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आज सुनिए अडानी के साथ हुए भारत सरकार के नए समझौते पर क्यों उठ रहे हैं प्रश्न?

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नमस्कार, मैं हूं शिशिर और आप सुन रहे हैं ग्राउंड रिपोर्ट का डेली मॉर्निंग पडकास्ट। हम लेकर आए हैं पर्यावरण से जुड़ी हुई कुछ महत्वपूर्ण खबरें। आज है शुक्रवार 17 अक्टूबर। पहले नजर डालते हैं हेडलाइंस की ओर।

Episode: 43 | Host: Shishir Agrawal | Production: Himanshu Narware


मेक्सिको में भारी बारिश ने 73 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया है। भूस्खलन के कारण कम से कम 64 लोगों की मौत हो गई, जबकि 65 लोग लापता हैं।


विश्व मौसम विज्ञान संगठन (WMO) के अनुसार, वर्ष 2024 में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (CO₂) का स्तर रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया, जिससे ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा में वृद्धि हुई है।


2025 को एनजीटी के समक्ष रखी गई है। उसमें कहा गया है है कि गाजीपुर लैंडफिल की मौजूद मौजूदा स्थिति ऐसी है कि यहां पे हर दिन करीब 24,000 से 26,000 मेट्रिक टन कचरा आता है। इसमें से 700 से 1000 टन कचरे को गाजीपुर वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में प्रोसेस किया जाता है। लेकिन 15 से 16,000 टन कचरा तब भी ऐसा रहता है जिसे तुरंत प्रोसेस नहीं किया जा सकता। यह रिपोर्ट इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि बीते दिनों ही दिल्ली के मुख्यमंत्री का एक वीडियो सोशल मीडिया पर बहुत वायरल हो रहा था जिसमें उन्होंने कहा था कि उनका एक मंत्री रोज रोज गाजीपुर जाता है और कहता है कि भाई तेरे को जाना पड़ेगा। यानी कि उन्होंने कहा था कि हम इस बात को लेकर के लगातार प्रयास कर रहे हैं कि लैंडफेल साइट्स दिल्ली से कम हो जाए।


भोपाल में 12 दिनों बाद तापमान 32 डिग्री सेल्सियस तक पहुंचा, लेकिन वायु प्रदूषण दोगुना होकर AQI 114 से बढ़कर 235 तक पहुंच गया।


इंदौर में बीते दिनों 24 ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों ने सामूहिक आत्महत्या का प्रयास किया था। उन्होंने फिनाइल पीकर के आत्महत्या का प्रयास किया था। बताया जा रहा है कि यह दो गुटों के आपस की लड़ाई है। उन्होंने एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाया है। फिलहाल इंदौर पुलिस इस मामले की जांच कर रही है और कहा जा रहा है कि दोषियों को जल्द ही पकड़ा जाएगा और उन पर कारवाई की जाएगी।


केंद्र सरकार ने राज्य बिजली वितरण कंपनियों के आंशिक निजीकरण का प्रस्ताव रखा है और चेतावनी दी है कि जो राज्य इस प्रस्ताव को नहीं मानेंगे, उन्हें अनुदान नहीं दिया जाएगा।


राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने बालाघाट की बावंथड़ी नदी में अवैध रेत खनन पर रोक लगाते हुए पर्यावरणीय उल्लंघनों का हवाला दिया है।


यह थी आज की कुछ महत्वपूर्ण खबरें। अब जब मैं आपको यह खबरें बता रहा हूं तो मैं फिलहाल देश की राजधानी में बैठा हुआ हूं। मेरे मध्य प्रदेश का अगर बात करें जहां से मैं आता हूं वहां पर भी एक राजधानी है। लेकिन जब मैं जम्मू कश्मीर के बारे में मुझे हाल ही में पता चला कि यहां पर दो राजधानियां हुआ करती थी। हालांकि उसके बाद ये राजधानी जो है वो एक ही हो गई। लेकिन अभी ये वापस से सुगबुगाहट शुरू हुई है कि इसकी दो राजधानियां होंगी। अब मैं जो ये बार-बार कह रहा हूं कि इसकी दो राजधानियां होंगी। इससे मैं जानता हूं कि आप लोगों के मन में बहुत सारी आशंकाएं भी जाती हैं और बहुत सारे अलग संदेश भी जाते हैं क्योंकि मामला जम्मू कश्मीर का है। लेकिन मेरे साथ मेरे तो सहयोगी वाहिद हैं। वाहिद पहले तो मुझे यही बताइए कि ये दो राजधानियों वाला मामला क्या है? क्या होता था और फिर कब रुका ये और अभी क्या इसका अपडेट है?।


