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NHAI ने कोर्ट के आदेश के खिलाफ भोपाल में काट दिए 1500 पेड़

वीडियो प्रोडक्शन: पल्लव जैन

गुरुवार दोपहर अयोध्या बायपास पर महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग सड़कों पर थे, उन 1500 पेड़ों के लिए, जो नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के बावजूद ढाई दिन में काट दिए गए। लिखित आदेश अपलोड होते ही कटाई रुकी, लेकिन तब तक नुकसान हो चुका था।

22 दिसंबर को अयोध्या बायपास चौड़ीकरण के लिए 8 हजार से अधिक पेड़ों की कटाई के मामले की सुनवाई एनजीटी के ओपन कोर्ट में चल रही थी। ट्रिब्यूनल ने मौखिक आदेश में साफ कहा था कि सड़क चौड़ीकरण का काम जारी रखा जा सकता है, लेकिन एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा। इसके बावजूद उसी दिन नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) और नगर निगम के जरिए चेनसॉ मशीनों के साथ कर्मचारी मौके पर उतार दिए गए। अगले ढाई दिनों तक अंधाधुंध पेड़ काटे गए। इस दौरान कटे पेड़ों की संख्या 1500 से अधिक बताई जा रही है।

गुरुवार की दोपहर, भोपाल के निवासियों से इस कटाई का कड़ा विरोध किया

पेड़ों की कटाई के विरोध में गुरुवार को बड़ी संख्या में लोग सड़कों पर उतर आए। कई प्रदर्शनकारी मास्क पहनकर पहुंचे और चेतावनी दी कि अगर हरियाली खत्म हुई तो भोपाल में भी सांस लेना मुश्किल हो जाएगा। कुछ लोगों ने कटे हुए पेड़ों को अगरबत्ती लगाकर श्रद्धांजलि दी, तो कई पर्यावरणप्रेमी पेड़ों से लिपटकर उन्हें बचाने की गुहार लगाते नजर आए।

पेड़ कटाई के विरोध में प्रदर्शन कर रहीं रुचिता नारायण कहती हैं कि अगर इसी निर्दयता से पेड़ काटे जाते रहे तो अगले दस साल में भोपाल का हाल भी दिल्ली जैसा हो जाएगा। नारायण कहती हैं,

यह एनजीटी के आदेश का खुलेआम उल्लंघन है। एनएचएआई और नगर निगम एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप कर रहे हैं, लेकिन इसका खामियाजा तो भोपाल की जनता को भुगतना पड़ेगा।

रुचिता कहती हैं कि अगर यूं ही पेड़ काटे जाते रहे तो कुछ ही समय में भोपाल भी दिल्ली की तरह प्रदूषित हो जाएगा।

पर्यावरणविद सुभाष सी. पांडेय का आरोप है कि मौखिक और लिखित आदेश के बीच जो समय मिला, उसका जानबूझकर फायदा उठाया गया। जैसे ही लिखित आदेश सार्वजनिक हुआ, कटाई रोक दी गई। पांडेय इस पूरी प्रक्रिया को छलावा बताते हैं। वे कहते हैं,

ओपन कोर्ट में जज द्वारा दिया गया आदेश उसी दिन से लागू माना जाता है। लिखित आदेश का इंतजार करने का कोई ‘मार्जिन ऑफ एरर’ नहीं होता। एनएचएआई के प्रतिनिधि की मौजूदगी में आदेश दिया गया था, इसके बावजूद कार्रवाई न रोकना कानूनी ही नहीं, नैतिक रूप से भी गलत और जानबूझकर किया गया छल है।

क्यों जरूरी बताया जा रहा है बायपास चौड़ीकरण

रत्नागिरी तिराहे से आसाराम चौराहे तक करीब 16 किलोमीटर लंबे अयोध्या बायपास को दस लेन में तब्दील किया जाना है। इस मार्ग से विदिशा, रायसेन, नर्मदापुरम और इंदौर की ओर जाने वाला भारी ट्रैफिक गुजरता है। आसपास घनी रिहायशी कॉलोनियां हैं, जहां जाम और हादसों की शिकायतें लगातार सामने आती रही हैं। एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन तक पहुंच आसान बनाने के उद्देश्य से इस परियोजना की योजना बनाई गई है।

