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जीनोम एडिटेड चावल का क्यों हो रहा विरोध, सरकार ने क्या कहा?

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यह ‘ग्राउंड रिपोर्ट’ का डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट का 53वां एपिसोड है। शुक्रवार, 31 अक्टूबर को देश भर की पर्यावरणीय ख़बरों के साथ पॉडकास्ट में बात जीएम चावल पर हो रहे विरोध और सरकारी जवाब की। साथ ही आईआईटी के वैज्ञानिकों ने क्यों कहा कि पारिस्थितिकी सूखे का खतरा बढ़ रहा। 


मुख्य सुर्खियां 

दक्षिण कोरिया के बुसान में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और चीन के राष्ट्रपति सी जिनपिंग के बीच मुलाक़ात हुई। इस दौरान अमेरिका ने चीन पर टैरिफ कम करने की बात कही। वहीं चीनी नेता ने बताया कि रेयर अर्थ मेटल्स उनके देश द्वारा लागू की गई कई पाबंदियां टाल दी गई हैं। 


केंद्र सरकार ने आयात के चलते पीली मटर के किसानों को हो रहे नुकसान को कम करने के लिए मटर पर 30% आयात शुल्क लगाने का निर्णय लिया है। 


केंद्रीय नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री प्रल्हाद जोशी ने कहा कि इस वित्तवर्ष के अंत तक भारत अपनी विंड एनर्जी की इंस्टाल्ड कैपेसिटी को 6 गीगावाट तक बढ़ाएगा। 


दिल्ली में 37 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट को लेकर केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण कमिटी का डाटा एक दूसरे से कॉण्ट्राडिक्ड करता है। जून में CPCB ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया कि यह सभी STP प्रेसक्राइब्ड डिस्चार्ज स्टैण्डर्ड में फेल हैं। जबकि DPCC ने इन्हें जून की ही अपनी एक रिपोर्ट में क्लीनचिट डी थी। इन्डियन एक्सप्रेस की सोफिया मैथ्यू ने अपननी हालिया स्टोरी ने इस पर विस्तार से लिखा है।


मध्य प्रदेश के कई जिलों में बारिश के कारण कड़ी फसल ख़राब हो गई और किसानों को भारी नुकसान हुआ है। नर्मदापुरम के डिप्टी कलेक्टर देवेंद्र प्रताप सिंह ने कहा- 273 गांवों में 32 हजार 700 हेक्टेयर रकबा प्रभावित हुआ है। तहसीलों से प्राप्त आकलन के मुताबिक, 78 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। 


पूर्व नेता प्रतिपक्ष डॉ. गोविंद सिंह ने सीएम डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखकर किसानों को मुआवजा देने की मांग की है। उन्होंने लिखा कि चंबल अंचल में ज्वार, बाजरा, उड़द, मूंग की 80% फसलें खराब हो चुकी हैं। किसानों को अब तक मुआवजा नहीं मिला है, इससे किसान खाद बीज का ऋण नहीं चुका पाएंगे। हालांकि कई जिलों में सर्वे के आदेश दे दिए गए हैं।


मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में प्रदेश सरकार 30 हज़ार भर्तियां करना चाहती है मगर खुद स्वास्थ्य विभाग ने ही इसका प्रस्ताव अब तक नहीं भेजा है। गुरूवार को हुई बैठक में मुख्य मंत्री और डिप्टी सीएम ने इस पर नाराज़गी जताई।


भोपाल में गुरूवार का दिन 25 साल में अक्टूबर के इतिहास का सबसे ठंडा दिन रहा। यहां अधिकतम तापमान 24 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया जो सामान्य से 7.6 डिग्री कम है। 


उच्च न्यायालय (प्रधान पीठ) ने एक मीडिया रिपोर्ट पर स्वतः संज्ञान लिया है, जिसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) से अनिवार्य अनुमति के बिना भोपाल के निकट लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) द्वारा 488 पेड़ काट दिए गए। पीठ ने इस घटनाक्रम को “चौंकाने वाली स्थिति” बताते हुए कहा कि एनजीटी के पहले के इनकार और उच्च न्यायालय के इस तरह की कार्रवाई के खिलाफ बार-बार दिए गए आदेशों के बावजूद पेड़ों की कटाई की गई।


चर्चा


पॉडकास्ट में पर्यावरण और कृषि से जुड़े दो प्रमुख मुद्दों पर विस्तृत चर्चा की गई:

