सिंगरौली जिले के बासी बेरदह गांव से सरई तक लगभग 31 किलोमीटर का सफर अखिलेश शाह ने अनगिनत बार तय किया था। कंक्रीट की गीली सड़क, जिसमें जगह-जगह गड्ढे उभरे हुए थे, सड़क के दोनों ओर साल, तेंदू और सागौन के लंबे पेड़ खड़े थे जिनके बीच-बीच में सरसों के खेत फैले हुए थे।
10 दिसंबर 2025 को भी शाह उसी रास्ते पर थे. आधा रास्ता ही तय किया था कि अचानक पुलिस ने उन्हें रोक लिया।
मोटर साइकिल सड़क के किनारे खड़ी करने को कहा गया और बिना ज़्यादा बातचीत के उन्हें पुलिस बस में बैठा दिया गया. शाह ने बताया कि वे सरई तहसील कार्यालय किसी ज़रूरी काम से जा रहे हैं, लेकिन उनकी बात का कोई असर नहीं हुआ. पुलिस ने उन्हें शाम पांच बजे तक सरई थाने में बैठने के लिए कह दिया.

पुलिस को संदेह था कि सिंगरौली जिले में कोयला खनन के लिए पेड़ों की कटाई के खिलाफ 10 दिसंबर को हो रहे विरोध प्रदर्शनों में शाह शामिल हो सकते हैं। शाह अकेले नहीं थे: बासी बेरदह के सेमारू सिंह मरकाम, सोनमती सिंह खैरवार और उनके पति राजपाल सिंह खैरवार को भी कहीं आने-जाने से रोक दिया गया। ये सभी उस आंदोलन के अगुआ हैं, जो धिरौली कोल ब्लॉक में पेड़ों की कटाई, खनन और उससे होने वाले विस्थापन के विरोध के इर्द-गिर्द संगठित है।
थाने में इंतज़ार के दौरान पुलिस ने यह कहकर उनका मोबाइल ले लिया कि शाम को लौटा दिया जाएगा, लेकिन शाह के मुताबिक आज तक वह फोन उन्हें वापस नहीं मिला।
हमसे करीब एक घंटे की बातचीत के दौरान शाह बार-बार एक ही नारा दोहराते रहे:
“अडानी जब हमसे डरता है, तो पुलिस को आगे करता है।”
मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले के धिरौली कोल ब्लॉक में प्रस्तावित कोयला खनन परियोजना के खिलाफ स्थानीय आदिवासी गांवों का विरोध 2022 से जारी है। इस कोल ब्लॉक की नीलामी नवंबर 2020 में हुई और 3 मार्च 2021 को इसका आवंटन किया गया। 4 मई 2022 को हुई जनसुनवाई में ग्रामीणों ने परियोजना का विरोध किया। अक्टूबर 2025 में पेड़ों की कटाई शुरू हुई, जो विरोध के बाद रुकी, लेकिन 17 नवंबर से फिर शुरू हो गई।

10 दिसंबर 2025 को हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान आंदोलनकारियों पर पुलिस निगरानी और रोक-टोक ने इस संघर्ष को और तेज कर दिया।
सिंगरौली में पहली बार कटाई अक्टूबर में शुरू हुई थी। ग्रामीण कहते हैं कि एक ही दिन में 300 के करीब पेड़ काटे गए। ग्रामीणों के विरोध के बाद कटाई कुछ दिनों के लिए रुकी मगर 17 नवंबर से वापस शुरू हो गई।
सिंगरौली जिले की प्रभारी मंत्री ने प्रदेश सरकार की उपलब्धियां गिनाने के लिए आयोजित एक कार्यक्रम में कहा,
“अभी 6 लाख पेड़ों की कटाई प्रस्तावित है, लेकिन अभी इतने पेड़ काटे नहीं गए है। अभी सिर्फ 33 हजार पेड़ ही काटे हैं।”
धिरौली कोल ब्लॉक और 5.7 लाख पेड़
सिंगरौली के इस कोल ब्लॉक पर अडानी पॉवर लिमिटेड की सब्सीडीयरी कंपनी स्ट्राटाटेक मिनरल रिसोर्सेज प्राइवेट लिमिटेड (STRATATECH MINERAL RESOURCES PRIVATE LIMITED) द्वारा खनन किया जाना है. कंपनी ने नवंबर 2020 में मध्य प्रदेश सरकार को 12.5% रेवेन्यु शेयर ऑफर करते हुए इसकी बिडिंग जीती थी. 03 मार्च 2021 को मध्य प्रदेश सरकार ने कोल ब्लॉक आवंटित भी कर दिया।