[वाहिद] बिल्कुल शशि दरबार मुंह जो है एक पुरानी प्रथा है। इसमें जम्मू कश्मीर की सरकार हर साल दो बार अपने राजधानी बदलती है। गर्मी के महीने में खासतौर पे मई से अक्टूबर तक ऑफिसिसेस श्रीनगर में रहते हैं और नवंबर से अप्रैल तक यही ऑफिसिसेस जम्मू शिफ्ट शिफ्ट हो जाते हैं। ये परंपरा 1872 में महाराजा रणबीर सिंह ने शुरू की थी। उस समय जम्मू में गर्मियां बहुत तेज होती थी और कश्मीर की वेदर ठंडा और सुकून भरा रहता था। वहीं मौसम को बैलेंस रखने के लिए यह डिसीजन लिया गया था उस वक्त पे। वहीं सर्दी में कश्मीर बर्फ से ढक जाता था। बंद हो जाते थे। कम्युनिकेशन टूट जाता था। इसीलिए दफ्तरों को जम्मू लिया जाता था। एक प्रैक्टिकल हाल था ताकि सरकार का काम चलता रहे। क्योंकि आपको पता होगा कि उस जमाने में ना तो हीटर थे ना डिजिटल ऑफिस सिस्टम था। मौसम ही गवर्नेंस डिसाइड करती थी। पहले थोड़ा सा मैं आपको इसकी हिस्ट्री थोड़ा सा बता दूं। दरबारों का जो कांसेप्ट है यह बिल्कुल नया कांसेप्ट नहीं है। हिस्ट्री में ऐसे बहुत सारे चीजें हुई भी हैं। अगर हम 1325 में दिल्ली में ऐसा हुआ था। फिर मुगल्स के टाइम पे भी ऐसा हुआ था और जब ब्रिटिश राज था उस दौरान भी ये ट्रेंड चलता रहा। खासतौर पे कोलकाता से शिमला और शिमला से कोलकाता इस तरीके के मामले चलते रहे। यही पैटर्न महाराजा रणबीर सिंह ने जम्मू से श्रीनगर शिफ्ट करने का सिस्टम अपनाया। क्योंकि यहां पे उस तरीके की कंडीशंस नहीं थी उस वक्त पे। लेकिन ये जो ट्रेडिशन है 1870 से शुरू लेकर 2021 तक चलता रहा। हर साल 8000 से 9000 मुलाजिम जो है उनके परिवार और फाइल जम्मू से श्रीनगर के बीच शिफ्ट किए जाते थे। वो अपने सारे खासतौर कभी परिवार के साथ डॉक्यूमेंट्स, फाइल्स, फर्नीचर सब कुछ लेके जम्मू पहुंच जाते थे। लेकिन 2021 में लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने इस सिस्टम को बंद कर दिया। उन्होंने कहा कि यह अब ओल्ड प्रैक्टिस है। यह पुराने दौर में किया जाता था। उनके वर्ड्स हैं जो मैं एक्यूरेट कोट करता हूं। दरबार मुंह अब जरूरत नहीं। अब हम पेपरलेस ई गवर्नेंस के दौर में हैं। ई ऑफिस सिस्टम शुरू हुआ। ऑफिशियल रिकॉर्ड ऑनलाइन अपलोड हो गए और सरकार ने कहा कि अब दोनों राजधानियों में परमानेंट ऑफिस रहेंगे। मतलब हमारे जो राजधानी है जम्मू श्रीनगर दोनों रहेंगे। लेकिन ऑफिसिसेस दोनों जगह रहेंगे और बारबार मुंह नहीं होगा। उस वक्त मनोज सिन्हा ने सिर्फ ये कहा कि यह प्रैक्टिस दोबारा शुरू नहीं होनी चाहिए क्योंकि पैसा बर्बाद हो रहा है। वेस्ट ऑफ टैक्स मनी कहा था उन्होंने। अब सवाल उठता है कि अगर 2021 में एलजी ने कहा कि पैसे वेस्ट ऑफ टैक्स मनी कहा था उन्होंने तो 2025 में उन्होंने इसी फाइल को अप्रूव क्यों कर दिया?। मामला यह है कि कल यानी 16 अक्टूबर को जम्मू कश्मीर सरकार ने एक ऑर्डर जारी किया है। ऑर्डर नंबर 1357 जारी किया जिसमें दरबार मुंह को बहाल करने का निर्देश दिया गया। इस आर्डर के मुताबिक श्रीनगर से सारे डिपार्टमेंट अक्टूबर के एंड तक बंद होंगे और 3 नवंबर से जम्मू में दोबारा काम शुरू होगा। इसमें होता क्या है कि जो जम्मू कश्मीर आरटीसी जो स्टेट ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन की बसेस होती है, पुलिस होता है, मेडिकल कैंप्स होते हैं, रहने का सुरक्षा फिर से बहाल कर दी गई है। बिल्कुल पुरानी तरह जैसे पुराने 19 2019 से पहले होता था। सरकार का कहना है कि यह फैसला एडमिनिस्ट्रेशन कनेक्टिविटी और कल्चरल बैलेंस के लिए लिया गया है। मकसद है कि जम्मू और श्रीनगर के जो लोग हैं उनके बीच अखंड और वो एक दूसरे के साथ क्लोज समझे अपने आप को। लेकिन लोगों का मानना है कि सवाल वही है कि



