यह ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ के डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट का 75वां एपिसोड है। बुधवार, 26 नवंबर को देश भर की पर्यावरणीय ख़बरों के साथ पॉडकास्ट में जानिये मेलघाट में कुपोषण से बच्चों की बढ़ती मौतों के बारे में।
हेडलाइंस
मंदसौर: प्याज का अंतिम संस्कार प्रदर्शन
मध्य प्रदेश के मंदसौर में प्याज किसानों ने अपनी फसल का प्रतीकात्मक अंतिम संस्कार जुलूस निकाला, क्योंकि बाजार में दाम घटकर सिर्फ 1 रुपये किलो तक पहुंच गए। जबकि उनकी उत्पादन लागत 10 से 12 रुपये किलो तक है।
किसानों ने सजे हुए अर्थी और बैंड बाजे के साथ विरोध जताया, ताकि उनकी मजबूरी और नुकसान का दर्द लोगों तक पहुंचे। उनका कहना था कि जब कमाई लागत से भी कम है, तो खेती जारी रखना मुश्किल हो जाएगा।
उन्होंने सरकार से दखल देने और प्याज के लिए तय समर्थन मूल्य लागू करने की मांग की।
वहीं, स्थानीय विपक्षी दलों ने भी सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि कीमतों को स्थिर करने के लिए तत्काल कदम उठाने की जरूरत है।
दिल्ली: 70 नए आयुष्मान आरोग्य मंदिरों का उद्घाटन
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने 70 नए आयुष्मान आरोग्य मंदिरों का उद्घाटन किया, जिससे कई जिलों में ज़रूरी स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच और आसान होगी। गुप्ता ने शहरभर में 1,000 से ज्यादा ऐसे केंद्र शुरू करने का लक्ष्य तय किया और कहा कि उनकी सरकार का फोकस नागरिक कल्याण और स्वास्थ्य पर है।
थाईलैंड में बाढ़: सेना की बड़ी तैनाती
थाईलैंड में भारी बाढ़ से हालात बिगड़ने पर सेना को राहत और बचाव कार्यों में लगाया गया। दक्षिणी हिस्से के नौ प्रांतों में हजारों लोगों को निकालने की तैयारी की गई है। यहां बाढ़ का पानी दो मीटर तक पहुंच गया है, जिससे करीब 21 लाख लोग प्रभावित हुए हैं और अब तक कम से कम 13 मौतें हुई हैं।
पड़ोसी देश मलेशिया के इलाके भी इससे प्रभावित हुए हैं। थाई नौसेना ने राहत के लिए नावें और अपना एयरक्राफ्ट कैरियर ‘चक्री नरुबेथ’ भी भेजा है, जो एक तैरते अस्पताल की तरह काम करेगा और जरूरतमंदों तक खाना, दवा और मदद पहुंचाएगा। अधिकारियों के मुताबिक, कई इलाकों में “300 साल में एक बार” जितनी भीषण बारिश हुई है, जिसके चलते लोगों को अस्थायी शिविरों में रखा जा रहा है।
पूर्वोत्तर भारत: अब नया वायु प्रदूषण हॉटस्पॉट
भारत का पूर्वोत्तर इलाका, खासकर असम और त्रिपुरा, अब सालभर वायु प्रदूषण के गंभीर केंद्र के रूप में उभर रहा है। यहां लगातार PM2.5 का स्तर ऊंचा बना हुआ है। रिपोर्टों में सामने आया है कि ज़्यादातर ज़िलों में वार्षिक औसत PM2.5 स्तर अब राष्ट्रीय मानक से ऊपर जा चुका है, जो बताता है कि यहां प्रदूषण अब मौसमी नहीं रहा।
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि अब सिर्फ शहरों पर नहीं, बल्कि ज़िला स्तर पर भी ठोस ‘क्लीन एयर’ नीतियों की जरूरत है, क्योंकि प्रदूषण तेज़ी से बढ़ रहा है। यहां तक कि मानसून की बारिश भी अब हवा को साफ करने में कारगर नहीं रही, इसलिए विशेषज्ञ क्षेत्र-विशेष रणनीतियों और सख्त कार्रवाई की मांग कर रहे हैं।
केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट में फिर बदला रूट, लागत बढ़ी ₹12,000 करोड़
केन-बेतवा लिंक नहर का एलाइनमेंट दो साल में दूसरी बार बदला गया है, जिससे परियोजना की कुल लागत करीब 12,000 करोड़ रुपये तक बढ़ गई है।
