ग्राउंड रिपोर्ट ने मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के पिपल्या गांव की रहने वाली एक महिला के संघर्ष की कहानी आपको बताई थी। इस महिला ने नसबंदी ऑपरेशन करवाया था, जो असफल हो गया और वह दोबारा गर्भवती हो गई थी। महिला असफल ऑपरेशन के मुआवज़े के मांग के लिए अपने गांव से 10 किलोमीटर पैदल चलकर कलेक्टर कार्यालय न्याय की गुहार लगाने पहुंची थी। महिला न्याय का इंतज़ार करती रही और 16 दिसंबर की दोपहर उसका समय से पहले प्रसव हुआ और मृत बच्चो को उसने जन्म दिया। बच्चे का वज़न केवल 900 ग्राम था।
महिला को अस्पताल प्रबंधन की ओर से शव वाहन भी उपलब्ध नहीं करवाया गया इस कारण परिजन निजी वाहन से शव को गांव ले गए और वहीं अंतिम संस्कार किया।
इस मामले में जिला अस्पताल की डॉक्टर रानी आमखरे ने ग्राउंड रिपोर्ट की टीम से बातचीत में बताया कि महिला 16 दिसंबर को डिलीवरी के लिए अस्पताल आई थी। यह टीटी (ट्यबेक्टॉमी) फेलियर और प्री-टर्म डिलीवरी का मामला था। जांच के दौरान बच्चे की हार्टबीट नहीं मिल रही थी, जिससे यह स्पष्ट हो गया था कि शिशु की गर्भ में ही मौत हो चुकी है। डिलीवरी के बाद पुष्टि हुई कि बच्चा पेट में ही कुछ दिन पहले मृत हो चुका था। डॉक्टर के अनुसार महिला पूरी तरह पीक लेबर स्टेज में थी, इसलिए किसी भी प्रकार की दवा न देकर सीधे डिलीवरी कराई गई।
महिला और उसकी सास ने बताया कि बच्चे की मृत्यु के बाद अस्पताल प्रबंधन ने बच्चे का शव गांव तक पहुंचाने की ज़िम्मेदारी नहीं ली। मजबूरी में पीड़िता की सास ने ऑटो किराए पर लिया और शव गांव ले जाकर अंतिम संस्कार किया। तीन दिन बाद जब महिला को डिस्चार्ज किया गया तो ग्राउंड रिपोर्ट की टीम ने हस्तक्षेप कर महिला को घर छोड़ने के लिए एम्बुलेंस की व्यवस्था करवाई।
नसबंदी के बाद भी गर्भवती, मुआवजा फाइलों में उलझा
पीड़िता ने वर्ष 2022 में राजगढ़ जिला अस्पताल में नसबंदी ऑपरेशन करावाया था। उसके पहले से दो बच्चे हैं, जिनकी उम्र लगभग 5 और 3 वर्ष है। इसके बावजूद वर्ष 2025 में वह तीसरी बार गर्भवती हो गई। शासकीय नियमों के अनुसार उसने नसबंदी फेल होने पर मिलने वाली मुआवजा राशि के लिए 90 दिवस की समय-सीमा में क्लेम भी किया, लेकिन “ऑफिशियल डॉक्यूमेंट्स की कमी” बताकर उसका मामला रिओपन में डाल दिया गया।
2 दिसंबर को महिला अपनी सास के साथ लगभग 10 किलोमीटर पैदल चलकर कलेक्ट्रेट पहुंची। उसने अधिकारियों को बताया कि नसबंदी के बाद भी वह गर्भवती है और उस समय सात माह की गर्भवती थी। शिकायत को जांच के लिए जिला अस्पताल के सिविल सर्जन के पास भेजा गया, लेकिन सात दिन बाद भी कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई।
इसके बाद महिला दोबारा जनसुनवाई पहुंची, लेकिन वहां पहुंचने तक जनसुनवाई कक्ष बंद हो चुका था। निराश महिला की मुलाकात ग्राउंड रिपोर्ट की टीम से हुई, जिसके बाद उसे जिला अस्पताल के आरएमओ डॉक्टर अमित कोली और फिर सीएमएचओ कार्यालय ले जाया गया।
अलमारी में दबी मिली फाइल
सीएमएचओ कार्यालय में पदस्थ महिला अधिकारी रामकली सिसोदिया ने बताया कि महिला पात्र है और उसने समय पर क्लेम भी किया था, लेकिन चौंकाने वाली बात यह सामने आई कि महिला की फाइल पेंडिंग प्रकरणों की सूची में शामिल ही नहीं थी। हमारे सामने ही प्रिंट निकालकर उसे पेंडिंग सूची में जोड़ा गया और आश्वासन दिया गया कि प्रकरण अपडेट कर पुनः अपलोड किया जाएगा।
10 दिसंबर को राजगढ़ कलेक्टर गिरीश कुमार मिश्रा को पूरे मामले से अवगत कराया गया। उन्होंने सीएमएचओ के समक्ष पीड़िता को न्याय और दोषियों के खिलाफ कार्रवाई का आश्वासन दिया। इसी दौरान टीम महिला के गांव भी पहुंची, जहां सामने आया कि महिला का पति और देवर मानसिक रूप से बीमार हैं। गांव से शहर आने-जाने का कोई साधन नहीं है और सास-बहू खेतों में मजदूरी कर जीवन यापन कर रही हैं।
जिम्मेदार अधिकारी सवालों पर मौन
सीएमएचओ कार्यालय में पदस्थ अधिकारी रामकली सिसोदिया ने बताया कि भुगतान 17 दिसंबर तक हो जाना था, लेकिन अब तक नहीं हुआ है। वहीं सीएमएचओ डॉक्टर शोभा पटेल ने दावा किया कि महिला का काम उसी दिन करा दिया गया था। शव वाहन को लेकर उन्होंने कहा कि “ग्रामीण हमसे कहते ही नहीं हैं।”
नसबंदी फेल होने की जांच, महिला की मेडिकल मॉनिटरिंग, कुपोषण, प्री-मैच्योर डिलीवरी, मृत शिशु का कारण, जांच टीम गठन और मुआवजा भुगतान जैसे गंभीर सवालों पर सीएमएचओ ने मौखिक और लिखित रूप से कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया। इस संबंध में कलेक्टर को भी अवगत कराया गया, लेकिन वहां से भी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली।
नसबंदी फेल होने के बाद यदि समय पर मुआवजा, नियमित जांच, पोषण और मेडिकल निगरानी मिलती, तो संभव है कि यह गर्भावस्था अलग मोड़ लेती।
900 ग्राम का मृत शिशु, शव वाहन तक न मिलना और जिम्मेदार अधिकारियों की चुप्पी यह सवाल खड़े करती है कि क्या राजगढ़ की स्वास्थ्य व्यवस्था जवाबदेह है भी या नहीं। अब जरूरत है सिर्फ आश्वासन की नहीं, बल्कि जांच, कार्रवाई और जिम्मेदारी तय करने की—ताकि अगली किसी महिला को अपने बच्चे और अपने अधिकार दोनों के लिए इस तरह सिस्टम से हार न माननी पड़े।
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