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क्या कहता है नया न्यूक्लियर बिल SHANTI?

यह ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ के डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट का एपिसोड-93 है। बुधवार, 17 दिसंबर को देश भर की पर्यावरणीय ख़बरों के साथ पॉडकास्ट में जानिए सरकार के न्यूक्लियर एनर्जी से संबंधित नए बिल और ठंड और प्रदूषण से जुड़े महत्वपूर्ण अपडेट।

मुख्य सुर्खियां 

मथुरा में यमुना एक्सप्रेस-वे पर कोहरे के चलते 8 बसें और 3 कारें भिड़ गईं। टक्कर होते ही गाड़ियों में आग लग गई।  अब तक की जानकारी के अनुसार 13 लोगों की जलकर मौत हो गई है और 70 लोग घायल हुए हैं।


दिल्ली में एक्यूआई 378 रिकॉर्ड किया गया है। इसी के साथ अब यह दुनिया का तीसरा सबसे प्रदूषित शहर बन गया है। वहीं दिल्ली में अब सिर्फ बीएस 6 वाहनों को ही एंट्री मिलेगी। 


2020 में भारत में कैंसर के लगभग 13.9 लाख मामले थे, वहीं 2024 में यह संख्या बढ़कर 15.3 लाख से अधिक हो गई।


संसद में शांति बिल (N-Energy) प्रपोज किया गया है। यह बिल भारत के परमाणु ऊर्जा क्षेत्र में नियमों को आसान बनाकर निजी और विदेशी निवेश का रास्ता खोलता है, खासकर नई परियोजनाओं और स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) जैसी तकनीकों के लिए। 


अनूपपुर, मंडला और डिंडोरी में बनने वाले बांध प्रोजेक्ट्स में हो रहे पुनर्वास के लिए 1782 करोड़ के पुनर्वास पॅकेज को मंजूरी दे दी गई है। आप को बता दें कि इन बांधों से 13873 परिवार प्रभावित होंगे। 


मंगलवार को भी fog  के चलते दिल्ली एयरपोर्ट पर 300 से ज़्यादा फ्लाइट्स लेट हुईं और कई एयरलाइंस ने कम से कम 126 फ्लाइट्स कैंसिल कर दीं।


मध्य प्रदेश के सतना में 4 बच्चों को HIV संक्रमित ब्लड चढ़ा दिया गया। 4 से 11 साल तक के यह बच्चे थैलीसीमिया के मरीज़ हैं।


विस्तृत चर्चा

नसबंदी फेल, सिस्टम की लापरवाही, न्याय कब?

woman in Rajgarh Madhya Pradesh Walked 10 KM for Justice after failed tubal ligation operation

यह चर्चा एक महिला के मामले पर केंद्रित है जो नसबंदी (sterilization) फेल होने के बाद मुआवजे की मांग कर रही है, और इसमें प्रशासनिक प्रणाली की खामियों को उजागर किया गया है,.

शिकायत का विवरण और पृष्ठभूमि

महिला ने वर्ष 2022 में जिला अस्पताल में पूरी प्रक्रिया के साथ नसबंदी कराई थी और उसके पास इसका प्रमाण पत्र भी था. उसके पहले से ही दो बच्चे थे, जिनकी उम्र तीन और पांच साल है नसबंदी के बावजूद, महिला वर्ष 2025 में तीसरी बार गर्भवती हो गई,. वह चाहती है कि उसे नसबंदी फेल होने के लिए मुआवजा राशि मिलनी चाहिए,. उसने राजगढ़ कलेक्टर के नाम एक शिकायती आवेदन दिया था, जिसकी जांच सिविल सर्जन द्वारा की जा रही थी.

प्रशासनिक चुनौतियाँ और सिस्टम की खामी

• शिकायतकर्ताओं (पीड़ितों) की शिकायतों को अक्सर जन सुनवाई (jan sunwai) में हल्के में लिया जाता है, और इसी तरह इस महिला की शिकायत को 2 दिसंबर को हल्के में लिया गया था.

• मुआवजा राशि पाने के लिए, महिला अपनी सास के साथ पीपलिया गांव से राजगढ़ जिला मुख्यालय तक लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलकर आई थी.

• 9 दिसंबर को जब वह दोबारा जिला अस्पताल पहुंची, वह निराश थी क्योंकि वह कलेक्टर से मिल नहीं पाई और उसे अपने मामले में कोई अपडेट नहीं मिला था,.

• जांच के दौरान, जब वक्ता महिला को लेकर जिला अस्पताल पहुंचे, सिविल सर्जन (जो जांच कर रहे थे) मौजूद नहीं थे.

• वहां उनकी मुलाकात आरएमओ डॉक्टर कोहली से हुई, जिन्होंने महिला को बिठाया, कागजात देखे, और पुष्टि की कि महिला पात्र (eligible) है और 90 दिनों के अंदर क्लेम कर चुकी है, लेकिन फिर भी मुआवजा नहीं दिया गया है.

फाइल की स्थिति और हस्तक्षेप

• डॉक्टर कोहली ने उन्हें जिला अस्पताल के सीएमओ कार्यालय में मैडम सिसोदिया से मिलने का निर्देश दिया, जो इस मामले को देखती हैं.

• सीएमएचओ कार्यालय में राम कन्या सिसोदिया ने पुष्टि की कि महिला का आवेदन पात्र है.

• उन्होंने बताया कि महिला की फाइल सिस्टम पर ‘री-ओपन’ में पड़ी है, जिसका अर्थ है कि ब्लॉक ऑफिसर की तरफ से कुछ दस्तावेज जोड़े जाएंगे, जिसके बाद ही यह पोर्टल पर आगे बढ़ेगी,.

