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अरावली के विवाद पर केंद्र सरकार ने क्या कहा? 

यह ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ के डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट का एपिसोड-97 है। सोमवार, 22 दिसंबर को देश भर की पर्यावरणीय ख़बरों के साथ पॉडकास्ट में जानिए कश्मीर के चिल्लई कलान और अरावली पर केंद्र सरकार के नए बयान पर। 


मुख्य सुर्खियां

असम के होजाई में ट्रेन से टकराकर मरने वाले हाथियों की संख्या अब 8 हो गई है। शनिवार को हुई इस घटना में 7 हाथियों की तुरंत मौत हो गई थी वहीं एक हाथी का बच्चा घायल था जिसकी अब मौत हो गई।


देश में टाइगर एस्टीमेशन सर्वे रविवार को आधिकारिक रूप से शुरू हो गया। इस दौरान केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेन्द्र यादव ने कहा कि रेलवे अथोरिटीज को राज्यों के वन विभाग के साथ समन्वय बनाकर काम करने के लिए कहा गया है ताकि हाथियों के मूवमेंट का पता लग सके।


केरल का चावल का कटोरा कहे जाने वाले कुट्टनाड के धान के खेतों में मिट्टी के टेस्ट से पता चला कि यहां एल्युमिनियम का लेवल सुरक्षित लिमिट से 39 से 165 गुना ज़्यादा है। इससे मिट्टी की एसिडिटी बढ़ रही है, जिससे फसल की सेहत और स्थानीय किसानों की रोजी-रोटी को खतरा हो सकता है।


मध्य प्रदेश में बिजली चोरी रोकने के लिए अब स्पेशल एनर्जी पुलिस स्टेशन सेट अप करने पर काम चल रहा है। रविवार को प्रदेश के उर्जा मंत्री ने खुद इसकी जानकारी दी है। 


नाईट सफारी और मोबाइल कैमरे के बाद मध्य प्रदेश के नेशनल पार्क और वाइल्डलाइफ सेंचुरी के इकोसेंसिटिव ज़ोन में अब लकड़ी जलाना भी प्रतिबंधित हो गया है। प्रदेश के वन विभाग ने इसके लिए आदेश जारी किए हैं।


मध्य प्रदेश में 25 दिसंबर से कोहरे का दौर शुरू हो सकता है वहीं 28-29 दिसंबर को मावठे के आसार हैं। शनिवार-रविवार दरमियानी रात शहडोल के कल्याणपुर का तापमान 3.4 डिग्री सेल्सियस रहा।

विस्तृत चर्चा

कश्मीर: ‘चिल्लई-कलान’ और मौसम का बदलता मिजाज

कश्मीर में लंबे समय से चल रहे सूखे (dry spell) के बाद रविवार को बर्फबारी और मैदानी इलाकों में बारिश शुरू हुई है। यह बर्फबारी कश्मीर के सबसे कठिन सर्दियों के समय, जिसे ‘चिल्लई-कलान’ कहा जाता है, की शुरुआत के साथ हुई है।

चिल्लई-कलान का महत्व:

यह एक फारसी शब्द है जिसका अर्थ है ‘बड़ी ठंड’ या ‘मेजर कोल्ड’।

यह 40 दिनों की अवधि होती है जो 21 दिसम्बर से 31 जनवरी तक चलती है।

इस दौरान तापमान इतना गिर जाता है कि नदियाँ और झीलें पूरी तरह जम जाती हैं।

यह समय कश्मीर के ग्लेशियर्स और जल स्रोतों को रिचार्ज करने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जो साल भर कृषि के काम आता है।

अन्य सर्द अवधियां:

चिल्लई-कलान के बाद ‘चिल्ल-खुर्द’ (20 दिन) और फिर ‘चिल्ल-बच्चे’ (10 दिन) आता है। कुल मिलाकर कश्मीर में 70 दिनों की भीषण ठंड होती है।

जीवनशैली और संस्कृति: ठंड से बचने के लिए कश्मीरी लोग पारंपरिक ‘फेरन’ (Pheran) पहनते हैं और खुद को गर्म रखने के लिए ‘कांगड़ी’ का उपयोग करते हैं।

बर्फबारी की आवश्यकता: मौसम विभाग के अनुसार, नवम्बर से चल रहे सूखे के कारण नदियों में पानी कम हो गया था और जंगलों में आग (forest fires) की घटनाएं बढ़ गई थीं। कश्मीर में सामान्य की तुलना में 85% बारिश की कमी दर्ज की गई थी।

यातायात पर प्रभाव:

बर्फबारी के कारण श्रीनगर नेशनल हाईवे और मुगल रोड को बंद कर दिया गया है।

गुलमर्ग जाने वाले वाहनों के लिए ‘एंटी-स्किड चेन’ अनिवार्य कर दी गई है।

श्रीनगर एयरपोर्ट पर खराब मौसम की वजह से लगभग 14 उड़ानें रद्द की गईं।

वायु गुणवत्ता (AQI): बर्फबारी का एक सकारात्मक पहलू यह रहा कि कश्मीर की हवा की गुणवत्ता में सुधार आया है, जो पहले काफी खराब श्रेणी में पहुँच गई थी।


अरावली पहाड़ियां: नई परिभाषा और खनन विवाद

पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने माइनिंग की आशंकाओं को ‘भ्रामक और झूठा’ बताया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि:

अरावली का 90% से अधिक क्षेत्र संरक्षित रहेगा।

विस्तृत अध्ययन के बाद केवल 2% हिस्सा ही संभावित खनन के लिए खुला रखा जा सकता है।

दिल्ली में वर्तमान में माइनिंग पर पूरी तरह प्रतिबंध है।

विवादास्पद नई परिभाषा: ‘फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया’ की नई परिभाषा के अनुसार, केवल उन्हीं पहाड़ियों को अरावली माना जाएगा जिनकी ऊंचाई जमीन से कम से कम 100 मीटर हो और दो पहाड़ियों के बीच 500 मीटर से अधिक का अंतर न हो।

आंकड़ों के अनुसार, 1281 पहाड़ियों में से केवल 1048 (लगभग 8.7%) ही इस 100 मीटर की शर्त को पूरा करती हैं। इसका मतलब है कि हजारों छोटी पहाड़ियाँ इस सुरक्षा घेरे से बाहर हो जाएंगी और खनन के लिए असुरक्षित हो सकती हैं। ये छोटी पहाड़ियाँ रेगिस्तान की धूल को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

फिलहाल यह मामला सुप्रीम कोर्ट में है और कोर्ट ने इस पर अंतरिम रोक (interim ban) लगा रखी है।

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Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

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