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एक पुल दो दीवार और चार जिले के लोग प्रभावित

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राजगढ़-भोपाल बॉर्डर पर क्षतिग्रस्त पुल के कारण 300 गांवों के लाखों लोगों का जीवन अस्त-व्यस्त, विकल्प में 100 किमी का चक्कर

मध्यप्रदेश के राजगढ़ और भोपाल जिले की सीमा पर स्थित पार्वती नदी का पुल आज एक मूक गवाह बना खड़ा है – उस विकास की कहानी का जहां लापरवाही ने हजारों लोगों की जिंदगी को दूभर बना दिया है। छह महीने से अधिक समय से यह पुल पूर्णतः बंद है और इसके दोनों सिरों पर 3-4 फीट की दीवार खड़ी करके पैदल आवागमन तक को रोका जा चुका है।

जनवरी 2025 में जब प्रशासन ने पुल को क्षतिग्रस्त घोषित किया था, तो पहले केवल भारी वाहनों को प्रतिबंधित किया गया था। लेकिन समय बीतने के साथ दो और चार पहिया वाहनों पर भी रोक लगा दी गई। अंततः पैदल आवागमन को भी पूरी तरह बंद कर दिया गया।

व्यापक प्रभाव क्षेत्र

इस एक पुल के बंद होने से राजगढ़, विदिशा, सीहोर और भोपाल जिले के लगभग 300 गांव प्रभावित हुए हैं। स्थानीय लोगों के अनुसार, अब एक जिले से दूसरे जिले जाने के लिए 50 से 100 किलोमीटर का अतिरिक्त सफर करना पड़ रहा है।

प्रशासन द्वारा शुरू में नदी के रास्ते एक वैकल्पिक मार्ग उपलब्ध कराया गया था, लेकिन बारिश में नदी में पानी आने के बाद वह रास्ता भी डूब गया। इससे चारों जिलों की कनेक्टिविटी गंभीर रूप से प्रभावित हो रही है।

भोपाल जिले की बैरसिया तहसील के राधेश्याम गुर्जर बताते हैं कि उनके गांव के 25-30 किसानों की लगभग 200 बीघा जमीन नदी के उस पार राजगढ़ जिले में स्थित है।

“किसानों को अपने खेत में दवाई छिड़कने और अन्य कृषि कार्यों में काफी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है,” वे बताते हैं।

इसी तरह मैंगरा नवीन गांव के किसान घासीराम गुर्जर कहते हैं,

“मेरी 12 बीघा कृषि भूमि राजगढ़ जिले में स्थित है। छह महीने से पुल टूटा हुआ है लेकिन सरकार ने कुछ नहीं किया। वैकल्पिक रास्ता 60-70 किलोमीटर दूर है जबकि हमें कई बार खेत में जाना पड़ता है।”

पुल बंद होने का सबसे गहरा असर शिक्षा क्षेत्र पर पड़ा है। राधेश्याम गुर्जर के अनुसार, उनके गांव के 30-40 प्रतिशत बच्चे नरसिंहगढ़ में पढ़ाई करते थे। “अब कई बच्चे वहीं कमरा किराए पर लेकर रह रहे हैं, जबकि कुछ ने अपना नाम कटवाकर इस पार के स्कूलों में दाखिला लिया है।”

शिक्षकों की भी समस्या कम नहीं है। नरसिंहगढ़ से सीहोर के ग्रामीण क्षेत्र में पढ़ाने जाने वाले एक सरकारी शिक्षक बताते हैं,

“पहले यहां से 15-20 किलोमीटर का सफर था, अब 70-80 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है या फिर वहीं कमरा लेकर रहना पड़ता है।”

पूर्व सरपंच मेहरबान सिंह गुर्जर का कहना है कि पुल बंद होने का सबसे ज्यादा असर नरसिंहगढ़ के व्यापार पर पड़ा है। “नरसिंहगढ़ मंडी पूरी तरह ठप्प हो गई है। लगता है कि तीन साल तक ग्रामीणों को इस समस्या का सामना करना पड़ेगा जब तक नया पुल नहीं बनता।”

