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मूंग की फसल पर लगा रसायनिक होने का दाग एमपी के किसानों के लिए बनेगा मुसीबत?

मूंग की फसल पर लगा रसायनिक होने का दाग एमपी के किसानों के लिए बनेगा मुसीबत?
मूंग की फसल पर लगा रसायनिक होने का दाग एमपी के किसानों के लिए बनेगा मुसीबत?

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मध्य प्रदेश के खेतों में हरियाली बोने वाले किसानों के लिए इस साल जायद मूंग की फसल आशा की बजाय निराशा का कारण बनी। प्रकृति की मार और सरकारी नीतियों की दोहरी चोट ने उन्हें आर्थिक संकट में धकेल दिया। बेमौसम बारिश, कीटनाशकों के ‘जहरीले ठप्पे’ और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदी की अनिश्चितता ने किसानों को सड़कों पर उतरने को मजबूर कर दिया।

प्रकृति का कहर: बेमौसम बारिश की तबाही

जायद मूंग, जो मार्च में बोई जाती है और मई-जून में कटाई के लिए तैयार होती है, इस बार मौसम की मार झेलने को मजबूर हुई। मई माह के अंतिम सप्ताह में अचानक हुई तेज बारिश ने किसानों की महीनों की मेहनत पर पानी फेर दिया।

भोपाल के परवलिया गांव के 62 वर्षीय किसान महाराज गौर की पीड़ा उनकी आवाज में साफ झलकती है:

“हमने कर्ज लेकर बीज और खाद खरीदा। फसल अप्रैल-मई में लहलहा रही थी, लेकिन मई के अंत में हुई अचानक तेज बारिश ने फलियों को सड़ा दिया।”

मौसम विभाग के आंकड़े इस तबाही की गंभीरता को दर्शाते हैं। इस साल मई माह में राज्य में सामान्य से सात गुना अधिक बारिश हुई। 53 जिलों में बारिश दर्ज की गई और कई जिलों में रिकॉर्ड टूट गए। इंदौर में 139 साल पुराना रिकॉर्ड टूटा, जहां मई में 4.6 इंच बारिश हुई। देवास में सबसे अधिक 6.3 इंच बारिश दर्ज की गई।

सामान्यतः मई में मध्य प्रदेश में केवल 7 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस बार 2 इंच से अधिक बारिश हुई। इस अप्रत्याशित मौसम ने न केवल फसल को नुकसान पहुंचाया बल्कि कीटों के प्रकोप को भी बढ़ाया, जिससे किसानों को कीटनाशकों का अधिक उपयोग करना पड़ा।

मई के महीने में बारिश के कारण किसानों की फसल खराब होने लगी थी, पत्तों पर कीट का प्रकोप था
मई के महीने में बारिश के कारण किसानों की फसल खराब होने लगी थी, पत्तों पर कीट का प्रकोप था

जहरीले ठप्पे का दंश: सरकारी फैसले की मार

मध्य प्रदेश सरकार पिछले चार वर्षों से ग्रीष्मकालीन मूंग की खरीदी कर रही थी। लेकिन जून की शुरुआत में राज्य कृषि उत्पादन आयुक्त अशोक बर्णवाल की घोषणा ने किसानों के सपनों पर पानी फेर दिया। उन्होंने हानिकारक खरपतवारनाशकों के अधिक उपयोग का हवाला देते हुए मूंग को ‘जहरीला’ बताकर खरीदी से इनकार कर दिया।

परवलिया गांव के 42 वर्षीय संतोष गौर का गुस्सा उनकी आवाज में स्पष्ट था,

“हमें क्या पता कौन-सी दवाइयां प्रतिबंधित हैं? स्थानीय दुकानों से खरीदा, जो उपलब्ध थी। सरकार ने पहले क्यों नहीं रोका?”

महाराज गौर सवाल उठाते हैं, “जिन कीटनाशकों को सरकार ने प्रतिबंधित किया है, वो बाजार में कैसे बिक रहे हैं? सरकार को इसकी जांच करनी चाहिए, न कि किसानों की फसल को जहरीला बताकर खरीदने से मना करे।”

आर्थिक संकट: MSP से बाजार दर तक का सफर

एमएसपी के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते किसान
एमएसपी के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करते किसान

2025-26 में मूंग के लिए 8,682 रुपये प्रति क्विंटल का MSP तय था, जो किसानों की आर्थिक रीढ़ था। लेकिन सरकारी फैसले के बाद उन्हें मंडियों में 5000 से 5500 रुपये प्रति क्विंटल के दाम पर फसल बेचने को मजबूर होना पड़ा। इससे प्रति क्विंटल 3000 रुपये से अधिक का नुकसान हुआ।

एक एकड़ मूंग की खेती में लगभग 28,500 रुपये की लागत आती है, लेकिन बाजार के दामों से लागत भी नहीं निकल रही थी। नरसिंहपुर के 46 वर्षीय किसान रमेश पटेल का दर्द स्पष्ट है,