पारिस्थितिकी सूखा (Ecological Drought) की चेतावनी

आईआईटी खड़कपुर के वैज्ञानिकों ने एक नए शोध के आधार पर चेतावनी दी है कि भारत में पारिस्थितिकी सूखे (Ecological Drought) का खतरा बढ़ रहा है। पारिस्थितिकी सूखे की परिभाषा: इसे एक ऐसे लंबे समय के रूप में परिभाषित किया जाता है जब पानी की कमी के कारण एक इकोसिस्टम अपनी क्रिटिकल लिमिट्स को पार कर जाता है, जिससे पेड़-पौधे, जंगलात और खेतों की जमीनें प्रभावित होती हैं। यह खतरा विशेष रूप से पश्चिमी घाट, हिमालय, और पूर्वोत्तर के पारिस्थितिकी रूप से कमजोर वनों के साथ-साथ मध्य भारत में कृषि भूमि पर मंडरा रहा है। शोध के अनुसार, समंदर का गर्म पानी होना और हवा का सूखना दोनों मिलकर इन सूखे को और गंभीर बना रहे हैं। 2000 से 2019 के बीच, मौसम संबंधी शुष्कता (meteorological aridity) का योगदान 23.9% रहा, जबकि समुद्री गर्मी (ocean warming) का योगदान 18.2% रहा। जमीन और हवा के सूखेपन (dryness) ने भी क्रमशः 14% और 12.5% का योगदान दिया।

मानवीय और जनसांख्यिकीय कारक: पश्चिमी घाट और पूर्वोत्तर जैसे क्षेत्रों में पहले से जारी मानवीय गतिविधियां, जैसे कि वनों की कटाई (deforestation) और भूमि उपयोग में परिवर्तन, ने स्थिति को और खराब कर दिया है। 2000 से 2019 के दौरान हिमालय, पूर्वोत्तर और पश्चिमी घाट जैसे इलाकों में आबादी 40% से 60% तक बढ़ गई, जिससे नाजुक वन भूमि कम होती गई।


गंभीर परिणाम और जोखिम:

इस अध्ययन में बताया गया है कि ग्रीष्मकालीन मानसून प्रणाली में पश्चिमी दिशा में बदलाव आ रहा है। इससे पूर्वी और दक्षिणी भारत में ड्रॉट वेजिटेशन ग्रोथ कम हो रही है और मिट्टी की नमी का तनाव (soil moisture stress) बढ़ रहा है।

सबसे बड़ी चिंता यह है कि जो क्षेत्र देश के प्रमुख कार्बन सिंक (जैसे मध्य भारत के जंगल) हैं, वे अब सूखे के कारण पेड़ों के मरने से कार्बन स्रोत बनने के खतरे में हैं, जिससे कार्बन अवशोषित करने की क्षमता घट रही है। इस प्रवृत्ति के चलते देश के जंगल (विशेष रूप से मध्य भारत में) और कृषि भूमि अस्थिर हो सकते हैं, जो रहन-सहन के लिए एक बड़ा चैलेंज पैदा कर सकता है। देश के 24 बड़े नदी बेसिनों में से 16 से अधिक अब वेजिटेशन ड्रॉट के उच्च जोखिम वाले क्षेत्र में आ गए हैं। शोधकर्ताओं ने तत्काल अनुकूलन और शमन (adaptation and mitigation) के कदम उठाने की आवश्यकता पर बल दिया है, साथ ही पॉलिसी बनाने में मिट्टी की नमी के तनाव और पारिस्थितिकी पर इसके असर को शामिल करना जरूरी बताया है।


जीनोम-एडिटेड चावल किस्मों को लेकर विवाद

विवादित किस्में और सरकारी दावे: यह विवाद भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) द्वारा 4 मई को जारी की गई दो जीनोम-एडिटेड चावल किस्मों को लेकर है: डीपीआर डीआरआर चावल 100 (कमला) और पूसा डीएसटी चावल 1। डीआरआर चावल 100 (कमला) को हैदराबाद में आईसीआर के भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान ने ‘साभा मसूरी’ पर आधारित करके बनाया था। पूसा डीएसटी चावल 1 को नई दिल्ली आईसीआर ने ‘कपास डोरा सनालू एमटीयू 1010’ पर आधारित करके विकसित किया था।