26.72 वर्ग किमी (2672 हेक्टेयर) में फैले इस कोल ब्लॉक के अंतर्गत सिंगरौली के धिरौली, फटपानी, सिरस्वाह समेत कुल 8 गांव आते हैं। हालांकि इसमें से खनन 2143.39 हेक्टेयर एरिया में होगा। 2800 करोड़ की लागत वाले इस कोल ब्लॉक की उत्पादन क्षमता 6.5 मीट्रिक टन पर एनम (MTPA) है। कुल मिलाकर खुली खदान (open cast mine) से कुल 186.06 मिलियन टन और भूमिगत खदान (underground mine) से कुल 112.07 मिलियन टन कोयला निकाला जाना है। इसके लिए 5,70,666 पेड़ काटे जाने हैं.
इस प्रोजेक्ट के तहत कुल 1436.19 हेक्टेयर वनभूमि को डायवर्ट किया गया है। जबकि 1235.81 हेक्टेयर नॉन फ़ॉरेस्ट लैंड प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इस भूमि में कुल 5,70,666 पेड़ काटे जाने हैं। हालांकि वन विभाग के एक पत्राचार के अनुसार ‘इस क्षेत्र में फ्लोरा एवं फौना के संरक्षण के लिए 10.65 रु की वन्यप्राणी प्रबंधन योजना को अनुमोदित किया गया है। साथ ही यह कहा गया है कि इस कटाई के एवज में स्ट्राटाटेक मिनरल रिसोर्सेज प्राइवेट लिमिटेड द्वारा 36,38,165 पेड़ लगाए जाएंगे। हालांकि यह पेड़ राज्य के सागर, शिवपुरी, रायसेन और आगर मालवा के कुल 3972.34 एकड़ (1607.55 हेक्टेयर) में लगाए जाएंगे.
शाह इस खदान के खिलाफ 2022 से संघर्ष कर रहे हैं. 4 मई 2022 को गांव के सीनियर सेकंडरी स्कूल में हुई जन सुनवाई में शाह, मरकाम और राजपाल सहित कई लोगों ने इस परियोजना का विरोध किया। मगर शाह कहते हैं कि तब भी स्थानीय एसडीएम और तहसीलदार ने उनकी एक भी बात नहीं सुनी.
कुछ दिनों बाद हुई ग्राम सभा में तय किया गया कि गांव के युवा प्रशासन से पत्राचार कर परियोजना के खिलाफ विरोध जारी रखेंगे, जिसमें राजपाल सिंह खैरवार, उनकी पत्नी सोनमती सिंह खैरवार अपने चार महीने के बच्चे के साथ और सेमारू सिंह मरकाम भी शामिल थे।
“बिना ग्रामसभा की अनुमति अडानी की कंपनी जंगल काट रही है, हमारे पुरखों की संपत्ति लूटी जा रही है,”
यह आरोप सोनमती सिंह खैरवार ने 10 दिसंबर के आंदोलन के पांच दिन बाद दिल्ली में आल इंडिया कांग्रेस कमिटी के मुख्यालय में, प्रदेश के नेताओं के साथ मीडिया को संबोधित करते हुए लगाया।
उनका परिवार कुल 4 एकड़ में खेती करता है जिससे थोड़ी ही दूरी पर 10 डिसमिल (0.1 एकड़) ज़मीन पर उनका घर बना हुआ है. राजपाल बताते हैं कि उनका 2 एकड़ खेत इस परियोजना के लिए अधिग्रहित किया जाएगा.
ग्राम सभा के ज़रिए एकजुट हुए लोग
जंगल के पास अपने कच्चे घर में सेमारू सिंह मरकाम 2005 से अब तक की ग्रामसभाओं के रजिस्टर, जिन पर कहीं-कहीं मुखिया रहे उनके दादा काशी सिंह मरकाम के हस्ताक्षर हैं, को दिखाते हैं। वे बताते हैं कि गांव में बीते 20 साल से ग्रामसभा होती रही है और 2022 के बाद इन्हीं बैठकों में कोल खदान परियोजना पर भी चर्चा होने लगी।

