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एशिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी ‘वत्सला’ की अविस्मर्णीय कहानी

एशिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी 'वत्सला' की अविस्मर्णीय कहानी
एशिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी 'वत्सला' की अविस्मर्णीय कहानी

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कहते हैं कि कुछ लोग अपने नाम के बिल्कुल अनुरूप होते हैं, ऐसी ही थी ‘वत्सला’ अर्थात् वात्सल्य से भरपूर, स्नेही, प्रेम करने वाली, ममतामयी मां। नवंबर 2024 में पन्ना टाइगर रिजर्व की अपनी पहली यात्रा के दौरान मैंने उसे देखा। इसके पहले भी उसके बारे में सुना और पढ़ा था, लेकिन अपनी आंखों से उसे देखने का अनुभव रोमांच से भरा हुआ था। उस समय हमारी यात्रा के साथी मल्लू जी ने बताया कि इसे हाथियों के बच्चों की दादी अम्मा कहा जाता है। वह दृश्य उस समय भी जीवंत दिखाई दिया क्योंकि तब भी वह एक बच्चे के साथ खड़ी थी। कुछ दिनों पहले जब उसकी मृत्यु का समाचार मिला तो उससे जुड़ी स्मृतियां जीवंत हो गईं।

केरल से मध्यप्रदेश तक का सफर

1971 में केरल के नीलांबुर जंगलों से लाई गई वत्सला को पहले सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के नर्मदापुरम जिले के बोरी अभयारण्य में लाया गया था, जहां यह लकड़ी के लट्ठों को रखने का काम करती थी। रिटायर्ड फॉरेस्ट ऑफिसर केशव सिंह वत्सला से जुड़ी अपनी यादें साझा करते हुए बताते हैं,

 “मुझे 42 वर्ष पुरानी घटना याद आ रही है। जब मैं होशंगाबाद वन मंडल की बोरी रेंज में प्रोबेशनर के रूप में पदस्थ होकर रेंजर की ट्रेनिंग ले रहा था, उस समय वत्सला एवं गीता नाम की दो हथनियां उत्पादन वन मंडल में कूपों की कटाई के बाद लट्ठों के थप्पी करने का कार्य करती थीं। ये हथनियां अपनी सूंड से लट्ठों को पकड़कर खींचती हुई थप्पियां लगाती थीं।”

वर्षा ऋतु में इन्हें सामान्य वन मंडल को स्थानांतरित कर दिया जाता था। इन्हें भोजन राजपत्रित अधिकारी से सत्यापित कराकर दिया जाता था। केशव सिंह आगे बताते हैं, “स्टाफ ने कहा कि गीता तो बहुत बदमाश है, पर वत्सला बहुत अच्छी है। वह भोजन देते समय अपना सिर झुकाकर सूंड को मेरे पैरों के आसपास घुमाती रहती थी।”

दशकों बाद का भावुक मिलन

अक्टूबर 2019 में जब केशव सिंह अपने गांव गए, तो पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में पदस्थ तत्कालीन क्षेत्र संचालक श्री के.एस. भदौरिया जी से मिलने गए। उनके आग्रह पर राष्ट्रीय उद्यान पन्ना भ्रमण के दौरान स्टाफ ने उन्हें वत्सला से मिलवाया। “वत्सला पुनः अत्यंत भावुक होकर मेरी तरफ झुक गई और अपनी सूंड मेरे पैरों के आसपास घुमाने लगी। उसके इस कृत्य ने मुझे बहुत अधिक भावुक कर दिया। सालों बाद भी मुझे उसने याद रखा था।”

बिना जन्म दिए मां बनी वत्सला

बच्चे को दुलार करती वत्सला
बच्चे को दुलार करती वत्सला

मां कोई भी हो, चाहे वह इंसान हो या कोई अन्य प्राणी, वह अपने बच्चों से दुनिया में सबसे अधिक दुलार और स्नेह करती है। लेकिन वत्सला एक ऐसी मां थी जिसने स्वयं कभी किसी बच्चे को जन्म नहीं दिया, लेकिन अन्य हाथियों के बच्चों को भी अपने बच्चों की तरह दुलार और स्नेह करती थी। पर्यटक जब वत्सला का दीदार करने के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व के हिनौता क्षेत्र में आते तो उन्हें यह सब जानना काफी रोमांचकारी लगता था।

रेंज ऑफिसर आर.पी. अजरिया बताते हैं, “वत्सला के भले अपने बच्चे न हों, लेकिन यहां मौजूद हाथियों के बच्चों के साथ वह खेलती और दुलार करती थी। सबसे बुजुर्ग होने के कारण लंबे समय तक वह हाथियों के दल की मुखिया थी। इसलिए उसे इन बच्चों की दादी-नानी अम्मा के तौर पर जाना जाता था। अन्य मादा हथनियों की प्रसव पीड़ा के समय एवं बच्चा होने के बाद वह एक नानी अथवा दादी के रूप में अपनी भूमिका निभाती थी।”

कई नन्हे हाथी उसका दूध पीकर बड़े हुए। चलने-फिरने में दिक्कत होने के कारण वह अपनी सूंड और छोटे झुंड के सदस्यों की मदद से आगे बढ़ती थी, जिन्हें अक्सर उसके “पोते” कहा जाता था। इसमें बापू, मान्या, प्रह्लाद, कृष्णकली और पूर्णिमा जैसे बच्चे शामिल थे। 

मलयालम से हिंदी तक की भाषा यात्रा

आर.पी.अर्जरिया, रेंज ऑफिसर हिनौता पीटीआर, के साथ श्री मनीराम गौंड
आर.पी.अर्जरिया, रेंज ऑफिसर हिनौता पीटीआर, के साथ श्री मनीराम गौंड