ICAR के दावे: दावा किया गया था कि ये उन्नत किस्में अधिक उपज देंगी, सूखे और खारेपन (salinity) के लिए सहनशील होंगी, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करेंगी और कृषि में क्रांतिकारी बदलाव लाएंगी। यह भी दावा किया गया था कि इनमें कोई विदेशी डीएनए नहीं जोड़ा गया है। जीएम फ्री इंडिया कोलिशन के आरोप: एक गैर-लाभकारी संस्था ‘कोलिशन फॉर जीएम फ्री इंडिया’ ने आईसीआर द्वारा प्रकाशित ट्रायल डेटा का विश्लेषण किया और उसमें विसंगतियां (discrepancy) पाईं। उन्होंने आरोप लगाया कि यह परीक्षण डेटा धांधलीपूर्ण है और इसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है।


खराब प्रदर्शन के प्रमाण:

कोलिशन के अनुसार, पूसा डीएसटी चावल 1 के मामले में, कई परीक्षण स्थलों पर जीनोम-एडिटेड वैरायटी ने मूल प्रजाति (एमटीयू 1010) के बराबर या उससे भी कम उपज दी। डीआरआर चावल 100 (कमला), जिसके लिए 17% अतिरिक्त उपज और 20 दिन पहले मैच्योरिटी का दावा किया गया था, उसने 8 से 9 ट्रायल्स में कम प्रदर्शन (underperform) किया, और वास्तव में उपज में 4% की कमी दर्ज की गई। कोलिशन का निष्कर्ष: कोलिशन ने कहा कि इस “अनटेस्टेड, अंडर परफॉर्मिंग और अनसेफ वैरायटी” को ग्लोबल ब्रेक थ्रू बताकर जल्दबाजी में जारी करना, भारत की खाद्य प्रणालियों में जोखिम भरे जीन एडिटिंग के प्रति जनता के प्रतिरोध को दरकिनार करने का प्रयास है। ICAR की प्रतिक्रिया: आईसीआर ने सभी आरोपों को खारिज कर दिया है, इसे भारतीय वैज्ञानिकों की उपलब्धि को कम आंकने वाला और “एंटी-डेवलपमेंट एजेंडा” बताया है।


जीनोम एडिटिंग का विरोध क्यों होता है?

भारत में जीनोम-एडिटेड किस्मों के विरोध के प्रमुख कारण ऐतिहासिक और संरचनात्मक हैं:

पारदर्शी नियामक ढांचे की कमी। इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स (IPR) और किसान की संप्रभुता से जुड़े मुद्दे। जेनेटिकली मॉडिफाइड (GM) फसलों (जैसे बीटी कॉटन) से जुड़ी पुरानी कंट्रोवर्सीज। वैरायटी में अनअभिप्रेत परिवर्तन (unintended changes) का जोखिम, जिससे स्वास्थ्य और पर्यावरणीय समस्याएं हो सकती हैं (जैसे टॉक्सिसिटी और एलर्जी का बढ़ना)। आरोप है कि एजेंसियां उचित लॉन्ग टर्म इकोलॉजिकल इंपैक्ट की स्टडी किए बिना इन फसलों को फ़ास्ट ट्रैक कर देती हैं। नई किस्मों द्वारा देशी प्रजातियों (native species) के साथ प्रतिस्पर्धा करना और उन्हें सिस्टम से बाहर कर देना, जिससे जैव विविधता (biodiversity) पर नकारात्मक असर पड़ता है। उदाहरण के लिए, बीटी कॉटन के व्यापक उपयोग के बाद देसी कॉटन के बीज मिलना कठिन हो गया है।


यह था हमारा डेली मॉर्निंग पॉडकास्ट। ग्राउंड रिपोर्ट में हम पर्यावरण से जुडी हुई महत्वपूर्ण खबरों को ग्राउंड जीरो से लेकर आते हैं। इस पॉडकास्ट, हमारी वेबसाईट और काम को लेकर आप क्या सोचते हैं यह हमें ज़रूर बताइए। आप shishiragrawl007@gmail.com पर मेल करके, या ट्विटर हैंडल @shishiragrawl पर संपर्क करके अपनी प्रतिक्रिया दे सकते हैं।


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Support Ground Report to keep independent environmental journalism alive in India

We do deep on-ground reports on environmental, and related issues from the margins of India, with a particular focus on Madhya Pradesh, to inspire relevant interventions and solutions. 

We believe climate change should be the basis of current discourse, and our stories attempt to reflect the same.

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