[वाहिद] जब डिजिटल सिस्टम दोनों राज्य में चल रहा है तो फिर हजारों मुलाजिमों और करोड़ों रुपया सिर्फ शिफ्ट करने में क्यों खर्चा करनी है। और क्या यह फैसला लोगों के हित में लिया गया है या पॉलिटिकल सिंबलिज्म के लिए लिया गया है। क्योंकि मैं आपको बता दूं दरबार मुंह सिर्फ एक एडमिनिस्ट्रेशन रूटीन नहीं होता था। अगर हम पुराने जमाने में बात करें ये एक एनवायरमेंट और जियोग्राफी के हिसाब से बनाया गया था। ये एक प्रॉपर सिस्टम हुआ करता था क्योंकि एक्सट्रीम कोल्ड और एक्सट्रीम हीट के बीच यह गवर्नेंस को बैलेंस रखता था। लेकिन आज जब हम टेक्नोलॉजी हर जगह है और ये फैसला एक बड़ा सवाल भी जमा करता है कि एनवायरमेंट को लॉजिक देके कि हम जिस तरीके से दिखा रहे हैं। खासतौर पे जो मैं बता रहा था जम्मू और कश्मीर दोनों एक एक्सट्रीम वेदर ज़ोन में आते हैं। जम्मू में खासतौर पे समर में गर्मियां 40 से ज्यादा पहुंच जाती है। वहीं कश्मीर में सर्दियों में टेंपरेचर जो है वह मिनिमम 15° तक गिर जाता है। अह इसीलिए यह 19वीं सदी में महाराजा रणबीर सिंह ने सिस्टम शुरू किया था। ये मकसद यही था कि सरकार को मौसम के हिसाब से चलाना है। क्योंकि उस जमाने में टेक्नोलॉजी नहीं थी। उस जमाने में हमारे पास हीटिंग सिस्टम्स नहीं थे। कूलिंग सिस्टम्स नहीं थे। डिजिटल कम्युनिकेशन नहीं थी। अह तो लोग एनवायरमेंट के साथ एडजस्ट करते थे। और गवर्नेंस को अभी नेचर के रिदमम के साथ चलाना पड़ता था। अब दरबारों को हम ऐसा भी समझ सकते हैं कि यह एक क्लाइमेट अडॉप्शन का मॉडल है। जब प्लेेंस में गर्मी बर्दाश्त से बाहर होती है तो सरकार श्रीनगर शिफ्ट हो जाती है। वहीं जब ठंड बर्दाश्त से बाहर हो जाती है तो वो जम्मू शिफ्ट हो जाते हैं। बट वहीं लोग भी वही सवाल कर रहे हैं कि अब तो बहुत बदलाव आ चुका है। अब क्लाइमेटिक चेंजेस बदल चुकी हैं। तो करोड़ों रुपया खर्च करना हर साल जबकि आप लोगों ने सारा कुछ ई फाइल्स ई डॉक्यूमेंटेशन कर लिया है तो इस तरीके से क्यों करना ये ये पूरा मामला है शशि भाई थोड़ा सा अगर मुझे बताएं कि ये जब अक्टूबर नवंबर का ये जो महीना होता है इसमें जम्मू और श्रीनगर के तापमान में मौसम में कितना अंतर होता है। क्योंकि हम में से ज्यादातर लोग अभी रहे नहीं है वहां पे घूमने के लिहाज से अगर छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर लोग घूमने भी नहीं गए हैं। तो उनके लिहाज से मैं जानना चाहूंगा कितना अंतर होता है अगर हम इमेजिन करना चाहे तो।


