...
Skip to content

Bharat Ratna Karpuri Thakur: जब आरक्षण के फैसले पर बिहार के “आंबेडकर” को अपनी पार्टी में झेलना पड़ा था तीखा विरोध!

Bharat Ratna Karpuri Thakur: जब आरक्षण के फैसले पर बिहार के "आंबेडकर" को अपनी पार्टी में झेलना पड़ा था तीखा विरोध!
Bharat Ratna Karpuri Thakur: जब आरक्षण के फैसले पर बिहार के "आंबेडकर" को अपनी पार्टी में झेलना पड़ा था तीखा विरोध!

Bharat Ratna Karpuri Thakur: मोदी सरकार ने पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को उनकी जयंती 24 जनवरी पर भारत रत्न देने की घोषणा की। इससे पहले 2019 में पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। कर्पूरी ठाकुर से पहले बिहार से, देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद, लोक नायक जय प्रकाश नारायण को भी भारत रत्न मिल चुका है। आइये देखते हैं कर्पूरी ठाकुर का राजनितिक जीवन और बिहार की राजनीती में उनका योगदान।  

सादगी व ईमानदारी की मिसाल कर्पूरी ठाकुर

कर्पूरी ठाकुर को बिहार में जननायक कहा जाता था, उन्हें बिहार का आंबेडकर भी माना जाता था। कर्पूरी ठाकुर डॉ. राम मनोहर लोहिया के शिष्य थे, उन्होंने ताउम्र सामाजिक न्याय के लिए संघर्ष किया। कर्पूरी ठाकुर बिहार के शिक्षा मंत्री एवं 2 बार मुख्यमंत्री रहे। कर्पूरी ठाकुर संसोपा (संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी), जनता पार्टी व लोक दल का हिस्सा रहे। हालाँकि कर्पूरी ठाकुर बतौर मुख्यमंत्री अपना कोई भी 5 वर्ष का कार्यकाल पूरा नहीं कर पाए फिर भी उनके निर्णय बिहार एवं सामाजिक न्याय की राह में एक मील का पत्थर हैं।  

कर्पूरी ठाकुर अपनी सादगी एवं ईमानदारी के लिए जाने जाते हैं। उनके प्रधान सचिव रहे और बाद में भाजपा से पूर्व सांसद यशवंत सिन्हा अपनी किताब रेलेंटलेस में बताते हैं की एक बार उनके घर जाने पर उन्होंने पाया की कर्पूरी ठाकुर को एक चाय की व्यवस्था करने के लिए भी बड़ी जद्दोजहद करनी पड़ी थी। 

उनके बेटे एक वाकया बताते हैं की एक बार उन्हें एक डेलिगेशन में यूगोस्लाविया जाना पड़ा, वहां के ठंड के लिए उनके पास कोट नहीं था। उन्होंने कहीं से कोट की व्यवस्था की पर वह फटा हुआ था। यह देख यूगोस्लाविया के शाशक मार्शल टीटो ने उन्हें एक कोट भेंट में दिया था। इसके अलावा ये किस्सा भी आम है की की एक बार उनका फटा कुर्ता देख चंद्रशेखर ने बैठक में उपस्थित सभी नेताओं से चंदा जमा करने को कहा, फिर कर्पूरी ठाकुर से गुजारिश की कि आप इससे एक कुर्ता सिलवा लीजिये। 

बिहार में में सामाजिक न्याय का नींव का पत्थर और मील का पत्थर 

कर्पूरी ठाकुर ने डॉ. लोहिया के आदर्शों पर चलते हुए कई सुधार किये, जिसके लिए उन्हें विरोध का सामना भी करना पड़ा। जब कर्पूरी ठाकुर बिहार के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री थे तब उन्होंने बिहार में मैट्रिक की परीक्षा के लिए अंग्रेजी में पास होने की अनिवार्यता को समाप्त किया था, ताकि ऐसे छात्र जो पिछड़े क्षेत्र से आते हैं और सीमित संसाधनों के साथ पढ़ाई करते हैं वो भी उत्तीर्ण हो कर आगे बढ़ सकें। कर्पूरी ठाकुर ने लोहिया के कहे अनुसार 6 एकड़ से कम जोत के किसानो का कर भी माफ़ किया था।   

कर्पूरी ठाकुर ने बिहार में पिछड़े वर्ग के आरक्षण के लिए मुंगेरी लाल आयोग गठित किया एवं उसकी सिफारिशों के अनुसार 20 प्रतिशत आरक्षण लागू किया। कर्पूरी ठाकुर ने इस आरक्षण को दो वर्गों में विभाजित किया। इसमें से जो जातियां अपेक्षाकृत सक्षम थी जैसे की यादव, कुशवाहा, कुर्मी इत्यादि को 8 फीसदी और पिछड़ों में भी पिछड़ी जातियां जैसे नाइ, कुम्हार, लोहार इत्यादि के लिए 12 फीसदी आरक्षण की व्यवस्था की। इसके लिए कर्पूरी ठाकुर को दोहरा विरोध झेलना पड़ा, सवर्ण और ऊंची पिछड़ी जाति के लोगों ने उनका कड़ा विरोध किया फिर भी कर्पूरी ठाकुर अपने निर्णय पर अडिग रहे। गौरतलब है की कर्पूरी ठाकुर जाति से नाई थे और एक बहुत गरीब परिवेश से आते थे। 

