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वन्यजीवों पर CITES के सुझावों को भारत ने क्यों कहा ‘प्रीमैच्योर’?

यह ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ के डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट का 65वां एपिसोड है। शुक्रवार, 14 नवंबर को देश भर की पर्यावरणीय ख़बरों के साथ पॉडकास्ट में बात होगी भारत में CO2 उत्सर्जन के रुझान और CITES मोरेटोरियम पर भारत की प्रतिक्रिया पर।


मुख्य सुर्खियां 

बोत्स्वाना ने भारत को 8 चीते औपचारिक रूप से सौंपे। इन चीतों को कालाहारी के घांजी से लाया जा रहा है। फिलहाल 2 चीतों को क्वारंटाइन में रखा गया है। यह सभी चीते अगले महीने तक भारत आ सकते हैं। 


ब्राजील के बेलेम में चल रहे COP30 में 13 नवंबर को जारी ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के नए शोध के अनुसार ग्लोबल कार्बन बजट लगभग ख़त्म हो चुका है और फ़ॉसिल फ्यूल से ग्लोबल कार्बन एमीशन 2025 में 1.1% बढ़ जाएगा – जो कि एक रिकॉर्ड उच्च स्तर है।


सुप्रीम कोर्ट ने देश की सभी वाइल्डलाइफ सेंचुरी और नेशनल पार्क की सीमा के एक किमी के अन्दर खनन गतिविधि पूरी तरह प्रतिबंधित कर दी है।


केदारनाथ धाम में इस साल 17.68 लाख लोगों ने दर्शन किए मगर इस यात्रा के दौरान 2300 टन कचरा भी इकठ्ठा हुआ है जिसे अब खच्चर की सहायता से नीचे लाया जाएगा।  


दिल्ली में 2027 तक सभी 3 लेगेसी वेस्ट साइट्स को ख़त्म करने के लिए MCD ने 4 सॉलिड वेस्ट प्रोसेसिंग प्लांट को मंजूरी दी है। 


केन्द्रीय कृषि मंत्रालय द्वारा सीड्स बिल 2025 का ड्राफ्ट जारी किया गया है। इसके तहत ख़राब क्वालिटी के बीज बेचने पर 30 लाख तक का जुर्माना और 3 साल तक की जेल हो सकती है। बिल के अंतर्गत सभी बीज की वैराइटी का रजिस्ट्रेशन करवाना ज़रूरी होगा। 


सुप्रीम कोर्ट ने झारखण्ड सरकार को निर्देश देते हुए कहा है कि राज्य के सारंडा जंगल को 3 महीने के अन्दर वाइल्डलाइफ सेंचुरी घोषित किया जाए। न्यायालय ने राज्य सरकार के उस अनुरोध को खारिज कर दिया, जिसमें 31 हज़ार 468 हेक्टेयर के स्थान पर केवल 24 हज़ार 941 हेक्टेयर क्षेत्र को सैंक्चुअरी घोषित करने की अनुमति मांगी थी।


जबलपुर नगर निगम की गौशाला में लम्पी वायरस के चलते 10 गायों की मौत हो गई। जिसके बाद उन्हें पर्याप्त भूसा और पानी न मिलने की शिकायत के साथ लोगों ने प्रदर्शन किया।


इस सीजन में पहली बार भोपाल का औसत AQI 246 पहुँच गया। यहां के टीटी नगर में तो यह 306 रहा।


भोपाल लगातार छठवें दिन शीतलहर की चपेट में रहा।  गुरूवार को शहर का न्यूनतम तापमान 8.2 दर्ज किया गया जो सामान्य से 7.5 डिग्री कम है।

विस्तृत चर्चा

भारत में CO2 उत्सर्जन का रुझान (वाहिद भट के साथ)

यह चर्चा ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट के नए डेटा पर आधारित थी, जिसे ब्राजील के बेलियम में चल रहे कॉप 30 के दौरान 13 नवंबर को जारी किया गया था।

मुख्य निष्कर्ष और कारण:

