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सागर: आदिवासियों ने बाघों के लिए छोड़ा घर, अब बैंक कर्मियों ने लूटा मुआवजा

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रहली की एचडीएफसी बैंक शाखा में हरगोरा का चेक फाड़कर लौटाया गया, बोले “पैसे बीमा पॉलिसी में कट गए।”

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मध्‍य प्रदेश के सागर जिले की रहली तहसील में स्थित एचडीएफसी बैंक की शाखा इन दिनों चर्चा में है। रोजाना बैंक खुलने से पहले ही बाहर लंबी कतारें लगती हैं। इन कतारों में खड़े लोग वही हैं जिन्होंने अपने घर, खेत और जंगल वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व के लिए छोड़ दिए थे। अब वे अपने खातों से गायब हुए मुआवजे की रकम पाने की उम्मीद में बैंक का चक्कर काट रहे हैं।

कतार में सबसे आगे खड़े हैं प्रेम सिंह, बरेला आदिवासी। हाथ में पासबुक है, आंखों में आंसू और गुस्सा दोनों। वे कहते हैं, “देखो, 12 लाख रुपये खाते में थे, अब सात लाख गायब हैं। बैंक वाले कहते हैं कि पैसे पॉलिसी में गए। मैंने तो कभी कोई पॉलिसी नहीं ली थी।”

प्रेम सिंह सागर जिले के मुहली गांव से विस्थापित हुए थे। साल 2021 में जब वन विभाग ने कहा कि “बाघों को जगह चाहिए,” तब गांववालों को वादा किया गया कि सरकार 15 लाख रुपये का मुआवजा देगी और नई जगह बसाएगी। प्रेम सिंह को 12 लाख रुपये मिले। बैंक ने उन्हें एफडी कराने का सुझाव दिया। “मैं अनपढ़ हूं,” वे कहते हैं, “मुझे एफडी का मतलब भी नहीं पता था। सोचा बैंक में पैसा सुरक्षित रहेगा।”

कुछ समय बाद जब वे 2,000 रुपये निकालने बैंक पहुंचे, तो कर्मचारी ने उनसे चेक पर हस्ताक्षर करवाए और दो शून्य जोड़कर दो लाख रुपये निकाल लिए। पूछने पर बताया गया कि बीमा पॉलिसी बन गई है। प्रेम सिंह कहते हैं, “जंगल गया, जमीन गई, अब मुआवजा भी चला गया। अब मैं कहां जाऊं, किससे न्याय मांगूं?”

यह कहानी अकेले प्रेम सिंह की नहीं है। वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व से विस्थापित 26 परिवारों के खातों से करीब 1.28 करोड़ रुपये की हेराफेरी हुई है। प्रारंभिक जांच में सामने आया कि जैसे ही आदिवासियों के खाते में मुआवजा राशि आई, बैंक कर्मचारियों ने एफडी और बीमा के नाम पर रकम निकाल ली। कई मामलों में चेकों पर शून्य जोड़ दिए गए या खाली चेकों का दुरुपयोग हुआ।

बाघ बढ़े, लेकिन विस्थापितों की पीड़ा भी

वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व, जिसे पहले नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य के नाम से जाना जाता था, 2339 वर्ग किलोमीटर में फैला है और यह मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा टाइगर रिजर्व है। 2014 से यहां विस्थापन प्रक्रिया जारी है। अब तक 44 गांवों को हटाया जा चुका है और इस पर लगभग 600 करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। योजना के अनुसार, कोर एरिया से कुल 93 गांवों को हटाया जाना है।

रेहली एचडीएफसी बैंक बाहर खड़े विस्थापित आदिवासी।

कभी बाघ-विहीन रहा यह इलाका अब 20 बाघों और बड़ी संख्या में तेंदुओं का घर बन चुका है। यहां चीतों को बसाने की योजना भी चल रही है, जिससे यह देश का पहला ऐसा रिजर्व बन सकता है जहां तीनों प्रजातियां, बाघ, तेंदुआ और चीता  एक साथ होंगी।

लेकिन इस विकास की सबसे कमजोर कड़ी वही लोग हैं जिन्होंने इसके लिए अपना सब कुछ छोड़ा। एनटीसीए (नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी) की गाइडलाइन और पेसा कानून के कई प्रावधानों की अनदेखी विस्थापितों पर दोहरी मार बनकर आई है। पिछले साल 52 गांवों ने इस अनियमितता की शिकायत केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय से की थी, लेकिन जांच आदेश के बाद भी कार्रवाई कागजों तक सीमित रही।