मुख्य वजह यह है कि नई दिशा में नहर अब कलेक्टर और एसपी जैसे सरकारी आवासीय इलाकों से होकर नहीं गुज़रेगी। यह परियोजना केन नदी से बेतवा नदी तक पानी पहुंचाने के लिए है, जिसमें 77 किलोमीटर लंबी नहर बनेगी जो 10 जिलों को फायदा पहुंचाएगी और करीब 44 लाख हेक्टेयर जमीन को सिंचित करेगी।
रूट बदलने से नहर की दूरी और तकनीकी जटिलता दोनों बढ़ गई हैं, इसलिए अब सेंट्रल वॉटर कमीशन और राज्य के विशेषज्ञ इसका नया मूल्यांकन कर रहे हैं। पहले चरण की लागत ही करीब 3,000 करोड़ रुपये बताई जा रही है, और किसान, पर्यावरणविद् तथा अधिकारी सभी परियोजना की देरी और दक्षता पर सवाल उठा रहे हैं।
भारत में रोड डस्ट और साफ हवा की चुनौती
भारतीय शहरों में सड़कों की धूल (रोड डस्ट) वायु प्रदूषण का बड़ा कारण बनी हुई है, जिससे सरकार और स्थानीय निकायों के लिए स्वच्छ हवा सुनिश्चित करना मुश्किल हो रहा है।
हालिया अध्ययनों के मुताबिक, रोड डस्ट कुल PM2.5 प्रदूषण में सबसे बड़ा योगदानकर्ता है। खासकर उन शहरों में जहां वाहनों की संख्या ज़्यादा है और सड़क रखरखाव कमजोर है। सरकार और नगर निगमों ने मशीनों से सड़क सफाई, सड़कों के किनारे हरियाली लगाने और निर्माण कार्यों में बेहतर नियंत्रण जैसी पहलें शुरू की हैं, लेकिन नतीजे अब तक मिले-जुले हैं और ज़मीन पर इनका पालन कमजोर है।
विशेषज्ञों का मानना है कि दीर्घकालिक समाधान के लिए सड़क ढांचे में सुधार, सख्त नियम, और जनता में जागरूकता। इन तीनों का साथ मिलकर काम करना जरूरी है, तभी हवा की गुणवत्ता में स्थायी सुधार संभव है।
सिंगरौली में पावर प्लांट के लिए वनों की कटाई
मध्य प्रदेश के सिंगरौली में एक निजी पावर प्लांट के लिए बड़े पैमाने पर जंगलों की कटाई की खबरें सामने आई हैं, जिसके बाद स्थानीय ग्रामीणों ने जोरदार विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया है। गांववालों का आरोप है कि सरकार दोहरा रवैया अपना रही है। जहां एक तरफ दूसरे ज़िलों में वृक्षारोपण अभियान चलाए जा रहे हैं, वहीं उनके इलाके में हरे-भरे जंगल उजाड़े जा रहे हैं। इससे न केवल उनका रोज़गार और आजीविका खतरे में है, बल्कि पूरा पारिस्थितिक तंत्र भी प्रभावित हो रहा है।
स्थिति इतनी बिगड़ गई कि प्रशासन को भारी पुलिस बल तैनात करना पड़ा और एहतियातन धारा 144 भी लगा दी गई। ग्रामीणों को डर है कि जंगल खत्म होने से उन्हें ईंधन, चारा और अन्य प्राकृतिक संसाधनों की भारी कमी झेलनी पड़ेगी। समुदाय के नेताओं ने सरकार से परियोजना की पूरी समीक्षा और पारदर्शी जनपरामर्श की मांग की है। उनका कहना है कि सिंगरौली पहले से ही कोयला खनन और पावर प्लांट्स के चलते गंभीर वायु प्रदूषण से जूझ रहा है, और अब यह नई परियोजना पर्यावरण पर और भारी असर डाल सकती है।
मेलघाट में कुपोषण से बच्चों की बढ़ती मौतें।
मेलघाट में कुपोषण से नवजातों की मौतें लगातार चिंता का विषय बनी हैं, जिससे बॉम्बे हाईकोर्ट ने राज्य और केंद्र सरकार को फटकार लगाई। पिछले एक साल में 90 से अधिक बच्चों की मौत दर्ज हुई है, जबकि सैकड़ों गंभीर कुपोषण (SAM) श्रेणी में हैं। सरकार का दावा है कि मौतें सिर्फ कुपोषण नहीं बल्कि एनीमिया, सिकल सेल और समय पर इलाज न मिल पाने जैसी वजहों से भी हो रही हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि मजबूत स्वास्थ्य ढांचा, मातृ देखभाल और सामुदायिक भागीदारी ही मेलघाट की असली जरूरत है। इस पर हम अपने साथी पालव से विस्तार में चर्चा करेंगे।
