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SIR: न छुट्टी न सम्मान, परिवार और छात्रों के सहारे काम करते बीएलओ

नोट – इस खबर में आत्महत्या का ज़िक्र किया गया है 

ग्राउंड रिपोर्ट ने सोमवार 1 दिसंबर को अपनी एक वीडियो स्टोरी में बताया था कि कैसे मध्य प्रदेश में जारी विशेष संक्षिप्त पुनरीक्षण यानि एसआईआर के चलते बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) छुट्टी के दिनों में भी काम कर रहे हैं। स्टोरी में मुख्य पात्र मांगीलाल वर्मा रविवार के दिन भी एसआईअआर का काम करते हुए दिखाई देते हैं। बिना किसी सहयोग के वह अपने अधिकारी द्वारा दिए गए एक टार्गेट को पूरा करने के लिए संघर्ष करते हुए दिखाई देते हैं। इस वीडियो के प्रकाशित होने के बाद वर्मा ने राजगढ़ तहसीलदार पर दबाव बनाने का आरोप लगाया है। ग्राउंड रिपोर्ट को प्राप्त जानकारी के अनुसार वर्मा द्वारा अन्य सहयोगियों द्वारा मदद न करने और तहसीलदार के दुर्व्यवहार की शिकायत स्थानीय एसडीएम से की है।

वर्मा का आरोप है कि वीडियो प्रसारित होने के बाद सोमवार को तहसीलदार अनिल शर्मा उनके स्कूल में आए जहां वर्मा अपने सहयोगी साथी के साथ बैठकर एसआईआर से संबंधित कार्य कर रहे थे। वर्मा के अनुसार तहसीलदार द्वारा उनसे पहले एसआईआर से संबंधित जानकारी ली गई और फिर उन्हें फटकार लगाई। वर्मा आरोप लगाते हुए कहते हैं,

“वह मुझे अकेले में ले गए और मेरे साथ दुर्व्यवहार किया गया।”

वर्मा खेतों में जा-जाकर ग्रामीणों से फॉर्म भरने और वापस देने की अपील कर रहे हैं। फ़ोटो – अब्दुल वसीम अंसारी/ग्राउंड रिपोर्ट

तनाव, थकावट और न ख़त्म होने वाला काम

ग्राउंड रिपोर्ट की टीम वर्मा से पहली बार रविवार, 30 नवंबर को मिली। भोपाल से 140 किमी दूर राजगढ़ जिले के धनवासकलां गांव में आम तौर पर रविवार को माहौल शांत होता है। मगर बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) मांगीलाल वर्मा कुछ कागज़ लेकर गांव के अलग-अलग घरों के चक्कर काट रहे थे।

जब हम उनसे मिले तो वह एक सरकारी स्कूल (जहां वर्मा पढ़ाते हैं) में फॉर्मों के ढेर से घिरे बैठे थे। दसवीं कक्षा के छात्र चुपचाप उनके निर्देशन में फॉर्म छांट रहे थे। वर्मा हमसे बात करते हुए बताते हैं, “मैं मुश्किल से तीन घंटे सोता हूं। बाकी के 21 घंटे, मैं काम कर रहा हूं।”

22 दिनों में 25 मौतें

एसआईआर भारतीय निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूचि को अपडेट करने की एक कार्यवाही है। यह कार्य अक्टूबर के अंत में बूथ लेवल कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के साथ शुरू हुआ। हालांकि घर-घर जाकर सत्यापन करने का काम 4 नवंबर से शुरू हुआ है।

इसमें 5 लाख से अधिक अधिकारी मैदान में काम कर रहे हैं। औसतन, एक बीएलओ 1000 मतदाताओं का सत्यापन करता है। पहले इन अधिकारियों को यह प्रक्रिया 4 दिसंबर तक प्रक्रिया पूरी करनी थी। हालांकि बाद में इस डेडलाइन को बढ़ा दी गई। 

इस प्रक्रिया में बीएलओ को सभी घरों में मतदाता जानकारी वितरित करनी, एकत्र करनी, सत्यापित करनी और डिजिटल रूप में अपलोड करनी होती है।

