भोपाल के हमीदिया अस्पताल के नेत्र वार्ड में छह साल के अलजैन खान की मां आफरीन खान रो रही थीं। उनका बेटा दिवाली पर कार्बाइड गन से खेल रहा था। गन बंद हो गई तो मासूम बच्चे ने गन की नाल में झांककर देखा। अचानक जोर से धमाका हुआ और उसकी दोनों आंखों में चोट लगी।
आफरीन की आवाज़ में दर्द है,
“डॉक्टर कह रहे हैं एक आंख खराब हो गई है। दूसरी में थोड़ा-बहुत दिखता है। काश दिवाली वाले दिन भानपुर के फुटपाथ पर बिक रही यह गन न खरीदी होती, आज मेरा बच्चा ठीक होता।”
कुछ ऐसी ही कहानी गरीब नगर, छोला निवासी 14 साल के करन पंथी की है। करन ने भोपाल के करोंद स्थित बेस्ट प्राइस के सामने से यह गन 150 रुपये में खरीदी थी। “पहले तो गन ठीक चल रही थी, लेकिन शाम को बंद हो गई। ठीक करने की कोशिश कर रहा था, तभी धमाका हो गया,” करन बताते हैं। उसकी दाईं आंख बुरी तरह झुलस गई है।
करन की मां ममता पंथी कहती हैं, “हमें तो पता नहीं था कि यह इतनी खतरनाक चीज़ है। अब बच्चे का ऑपरेशन हो गया है, लेकिन डॉक्टर कह रहे हैं कि पता नहीं कब तक ठीक होगा।”

वहीं भोपाल निवासी आरिश खान की पीड़ा चौंका देती है। आरिश की दोनों आंखें गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त हुई हैं। उसकी एमनियोटिक मेम्ब्रेन ट्रांसप्लांट सर्जरी हुई है। डॉक्टरों ने कहा है कि 2 से 3 हफ्ते बाद ही पता चलेगा कि कितनी रोशनी बची है। हमीदिया के नेत्र वार्ड में आरिश के पिता शरीक खान की आंखों में सिर्फ आंसू हैं। “मेरा बेटा पढ़ने में होशियार था। डॉक्टर बनना चाहता था। अब नहीं जानता उसका क्या होगा,” वह रुंधे गले से कहते हैं।
शरीेेक का गुस्सा प्रशासन पर फूटता है,
“ऐसी खतरनाक गन से मेरे बच्चे की ज़िंदगी तो खराब हो गई है। ऐसा दूसरे के साथ न हो इसलिए यह बाजार में बिकनी ही नहीं चाहिए। इन्हें बनाने और बेचने वालों पर सख्त कार्रवाई हो।”
नारियलखेड़ा निवासी 26 साल के प्रशांत मालवीय को दोहरा नुकसान हुआ। दोस्त की शादी में कार्बाइड गन चलाने को कहा गया। “मुझे लगा यह सामान्य पटाखा है, लेकिन जैसे ही ट्रिगर दबाया, भयंकर धमाका हुआ। मेरी दोनों आंखों के सामने सब काला हो गया,” गांधी मेडिकल कॉलेज के वार्ड में भर्ती प्रशांत बताते हैं।
उनकी आंखों में एमनियोटिक मेम्ब्रेन ट्रांसप्लांट और स्टेम सेल ट्रांसप्लांट किया गया।
“मैं सॉफ्टवेयर इंजीनियर हूं। कंप्यूटर पर काम करता हूं। अगर रोशनी नहीं लौटी तो मेरी नौकरी चली जाएगी,” प्रशांत की चिंता गहरी है।
खुशियों का त्योहार बना अंधेरे की कहानी

दिवाली का त्योहार रोशनी और खुशियों का प्रतीक माना जाता है। इस बार मध्य प्रदेश के भोपाल समेत कई जिलों में यह अंधेरे की कहानी बन गया। सस्ती कार्बाइड या देसी खिलौना बंदूक ने बच्चों की आंखों पर हमला किया। 100 से 200 रुपये में बाजारों में बिकने वाली इस बंदूक को प्लास्टिक या टिन की पाइप में कैल्शियम कार्बाइड भरकर, पानी और लाइटर की मदद से चलाया जाता है।
सोशल मीडिया पर वायरल ट्रेंड ने इसे “मजेदार खिलौना” या “ग्रीन पटाखा” बताया। बच्चे उत्साह में गन चलाते हैं, लेकिन जब यह न चले तो नाल में झांकते हैं। अंदर बनी एसिटिलीन गैस अचानक फट जाती है। इससे निकलने वाली चिंगारी, धुआं और केमिकल आंख की कॉर्निया को जला देते हैं।
भयावह आंकड़े