सपनों का मुआवजा कैसे लूटा गया

गढ़ाकोटा के पास नई बसाहटों में अब ज्यादातर झोपड़ियां और पॉलीथीन की छतें दिखती हैं। इन्हीं में रहती हैं 50 वर्षीय द्रौपदी गौंड, पांच बच्चों की मां। “मेरे खाते में 14 लाख रुपये आए थे,” वे बताती हैं। “सोचा था बेटियों की शादी करूंगी, पक्‍का मकान बनाऊंगी। जरूरत के लिए थोड़ा ब्याज निकाला था, बाकी पैसे सुरक्षित रखे थे।”

लेकिन पिछले महीने जब वे बैंक पहुंचीं तो खाते में मात्र कुछ हजार रुपये बचे थे। “नितिन नाम के कर्मचारी ने कहा, नौ लाख उसके पास हैं और पांच लाख पॉलिसी में चले गए। मैंने तो कभी पॉलिसी बनवाई ही नहीं,” द्रौपदी कहती हैं। उन्हें याद है कि बैंक कर्मचारियों ने उनसे कुछ कागजों पर साइन करवाए थे, कहकर कि ये एफडी के फॉर्म हैं। “अब मेरी बेटियों की शादी कैसे होगी?” वे रोते हुए पूछती हैं।

रेहली का एचडीएफसी बैंक, जहां रानी दुर्गावती टाइगर रिज़र्व के विस्थापितों से ठगी हुई है।

मुहली गांव के राजकुमार वासुदेव की कहानी बताती है कि घोटाला योजनाबद्ध था। “बैंक के राहुल भट्ट और नितिन गांव आए थे। बोले खाली चेक पर साइन करो, जरूरत पड़ी तो तुरंत पैसे मिल जाएंगे। बाद में 50 हजार रुपये गढ़ाकोटा शाखा से निकाले गए, जबकि मैं वहां गया ही नहीं,” वे बताते हैं।

सबसे विचलित करने वाली घटना हरगोरा के साथ हुई। 12 अक्टूबर को जब वे बैंक से पैसे निकालने पहुंचे, तो कर्मचारियों ने उनका चेक फाड़ दिया और कहा कि पैसे बीमा पॉलिसी में चले गए हैं।

गाइडलाइन की अनदेखी और साजिश की रूपरेखा

1975 में स्थापित नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य को 20 सितंबर 2023 को टाइगर रिजर्व का दर्जा मिला और इसका नाम बदलकर वीरांगना रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व रखा गया। इसके बाद क्षेत्रफल बढ़कर 2339 वर्ग किमी हो गया, जिसमें 1414 वर्ग किमी कोर एरिया है।

वन विभाग के एक कर्मचारी ने बताया कि जब विस्थापन प्रक्रिया शुरू हुई तो सरकारी बैंक गांव तक आने को तैयार नहीं थे। इसी दौरान एचडीएफसी बैंक रहली शाखा के कर्मचारियों ने प्रस्ताव दिया कि वे गांव-गांव जाकर खाते खोलेंगे। रेंजर ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया। करीब 800 विस्थापित परिवारों के खाते खोले गए।

लेकिन एनटीसीए की गाइडलाइन के अनुसार, मुआवजा राशि पहले जिला कलेक्टर के खाते में जमा होनी चाहिए और विस्थापितों के खाते संयुक्त रूप से कलेक्टर के साथ खोले जाने चाहिए थे। इसके अलावा किसी भी संपत्ति की खरीद के लिए राशि निकालने से पहले जिला स्तरीय समिति की अनुमति आवश्यक है।

इन प्रावधानों की न तो समीक्षा हुई, न निगरानी। 2021 से 2025 तक समिति की बैठक तक नहीं हुई। इस प्रशासनिक खामी का फायदा बैंक कर्मचारियों ने उठाया और एफडी व बीमा के नाम पर राशि निकाल ली।

रिजर्व के डिप्टी डायरेक्टर ए.ए. अंसारी ने स्वीकार किया, “बैंक कर्मचारियों ने हमें भी गुमराह किया। उन्होंने कहा कि विस्थापित परिवार एफडी करवाना चाहते हैं, उसी आधार पर अनुमति ली गई थी।”