कड़ी समय सीमा, बार-बार फील्ड विजिट और धीमी ऑनलाइन प्रणालियों ने इन अधिकारीयों पर दबाव कई गुना बढ़ा दिया है। कई राज्यों की रिपोर्टों में बीएलओ के बीच अत्यधिक काम और तनाव से जुड़ी मौतों का खुलासा हुआ है।

आज तक के अनुसार, एसआईआर अभियान के पहले 22 दिनों में सात राज्यों में कम से कम 25 बीएलओ की मौत हो गई। अमर उजाला के अनुसार मध्य प्रदेश में सिर्फ 10 दिनों में 6 मौतों हुई हैं। विपक्षी दलों और यूनियनों ने सार्वजनिक रूप से इस बढ़ते हुए कार्यभार की आलोचना की है।

BLO's struggle on ground SIR 2024, Rajgarh Madhya Pradesh
SIR के लिए मतदाता से जानकारी लेते बीएलओ मांगीलाल वर्मा। फोटो अब्दुल वसीम अंसारी/ग्राउंड रिपोर्ट

“गांववाले फॉर्म आसानी से नहीं देते”

अपनी परेशानियों को बताते हुए वर्मा कहते हैं कि उनके वरिष्ठ अधिकारी उन्हें ऐसे लक्ष्य डे रहे हैं जिनको तय समय सीमा के अन्दर पुरा करना असंभव है। उन्होंने बताया कि उन्हें तहसीलदार ने एक ही दिन में 300 फॉर्म एकत्र करने का आदेश दिया। “लेकिन गांववाले फॉर्म आसानी से नहीं देते। बीएलओ क्या करे?”

वर्मा का कहना है कि इस काम को आसन करने में न तो मतदाता पुरा सहयोग कर रहे हैं ना ही वर्मा के अन्य सहयोगी। बकौल वर्मा, “ग्रामीण कहते हैं कि आपको तो तनख्वाह मिलती है। अगर आपसे बात करते हुए हमारी फसल खराब हो गई, तो उसका नुकसान कौन भरेगा?” 

रविवार को जब तहसीलदार के आदेश के बाद वर्मा पर दबाव बहुत ज्यादा था तब वर्मा ने सहायता के लिए आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और पंचायत प्रतिनिधि को फोन करने की कोशिश की। सभी का एक ही जवाब था- आज छुट्टी है। “लेकिन बीएलओ के लिए कोई छुट्टी नहीं है।”

वर्मा राजगढ़ के धनवास गांव में 1,400 से अधिक मतदाताओं को कवर करते हैं। ईसीआई दिशानिर्देशों के अनुसार, 1,200 से अधिक मतदाताओं वाले किसी भी क्षेत्र में दो बीएलओ होने चाहिए, वे कहते हैं। “मैंने एक साल पहले अतिरिक्त बीएलओ का अनुरोध किया था” मगर उनकी इस दरख्वास्त पर अब तक विचार नहीं किया गया। 

बचे हुए लोगों की तलाश

वर्मा के गांव से 152 किमी दूर रहने वाली राधा विश्वकर्मा एक आशा कार्यकर्ता हैं। वह सीहोर जिले के शेरपुर बूथ के लिए जिम्मेदार हैं। एक महीने तक लगातार काम करने के बाद उन्होंने 750 लोगों की सूची में आधे से अधिक मतदाताओं की जानकारी सत्यापित कर ली है। मगर अंतिम 80 लोग अभी भी बचे हुए हैं। इन्हें खोजने में आ रही परेशानियों का ज़िक्र करते हुए वह कहती हैं,

“मैंने उन्हें कॉल करने की कोशिश की है… उनके पंजीकृत पते पर गई… वे कहीं नहीं मिल रहे।” हालांकि उन्होंने अपनी यह समस्या वरिष्ठ अधिकारीयों से साझा की है। वह कहती हैं, “अब मैं इन नामों को तीसरी श्रेणी में जोड़ूंगी।”

उनके घर में खुली जगह भी फॉर्म और 2003 के विधानसभा चुनाव की मतदाता सूची से भरी हुई है।