[वाहिद] बिल्कुल शेष अहम अहम सवाल है। खासतौर पे अभी की अगर हम बात करें अक्टूबर नवंबर की तो अक्टूबर और नवंबर में जो कश्मीर खासतौर पे श्रीनगर कश्मीर का अगर हम बात करें कश्मीर का टेंपरेचर लगभग 12 से 14 डिग्री होता था। दिन के टाइम पे वही रात तक पहुंचते-पहुंचते से वह 2 3° पहुंच जाता है। बट जम्मू में थोड़ा सा अलग है। वहां पे टेंपरेचर 25 27 इस तरीके का मामला रहता है। और इसीलिए विंटर में भी जो कश्मीर के लोग हैं ज्यादातर वो जम्मू शिफ्ट हो जाते थे क्योंकि जम्मू में उनको थोड़ा सा मौसम बेहतर मिलता है। वहां पे उस तरीके की ठंड नहीं होती और वहां पे प्लेेंस में बर्फ नहीं होती तो उनके लिए इजी होता है वहां पे अपना काम करना वहां पे रहन-सहन करना। तो ये ये पूरा मामला है खासतौर पे वेदर के हवाले से।



[शिशिर] थैंक यू सो मच वाहिद आपने ये चीज बताई। मेरे लिए भी ये चीज नई है ये जानना कि इस तरीके का सिस्टम एक्सिस्ट करता है। हो सकता है कि देश के बाकी हिस्सों में भी इस तरीके का कोई या इसी तरीके से मिलताजुलता कोई सिस्टम एक्सिस्ट करता हो। अगर मुझे ऐसा कुछ पढ़ने में आता है तो जरूर मैं पडकास्ट में इसका जिक्र आगे करूंगा। अभी फिलहाल मैं मैं इस बारे में नहीं जानता हूं। लेकिन मैं आगे करता हूं। बिजली को लेकर के बहुत सारी चीजें देश दुनिया में चलती रहती हैं। और जब भारत में बिजली की बात की जाती है तो पिछले कुछ सालों में अडानी पावर प्लांट्स के बारे में बहुत सारा बात की जा रही है। हम एनजीटी की कारवाई देखते हैं तो उसमें भी अडानी का लगातार जिक्र आता रहता है। इसी से जुड़ी हुई एक खबर है जिस पर मैं विस्तार से जानना चाह रहा हूं अपने सहयोगी पल्लव से। पल्लव थोड़ा सा बताइए कि पूरा मामला क्या है जिसकी ओर मैं इशारा करने की कोशिश कर रहा हूं।


