यह ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ के डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट का एपिसोड-101 है। शुक्रवार, 26 दिसंबर को देश भर की पर्यावरणीय ख़बरों के साथ पॉडकास्ट में जानिए भारत के तटीय राज्यों के गांवों के बारे में, जिन्हे सुनामी के लिए तैयार किया जा रहा है।
मुख्य सुर्खियां
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि किसानों की फसल MSP से कम दाम पर क्यों बिक रही है। जबलपुर इलाके से याचिका आई है कि धान, चना और मूंग की खरीद में MSP का पालन नहीं हो रहा। कोर्ट ने 2024-25 के MSP और मंडी भाव की तुलना भी सामने रखी है।
भारत जल्द ही 100 से ज़्यादा त्सुनामी-तैयार गांवों वाला देश बनने जा रहा है जो कि हिंद महासागर क्षेत्र में सबसे ज़्यादा है। इन गांवों में चेतावनी सिस्टम, मॉक ड्रिल, निकासी नक्शे और जागरूकता पूरी होती है। ओडिशा, गुजरात, केरल और अंडमान जैसे राज्य इसमें तेजी से गांव जोड़ रहे हैं।
जापान समुद्र की सतह से 6,000 मीटर नीचे से रेयर-अर्थ खनिज निकालने का टेस्ट करेगा। यह टेस्ट जनवरी से फरवरी तक चलेगा। मकसद है सेरियम और नियोडिमियम जैसे जरूरी खनिजों की घरेलू सप्लाई बढ़ाना। पर्यावरण पर असर पर भी नजर रखी जाएगी।
मध्य प्रदेश में करीब 4,667 करोड़ रुपये के 10 नेशनल हाईवे प्रोजेक्ट अटके पड़े हैं। वजह है जंगल की मंज़ूरी और ज़मीन अधिग्रहण में देरी। अब केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री ने मुख्यमंत्री से कहा है कि 5 जनवरी को मीटिंग बुलाकर मामला सुलझाया जाए। देरी की वजह से लागत बढ़ रही है और प्रोजेक्ट समय पर पूरे नहीं हो पा रहे।
FSSAI ने साफ कहा है कि हर्बल या पौधों से बने ड्रिंक को ‘चाय’ के नाम से बेचना गलत है। ‘चाय’ वही कहलाएगी जो Camellia sinensis पौधे से बनी हो। ग्रीन टी और ब्लैक टी ठीक हैं, लेकिन तुलसी, हल्दी या जड़ी-बूटी वाले ड्रिंक को अलग नाम देना होगा।
गुरुग्राम में अब चौथा स्टॉर्मवॉटर ड्रेनेज सिस्टम बनाया जाएगा। बड़े नाले, नई पाइपलाइन और घर-घर कचरा उठाने की व्यवस्था 2026 की शुरुआत तक लागू करने की योजना है। NH-48 के पास एक अहम ड्रेनेज लाइन भी बनेगी ताकि बरसात में पानी भरने की समस्या कम हो।
रीवा में अमित शाह ने किसानों से प्राकृतिक खेती अपनाने की अपील की। उन्होंने भरोसा दिलाया कि सरकार सर्टिफिकेशन से लेकर बिक्री तक सब संभालेगी। केंद्र सरकार स्टोर और बड़े खरीदारों का नेटवर्क बनाएगी ताकि किसानों को पक्का बाजार और बेहतर दाम मिल सके।
विस्तृत चर्चा
भारत के 100 सुनामी रेडी गांव
इंडियन ओशन रीजन में भारत एक बड़ा और गंभीर कदम उठाने जा रहा है। देश 100 ऐसे गांव तैयार करेगा जो सुनामी जैसी आपदाओं का सामना करने में सक्षम होंगे। ऐसा करने वाला भारत दुनिया का पहला देश बन जाएगा, जहां इतनी बड़ी संख्या में “सुनामी रेडी विलेज” होंगे। इन गांवों में सिर्फ चेतावनी सिस्टम नहीं होगा, बल्कि लोग खुद आपदा को समझेंगे। उन्हें पता होगा कि सुनामी क्या है, कब खतरा बढ़ता है, और उस वक्त क्या करना है। गांवों में पहले से मैपिंग होगी, सुरक्षित रास्तों और इवैकुएशन प्लान तय होंगे, 24 घंटे वॉर्निंग सिस्टम काम करेगा और नियमित मॉक ड्रिल कराई जाएंगी। यह कोई ऊपर से थोपा गया मॉडल नहीं है, बल्कि एक ऐच्छिक सामुदायिक कार्यक्रम है, जिसमें स्थानीय लोग, कम्यूनिटी लीडर्स और आपदा प्रबंधन से जुड़ी एजेंसियां साथ मिलकर काम करेंगी। इस पूरी प्रक्रिया के बाद गांवों को यूनेस्को के इंटरगवर्नमेंटल ओशनोग्राफिक कमीशन की तरफ से सर्टिफिकेट दिया जाएगा। इस कार्यक्रम में ओडिशा सबसे आगे है, जहां 72 गांवों को यह ट्रेनिंग दी जाएगी। इसके अलावा गुजरात, केरल, आंध्र प्रदेश और अंडमान-निकोबार में भी कुछ गांव चुने गए हैं। आपदा के वक्त तैयारी, सजगता और लोगों की भागीदारी कितनी अहम होती है, यह हम बार-बार देख चुके हैं। ऐसे में यह ट्रेनिंग समुदाय को मजबूत करेगी और उम्मीद यही है कि इससे भविष्य में जान-माल का नुकसान कम किया जा सकेगा।
जापान की गहरे समुद्र माइनिंग पहल
जापान 11 जनवरी से 14 फरवरी के बीच टोक्यो से करीब 1,900 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित मिनमिटोरी द्वीप के पास गहरे समुद्र में रेयर-अर्थ से भरपूर मिट्टी की टेस्ट माइनिंग करने जा रहा है। यह दुनिया की पहली ऐसी कोशिश होगी, जिसमें लगभग 6,000 मीटर की गहराई से समुद्र तल की मिट्टी को ऊपर लाया जाएगा। रेयर-अर्थ मिनरल्स को लेकर पूरी दुनिया में जबरदस्त होड़ मची हुई है और जापान इसमें पीछे नहीं रहना चाहता। टोक्यो, अपने पश्चिमी सहयोगियों की तरह, जरूरी खनिजों की स्थिर सप्लाई सुरक्षित करना चाहता है। इसकी एक बड़ी वजह यह भी है कि चीन, जो रेयर-अर्थ का सबसे बड़ा सप्लायर है, उसने अपने एक्सपोर्ट कंट्रोल और सख्त कर दिए हैं। रॉयटर्स के मुताबिक, इस टेस्ट ऑपरेशन में जापान का फोकस गहरे समुद्र में माइनिंग सिस्टम को जोड़ने और रोज़ाना करीब 350 मीट्रिक टन रेयर-अर्थ मिट्टी उठाने की क्षमता हासिल करने पर होगा। साथ ही, इस पूरे ऑपरेशन के दौरान जहाज पर और समुद्र तल पर पर्यावरण पर पड़ने वाले असर की लगातार निगरानी भी की जाएगी। यानी खनिजों की होड़ के साथ-साथ पर्यावरण के सवाल भी इस प्रयोग के केंद्र में रहेंगे।
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