी हुई महत्वपूर्ण खबरों को ग्राउंड जीरो से लेकर आते हैं। इस पॉडकास्ट, हमारी वेबसाईट और काम को लेकर आप क्या सोचते हैं यह हमें ज़रूर बताइए। आप shishiragrawl007@gmail.com पर मेल करके, या ट्विटर हैंडल @shishiragrawl पर संपर्क करके अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं।
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