आमतौर पर एनएचएआई शहर के भीतर सड़क परियोजनाएं नहीं करती, लेकिन राज्य सरकार के अनुरोध पर इस प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी एनएचएआई को दी गई। दिसंबर 2024 में टेंडर फाइनल हुआ और अगस्त 2025 में कॉन्ट्रैक्ट साइन किया गया। अनुबंध के अनुसार पेड़ कटाई समेत सभी जरूरी सरकारी अनुमतियां दिलाने की जिम्मेदारी एनएचएआई की है।

एनजीटी की सख्ती और 7871 पेड़ों की कटाई की अनुमति न मिलने से परियोजना समय पर शुरू नहीं हो पाई। अगर काम शुरू नहीं होता है तो एनएचएआई को ठेकेदार को हर दिन करीब 9 लाख रुपये का भुगतान करना होगा। 836 करोड़ रुपये की इस परियोजना को दो साल में पूरा करने का दबाव भी एनएचएआई पर है। पर्यावरणविदों का आरोप है कि इसी दबाव में नियमों को दरकिनार कर पेड़ काटे गए।

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर गंभीर असर

पर्यावरण विशेषज्ञों का कहना है कि अयोध्या बायपास के 40 से 80 साल पुराने पेड़ भोपाल की पारिस्थितिकी के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। ये पेड़ न केवल प्रदूषण को नियंत्रित करते हैं, बल्कि तापमान संतुलन और भूजल रिचार्ज में भी अहम भूमिका निभाते हैं।

उनका तर्क है कि दस लेन की जगह अगर सड़क को अधिकतम छह लेन तक सीमित रखा जाए तो विकास भी हो सकता है और हरियाली भी बचाई जा सकती है।

पांडेय कहते हैं,

हजारों पेड़ कटने से सबसे बड़ा असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ता है। स्थानीय हवा की गुणवत्ता बिगड़ती है, ऑक्सीजन घटती है और सांस, आंख व त्वचा से जुड़ी बीमारियां बढ़ती हैं। जैव विविधता नष्ट होती है, ग्राउंड वाटर रिचार्ज रुकता है और इलाके का तापमान कम से कम दो डिग्री तक बढ़ जाता है, जिसका असर भोपाल को इसी गर्मी में दिखने लगेगा।

एनएचएआई का दावा है कि पेड़ों के बदले 81 हजार पौधे लगाए जाएंगे और उनकी 15 साल तक देखरेख की जाएगी। लेकिन प्रदर्शनकारियों का कहना है कि पौधारोपण पुराने पेड़ों का विकल्प नहीं हो सकता।
प्रदर्शन में शामिल प्रतिमा पांडेय कहती हैं,

महिला प्रदर्शनकारियों के साथ प्रतिमा

पुराने पेड़ों को काटना आसान है, लेकिन नए पेड़ों को पाल-पोसकर बड़ा करना बेहद मुश्किल। इन पेड़ों की कटाई से पर्यावरण को जो नुकसान होगा, उसकी भरपाई संभव नहीं है।

इस मामले की अगली सुनवाई 8 जनवरी को एनजीटी में होनी है। तब तक ट्रिब्यूनल ने पेड़ कटाई पर पूरी तरह रोक लगा दी है, हालांकि सड़क परियोजना से जुड़े अन्य कार्य पेड़ों को काटे बिना जारी रखने की अनुमति दी गई है। अब सवाल यही है कि क्या विकास की दौड़ में शहर की हरियाली की बलि दी जाएगी, या कोई ऐसा रास्ता निकलेगा जहां सड़क भी बने और भोपाल की सांसें भी बची रहें।

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