वहीं दूसरी ओर, संगीता परमार लगभग अपना सारा काम पूरा कर चुकी हैं। वह सीहोर जिले के पिपलिया मीरा बूथ के अंतर्गत आने वाले एक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका हैं। उनके केवल दस फॉर्म अपलोड होने बाकी हैं, वह कहती हैं कि अगर संबंधित पोर्टल सही तरीके से चलेगा तो इस काम को एक शाम में ही निपटाया जा सकता है। 

शिक्षकों के लिए यह काम अतिरिक्त भार बन गया है जिसके चलते उनके मुख्य काम छूट से गए हैं। फ़ोटो- पल्लव जैन/ग्राउंड रिपोर्ट

डिजिटलीकरण ने बढ़ाया दबाव

इन ज़मीनी कार्यकर्ताओं से बात करते हुए यह समझ आता है कि प्रक्रिया में शामिल डिजिटलीकरण ने दबाव एवं परेशानी और भी बढ़ा दी है। धीमे नेटवर्क और बार-बार सर्वर आउटेज की समस्या के चलते एक एंट्री में एक घंटा तक लग जाता है। अलग-अलग राज्यों के बीएलओ ने व्हाट्सएप ग्रुप्स में इसी तरह की परेशानियों की शिकायत की है।

इस पूरी प्रक्रिया के दौरान राधा, संगीता और वर्मा जैसे कार्यकर्ताओं के नियमित कर्तव्यों, घरेलू जिम्मेदारियों से लेकर शिक्षण और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्य तक को एक तरफ रख दिया गया है। उन सभी ने कहा कि वे रात भर काम कर रहे थे और अक्सर चार से पांच घंटे से अधिक नहीं सो रहे थे। परमार बताती हैं,

“मेरे मिस्टर (पति) ने पिछले महीने मेरा साथ दिया वर्ना यह काम बहुत मुश्किल होता।” वह कहती हैं, “चाहे कितना भी मुश्किल हो… यह काम करना ही है। बूथ पर मतदाता सूची के लिए यह महत्वपूर्ण है।”

दुर्व्यवहार की शिकायत

30 नवंबर को, भारत निर्वाचन आयोग ने कार्यभार को कम करने के लिए एसआईआर की समय सीमा 4 दिसंबर से बढ़ाकर 11 दिसंबर कर दी। इसके साथ ही इन कार्यकर्ताओं के पारिश्रमिक में भी वृद्धि की घोषणा की गई है। घोषणा के बाद अब बीएलओ को ₹6,000 से ₹12,000 रु और पर्यवेक्षी अधिकारियों के लिए ₹18,000 तक का पारिश्रमिक तय किया गया है।

इस बीच वर्मा और तहसीलदार के बीच हुए विवाद पर ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए स्थानीय एसडीएम निधि भारद्वाज ने बताया कि उन्हें वर्मा की शिकायत प्राप्त हुई है।

“बीएलओ के आरोप के मुताबिक उनसे दुर्व्यवहार किया गया है। यदि वाकई ऐसा हुआ है तो ये खेदपूर्ण है और इस पूरे मामले से मैं कलेक्टर को अवगत कराउंगी। तहसीलदार से जवाब भी तलब किया जाएगा। यदि वे दोषी पाए जाएंगे तो नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।”

तहसीलदार अनिल शर्मा बीएलओ के आरोपों को निराधार बता रहे हैं। उनका कहना है कि वर्मा एसआईआर के काम में पीछे चल रहे हैं। उसी को लेकर में वह वर्मा के पास गए थे और उनको निर्देश दिए थे। “अब ये उस बात को दुर्व्यवहार बता रहे हैं, जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ।”

जबकि भारद्वाज ने हमें बताया कि ग्राउंड रिपोर्ट के वीडियो संज्ञान में आने के बाद वर्मा के लिए एक और सहायक नियुक्त किया गया है। हालांकि हमने उनसे इस बावत जारी किए गए आदेश की कॉपी भी मांगी है मगर अब तक हमें वह प्राप्त नहीं हुई है।

राजीव त्यागी और पल्लव जैन ने रिपोर्टिंग में योगदान दिया है।


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Author

  • Abdul Wasim Ansari is an independent journalist based in Rajgarh, Madhya Pradesh, bringing nearly a decade of experience in journalism since 2014. His work focuses on reporting from the grassroots level in the region.

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