बस चालक अवधनारायण लववंशी कहते हैं कि उन्हें अपनी बसों को घुमाकर पुल के उस पार खड़ा करना पड़ता है। “इससे यात्रियों को काफी परेशानी हो रही है।”

राजगढ़ जिले के पगारी बंगला गांव निवासी बबलू की दुविधा इस समस्या की गंभीरता को दर्शाती है। उनकी पत्नी का बैरसिया में इलाज चल रहा है।

“मैं यहां तक बाइक से आता हूं और फिर पुल के उस पार किसी दोस्त को बुलाता हूं या बस से बैरसिया जाता हूं। अन्यथा 150 किलोमीटर का चक्कर लगाना पड़ता है।”

प्रशासनिक उदासीनता के बीच स्थानीय लोगों ने अपनी सहूलियत के लिए दीवारों के दोनों तरफ सीढ़ियां लगाकर पैदल आवागमन का जुगाड़ किया है। इस तरह किसान, व्यापारी, स्कूली छात्र, बुजुर्ग महिला-पुरुष पैदल ही आना-जाना कर रहे हैं। लेकिन यह व्यवस्था न तो सुरक्षित है और न ही व्यावहारिक।

पुल क्षतिग्रस्त होने की कहानी

गांव के जालम सिंह ने साहस करके पुल के क्षतिग्रस्त होने की असली कहानी बताई। उनके अनुसार,

“जब गांव में सड़क का निर्माण हो रहा था तो मशीन से पुल का डामर खोदकर निकाला गया। इससे पुल क्षतिग्रस्त हुआ है और आज भी वहां दरार है।”

हालांकि अधिकांश ग्रामीण इस बात को कैमरे के सामने कहने से डरते हैं, लेकिन ऑफ कैमरा कई लोगों ने इसी बात का जिक्र किया है। उनका मानना है कि लगभग 50 साल पुराना यह पुल अभी भी 10-20 साल चल सकता था, लेकिन सड़क निर्माण के दौरान बरती गई लापरवाही से यह क्षतिग्रस्त हुआ।

रामनारायण, जो खेती और मजदूरी का काम करते हैं, बताते हैं कि लगभग चार साल पहले भी पुल की मरम्मत हुई थी। “उस समय मैंने भी दो महीने काम किया था। तब भी पुल क्षतिग्रस्त हुआ था और उसे ठीक कराया गया था।”

इन सभी आरोपों की कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं मिल सकी है। न तो राजगढ़ और न ही भोपाल प्रशासन इस मामले में कोई स्पष्ट जवाब देने को तैयार है। नया पुल कब बनेगा, इसकी भी कोई निश्चित तारीख नहीं है।

निष्कर्ष: विकास का मतलब क्या?

पार्वती नदी पर टूटे पुल की यह कहानी एक छोटी सी लापरवाही के व्यापक परिणामों को दर्शाती है। एक पुल के बंद होने से न सिर्फ परिवहन बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि और व्यापार – जीवन के हर क्षेत्र में समस्या पैदा हो गई है।

आज जब हम डिजिटल इंडिया और स्मार्ट सिटी की बात करते हैं, तो क्या यह सोचने का वक्त नहीं आया है कि विकास का मतलब सिर्फ नई इमारतें बनाना नहीं, बल्कि मौजूदा बुनियादी ढांचे को मजबूत रखना भी है?

पार्वती नदी के पुल पर खड़ी दीवार केवल यातायात को ही नहीं रोक रही, बल्कि हजारों सपनों को भी रास्ता देने से मना कर रही है। सवाल यह है कि कब तक?

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Author

  • Abdul Wasim Ansari is an independent journalist based in Rajgarh, Madhya Pradesh, bringing nearly a decade of experience in journalism since 2014. His work focuses on reporting from the grassroots level in the region.

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