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चीतों का नया बसेरा ‘गांधी सागर’, ग्रामीणों की आजीविका और मवेशियों के लिए भूखमरी का सबब!

चीतों का नया बसेरा 'गांधी सागर', ग्रामीणों की आजीविका और मवेशियों के लिए भूखमरी का सबब!
चीतों का नया बसेरा 'गांधी सागर', ग्रामीणों की आजीविका और मवेशियों के लिए भूखमरी का सबब!

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“जहां हमारी गाय, बकरी और भैंसे चारा करती थी, उस जगह को वन विभाग द्वारा पत्थरों की दीवार और तार-फेंसिंग के माध्यम से कवर किया जा रहा है और बताया गया है कि यह सब चीतों को यहां बसाने के लिए किया जा रहा हैं। इससे हमारी आजीविका पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।”

यह बात चेनपुरिया ब्लाॅक गांव के निवासी पेशे से दुग्ध व्यवसायी दिनेश गुर्जर (30 साल) ने कही।

Gandhi sagar second home for cheetah
चारागाह में की जा रही बाड़ाबंदी, पत्थर की दीवार बनाकर चीतों के लिए विकसित किया जा रहा है ग्रासलैंड

गांधीसागर अभ्यारण होगा चीतों का दूसरा घर

दरअसल, देश में 75 साल पहले सन् 1952 में चीते का अस्तित्व समाप्त हो गया था, इसके बाद पिछले साल यानि  दिसंबर 2022 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के कूनो नेशनल पार्क में नामीबिया से लाकर 8 चीतों को बसाया। इसके बाद से ही निरंतर साउथ अफ्रीका और नामीबिया से चीते लाने का सिलसिला जारी है और अभी तक 20 चीते आ चुके हैं। इस साल भी 10 चीतों की खेप आने की योजना हैं, इन चीतों को मध्य प्रदेश के ही नीमच और मंदसौर जिले की सीमा में बने गांधी सागर वन अभयारण्य में बसाया जाना है। यहां पर 30 करोड़ खर्च कर 67 वर्ग किमी में बाड़ा बनाने का काम तेजी से किया जा रहा है और वन विभाग के अधिकारियों के मुताबिक यह काम 90 प्रतिशत तक पूरा हो चुका है।

सड़क के दूसरी तरफ कुछ दूरी पर चेनपुरिया (रावलीकुड़ी) गांव बसा है। यह गांव नीमच जिले की मानासा तहसील की ग्राम पंचायत चेनपुरिया ब्लाॅक में आता है। यहां पर पहले तीन गांव चेनपुरिया, रावलीकुड़ी और पठार हुआ करते थे, जिससे प्रशासन ने मिलाकर एक गांव चेनपुरिया ब्लाॅक बना दिया हैं। इस गांव में करीब 452 परिवारों के लगभग 2500 रहवासी रह रहे हैं। ग्रामीणों का मुख्य व्यवसाय पशुपालन और कृषि है और गांव में हर एक ग्रामीण के पास करीब 70 से 100 मवेशी ( गाय, भैंस और बकरी ) हैं, लेकिन भैंस और बकरी की संख्या कम हैं, जबकि गायों की संख्या करीब 25000 से ज्यादा हैं। हर दिन पांच से छह हजार लीटर से ज्यादा दूध निकलता हैं। अब यह चीता प्रोजेक्ट रहवासियों की आजीविका के लिए मुसीबत का सबब बनता जा रहा हैं और इसलिए वे इस प्रोजेक्ट के विरोध में नजर आ रहे हैं। 

Gandhi sagar second home for cheetah
28 अगस्त 2023 को ग्रामीणों ने नीमच कलेक्टर को चारागाह की ज़मीन का अधिग्रहण न करने के लिए ज्ञापन सौंपा

दिनेश गुर्जर आगे कहते हैं कि “सरकार प्रदेश की हर ग्राम पंचायत में गौशाला खोल रही है, साथ ही करोड़ों रू. खर्च कर गौवंश के लिए कई तरह की योजनाएं संचालित कर रही है और दूसरी ओर उन्हें हमारे मवेशियों की चिंता नहीं है।” उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए उनकी पत्नी सूधाबाई कहती हैं कि

“मेरे परिवार में पांच लोग ( मां, पति और दो बच्चे ) हैं और हमारी आजीविका दूध व्यवसाय से जुड़ी हुई है। हमारे पास करीब 80 से ज्यादा मवेशी हैं, लेकिन सबसे ज्यादा 55 गाय हैं। अगर इन्हें खाना नहीं मिला तो इनके साथ मेरा परिवार की भी भूखे मरने की नौबत आ जाएगी।”