हालाँकि कर्पूरी ठाकुर का सार्वजनिक जीवन काफी मुश्किलों भरा रहा। पिछड़े समाज से आते हुए भी उन्होंने शिक्षा ली और राजनीति में अपनी जगह बनाई। कथित तौर पर प्रेमलता राय नाम की एक एक शिक्षक ने कर्पूरी पर बलात्कार के गंभीर आरोप लगाए, हालाँकि बाद में अदालत में उन्होंने अपना बयान बदल दिया और कोर्ट ने यह कहते हुए कर्पूरी ठाकुर के हक़ में फैसला सुनाया की यह उनकी छवि बिगाड़ने का प्रयास था, लेकिन छवि तो बिगाड़ ही दी गई थी। 1984 के लोकसभा चुनाव कर्पूरी ठाकुर समस्तीपुर से बड़े अंतर से हार गए। विधानसभा चुनाव जीते पर वहां तीसरी बार नेता प्रतिपक्ष  रहकर ही संतोष करना पड़ा। सबसे बुरा दौर तब आया जब तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष ने कर्पूरी ठाकुर से नेता प्रतिपक्ष का भी ओहदा छीन लिया। कर्पूरी ठाकुर ने अदालत का रुख किया पर वहां भी असफलता ही हाथ लगी। अंततः 1988 में 64 वर्ष की आयु में दिल का दौरा पड़ने से कर्पूरी ठाकुर का निधन हो गया।     

कहीं पर निगाहें कहीं पर निशाना

अगर मोदी सरकार के इस फैसले को देखा जाए तो यह 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार में अपनी पकड़ बनाने के प्रयास के तौर पर देखा जा सकता है। जैसा की बिहार की हालिया जाति जनगणना के अनुसार बिहार में 13 फीसदी OBC और 36 फीसदी EBC (Extremely backward Class) है, जो की बिहार की जनसंख्या का सबसे बड़ा समूह है और स्वयं कर्पूरी ठाकुर इसी समूह से आते थे। 

2019 के चुनाव में बीजेपी ने जदयू के साथ बिहार में 34 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इसमें नीतीश कुमार का EBC वोट बैंक NDA की सफलता का बड़ा कारण बना था। अब जब की नीतीश कुमार भाजपा के साथ आ गए हैं तो कोई बड़ा चमत्कार देखने को मिल सकता है. वहीं यादव, मुस्लिम वोट बैंक जो की लगभग 30 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है, हमेशा की तरह लालू यादव के साथ रहा है। इसे देखते हुए बीजेपी के लिए यह जरूरी हो जाता है की वो अत्यंत पिछड़ी जातियों को अपने साथ जोड़े। इस प्रकार बीजेपी ने कर्पूरी ठाकुर को चुनाव से ऐन पहले भारत रत्न देने की घोषणा कर राजनीतिक दृष्टि से बहुत ही समझदारी भरा प्रयास किया है।

बहरहाल चुनावी समीकरण जो भी हों, कर्पूरी ठाकुर का राजनितिक जीवन, उनकी ईमानदारी और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्धता भारतीय राजनीति के लिए हमेशा एक मिसाल है और रहेगा।       

अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में हुआ ‘Forest Of Life’ फेस्टिवल का आयोजन 

Himachal EV Policy: सरकारी अफसर नहीं ख़रीद सकेंगे पेट्रोल-डीज़ल वाहन

Ethanol वाला ईंधन कैसे भारत को विदेशी मुद्रा बचाने में कर रहा है मदद?

Solar for Tribals: भारत के आदिवासी क्षेत्रों में लगेंगे सोलर पैनल, केंद्र सरकार ने दी मंजूरी

ज़रुरी खबरें पाने के लिए Ground Report Hindi के Whatsapp समूह से जुड़िये। आप हमें अपनी राय Greport2018@Gmail.Com पर मेल कर सकते हैं।

Author

  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

    View all posts

Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

Connect With Us

Send your feedback at greport2018@gmail.com

Newsletter

Subscribe our weekly free newsletter on Substack to get tailored content directly to your inbox.

When you pay, you ensure that we are able to produce on-ground underreported environmental stories and keep them free-to-read for those who can’t pay. In exchange, you get exclusive benefits.

Your support amplifies voices too often overlooked, thank you for being part of the movement.

EXPLORE MORE

LATEST

mORE GROUND REPORTS

Environment stories from the margins