[पल्लव] शशि ये मामला अडानी पावर लिमिटेड के गोडा पावर प्लांट को लेकर है। गोडा पावर प्लांट आपको मैं बता दूं कि झारखंड हमारा जो भारत का राज्य है झारखंड उस वहां के गोडा करके एक जगह है। वहां पर स्थित है। ये कोल पावर प्लांट है। थर्मल पावर प्लांट है। जिसकी क्षमता 1600 मेगावाट की है। अब इसकी खासियत यह है शिशेर कि ये जो प्लांट है। इसमें जो कोयला आता है वो ऑस्ट्रेलिया के कार माइकल खदान है अडानी की। वहां से आता है। पूरा रेलवे से पूरा ट्रैवल होकर झारखंड तक वो कोयला लाया जाता है। उस कोयले को झारखंड के गोडा में जलाया जाता है और वहां से बनी बिजली केवल और केवल बांग्लादेश को सप्लाई की जाती थी। तो ये एक इस पावर प्लांट को मार्च 2019 में स्पेशल इकोनॉमिक जोन डिक्लेअ किया गया था। केंद्र सरकार द्वारा। है ना कि यह केवल बांग्लादेश को कि केवल बांग्लादेश को बिजली सप्लाई कर रहा था। और भारत में पहले ऐसा नियम नहीं था कि किसी स्टैंड अलोन पावर प्लांट को इस तरह का स्टेटस दिया जाए। लेकिन स्पेसिफिकली अडानी के गोडा पावर प्लांट के लिए ये स्पेशल इकोनॉमिक जोन बनाया गया था जिससे कि वो अपनी जो बिजली है वो पूरी की पूरी बांग्लादेश को सप्लाई कर रहा था। लेकिन जब बांग्लादेश में रिजीम चेंज हुआ तो सारी स्थिति इस पावर प्लांट के लिए बदलना शुरू हो गई। तो जैसे ही शेख हसीना दिल्ली के एयरपोर्ट पर लैंड करती हैं उसके एक हफ्ते बाद ही केंद्र सरकार नियमों में बदलाव करती है। गाइडलाइंस में बदलाव करती है। इलेक्ट्रिसिटी के इंपोर्ट और एक्सपोर्ट को लेकर जो बनाए गए थे नियम उसमें बदलाव में यह होता है कि अडानी को अनुमति दे दी जाती है कि तब वो गोडा पावर प्लांट में बनी बिजली भारतीय स्टेट में और भारतीय ग्रिड में भी सप्लाई कर सकता है। तो यहां पे कई सवाल एक्स कई सवाल जो है विपक्षी दल के नेता और जो इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट है उसमें भी उठाए गए हैं। जिसमें कहा गया है कि अचानक से ये बदलाव क्यों?। है ना? तो दरअसल 6 अगस्त को अडानी पावर ने भारत सरकार को यह पिच किया था कि वो इस बिजली का इस्तेमाल भारत में करें। है ना? तो 12 अगस्त 2024 को पावर मिनिस्ट्री ने क्रॉस बॉर्डर इलेक्ट्रिसिटी इंपोर्ट एक्सपोर्ट की गाइडलाइन अमेंड कर दी। अब इसमें जो आरोप है वो यह है कि आप जो भारत सरकार है वो सीधे तौर पे एक व्यापारी को या फिर एक इंडस्ट्रियलिस्ट को किस तरीके से उसके हितों को साधने के लिए अपने जो नियमों में बदलाव कर रही है। क्योंकि शिशिर ये जो पावर प्लांट रहा है वो हमेशा से विवादों में रहा है। 2018 में द इंटरनेशनल इंस्टट्यूट ऑफ एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस की एक रिपोर्ट पब्लिश हुई थी जिसमें कहा था कि ये जो गोटा पावर प्लांट है वो बांग्लादेश के लिए ठीक नहीं है क्योंकि ये बहुत ही एक्सपेंसिव बिजली प्रोवाइड कर रहा है उनको। है ना? जब ऑलरेडी बहुत ही क्योंकि रिन्यूएबल एनर्जी है। ग्रीन एनर्जी अल्टरनेटिव मौजूद है। ऐसे में बांग्लादेश क्यों इतनी महंगी बिजली खरीद रहा है?। बांग्लादेश में भी कई दफा जो अडानी से जो बिजली खरीदी जा रही थी कोल पावर प्लांट में उस पर सवाल खड़े किए गए कि हम इतनी महंगी बिजली क्यों खरीद रहे हैं?। हमारी ऑलरेडी इकोनॉमिक कंडीशन इतनी अच्छी नहीं है। तो जब यह पावर प्लांट बना और जब पावर प्लांट बना तो इस पावर प्लांट और अडानी और बांग्लादेश की शेख हसीना सरकार के बीच में यह डील कर ाने में भी भारत सरकार ने काफी मदद की। यह न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट प्रकाशित हुई थी जिसमें यह दावा किया गया था कि किस तरीके से भारत सरकार ने कई तरह के नियमों में छूट दी जिससे कि ये जो अडानी का पावर प्लांट है वो बांग्लादेश अपनी बिजली सप्लाई कर सके और कैसे इसमें पूरी इस ये दोनों अडानी और बांग्लादेश के बीच में जो डील हुई है उसमें भारत सरकार ने किस तरीके से मदद की है। इसमें अगर मैं कुछ चीजें अगर हाईलाइट करना चाहूं तो एक है कि इसमें कई कस्टम ड्यूटीज और और जो टैक्सेस होते हैं उसमें छूट दी गई थी क्योंकि ये स्पेशल इकोनमिक जोन इसको पहले घोषित किया गया तो इंपोर्ट ड्यूटी और कस्टम ड्यूटीज में इसको छूट दी गई। दूसरा जो एक वो था कि कोई भी अगर पावर प्लांट किसी राज्य में लगा है तो भारत में नियम है कि वो उसकी जो 25% जो आउटपुट है वो उस राज्य के लोगों के काम आएगी। है ना? अब झारखंड में आप गोटा पावर गोंडा गांव में बिजली पावर प्लांट लगा रहे हैं। वहां के लोग इसका सारा एमिशन झेलेंगे। जाहिर सी बात है ना कोयले से आप बिजली बना रहे तो उसका जो एमिशन होगा उसका जो असर होगा वहां के स्थानीय लोगों पर होगा। तो भारतीय नियम कहते हैं कि 25% आउटपुट जो इलेक्ट्रिसिटी का है वो भारत में हो। लेकिन क्योंकि ये स्पेशल इकोनॉमिक जोन में इसको डिक्लेअ किया गया था। तो इसको पूरी अनुमति दी कि अब 100% बिजली बांग्लादेश को सप्लाई करेंगे। तो यहां पे इसको छूट दी गई कि ठीक है आपके लिए 25 फीसदी वाला जो नियम है उससे हम आपको छूट दे दे रहे हैं। तीसरी जो बड़ी बात थी कि इसका जो 72% जो फाइनेंस था वो डॉलर 1.7 बिलियन का जो इसका जो फाइनेंस था वो दो कॉरपोरेशन जो इंडियन गवर्नमेंट की कॉरपोरेशन है उन्होंने फाइनेंस किया। द पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन और रूरल इलेक्ट्रिफिकेशन कॉरपोरेशन। तो कई तरह के सवाल यहां पे जो भारतीय विपक्षी दल है, कांग्रेस है और अलग-अलग जो लोग हैं वो उठा रहे हैं कि क्यों भारत सरकार इस तरीके से नियमों में बदलाव करके एक एक उद्योगपति को मदद कर रही है। शिशिर जो आईफा की रिपोर्ट आई थी 2018 में उसमें यह स्पेसिफिकली कहा गया कि जो अडानी पावर है उसकी फाइनेंशियल जो हेल्थ है वो ठीक नहीं है। है ना? और जो ऑस्ट्रेलिया में कार माइकल दान है। उसका भी बड़े स्तर पर ऑस्ट्रेलिया में विरोध हुआ है। स्टॉप अडानी करके वहां पे एक पूरा आंदोलन खड़ा हो गया था। तो इस ये जो अभी जो रीसेंट डेवलपमेंट हुआ है यह बहुत बड़ा डेवलपमेंट है कि कैसे पहले तो इस पावर प्लांट को लगाने में भारत सरकार ने मदद की। कैसे इसकी बिजली को बांग्लादेश सप्लाई करने में अडानी की मदद की भारत सरकार ने। उसके बाद जब ये जब रिजीम चेंज हो गई और वहां की वहां की जो अब मौजूदा रिजीम है उसने यह बिजली लेने से मना कर दिया है। मतलब कि अब वो बोलते हैं कि हमारे पास डिमांड ही नहीं है। तो वहां से इवाकुएशन ही नहीं हो रहा है बिजली का। तो अब क्योंकि संकट में अडानी है तो उनको फिर से उबारने के लिए भारत सरकार ने नियमों में बदलाव किया है। उसको अनुमति दी है कि वो पावर लाइंस गाड़ सकता है। ओवरहेड पावर लाइंस डाल सकता है कि ताकि जो बिजली बनी है वो अब भारत में ही सप्लाई हो सके। तो कुल मिला के किस तरीके से सरकार एक एक उद्योगपति के साथ खड़ी है। वो ये ये जो डेवलपमेंट्स है वो बताते हैं।