वत्सला की देखभाल करने वाले महावत मनीराम गौर और वत्सला का साथ बहुत लंबा था। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व और उसके बाद पन्ना टाइगर रिजर्व में आने पर भी मनीराम ही उसे रोजाना खैरईयां नाले तक नहाने के लिए ले जाते थे। भोजन में प्रतिदिन 20 किलो दलिया और शाम को 10 किलो चावल का आटा दिया जाता था।

मनीराम बताते हैं, “लंबे समय तक केरल में रहने के कारण वह सिर्फ मलयालम भाषा समझती थी। मध्यप्रदेश के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में आने के बाद शुरुआत में भाषा को लेकर काफी दिक्कत हुई, लेकिन धीरे-धीरे वह गोंडी और हिंदी भाषा जानने वाले मनीराम के स्पर्श और आवाज को पहचानने लगी।”

संघर्ष और विकलांगता के बावजूद स्नेह

एक बार रामबहादुर नामक नर हाथी से हुए संघर्ष में वत्सला का पेट फट गया था। उसके इलाज के बाद उसे रिटायर कर दिया गया था। कुछ सालों पहले मोतियाबिंद होने के कारण उसे दिखाई भी नहीं देता था। खाना चबाने में भी दिक्कत होने लगी थी, दांत भी गिर गए थे।

“वह बच्चों को बहुत प्यार करती थी। अभी जो पांच से छह साल के बच्चे हैं, वह उन्हें दूध भी पिलाती थी। बच्चे खेलते हुए उसके पास रात में कई बार सो भी जाते थे। बहुत अच्छा व्यवहार था वत्सला का,” मनीराम बताते हैं।

एक समय वह भी था जब पर्यटकों को अपनी पीठ पर बैठाकर बाघ दिखाने का काम भी वत्सला करती थी। मनीराम कहते हैं,

“वह देख नहीं सकती थी, लेकिन उसे हमेशा पता चल जाता था कि मैं उसके पास हूं। अपने आखिरी सालों में भी, जब वह पूरी तरह से अंधी हो गई थी, तो वह मेरा नाम सुनते ही अपनी सूंड उठा लेती थी।”

सामान्यतः हाथी शरारती होते हैं, लेकिन वत्सला अलग थी। वह कभी परेशान नहीं करती थी, बात मानती थी। हां, एक बार का किस्सा है जब वह हौदा (हाथी की पीठ पर रखकर कसा जाने वाला आसन) को अपनी पीठ पर बांधकर भाग गई थी। उसे वापस लाने में पूरा एक हफ्ता लग गया था।

विश्व रिकॉर्ड की चूक

Vatsala elephant at Panna Tiger Reserve

वत्सला की उम्र को लेकर कई बार दावे किए गए कि वह विश्व की सबसे बुजुर्ग हथनी है, लेकिन सही दस्तावेज न होने के कारण उसका नाम रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हो सका। अनुमान है कि वह 100 साल से अधिक उम्र की थी, संभवतः 1917 के आसपास केरल के नीलांबुर जंगलों में पैदा हुई थी।

जन्म रिकॉर्ड गायब होने के कारण उसकी सही उम्र अनिश्चित थी, जिसने रिजर्व अधिकारियों के प्रयासों के बावजूद उसे गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल होने से रोक दिया। उसकी उम्र का पता लगाने के लिए उसके दांतों के नमूने लैब में भी भेजे गए थे। लगभग सारे कागजात पूरे हो गए थे, लेकिन गिनीज बुक रिकॉर्ड के लिए जरूरी कागजात पूरे नहीं हो पाए। भले वह रिकॉर्ड न पा सकी हो, लेकिन उसकी यादें अवश्य इतिहास में दर्ज हो चुकी हैं।

8 जुलाई को अंतिम विदाई

क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व अंजना तिरकी ने बताया कि मादा वत्सला हिनौता परिक्षेत्र के खैरईयां नाले के पास आगे के पैर के नाखून टूट जाने के कारण बैठ गई थी। वनकर्मियों द्वारा उसे उठाने का काफी प्रयास किया गया। दोपहर को हथनी वत्सला की मृत्यु हो गई।

रेंज ऑफिसर आर.पी. अजरिया बताते हैं, “पन्ना टाइगर रिजर्व के हिनौता परिक्षेत्र के अंतर्गत सबसे बुजुर्ग हथनी लगभग 100 वर्ष से अधिक आयु की वत्सला की 8 जुलाई मंगलवार को मृत्यु हो गई। सुबह 8:30 बजे तक वह बिल्कुल ठीक थी। वत्सला को एशिया की सबसे बुजुर्ग हथनी माना जाता है।”

पन्ना टाइगर रिजर्व के अधिकारी-कर्मचारियों द्वारा वत्सला का अंतिम संस्कार किया गया। पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन के वन्यप्राणी चिकित्सक एवं विशेषज्ञों द्वारा समय-समय पर हथनी वत्सला के स्वास्थ्य की जांच की जा रही थी। इसलिए वत्सला पन्ना टाइगर रिजर्व के विरल एवं शुष्क वन क्षेत्र में दीर्घ आयु की अवस्था तक जीवित रही।

एक समय पर पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो चुका था, वहां बाघ पुनर्स्थापना योजना में वत्सला का अहम योगदान रहा है। मनीराम के शब्दों में, “याद तो बहुत आएगी, लेकिन क्या कर सकते हैं, उसकी भी उम्र हो चुकी थी।”


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