राज्य में पांच दिन में (21 से 25 अक्टूबर तक) 316 से ज्यादा मामले इस बंदूक से घायल होने के सामने आए। इनमें 80 प्रतिशत मरीज़ बच्चे हैं। अकेले भोपाल में ही 186 मामले दर्ज हुए। विदिशा में 51, ग्वालियर में 36, इंदौर में 31 और शिवपुरी में 20 से ज्यादा मामले सामने आए। पूरे राज्य में 14 से 24 बच्चों की आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली गई।
24 अक्टूबर को मुख्यमंत्री मोहन यादव ने हमीदिया अस्पताल पहुंचकर मरीज़ों का हाल जाना और स्वास्थ्य सुविधाओं का जायज़ा लिया। उन्होंने मुख्यमंत्री स्वेच्छानुदान मद से तत्काल सहायता देने के निर्देश दिए। लेकिन सवाल है कि यह खतरनाक खिलौना बच्चों के हाथों तक पहुंचा कैसे?
क्या है देसी या कार्बाइड गन?

इस देसी खिलौना बंदूक को गैस लाइटर, प्लास्टिक पाइप और कैल्शियम कार्बाइड से बनाया जाता है। जब पाइप में भरा कैल्शियम कार्बाइड पानी से मिलता है, तो एसिटिलीन गैस बनती है। यह गैस धमाके के साथ जलती है।
इससे निकलने वाली चिंगारी और गर्मी आंखों, त्वचा और चेहरे को झुलसा देती है। छोटी-सी चिंगारी लगते ही तेज़ विस्फोट होता है। प्लास्टिक पाइप टूटने पर छोटे-छोटे टुकड़े गोली की तरह निकलते हैं। ये सीधे आंखों में घुसकर गंभीर चोट पहुंचाते हैं। अक्सर बच्चे जिज्ञासा से पाइप में झांकते हैं और उसी समय धमाका हो जाता है।
सोशल मीडिया पर इस बंदूक को चलाकर रील बनाई जा रही थीं। ये वीडियो वायरल हो रहे थे और बच्चों के लिए नया ट्रेंड बन गए। कई लोगों ने रील्स बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया। परंतु यह खिलौना नहीं, जानलेवा हथियार साबित हुआ।
अल्कलाइन इंजरी एसिड बर्न से भी खतरनाक
सीएमएचओ डॉ. मनीष शर्मा कहते हैं,
“अधिकतर मामलों में बच्चों का कॉर्निया क्षतिग्रस्त हुआ है। कुछ की दृष्टि को स्थायी नुकसान पहुंचा है। भोपाल के शासकीय अस्पतालों में अभी तक 186 मरीज़ भर्ती हुए हैं। इनमें 70 प्रतिशत से ज्यादा केस सिर्फ कॉर्निया इंजरी के हैं।”
गांधी मेडिकल कॉलेज के नेत्र विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सूरज सिंह कुबरे बताते हैं,
“हमारे पास 4 बच्चे हैं, जिनका कॉर्निया 90 प्रतिशत क्षतिग्रस्त हो चुका है। यह ‘अल्कलाइन इंजरी’ है, जो एसिड बर्न से कहीं ज्यादा खतरनाक है। यह आंख की गहरी परतों तक पहुंच जाता है और स्थायी क्षति पहुंचाता है।”
सबसे गंभीर मामलों में डॉक्टरों को एमनियोटिक मेम्ब्रेन (गर्भ से निकलने वाली झिल्ली) का सहारा लेना पड़ रहा है। यह झिल्ली प्रसव के समय निकलती है और इसे विशेष तरीके से संरक्षित किया जाता है। यह “लिविंग बैंडेज” की तरह काम करती है।