[शिशिर] मतलब मैं इस चीज को लेकर के बड़ा चिंतित हूं कि सरकार लगातार इस बारे में प्रयास कर रही है कि किसी तरीके से बिजली और इस तरीके की जो अन्य एसेंशियल चीजें हैं उनका स्वामित्व और नियंत्रण ज्यादा से ज्यादा प्राइवेट कंपनियों को दिया जाए। जैसे कि अभी मैं मध्य प्रदेश मध्य प्रदेश क्या है? वो तो सारे राज्यों से जुड़ी हुई खबर है कि केंद्र सरकार ने बिजली के निजीकरण पर इनिशिएटिव लेना शुरू कर दिया है और राज्यों को तीन विकल्प दिए हैं। साथ ही ये कहा है कि अगर आप ऐसा नहीं करते हैं यानी कि आप बिजली कंपनियों का निजीकरण अगर नहीं करेंगे तो आपकी ग्रांट बंद कर दी जाएगी। अगर मध्य प्रदेश की केवल बात करें तो मध्य प्रदेश की छह बिजली कंपनियों में अत्या अत्यावश्यक सेवा का अनुरक्षण अधिनियम लागू कर दिया गया है। जिसके तहत 15 जनवरी 2026 तक बिजली की आपूर्ति को एक अत्यावश्यक सेवा घोषित कर दिया गया है। अब इससे होगा ये कि इस जो बिजली कंपनी इसके जो कर्मचारी हैं जो भले ही असंतुष्ट हो वो 15 जनवरी तक तो कम से कम हड़ताल पर नहीं जा सकते हैं। जबकि बीते दिनों ही इस इन कंपनियों के कर्मचारियों ने घोषणा की थी कि हमने समान कार्य के लिए समान वेतन नहीं दिया जा रहा है और इसलिए हम धनतेरस से यानी कि आने वाली 17 अक्टूबर से हड़ताल करने वाले हैं। अब मेरा सवाल यही है कि यह जो तमाम चीजें हैं यहां पर आप अपनी जनता को पीछे रख रहे हैं और निजीकरण की ओर लगातार बढ़ रहे हैं। तो हम जो वेलफेयर स्टेट की बात करते हैं डेमोक्रेसी में वो कहां जाती है?। फिर अगर आप इस तरीके से निजी कंपनियों को आगे बढ़ा रहे हैं तो।