शाह के अनुसार गांव के 10–11 लोग मिलकर आंदोलन चला रहे हैं और आगे की रणनीति तय करते हैं, वहीं मरकाम बताते हैं कि वे इसके खर्च के लिए ग्रामीणों से चंदा जुटाते हैं, जिसका हिसाब कुछ कागज़ों में दर्ज है।
सेमारू और राजपाल जैसे पुरुष कार्यकर्ता प्रदर्शनकारियों के परिवहन और माइक-स्पीकर जैसी व्यवस्थाओं को देखते हैं. जिस दिन प्रदर्शन होता है उसके एक दिन पहले सभा करके लोगों को प्रदर्शन में शामिल होने के लिए फिर से बताया जाता है. फिर सुबह हर कार्यकर्ता अपने आस-पास के घरों से लोगों को शामिल करवाता है.
हालांकि इनके द्वारा अब तक कोई भी बड़े स्तर के प्रदर्शन नहीं किए गए हैं. गांव में जब कंपनी से संबंधित कोई गतिविधि होती है तो लोग उसका विरोध करते हैं या फिर कलेक्टर या स्थानीय एसडीएम को ज्ञापन सौंपते हैं. इन आयोजनों में शामिल होने वाले लोगों की संख्या 50 से 60 लोगों तक होती है.
बीते 14 महीनों से सोनमती इस आंदोलन के लिए लगातार भाग दौड़ रही हैं. वह बताती हैं कि किसी भी प्रदर्शन से पहले वह घर-घर जाकर वहां महिलाओं से बात करती हैं ताकि ज़्यादा से ज़्यादा महिलाएं शामिल हो सकें.

“मैं सोची की अभी शामिल नहीं होउंगी तो आने वाला सीढ़ी-पीढ़ी कहां जाएगा?”
वह कहती हैं कि अगर विस्थापन होगा तो इससे महिलाओं पर सबसे बुरा असर पड़ेगा. “यहां हम लोग (महिलाएं) स्वतंत्र हैं. अपने मन का कर लेते हैं. वहां पलायन करके कमाने जाना पड़ेगा तब हम लोग दबाव में रहेंगे. घर के बाहर इतना स्वतंत्र नहीं रह पाता है आदमी (person).”
वह कहती हैं कि यहां जंगल में जाकर वह सालभर में लगभग 1.5 लाख रूपए का वनोपज इकठ्ठा कर लेती हैं. यह कहीं और बस जाने पर संभव नहीं है. ऐसे में उन्हें घर चलाने के लिए अपने पति पर ही पूरी तरह निर्भर होना पड़ेगा.