भोपाल गांधी मेडिकल कॉलेज में 2 बच्चों और एम्स में 8 मरीज़ों का ट्रांसप्लांट किया जा चुका है। जबकि ट्रांसप्लांट की ज़रूरत 50 से ज्यादा मरीज़ों को है। परंतु दान करने वालों की कमी से इलाज प्रभावित हो रहा है।
ICMR की चेतावनी नज़रअंदाज़
डॉक्टरों ने चेतावनी दी कि कैल्शियम कार्बाइड गन कोई खिलौना नहीं है। यह एक खतरनाक हथियार है। देशभर के किसान इसे बंदर भगाने वाली गन कहते हैं।
कैल्शियम कार्बाइड के व्यक्तिगत या घरेलू उपयोग पर पूर्णतः प्रतिबंध है। यह कैल्शियम कार्बाइड रूल्स 1987 (पेट्रोलियम एक्ट 1934) के तहत नियंत्रित है। नियम के मुताबिक केवल लाइसेंस प्राप्त औद्योगिक इकाइयां (वेल्डिंग, कटिंग, गैस उत्पादन) इसका इस्तेमाल कर सकती हैं।
लेकिन नियम में बिना लाइसेंस 5 किलोग्राम तक (1 किलो से छोटे कंटेनर) रखने की छूट है। इसी छूट का दुरुपयोग भोपाल समेत राज्य भर में खुलेआम हुआ।
साल 2023 में ICMR-NIREH ने एक महत्वपूर्ण स्टडी की, जो “कैल्शियम कार्बाइड गन से आंखों की घातक चोटों” पर आधारित थी। यह रिसर्च इंडियन जर्नल ऑफ ऑप्थाल्मोलॉजी में छपी। इस रिपोर्ट में कहा गया कि नियम में 5 किलोग्राम की छूट ही इस समस्या की जड़ है।
रिसर्च में पाया कि गन में कार्बाइड और पानी मिलने से एसिटिलीन गैस बनती है। विस्फोट पर गैस जलकर 2000°C तक गर्म हो जाती है। कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड के कण के छींटे आंखों पर पड़ते हैं। इस रिपोर्ट में चेतावनी दी गई कि कार्बाइड गन के हादसे में 70 प्रतिशत मामलों में स्थायी अंधापन होगा।
ICMR-NIREH की वैज्ञानिक डॉ. तन्वी तृष्णा कहती हैं,
“कैल्शियम कार्बाइड के इस्तेमाल से होने वाले खतरों के लिए लोगों को जागरूक करने की ज़रूरत है। साथ ही बच्चों के लिए कार्बाइड गन और कच्चे माल की बिक्री पर प्रतिबंध लगना चाहिए।”
ICMR की चेतावनी को प्रशासन द्वारा पिछले दो साल से नज़रअंदाज़ किया जा रहा था। नतीजा—316 से ज्यादा मामले सामने आए।
देर से जागा प्रशासन

300 से ज्यादा मामले सामने आने के बाद प्रशासन की नींद खुली। कार्बाइड गन को 23 अक्टूबर को भोपाल, ग्वालियर, इंदौर और विदिशा में भारतीय न्याय संहिता की धारा 163 के तहत बैन किया गया। 24 अक्टूबर को पूरे प्रदेश भर में इसकी खरीद-बिक्री और स्टॉक पर बैन लगाया गया। अभी तक भोपाल में 6, विदिशा में 8 और ग्वालियर में 1 एफआईआर दर्ज की जा चुकी है।
पुलिस कमिश्नर हरिनारायण चारी मिश्र ने कहा,
“अब तक 150 से ज्यादा कार्बाइड गन जब्त की जा चुकी हैं। अलग-अलग थानों में टीम बनाकर छापेमारी की जा रही है। कार्बाइड गन बनाना, बेचना और चलाना अवैध है। ऐसा करते हुए पाए जाने पर 1 लाख का जुर्माना और छह माह तक की सज़ा हो सकती है।”
दिवाली की खुशियों का त्योहार भोपाल समेत मध्य प्रदेश के सैकड़ों परिवारों के लिए मातम में बदल गया। सोशल मीडिया पर वायरल होने वाली सस्ती कार्बाइड गन ने 300 से अधिक लोगों की आंखों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है।
हालांकि प्रशासन ने अब सख्त कार्रवाई शुरू कर दी है और गन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। लेकिन दिवाली पर इस घातक खिलौने का खुलेआम बिकना ही शासन की सबसे बड़ी नाकामी है, जिसकी ज़िम्मेदारी उन्हें लेनी ही होगी।
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