[पल्लव] निश्चित तौर पर शशि क्योंकि निजीकरण एक अलग मुद्दा है। वह सरकार को देखना है कि अगर वो प्राइवेट जो सप्लायर्स हैं उनको अगर रोल प्ले करने के लिए बुला रहे हैं तो वो एक अलग मुद्दा है। रही बात वेलफेयर स्टेट की तो कई जगह पे सब्सिडीज दी जा रही हैं सर सरकार द्वारा। तो जैसे कि 200 यूनिट तक अगर आप बिजली जलाते हैं तो उसमें आपको फायदा मिलता है। तो भले ही जो पावर सप्लाई है वो जी हाथों में हो उसके बावजूद इस तरह की सब्सिडीज का फायदा लोगों को मिलता है। हालांकि आम लोगों की शिकायत हमेशा से रही है कि बिजली की जो दरें हैं वो काफी ज्यादा बढ़ती रही है। जैसे अभी रिसेंटली मैं एक खबर पढ़ रहा था जिसमें काफी विरोध प्रदर्शन हो रहा है महाराष्ट्र के अंदर कि कैसे उनके बिजली के बिल जो है वो काफी ज्यादा बढ़ गए हैं जब अडानी के जो मीटर्स हैं वो लगा दिए गए। है ना? और इसी तरीके से मध्य मध्यप्रदेश में हम देख रहे हैं कि जब स्मार्ट मीटर्स लगाए गए तो उनकी बिजली के जो बिल पहले आ रहे थे वो अब काफी ज्यादा बढ़ गए हैं। तो एक तरीके से मिडिल क्लास के ऊपर एक भार तो है ही बिजली के बिल का। लेकिन इन सारी चीजों को किस तरीके से डील करना है ये सरकार के ऊपर ही है कि वो निजीकरण भी करती है। अगर क्योंकि हमें इंफ्रास्ट्रक्चर में काफी ज्यादा डेवलपमेंट करना है। अभी जरूरत है। डिमांड बढ़ रही है उस हिसाब से। तो यह सरकार को देखना है कि वो किस तरीके से लोगों को राहत भी दे और अपना इलेक्ट्रिसिटी ट्रांसमिशन का जो इंफ्रास्ट्रक्चर है उसको डेवलप करें। शशि।



[शिशिर] बिल्कुल बल्लभ हम उम्मीद करते हैं कि ऐसा होगा। मैं इस पूरी चर्चा को और पूरे पडकास्ट को अंतिम दौर अंतिम दौर में ले जाऊं। उससे पहले एक छोटी सी सूचना एक छोटी सी खबर आप लोगों को बताना जो मुझे जरूरी लग रहा है वो यह है कि भारत में 2024-25 में करीब डेढ़ करोड़ लोग जंगलों में लगी आग से प्रभावित हुए हैं। ऐसा अर्थ सिस्टम एंड साइंस डाटा में प्रकाशित एक वार्षिक रिपोर्ट में कहा गया है। उन्होंने कहा है कि भारत में इसका असर सबसे ज्यादा हुआ है। वहीं देश की अगर बात की जाए तो यूपी सबसे ज्यादा जंगल की आग से प्रभावित रहा है। इसके अलावा दिल्ली में जो नवंबर 2024 में धुंध थी उसकी वजह भी जंगलों और खेतों में लगने वाली आग को बताया गया है। तो यह खबर थी जो मैं हेडलाइन में मिस कर गया था। मैंने सोचा कि यह बताना जरूरी है। खासतौर पे तब जरूरी है जब दिल्ली की हवा लगातार खराब हो रही है। यह था हमारा डेली मॉर्निंग पडकास्ट। ग्राउंड रिपोर्ट में हम पर्यावरण से जुड़ी हुई ऐसी ही महत्वपूर्ण खबरों खबरों को ग्राउंड जीरो से लेकर आते हैं। इस पडकास्ट हमारी वेबसाइट और हमारे काम को लेकर आप क्या सोचते हैं? यह हमें जरूर बताइए। आप मुझे मेरी ईमेल आईडी एस एच आई एस एच आई आर ए जी आर ए डबल एल007@gmail.com पर लिख सकते हैं या फिर Twitter पर एट एस एच आई आर एस एच आई एस एच आई एस एच आई आर ए जी आर ए डब्ल्यू एल के हैंडल पर संपर्क कर सकते हैं। Facebook में मैं शिशिर बसंत के नाम से उपलब्ध हूं। तो आप मुझे वहां पर भी मैसेज कर सकते हैं। पर्यावरण से जुड़ी हुई अन्य महत्वपूर्ण खबरों के साथ कल मैं फिर से हाजिर होऊंगा। तब तक के लिए जुड़े रहिए ground रिपोर्ट.in के साथ।