आंदोलन में लगातार सक्रिय रहने के कारण, “भागदौड़ में हम लोग (पति-पत्नी) अपना खेत भी नहीं देख पा रहे हैं,” वह कहती हैं, और घर के एक कमरे में ले जाकर दिखाती हैं कि अब उनके पास सिर्फ़ एक बोरी चावल ही बची है।
पांचवीं अनुसूची और पर्यावरण का सवाल
इस संघर्ष में उनके पति राजपाल सिंह खैरवार भी कंधे से कंधा मिलाकर साथ हैं। जिस दिन उनसे मुलाक़ात हुई, उसी दिन वे दिल्ली से लौटे थे। घर के एक कमरे में बैठे वे फोन पर यह सुनिश्चित कर रहे थे कि आंदोलन में शामिल सभी साथी सुरक्षित अपने-अपने घर पहुंच चुके हों।
वह कहते हैं, “मैं जहां भी देखता हूं तो केवल आदिवासियों को ही सताया जा रहा है.” वह सोनमती की बात को दोहराते हुए कहते हैं, “हमारा गांव पांचवी अनुसूची में आता है फिर भी हमसे कोई परमीशन नहीं ली गई.”
दरअसल भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची के तहत देश में जनजातियों के संरक्षण के लिए कुछ विशेष क्षेत्र अधिसूचित किए गए हैं.
वन्यभूमि एवं अधिसूचित क्षेत्रों को लेकर क़ानूनी लड़ाई लड़ने वाले एडवोकेट अनिल गर्ग कहते हैं कि जो इलाके पांचवीं अनुसूची के अंतर्गत आते हैं वहां खनन से पहले ग्रामसभा की लिखित अनुमति की ज़रूरत होती है.
09 अगस्त 2023 को लोकसभा में एक सवाल का जवाब देते हुए केंद्रीय कोयला मंत्री प्रल्हाद जोशी ने बताया कि देशभर में कुल 157 कोल ब्लॉक भारतीय संविधान की पांचवीं अनुसूची में आते हैं. इसमें धिरौली समेत मध्य प्रदेश के कुल 28 कोल ब्लॉक भी शामिल हैं.
राजपाल कहते हैं कि खनन के लिए जिस जंगल को उजाड़ा जा रहा है वहां तेंदुआ, भालू और अन्य जानवर भी रहते हैं. वह बताते हैं कि उनके गांव में 2-3 साल पहले 4 हाथियों के झुंड ने नुकसान भी किया था.
2021 की साईट इंस्पेक्शन रिपोर्ट के अनुसार, ‘(इस क्षेत्र में) भालू, लकड़बग्घा, भेड़िया, सियार इत्यादि मांसाहारी प्राणियों का स्थायी रहवास व विचरण है एवं वन्यप्राणी तेन्दुआ का विचरण निकटस्थ वनों से होता रहता है।’
फ़रवरी 2024 को केन्द्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय द्वारा राज्य के वन विभाग के प्रमुख सचिव को लिखे एक पत्र में राज्य सरकार के हवाले से लिखा गया है कि खनन का इलाका हाथी कॉरिडोर के 1 किमी के दायरे में आता है. हालांकि राज्य सरकार ने इस पत्र का जवाब देते हुए बताया कि धिरौली कोल ब्लॉक से हाथी कॉरिडोर की दूरी न्यूनतम 5 किमी है. यानि सरकारी दस्तावेज़ों में यह क्षेत्र हाथी कॉरिडोर में नहीं आता.

“अगर कंपनी हमारी ज़मीन लेना चाहती है तो हमें जमीन के बदले ज़मीन दे दी जाए,” राजपाल कहते हैं. मरकाम इसमें जोड़ते हैं, “जैसे अभी हम जंगल में रह रहे हैं वैसी ही ज़मीन दी जाए. जहां तेंदू-सागौन के पेड़ हों.”
राजपाल, मरकाम, सोनमती और अखिलेश सभी अपनी बात में एक बात ज़रूर दोहराते हैं,
“जब तक न्याय नहीं मिलेगा हम लड़ते रहेंगे. भले ही मरते दम तक लड़ना पड़े.”
वहीं ग्रामीणों के पुनर्वास और विस्थापन को लेकर हमने स्थानीय कलेक्टर से फोन पर संपर्क करने की कोशिश की. उन्हें रिपोर्टर द्वारा टेक्ट्स मैसेज के ज़रिए भी सवाल भेजे गए हैं. जवाब आने पर स्टोरी अपडेट की जाएगी.
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