अनुमान है कि 2025 में भारत के जीवाश्म ईंधन (fossil fuel) से होने वाले CO2 उत्सर्जन में केवल 1।4% की वृद्धि होगी। यह पिछले वर्ष की 4% वृद्धि की तुलना में एक महत्वपूर्ण गिरावट है।

इस गिरावट के लिए कई मुख्य कारक जिम्मेदार हैं। इनमें सबसे प्रमुख है जल्दी मॉनसून, जिसके कारण गर्मी के पीक महीनों में कूलिंग की मांग (cooling demand) कम रही। साथ ही, सौर (solar) और पवन ऊर्जा (wind power) की हिस्सेदारी तेजी से बढ़ी है। इन दोनों का संयोजन कोयले की खपत को धीमा करने में सफल रहा है।

ग्लोबल कार्बन इमिशन के नंबर के अनुसार, 2024 में भारत का जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन 3.19 बिलियन टन था, और यह 2025 में लगभग 3.22 बिलियन टन रह सकता है।

अध्ययन के बयान में कहा गया है कि रिन्यूएबल ऊर्जा की वृद्धि और जल्दी मॉनसून ने खपत पैटर्न (consumption pattern) को बदल दिया है।

जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में मुख्य रूप से बिजली (electricity), परिवहन (transport), कारखाने (factories), इमारतें (buildings) और हीट जैसे क्षेत्र शामिल होते हैं। ये क्षेत्र वैश्विक CO2 उत्सर्जन का 90% हिस्सा बनाते हैं, जबकि शेष 10% फॉरेस्ट लॉस और लैंड यूज में बदलाव की वजह से आता है।

भारत की अपेक्षित 1.4% वृद्धि, चीन की 0.4% वृद्धि और यूनाइटेड स्टेट्स की 1.9% अपेक्षित वृद्धि से भिन्न है, जो दर्शाता है कि वैश्विक जलवायु कार्रवाई एक समान गति से नहीं चल रही है।

अध्ययन एक दीर्घकालिक बदलाव को भी दर्शाता है। पिछले दशकों की तुलना में भारत की उत्सर्जन वृद्धि काफी धीमी हुई है। 2004 से 2014 के बीच औसत वृद्धि 6.4% थी, जबकि 2015 से 2024 के बीच यह 3.6% रह गई है। यह आर्थिक आधार के विस्तार (base expansion) और अर्थव्यवस्था की कार्बन इंटेंसिटी में सुधार का परिणाम हो सकता है।

ग्लोबल कार्बन बजट का यह  डेटा आधिकारिक राष्ट्रीय रिपोर्ट नहीं होता। लेकिन दुनिया भर के शोधकर्ता और पॉलिसी बनाने वाले इसे प्रवृत्तियों (trends) को समझने के लिए नियर-रियल टाइम स्नैपशॉट के रूप में उपयोग करते हैं।

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CITES मोरेटोरियम पर भारत की प्रतिक्रिया (चंद्रप्रताप तिवारी के साथ)

यह चर्चा CITES (Convention on International Trade in Endangered Species of Wild Fauna and Flora) द्वारा भारत पर लगाए गए अस्थायी प्रतिबंध (मोरेटोरियम) और उस पर भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की प्रतिक्रिया के बारे में थी।

नवंबर की शुरुआत में, CITES ने पाया था कि भारत ने वनतारा (Vantara) में आयात किए गए कुछ जीवित जंगली जानवरों के सोर्स कोड (Source Code) और ओरिजिन कोड (Origin Code) को सही तरीके से वेरीफाई नहीं किया था। इसके चलते CITES ने इस आदान-प्रदान पर एक अस्थायी प्रतिबंध (मोरेटोरियम) लगा दिया और साइट्स सेक्रेटेरिएट ने भारत से जवाब मांगा था।

भारत सरकार की प्रतिक्रिया:

पर्यावरण मंत्रालय ने CITES से यह मोरेटोरियम हटाने का अनुरोध किया है, यह तर्क देते हुए कि इसकी वजह से कानूनी व्यापार (Lawful Trade) रुक रहा है।

भारत ने CITES के आरोपों और प्रतिबंध को ‘प्रीमेच्योर’ (समय से पहले) और ‘डिस्रपोश्नेट’ (असमानुपातिक) बताया है।