वादा-खिलाफी कर रहा वन विभाग

अपने घर के बाहर मिट्टी के बने ओटले पर बैठी 75 साल की कजरी बाई कहती हैं

“विकास के नाम पर हम गरीब लोगों को ही क्यों कीमत चुकानी पड़ती हैं। पिछली बार 50 साल पहले गांधी सागर बांध के निर्माण के दौरान भी हमें अपना सबकुछ छोड़ना पड़ता था, क्योंकि बांध के निर्माण से हमारी जमीन डूब क्षेत्र में आ गई थी और हमें प्रशासन ने यहां विस्थापित किया, तब से ही हम लोग यहां पर काबिज होकर कृषि कार्य और दुग्ध व्यवसाय कर अपना जीवन यापन कर रहे हैं। अब फिर से सरकार द्वारा चीतों के नाम पर हमारे मवेशियों की चारागाहों पर कब्जा किया जा रहा है। यदि हमारे मवेशियों के खाने के लिए सरकार ने जगह नहीं छोड़ी तो हमें एक बार फिर से विस्थापन का दंश झेलना पड़ेगा, जोकि हम नहीं चाहते हैं।”

उनकी बात को आगे बढ़ाते हुए 38 साल के सावरा गुर्जर कहते हैं

“यहां पर हमारा परिवार 50 सालों से रह रहा हैं। हमें चीता प्रोजेक्ट से किसी भी तरह की कोई आपत्ति नहीं हैं। बस हमारी मांग हैं कि जब हमारे बाप-दादा को यहां पर विस्थापित किया गया था तो वन विभाग ने हमारे मवेशियों के चारागाह के लिए जमीन आरक्षित की थी। यह आरक्षित कंपाउंड क्रमांक 35, 36, 40, 41, 42, 43 हैं, जिससे नीमच वन मंडल की रामपुरा रेंज द्वारा चरनोई के लिए आरक्षित की है। वे आगे कहते हैं कि अब चीता प्रोजेक्ट के लिए वन विभाग द्वारा गलत तरीके से सीमांकन कर उक्त आरक्षित कंपाउंड की जमीन को भी पत्थरों और तार-फेसिंग की दीवार बनाकर कवर किया जा रहा हैं, जोकि गलत है।”

उनकी बात का समर्थन करते हुए ग्रामीण सम्राट दीक्षित 33 साल कहते हैं कि गांव वासी अपनी समस्याओं को लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल के नाम चिट्ठी लिख चुके हैं और नीमच, जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर अपनी समस्याओं से रूबरू करा चुके हैं। इसके साथ ही हम विरोध-प्रदर्शन भी कर चुके हैं, इसके बाद भी हमारी समस्या जस की तस बनी हुई हैं।

Gandhi sagar preparedness for translocation of cheetahs

इधर, गांधी सागर अभयारण्य, अधीक्षक राजेश मंडावलिया कहते हैं कि

“वन समितियों के साथ समझौता हुआ है और ग्रामीणों की सहमति के बाद से ही तार-फेसिंग का काम युद्ध स्तर पर किया जा रहा है और 27 किलोमीटर लंबाई में सोलर पावर्ड इलेक्ट्रिक फेंसिंग कर 67 किलोमीटर एरिया को कवर किया जा रहा है। वे कहते हैं कि वन समितियों के माध्यम से ग्राम चेनपुरिया के करीब 5 हजार ग्रामीणों के 25 हजार से ज्यादा मवेशियों के लिए 300 हेक्टेयर जमीन छोड़ी जा रही है।”

चारागाह के लिए छोड़ी गई ज़मीन नाकाफी

वहीं सम्राट दीक्षित कहते हैं कि “वन समितियों के माध्यम से वन विभाग के अफसरों से बात हुई थी, वो 300 हेक्टेयर जमीन छोड़ने के लिए राजी हुए थे, लेकिन सहमति नहीं बनी थी, क्योंकि 25000 से ज्यादा मवेशियों के लिए 300 हेक्टेयर जमीन बहुत कम हैं, इस पर उन्होंने कहा कि हम 6 कंपाउंड में तीन कंपाउंड की करीब 1080 हेक्टेयर भूमि छोड़ सकते हैं, लेकिन हमारी मांग हैं कि वन विभाग कम से कम इतनी जमीन तो छोड़ दे कि जिससे हमारे मवेशी आसानी से चर सकें, वो जितनी जमीन छोड़ने की बात कर रहे हैं, उतनी जमीन में 25000 से ज्यादा मवेशी ठीक से खड़े भी नहीं हो सकते हैं। मवेशियों के लिए करीब 3000 हेक्टेयर जमीन वन विभाग को छोड़ना चाहिए।”

