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सुप्रीम कोर्ट ने वनशक्ति फैसला वापस लिया, पोस्ट-फैक्टो मंजूरी को दी अनुमति

यह ग्राउंड रिपोर्ट पॉडकास्ट एपिसोड, गुरुवार 21 नवंबर का है, जिसमें पर्यावरण और वन्यजीवों से संबंधित महत्वपूर्ण खबरों और चर्चाओं को शामिल किया गया है।

हेडलाइंस/ Headlines

मिलावटी कफ सिरप से हुई बच्चों की मौत के मामले में अब पुलिस ने चेन्नई के एक केमिकल सप्लायर को गिरफ्तार किया है। उस पर आरोप है कि उसने Sresan Pharmaceuticals को इंडस्ट्रियल ग्रेड Diethylene Glycol (DEG) बेचा था। इस सिरप से कम से कम 24 बच्चों की जान गई है। वहीं SIT ने पैसों के ट्रांजेक्शन को ट्रैक करके सप्लायर शैलेश पंड्या को पकड़ा है। अब तक कई गिरफ्तारियाँ हो चुकी हैं। इनमें फार्मा कंपनी का मालिक, एक केमिस्ट और सिरप लिखने वाला डॉक्टर भी सलाखों के पीछे हैं।


सुप्रीम कोर्ट ने वनशक्ति को लेकर अपने मई वाले फैसले को वापस ले लिया है, जिसमें retrospective environmental clearances (यानी बाद में मंजूरी देना) को खारिज किया गया था। अधिकांश जजों ने कहा कि ‘वनाशक्ति जजमेंट’ गलत था, क्योंकि वो पुराने कानूनों के हिसाब से नहीं था। अब कोर्ट ने कहा कि कुछ मामलों में ex post facto clearance (यानि बाद में मंजूरी) दी जा सकती है। खासकर जब प्रोजेक्ट “सार्वजनिक महत्व” का हो। हालांकि जस्टिस भुयान ने असहमति जताई और कहा कि पर्यावरण नीति में पहले से अनुमति लेना जरूरी है। इस फैसले से 2017 की नोटिफिकेशन और 2021 का SOP अभी भी लागू रहेंगे। यह मुद्दा अब फिर से न्यायिक समीक्षा में जाएगा।


ग्वालियर पुलिस ने एक ट्रैफिक चेक के दौरान 15 दुर्लभ भारतीय फ्लैप शेल कछुए से भरा बैग बरामद किया। स्मगलर भाग निकले, लेकिन पुलिस ने कछुओं को ज़ू और फॉरेस्ट डिपार्टमेंट को सौंप दिया है। अधिकारियों को शक है कि ये कछुए अवैध व्यापार के लिए ले जाए जा रहे थे। CCTV फुटेज से आरोपियों की तलाश चल रही है।


मध्य प्रदेश के अर्बन एडमिनिस्ट्रेशन डिपार्टमेंट (UAD) ने 413 शहरी निकायों को निर्देश दिए हैं कि आवारा कुत्तों का प्रबंधन वैज्ञानिक और कानूनी तरीके से करें। नगर निगमों को कहा गया है कि वे NGOs के साथ मिलकर एंटी-रेबीज वैक्सिनेशन और स्टेरिलाइज़ेशन करवाएँ, और बीमार या आक्रामक कुत्तों के लिए शेल्टर भी बनाएं। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बाद लिया गया है ताकि जन सुरक्षा और पशु कल्याण दोनों सुनिश्चित किए जा सकें।


कुनो नेशनल पार्क से बड़ी खुशखबरी आई है। मादा चीता मुखी ने पाँच शावकों को जन्म दिया है। यह भारत में चीता पुनर्वास परियोजना की दूसरी पीढ़ी का जन्म है। मुखी और उसके शावक फिलहाल स्वस्थ हैं, और वन अधिकारी उनकी निगरानी में लगे हैं। यह भारत के लिए चीता संरक्षण की दिशा में अहम उपलब्धि मानी जा रही है। क्यूंकि मुखी पहली चीता है जो कि मां बनी है।