चर्चा
मेलघाट में कुपोषण से नवजात मौतें: हाईकोर्ट की फटकार
बॉम्बे हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें याचिकाकर्ता ने क्लेम किया कि जून 2025 से अब तक महाराष्ट्र के अमरावती जिले के मेलघाट में ज़ीरो से 6 माह तक के 65 नवजात बच्चों की मौत कुपोषण की वजह से हुई है। जबकि 220 से ज्यादा बच्चे गंभीर रूप से कुपोषित श्रेणी में हैं, और अगर इन्हें मदद नहीं भेजी गई तो इनमें से 50 फीसदी बच्चों की मौत हो सकती है। 12 नवंबर को हाईकोर्ट ने इस मामले पर महाराष्ट्र और केंद्र सरकार दोनों को फटकार लगाई है।
मेलघाट में मुख्य आबादी कोरकू आदिवासी समुदाय की है। नवजात बच्चों की मौत, जननी सुरक्षा और कुपोषण की समस्या यहां सरकार द्वारा तीन दशकों से चलाए जा रहे अभियानों के बाद भी बनी हुई है। अमरावती ज़िला परिषद के डेटा के मुताबिक, अप्रैल 2024 से मार्च 2025 तक 96 बच्चों की मौत हुई और इस वर्ष के पिछले सात महीनों में 61 बच्चों की मौत दर्ज की गई है। हालांकि, ज़िला परिषद ऑफिस के अधिकारियों का कहना है कि इनमें से ज़्यादातर मौतें सिर्फ़ कुपोषण की वजह से नहीं, बल्कि एनीमिया, सिकल सेल बीमारी, निमोनिया, कनेक्टिविटी की कमी की वजह से इलाज में देरी और दूसरी वजहों से भी हुई हैं।
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ पॉपुलेशन साइंसेज के मुताबिक, बच्चों के पोषण के मामले में महाराष्ट्र का प्रदर्शन खराब है। पाँच साल से कम उम्र के 35% बच्चे छोटे कद के हैं और 35% कम वज़न के हैं। वहीं, महाराष्ट्र के महिला और बाल कल्याण विभाग के मंत्री द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, पोषण ट्रैकर डेटा में पूरे राज्य में 1,82,443 कुपोषित बच्चे दर्ज किए गए हैं।
मेलघाट में चुनौतियाँ कई हैं। समय पर अस्पताल पहुँचने के लिए सही सड़कें नहीं हैं, घरों में बिजली की सप्लाई ठीक से नहीं होती, प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों की भारी कमी है, और नशे का ज़्यादा इस्तेमाल भी एक सामाजिक समस्या बन चुका है। सरकारी विभागों के बीच तालमेल की कमी है, मॉनिटरिंग सही ढंग से नहीं होती और डॉक्टरों को लंबे समय तक वहाँ बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती है।
पीढ़ियों से चला आ रहा कुपोषण भी एक गंभीर चिंता का विषय है। अक्सर महिलाएं गर्भावस्था में बहुत कम वज़न और खून की कमी के साथ आती हैं, जिससे कम वज़न वाले बच्चे जन्म लेते हैं। ऐसे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होती है और उन्हें बार-बार संक्रमण का खतरा बना रहता है।
एक्सपर्ट्स का कहना है कि कुपोषण को खत्म करने का मतलब सिर्फ़ मिड-डे मील या खाने-पीने की चीज़ें देना नहीं है। इसमें एक सशक्त और सुलभ हेल्थकेयर सिस्टम बनाना शामिल है, जहाँ माँ और बच्चे दोनों को उचित पोषण और इलाज मिले। हेल्थ की अच्छी जानकारी रखने वाले ASHA वर्कर्स का नेटवर्क बनाना चाहिए, ताकि ज़मीनी स्तर पर निगरानी और मदद दोनों हो सके। साथ ही, हेल्थ और न्यूट्रिशन प्रोग्राम के ज़रिए को-मॉर्बिडिटीज़ का ध्यान रखा जाए, कम्युनिटी-सेंटर्ड बिहेवियर में बदलाव लाया जाए, और मजबूत सिविक व हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर विकसित किया जाए।
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