जबकि मप्र, वन विभाग, मुख्य वन्यप्राणी अभिरक्षक असीम श्रीवास्तव ने बताया कि जिस भूमि को लेकर विवाद की स्थिति बनी हुई है, वो अभ्यारण का हिस्सा न होकर सामान्य वनमंडल, नीमच का हिस्सा है। अभी हम उस हिस्से को छोड़कर चेनलिंक फेंसिंग कर रहे हैं। वे कहते हैं कि विवादित जमीन के लिए ग्रामीणों और वन समितियों के माध्यम से बातचीत चल रही हैं, जल्द ही इस समस्या का समाधान निकाल लिया जाएगा।

आगे का रास्ता

32 साल के प्रहलाद गुर्जर ने बताया कि “हमारे में अधिकतर लोग दूध व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, इसके अलावा हमारे पास आजीविका का कोई दूसरा साधन नहीं हैं। अब चीता प्रोजेक्ट को लेकर फेंसिंग की जा रही हैं। रोड के एक साइड को फेंसिंग कर कवर किया जा चुका है और रोड के दूसरी तरफ का क्षेत्र भी घेरने की तैयारी हैं। अगर दोनों तरफ से तार फेंसिंग कर देंगे तो मवेशी कहां जाएंगे। वे कहते हैं कि चीता प्रोजेक्ट से हमें दिक्कत नहीं हैं, जो जगह बच रही है वहीं हमें मवेशियों के लिए दे दें, तो समस्या खत्म हैं। इतनी बड़ी संख्या में मवेशियों को पालने के लिए हमें भी जंगल की जरूरत है। “

उनकी बात आगे बढ़ाते हुए प्रभुलालजी 45 साल कहते हैं “हमारी मांग हैं कि हमें चरनोई के लिए जो 6 कंपाउंड आरक्षित किए गए थे, वो जमीन हमें दें।”

Gandhi sagar preparedness for translocation of cheetahs

कहां तक पहुंचा प्रोजेक्ट का काम

मंदसौर वन मंडल डीएफओ संजय रायखेरे ने बताया कि

“गांधी सागर अभ्यारण के चंबल नदी के एक छोर पर चीतों के लिए बाड़ा तैयार किया जा रहा है। यहां 12 हजार 600 गड्ढे खोदकर हर तीन मीटर की दूर पर लोहे के पाइप लगाए गए हैं। तार-फेंसिंग के साथ ही 28 किलोमीटर लंबी और 10 फीट उंची दीवार बनाई जा रही है, इसके 3 फीट ऊपर सोलर सिस्टम लगाया जा रहा है जोकि चीतों को बाड़ा क्राॅस करने की कोशिश करने पर उन्हें रोकने का काम करेंगे, जिससे करंट का झटका भी चीतों को लगेगा। “

वे कहते हैं कि गांधी सागर वन अभ्यारण 369 वर्ग किलोमीटर में फैला हैं, 28 किलोमीटर लंबे बाड़े में जाली लगाने में करीब 17 करोड़ 70 लाख से अधिक खर्च हुए हैं, जबकि वन क्षेत्र में कैमरे भी लगाए है और प्रोजेक्ट में 30 करोड़ रू. खर्च किए जाने हैं। 

पहले कूनो से आना था, अब अफ्रीका से आएंगे चीते

डीएफओ संजय रायखेरे ने बताया कि “अभयारण्य में पहले कूनो से 6 चीतों को लाने का प्लान विभाग द्वारा बनाया गया था, लेकिन अब प्लान चेंज हो गया है। अब साउथ अफ्रीका से 10 चीते मार्च-अप्रैल माह तक आएंगे, इससे पहले दक्षिण अफ्रीका का प्रतिनिधिमंडल अभ्यारण की तैयारियों का आकलन फरवरी माह में करेगा। वे कहते है कि चीता पुर्नवास और अन्य वन अधिकारी गांधी सागर अभ्यारण में चीतों की तैयारी और यहां मौजूद चिंकारा के झुंड देखकर खुश हैं। वहीं यहां पर चीतों का पसंदीदा भोजन अच्छी संख्या में मौजूद हैं और चीतों और अन्य जानवरों के लिए बाड़े में हर 2 किलोमीटर में एक वाटर सोर्स तैयार हैं, इसके लिए वन क्षेत्र करणपुरा और चैरासीगढ़ क्षेत्र में चंबल से पानी लिफ्ट कर लाएंगे। इन दोनों स्थानों पर 10-10 हजार लीटर की 4-4 पानी की टंकी का निर्माण किया जा रहा हैं। बाड़े में कुल आठ टंकियों का निर्माण किया जा रहा है। इससे ही वाटर सोर्स में पानी की व्यवस्था की जाएगी।

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  • Based in Bhopal, this independent rural journalist traverses India, immersing himself in tribal and rural communities. His reporting spans the intersections of health, climate, agriculture, and gender in rural India, offering authentic perspectives on pressing issues affecting these often-overlooked regions.

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