भोपाल में पेड़ों की कटाई और ट्रांसप्लांटेशन (शिफ्टिंग) पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी है। कोर्ट ने कहा कि बिना जरूरी दस्तावेज और मंजूरी के विकास प्रोजेक्ट्स के लिए पेड़ हटाना कानूनी तौर पर गलत है। यह आदेश उन रिपोर्ट्स और याचिकाओं के बाद आया है जिनमें भोपाल में बिना अनुमति पेड़ काटने की बात सामने आई थी। हाईकोर्ट का यह कदम शहर की हरियाली बचाने और पर्यावरण नियमों के सख्त पालन की दिशा में बड़ा संकेत है।


चर्चा

सुप्रीम कोर्ट ने 18 नवंबर 2025 को एक अहम फैसला सुनाया। कोर्ट ने 2:1 के बहुमत से अपना पुराना निर्णय वापस ले लिया, जो रेट्रोस्पेक्टिव या पोस्ट-फैक्टो पर्यावरण मंजूरी से जुड़ा था। मई 2025 में कोर्ट ने कहा था कि किसी भी परियोजना को पूरा होने के बाद मंजूरी देना गैरकानूनी है। लेकिन अब इस नए आदेश के बाद केंद्र सरकार उन प्रोजेक्ट्स को भी मंजूरी दे सकती है जिन्हें शुरू करने से पहले पर्यावरणीय स्वीकृति नहीं मिली थी।

पोस्ट-फैक्टो मंजूरी का मतलब होता है, पहले प्रोजेक्ट शुरू कर देना या लगभग पूरा कर देना, और फिर बाद में पर्यावरण मंजूरी लेना। यह तरीका विवादित है, क्योंकि इससे परियोजना के शुरुआती चरण में पर्यावरण पर पड़ने वाले असर की सही जांच नहीं हो पाती। नुकसान हो जाने के बाद उसे रोकना मुश्किल हो जाता है।

पर्यावरण कानून साफ कहता है कि किसी भी परियोजना को शुरू करने से पहले मंजूरी जरूरी है। पुराने आदेश के तहत, कोर्ट ने 2017 की अधिसूचना और 2021 के ऑफिस मेमोरेंडम को रद्द कर दिया था। इससे केंद्र सरकार को पोस्ट-फैक्टो मंजूरी देने वाले आदेश जारी करने पर रोक लग गई थी। उस फैसले के बाद उड़ीसा का 962 बेड वाला एम्स हॉस्पिटल, स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया का प्लांट, और विजयनगर का ग्रीन फील्ड एयरपोर्ट जैसे कई प्रोजेक्ट्स तोड़ने के खतरे में आ गए थे।

इस बार, जजों के बीच राय बंटी रही। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और जस्टिस विनोद चंद्रन ने कहा कि पहले से बनी परियोजनाओं को गिराना जनहित में नहीं है। ऐसा करने से सार्वजनिक संसाधनों की बर्बादी होगी। जस्टिस चंद्रन ने यह भी कहा कि इमारतें तोड़ने से मलबा निकलेगा, जो खुद पर्यावरण को नुकसान पहुंचा सकता है।

वहीं, जस्टिस उज्ज्वल भुयान, जिन्होंने 2024 में वनशक्ति केस में भी हिस्सा लिया था, इस फैसले से असहमत रहे। उन्होंने कहा कि ‘सावधानी का सिद्धांत’ (Precautionary Principle) पर्यावरण कानून की बुनियाद है। जबकि ‘प्रदूषक भुगतान करे’ (Polluter Pays) सिर्फ नुकसान की भरपाई का नियम है। भुयान का कहना था कि भरपाई के नाम पर सावधानी के सिद्धांत को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।

कुल मिलाकर, इस नए फैसले के बाद पहले से बने प्रोजेक्ट्स को मंजूरी मिल सकती है, लेकिन इससे कई नए जोखिम और चुनौतियाँ भी सामने आ सकती हैं। खासकर उन जगहों पर, जहाँ शुरू से ही पर्यावरण के नियमों की अनदेखी की गई है।


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