भोपाल गैस त्रासदी को घटित हुए आज 41 साल बीत चुके हैं। 2-3 दिसंबर 1984 की दरमियानी रात यूनियन कार्बाइड नाम की फैक्ट्री से 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट निकला, जिससे कम से कम 5,000 लोगों की तुरंत मौत हो गई और पांच लाख से ज़्यादा लोग गैस के बुरे असर से प्रभावित हुए।
हर साल इसकी याद में 2 और 3 दिसंबर को भोपाल में रैली और विरोध प्रदर्ष का आयोजन किया जाता है। इस साल भी इस मौके पर भारत टाकीज अंडरब्रिज से यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री के पास तक रैली आयोजित की जानी थी। बुधवार दोपहर 12:30 बजे कई गैस पीड़ितों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने नारे लिखे हुई तख्तियां और बैनर लेकर मार्च करना शुरू ही किया था कि उन्हें पुलिस द्वारा रोक दिया गया।
दरअसल आयोजन के अंत में 2 पुतलों का दहन किया जाना था। प्रदर्शनकर्ताओं द्वारा बताया गया कि यह भोपाल गैस त्रासदी के दोषी और यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वारेन एंडरसन और उसके सहयोगियों का है। मगर इसमें से एक पुतले पर कुछ हिंदूवादी संगठनों और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं द्वारा आपत्ति दर्ज की गई। दरअसल इस पुतले में एक आदमी को खाकी निकर और सफ़ेद शर्ट पहने दिखाया गया था। नेताओं का आरोप है कि यह संघ का पुतला है।
हालांकि प्रदर्शनकर्ताओं का कहना है कि यह डावकेमिकल और त्रासदी के आरोपी का सहयोग करने वाले सभी सहयोगियों का पुतला है। मगर विवाद बढ़ने पर पुलिस ने प्रदर्शन को आगे नहीं जाने दिया और धीरे-धीरे लोग बिखर गए। प्रदर्शन में शामिल कार्यकर्ताओं का कहना है कि सरकार भारतीय बाज़ार में यूनियन कार्बाइड को बैक डोर से इंट्री दे रही है। उन्होंने 41 साल बाद भी पीड़ितों को पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधा न मिलने, मुआवजा न मिलने और कचरे को लेकर चिंता जताई।
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