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जंगल की ज़मीन खेती के लिए लीज़ पर देना गैर कानूनी: सुप्रीम कोर्ट

ग्राउंड रिपोर्ट के डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट ‘पर्यावरण आज’ के 96वे एपिसोड में देश के अखबारोें में छपी पर्यावर्णीय खबरों के साथ हमने विस्तार से बात की गंगा और यमुना के सिकुड़ते फ्लड प्लेन्स और सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश की जिसमें जंगली की ज़मीन को खेती के काम के लिए लीज़ पर देना गैरकानूनी करार दिया गया है।

मुख्य सुर्खियां

शुक्रवार को संसद का शीतकालीन सत्र खत्म हो गया। इस बार वायु प्रदूषण पर कई प्रश्न पूछे गए। हालांकि लोकसभा में विपक्ष की मांग के बाद भी इस बार बहस नहीं हुई।


संसद में दिए एक जवाब में सरकार ने कहा कि AQI के उच्च स्तर और फेफड़ों की बीमारी में सीधा संबंध स्थापित करने वाला कोई भी आंकड़ा नहीं है।


दिल्ली के शिक्षा मंत्री आशीष सूद ने शुक्रवार को घोषणा की कि पहले फेज में सरकारी स्कूलों के 10,000 क्लासरूम में एयर प्यूरीफायर लगाए जाएंगे. इसके लिए शुक्रवार को ही टेंडर जारी कर दिए गए हैं।


कोहरे के चलते IGI एयर पोर्ट पर 177 फ्लाइट्स रद्द कर दी गईं वहीं 500 के करीब फ्लाइट्स देरी से चल रही हैं।


ग्रेट इंडियन बस्टर्ड से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए सुप्रीमकोर्ट ने कहा कि कंपनियां अपने काम से प्रभावित होने वाले वन्यजीवों और नाजुक इकोसिस्टम की सुरक्षा को नज़रअंदाज़ करते हुए सामाजिक रूप से ज़िम्मेदार होने का दावा नहीं कर सकतीं।


सतना में HIV पॉजिटिव blood चढ़ाए जाने के मामले में 3 जिम्मेदारों को सस्पेंड कर दिया गया। अब तक 6 बच्चों के HIV से संक्रमित होने का पता चला है। इसी बीच यहां के सरकारी अस्पताल के सिक न्यू बॉर्न केयर यूनिट में चूहे घूमते हुए नजर आए।


मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इंदौर नगर निगम को आवारा कुत्तों के प्रबंधन के मामले में फटकार लगाई। निगम ने कहा कि 2 लाख 39 हज़ार कुत्तों की नसबंदी कराई जा चुकी है इस पर बीच में ही रोकते हुए कोर्ट ने कहा कि यह आंकड़े बहुत बड़े घोटाले की ओर इशारा करते हैं।

चर्चा

उत्तर प्रदेश सरकार गंगा यमुना बाढ़ क्षेत्र बचाएगी

पिछले 15-20 वर्षों में लोगों ने नदी के प्राकृतिक फैलाव वाले क्षेत्रों में घर और दुकानें बना ली हैं, जिससे बाढ़ आने पर भारी नुकसान होता है।

Photo credit: Ground Report

इसे रोकने के लिए, उत्तर प्रदेश सरकार ने नदियों के किनारे खंभे लगाकर सीमाओं को चिन्हित करने की योजना बनाई है। इस परियोजना के मुख्य बिंदु निम्नलिखित हैं:

गंगा नदी परियोजना: इसके तहत 710 किमी क्षेत्र में 13 जिलों के भीतर 7,350 खंभे लगाए जा रहे हैं, जिनमें से 10 जिलों में काम शुरू हो चुका है।

यमुना नदी परियोजना: यहाँ कार्य और भी व्यापक है, जिसमें 17 जिलों में 21,582 खंभे लगाए जाएंगे, जो गंगा की तुलना में लगभग तीन गुना अधिक है।

समय सीमा और उद्देश्य: इन सभी कार्यों को मार्च 2026 तक पूरा करने का लक्ष्य है। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के आदेशों के बाद सिंचाई विभाग ने यह विस्तृत रिपोर्ट और योजना प्रस्तुत की है।

इस पहल का मुख्य उद्देश्य लोगों को बाढ़ से सुरक्षित रखना, अवैध निर्माण को रोकना और नदियों को उनके प्राकृतिक स्वरूप में वापस लाना है।

इसे आप एक “लक्ष्मण रेखा” की तरह समझ सकते हैं, जो नदियों और इंसानी बस्तियों के बीच एक सुरक्षित दायरा तय करती है, ताकि बाढ़ के समय जान-माल का नुकसान न हो और नदी को बहने के लिए उसकी अपनी जगह मिल सके।


सुप्रीम कोर्ट: बिना केंद्र अनुमति जंगल की जमीन पर खेती गैरकानूनी

What is the Aravalli forest Safari project?

वन संरक्षण अधिनियम की धारा 2 के तहत केंद्र सरकार की पूर्व अनुमति के बिना जंगल की जमीन को खेती या किसी भी गैर-वन गतिविधि के लिए लीज पर नहीं दिया जा सकता।

यह विवाद कर्नाटक के धारवाड़ जिले के बेनाची और टुमारी कोपा गांवों की 134 एकड़ जंगल की जमीन से जुड़ा है, जिसे 1976 में एक कोऑपरेटिव सोसाइटी को खेती के लिए लीज पर दिया गया था। राज्य सरकार द्वारा 1985 में लीज समाप्त करने के बाद भी सोसाइटी ने कानूनी लड़ाई जारी रखी और हाईकोर्ट से राहत प्राप्त कर ली थी।

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: जस्टिस विक्रमनाथ और संदीप मेहता की बेंच ने हाईकोर्ट के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि बिना केंद्र की मंजूरी के ऐसी लीज देना ही गैरकानूनी था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि मौजूदा कानूनों के अनुसार जंगल की जमीन का उपयोग खेती जैसे गैर-वन उद्देश्यों के लिए नहीं किया जा सकता।

पारिस्थितिक बहाली (Ecological Restoration): कोर्ट ने केवल लीज को अवैध ही नहीं ठहराया, बल्कि कर्नाटक वन विभाग को निर्देश दिया है कि विशेषज्ञों की सलाह लेकर उस 134 एकड़ जमीन पर स्थानीय पौधे और पेड़ लगाकर जंगल को फिर से बहाल किया जाए।

महत्व: यह फैसला एक मिसाल है कि राज्य सरकारें केंद्र की अनुमति के बिना वन भूमि का स्वरूप नहीं बदल सकतीं और किसी भी अवैध कब्जे को जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती。

सरल शब्दों में कहें तो, जंगल की जमीन पर बिना अनुमति खेती करना वैसा ही है जैसे किसी दूसरे के घर में बिना पूछे बदलाव करना; कानून अंततः आपको उसे उसकी मूल स्थिति में वापस लाने का आदेश देगा।


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