भारत ने अपने जवाब में कहा कि CITES की इन्वेस्टिगेशन में ऐसा कोई दस्तावेज़ या सबूत नहीं मिला है जो यह बताए कि ‘गलत व्यापार (illegal trade) हुआ है’।

भारत ने मुख्य रूप से सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम (SIT) का हवाला दिया है। भारत सरकार ने कहा कि SIT ने संबंधित ज़ू (वनतारा) को क्लीन चिट दे दी है, जिसके चलते अब कोई विवाद नहीं होना चाहिए।

भारत ने जोर दिया कि अगर यह बैन नहीं हटाया गया, तो यह लुप्तप्राय प्रजातियों (endangered species) के कानूनी आयात को स्थगित कर देगा। भारत 1976 से CITES का हस्ताक्षरकर्ता (Signatory) है।

विश्लेषण और विरोधाभास:

सहयोगी चंद्र प्रताप तिवारी ने इस मामले पर ‘द वायर’ सहित कुछ बड़ी संस्थानों की रिपोर्टिंग का हवाला देते हुए इस स्थिति का विश्लेषण प्रस्तुत किया, जिससे पता चलता है कि भारत और CITES आमने-सामने दिखाई पड़ रहे हैं।

भारत का यह दावा कि “अवैध व्यापार का कोई सबूत नहीं मिला” पूरी तरह से सही नहीं हो सकता है। CITES ने सोर्स कोड और ओरिजिन कोड को वेरीफाई न करने की बात कही थी, जिसे एक गंभीर प्रक्रियात्मक चूक (serious procedural lapse) माना जा सकता है।

भारत ने एक तरह से साझा जिम्मेदारी का बचाव (shared responsibility defense) किया, जिसमें यह तर्क दिया गया कि गलती भेजने वाले देश की हो सकती है। हालांकि, विश्लेषण में कहा गया कि ड्यू डिलिजेंस (due diligence) का पालन न करने के कारण, जानवर को लेने वाले (आयात करने वाले) की भी गलती मानी जाएगी।

भारत का पूरा जवाब सुप्रीम कोर्ट द्वारा दी गई क्लीन चिट और एसआईटी रिपोर्ट पर अत्यधिक निर्भर है।

सबसे बड़ी चिंता यह थी कि SIT की पूरी रिपोर्ट पब्लिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने केवल फैसले के साथ एक सारांश जारी किया था। रिपोर्ट की पूरी जानकारी के बिना, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि वह CITES के आरोपों का जवाब देने के लिए कितनी उपयुक्त है या उसमें क्या निष्कर्ष थे।

इस बात पर भी चिंता व्यक्त की गई कि पूरा मामला (केस दर्ज होने, एसआईटी का गठन, जामनगर में साइट पर जाकर जांच, रिपोर्ट तैयार करना और सुप्रीम कोर्ट द्वारा फैसला सुनाना) लगभग एक महीने के भीतर (14 अगस्त से 15 सितंबर तक) ही निपट गया। एसआईटी ने 18 दिनों के भीतर जांच पूरी कर ली। इतनी कम अवधि में इतने बड़े मामले की जांच पूरी हो जाना और रिपोर्ट का सार्वजनिक न होना चिंताजनक लगता है।

यह निष्कर्ष निकला कि भारत एसआईटी की क्लीन चिट पर भरोसा कर रहा है, जबकि CITES द्वारा उठाए गए प्रक्रियात्मक मुद्दों को भारत ‘प्रीमेच्योर’ कहकर दरकिनार कर रहा है।

यह था हमारा डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट। ग्राउंड रिपोर्ट में हम पर्यावरण से जुडी हुई महत्वपूर्ण खबरों को ग्राउंड जीरो से लेकर आते हैं। इस पॉडकास्ट, हमारी वेबसाईट और काम को लेकर आप क्या सोचते हैं यह हमें ज़रूर बताइए। आप shishiragrawl007@gmail।com पर मेल करके, या ट्विटर हैंडल @shishiragrawl पर संपर्क करके अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं।

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