छह माह पहले मिली भनक, फिर भी चुप्पी

इस गड़बड़ी की जानकारी बैंक और प्रशासन को छह महीने पहले ही मिल गई थी। नए शाखा प्रबंधक विवेक दुबे को शिकायतें मिलने लगीं। लेकिन उन पर आरोप है कि उन्होंने कार्रवाई के बजाय मामला दबाने की कोशिश की गई है। कर्मचारियों ने रकम लौटाने का प्रयास किया, पर जैसे-जैसे शिकायतें बढ़ीं, आरोपी कर्मचारी राहुल भट्ट और कार्तिक नायडू नौकरी छोड़कर भाग गए।

मुहली गांव की अशोकरानी वासुदेव बताती हैं, “पति के इलाज के लिए बैंक गए तो पता चला कि 1.5 लाख रुपये पांच साल की बीमा पॉलिसी में चले गए हैं। शिकायत की, पर किसी ने नहीं सुनी।”

जब कोई सुनवाई नहीं हुई तो मामला विधायक गोपाल भार्गव तक पहुंचा। उन्होंने 23 सितंबर को मुख्यमंत्री को पत्र लिखा। इसके बाद कलेक्टर संदीप जी.आर. ने एसडीएम कुलदीप पराशर की अध्यक्षता में जांच कराई गई। जांच में 26 विस्थापितों के खातों से 1.28 करोड़ रुपये की हेराफेरी सामने आई। कलेक्टर के आदेश पर बैंक प्रबंधन ने रहली थाने में शिकायत दर्ज कराई। इसके बाद पुलिस ने तीन कर्मचारियों, नितिन द्विवेदी, कार्तिक नायूड और राहुल भट्ट पर धोखाधड़ी (BNS318) और विश्वासघात (BNS316) के साथ अन्‍य धाराओं में मामला दर्ज किया गया है।  थाना प्रभारी सुनील शर्मा ने कहा, ” आरोपियों की तलाश जारी, मुखबिर से सूचना मिली है कि आरोपी दूसरे राज्‍य में छिपे हुए है। जल्‍दी ही गिरफ्तारी हाेगी।” 

एफआईआर के बाद भी बाकी हैं सवाल

एफआईआर के बावजूद विस्थापितों को अब तक कोई राहत नहीं मिली है। पर्यावरण कार्यकर्ता अजय दुबे ने इस मामले को राज्य के मुख्य सचिव, वन विभाग और एनटीसीए को भेजी विस्तृत शिकायत में गंभीर उल्लंघन बताया है। उनका कहना है, “विस्थापितों के खाते कलेक्टर के साथ खोले जाने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। न कलेक्टर ने समीक्षा की, न रिजर्व प्रबंधन ने।”

उन्होंने पिछले 10 वर्षों के सभी विस्थापनों की वित्तीय ऑडिट की मांग की है। दुबे कहते हैं, “सिर्फ तीन कर्मचारियों पर केस करने से न्याय नहीं मिलेगा। गाइडलाइन तोड़ने वालों पर कब कार्रवाई होगी?”

पर्यावरण कार्यकर्ता राशिद नूर खान भी सवाल उठाते हैं, “कलेक्टर और डीएफओ ने निगरानी क्यों नहीं की? छह माह तक मामला दबाया क्यों गया? क्या बाकी विस्थापनों में भी यही कहानी दोहराई गई है?”

वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिजर्व से विस्थापित सैकड़ों आदिवासी आज न्याय की आस में हैं। उन्होंने बाघों के लिए अपना घर छोड़ा, लेकिन अब मुआवजा भी खो दिया। यह घटना सिर्फ बैंक धोखाधड़ी की नहीं, बल्कि उस तंत्र की विफलता की है जो आदिवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए बना था। कानून और गाइडलाइन कागजों पर चाहे जितने सख्त हों, अगर उन्हें लागू करने वाले ही आंखें मूंद लें, तो सबसे बड़ा नुकसान उन्हीं का होता है जो पहले से हाशिए पर हैं।

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  • Based in Bhopal, this independent rural journalist traverses India, immersing himself in tribal and rural communities. His reporting spans the intersections of health, climate, agriculture, and gender in rural India, offering authentic perspectives on pressing issues affecting these often-overlooked regions.

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