• जांच करने पर, वक्ताओं ने पाया कि महिला की फाइल न केवल पेंडिंग फाइल की लिस्ट में नहीं थी, बल्कि उसके फेलियर के कागजात भी उस फाइल के अंदर मौजूद नहीं थे.

• यह महसूस किया गया कि पूरी कमियां सिस्टम की तरफ से थीं—महिला ने समय पर क्लेम और आवेदन कर दिया था, लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने ‘री-ओपन’ फाइल को अपडेट नहीं किया.

• वक्ताओं के सामने ही महिला के कागजात प्रिंट करवाए गए और उन्हें पेंडिंग फाइल लिस्ट में रखा गया. सामान्य तौर पर, नसबंदी फेल होने पर मुआवजा भुगतान 15 से 20 दिन में हो जाता है, बशर्ते सब कुछ ठीक हो.

परिणामी कार्रवाई

• वक्ताओं ने महिला के पूरे मामले से राजगढ़ कलेक्टर गिरीश कुमार मिश्रा को अवगत कराया.

• कलेक्टर ने आश्वासन दिया है कि इस मामले में जो भी जिम्मेदार होंगे, उनके विरुद्ध कार्रवाई होगी और पीड़िता को न्याय अवश्य मिलेगा.

यह पूरा मामला दिखाता है कि कैसे एक पात्र व्यक्ति द्वारा समय पर दावा किए जाने के बावजूद, प्रशासनिक लापरवाही और सिस्टम में दस्तावेजों का अभाव न्याय मिलने में देरी का कारण बन सकता है


परमाणु ऊर्जा निवेश हेतु ‘शांति’ बिल पेश

यह चर्चा Sustainable Harnessing and Advancement of Nuclear Energy for Transforming India Bill 2025, जिसे संक्षिप्त में SHANTI Bill कहा गया है, पर केंद्रित है, जो सोमवार को संसद में पेश किया गया. इस बिल का मुख्य प्रस्ताव न्यूक्लियर सेक्टर में विदेशी फंडिंग के लिए रास्ते खोलना है. यह बिल मौजूदा Atomic Energy Act 1962 और Civil Liability for Nuclear Damage Act 2010 का स्थान लेगा.

मुख्य बदलाव और सुरक्षा उपाय

SHANTI Bill उन पुराने लायबिलिटी नियमों को बदलता है जो सप्लायर पर अधिक जिम्मेदारी डालते थे और न्यूक्लियर सेक्टर में निवेश को रोक रहे थे. अब ऑपरेटर की लायबिलिटी को 300 मिलियन SDR (करीब ₹3000 करोड़) तक सीमित (कैप) किया गया है. हर्जाना वसूलने का अधिकार (राइट ऑफ रिकर्स) केवल लिखित कॉन्ट्रैक्ट में या जानबूझकर नुकसान पहुंचाने पर ही लागू होगा. अगर डैमेज ज्यादा होता है, तो सरकार अतिरिक्त सहायता भी प्रदान करेगी.

सुरक्षा को मजबूत करने के लिए, एक स्वतंत्र न्यूक्लियर सेफ्टी रेगुलेशन बनाया जाएगा. यह संस्था एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड को कानूनी स्टेटस देगी और ग्लोबल स्टैंडर्ड्स पर कार्य करेगी. किसी भी न्यूक्लियर इंसिडेंट से संबंधित विवादों को सुलझाने और डैमेज क्लेम फाइल करने के लिए एक स्पेशल ट्राइबनल का भी गठन किया जाएगा. रिसर्च और इनोवेशन में निजी लोग अब हिस्सा ले सकेंगे, हालांकि उन्हें संवेदनशील कामों की जिम्मेदारी नहीं दी जाएगी.

औचित्य और विदेशी हित

यह बिल ऐसे समय में लाया गया है जब भारत सहयोग (collaboration) की मदद से न्यूक्लियर एनर्जी में निवेश बढ़ाना चाहता है ताकि क्षमता विकास के लिए फंड जुटाए जा सकें. बिल लाने की मुख्य वजह यह है कि पावर जनरेशन में नवीकरणीय ऊर्जा (renewable energy) का शेयर बढ़ने से ग्रिड में अस्थिरता (instability) आती है. ग्रिड को स्थिर करने के लिए, भारत को एक ऐसे ऊर्जा स्रोत की आवश्यकता है जो प्रकृति पर निर्भर न हो. वर्तमान में, देश कोल-आधारित ऊर्जा पर अधिक निर्भर है, और न्यूक्लियर एनर्जी को इसे बदलने के लिए बढ़ावा दिया जा रहा है. अगर न्यूक्लियर एनर्जी को सपोर्ट मिलता है, तो भारत आसानी से अपने नेट जीरो लक्ष्यों को भी हासिल कर सकता है.

वेस्ट एशिया के फॉरेन सोवरन फंड्स जैसे कई विदेशी फंड्स ने भारत के स्मॉल मीडियम रिएक्टर्स (SMRs) और स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर मैन्युफैक्चरिंग में शुरुआती रुचि दिखाई है. SMRs न्यूक्लियर पावर जनरेशन के लिए एक पोर्टेबल माध्यम हैं, जिन्हें छोटे पैमाने पर स्थापित किया जाता है. सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम भारत में न्यूक्लियर एनर्जी को बढ़ावा देने के लिहाज से एक बड़ा कदम माना गया है, क्योंकि इस मुद्दे पर कई वर्षों से बात हो रही थी और यह रुका हुआ (stalled) था.


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