Hindi Headline

रिकॉर्ड \text{CO}_2 स्तर और चरम मौसम की चिंताएं: जम्मू-कश्मीर में ‘दरबार मूव’ की बहाली पर सवाल; गोडा पावर प्लांट के लिए अडानी को लाभ पहुंचाने हेतु नियमों में बदलाव, केंद्र सरकार द्वारा बिजली कंपनियों के निजीकरण का दबाव।


Hindi Summary

पॉडकास्ट में पर्यावरण और महत्वपूर्ण प्रशासनिक फैसलों से जुड़ी कई खबरें शामिल हैं। मेक्सिको में 73 साल का बारिश का रिकॉर्ड टूटा, जिससे 64 मौतें हुईं, और डब्ल्यूएमओ ने बताया कि 2024 में वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गई है, जिससे चरम मौसमी घटनाओं (Extreme Weather Events) में वृद्धि हो रही है। दिल्ली के गाजीपुर लैंडफिल में हर दिन 15,000 से 16,000 टन कचरा तुरंत प्रोसेस नहीं हो पा रहा है। भोपाल में ठंड बढ़ने की आशंका के बावजूद, वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) दोगुना होकर 235 हो गया है, जिसके लिए आतिशबाजी और सड़क मरम्मत के कारण बढ़ी धूल को जिम्मेदार ठहराया गया है। इंदौर में 24 ट्रांसजेंडर लोगों द्वारा सामूहिक आत्महत्या के प्रयास की खबर है, जिसका कारण दो गुटों के बीच की लड़ाई बताया जा रहा है।


प्रशासनिक और नीतिगत मोर्चे पर:

1. जम्मू-कश्मीर ‘दरबार मूव’ की बहाली: 2021 में उपराज्यपाल मनोज सिन्हा द्वारा ई-गवर्नेंस को बढ़ावा देने और करदाताओं के पैसे की बर्बादी रोकने का हवाला देते हुए बंद की गई ‘दरबार मूव’ प्रथा को 16 अक्टूबर 2025 को बहाल करने का निर्देश दिया गया है। यह प्रथा (1872 में शुरू हुई) हर साल राजधानी को श्रीनगर (गर्मी) से जम्मू (सर्दी) स्थानांतरित करती थी। जनता सवाल उठा रही है कि डिजिटल सिस्टम होने के बावजूद हजारों कर्मचारियों के स्थानांतरण पर करोड़ों रुपये क्यों खर्च किए जा रहे हैं।

2. अडानी पावर प्लांट विवाद: झारखंड के गोडा पावर प्लांट (1600 मेगावाट) पर चर्चा हुई, जिसे पहले एसईजेड घोषित किया गया था और यह सिर्फ बांग्लादेश को बिजली सप्लाई करता था। बांग्लादेश में मांग घटने और सत्ता परिवर्तन के बाद, केंद्र सरकार ने 12 अगस्त 2024 को बिजली आयात-निर्यात नियमों में बदलाव किया, जिससे अडानी अब यह महंगी बिजली भारतीय ग्रिड में सप्लाई कर सकते हैं। विपक्षी दल आरोप लगा रहे हैं कि सरकार एक उद्योगपति के हितों को साधने के लिए नियमों में बदलाव कर रही है। यह प्लांट पहले से ही विवादों में था क्योंकि भारत सरकार ने इसे एसईजेड छूट (कस्टम ड्यूटी) और 25% घरेलू सप्लाई नियम से छूट दिलाई थी, साथ ही परियोजना के 72% वित्तपोषण में सरकारी निगमों (PFC, REC) ने मदद की थी।

3. बिजली कंपनियों का निजीकरण: केंद्र सरकार राज्यों पर विद्युत वितरण कंपनियों के निजीकरण का दबाव बना रही है और विकल्प न चुनने पर ग्रांट बंद करने की चेतावनी दी है। मध्य प्रदेश में कर्मचारियों की हड़ताल रोकने के लिए 15 जनवरी 2026 तक बिजली आपूर्ति को अत्यावश्यक सेवा घोषित कर दिया गया है।

4. जंगल की आग: अंत में, बताया गया कि 2024-25 में भारत में करीब डेढ़ करोड़ लोग जंगल की आग से प्रभावित हुए, जिनमें यूपी सर्वाधिक प्रभावित रहा। दिल्ली में नवंबर 2024 की धुंध के लिए भी जंगल और खेतों की आग को एक वजह बताया गया है।


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