 “कर्ज लिया, मेहनत की, लेकिन बारिश और सरकार ने सब चौपट कर दिया। सोचा था मूंग की फसल से नुकसान की भरपाई कर लूंगा।”

रसायनों का दुष्प्रभाव: वैज्ञानिक चेतावनी

थ्रेशिंग करके मूंग हार्वेस्ट करते किसान
थ्रेशिंग करके मूंग हार्वेस्ट करते किसान

कृषि वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि राज्य में किसान फसलों में विषैले रसायन घोल रहे हैं। मूंग की फसल को जल्दी पकाने के लिए पैराक्वाट डाइक्लोराइड और सुखाने के लिए ग्लाइफोसेट जैसे रसायनों का बड़े पैमाने पर उपयोग हो रहा है।

खरपतवार अनुसंधान निदेशालय जबलपुर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. बीके चौधरी स्पष्ट करते हैं,

 “स्टैंडिंग क्रॉप में पैराक्वाट का उपयोग प्रतिबंधित है। यह खतरनाक हर्बीसाइड है और इसका एंटीडोट नहीं बना है।”

गैस्ट्रोलॉजिस्ट डॉ. सुबोध वार्ष्णेय बताते हैं, “पैराक्वाट केमिकल कैंसरकारक है। इससे आंखें व श्वसन तंत्र प्रभावित होते हैं।”

भारत सरकार के केंद्रीय कीटनाशी बोर्ड ने स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि इन रसायनों का उपयोग केवल बंजर भूमि या चाय बागानों में किया जाना चाहिए। उपजाऊ कृषि भूमि में इनके उपयोग पर प्रतिबंध है।

जबलपुर कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. एके सिंह समस्या की जड़ बताते हैं,

“मूंग और उड़द वर्षा ऋतु की फसलें हैं। राज्य के किसान इन्हें गर्मी में उगा रहे हैं, इसलिए कीटनाशकों का अधिक उपयोग होता है।”

किसानों का विद्रोह: सड़कों पर गूंजे नारे

सड़क पर मूंग के लिए एमएसपी की घोषणा की मांग करते किसान
सड़क पर मूंग के लिए एमएसपी की घोषणा की मांग करते किसान

जब हालात बेकाबू हुए तो किसानों ने सड़कों का रुख किया। भोपाल से लेकर राज्य के विभिन्न जिलों में किसानों ने विरोध प्रदर्शन किए। नरसिंहपुर में अर्धनग्न प्रदर्शन, हरदा में ट्रैक्टर रैलियां और छिंदवाड़ा में घुटनों के बल चलकर ज्ञापन सौंपा गया।

“हमारी मेहनत को जहरीला कहना बंद करो, MSP दो” यह नारा प्रदेश के गांवों से लेकर भोपाल की सड़कों तक गूंजा। भारतीय किसान संघ और किसान महापंचायत ने आंदोलन को हवा दी।

पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने सोशल मीडिया पर लिखा

“किसान अन्नदाता है, उसकी मेहनत को अपमानित करना बंद करो।”

सरकार झुकी: MSP की वापसी

लगातार विरोध प्रदर्शन के बाद 13 जून को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने घोषणा की कि मूंग और उड़द की फसल MSP पर खरीदी जाएगी। मूंग के लिए 8,682 रुपये और उड़द के लिए 7,400 रुपये प्रति क्विंटल का दाम तय हुआ।

संतोष गौर ने कहा,

“यह जीत हमारी एकजुटता की है, लेकिन सरकार की देरी से हमारी कटी हुई फसल को भी बारिश ने नुकसान पहुंचाया है।”

भविष्य की चुनौतियां: सवाल अभी भी बाकी

खेत में लगी मूंग की फसल
खेत में लगी मूंग की फसल

मध्य प्रदेश में मूंग का रकबा 14.35 लाख हेक्टेयर और उत्पादन 20.23 लाख मीट्रिक टन है, जो 36 जिलों में फैला है। बेमौसम बारिश, कीटनाशकों के दुरुपयोग का ठप्पा और सरकारी नीतियों में देरी ने किसानों को आर्थिक और मानसिक रूप से तोड़ दिया। 

भारतीय किसान संघ के नेता राहुल धुत सवालिया अंदाज में पूछते हैं, “कौन-सी फसल है, जिसमें रसायन का छिड़काव नहीं होता? किसान धान, गेहूं, चना में भी पेस्टीसाइड का प्रयोग करते हैं। क्या यह भी जहरीला है?”

भारतीय कृषक समाज के नेता केके अग्रवाल चेतावनी देते हैं,

“जहरीली फसल का ठप्पा किसानों का जीवन भर पीछा नहीं छोड़ने वाला। यदि सरकार को लगता है कि रसायनों का अत्यधिक प्रयोग हो रहा है तो वैज्ञानिक परीक्षण किया जाना चाहिए।”

समाधान की दिशा: वैज्ञानिक दृष्टिकोण

भारतीय किसान संघ, महाकौशल प्रांत के महामंत्री प्रहलाद सिंह पटेल सुझाव देते हैं, “वैज्ञानिक परीक्षण से साफ हो जाएगा कि कितनी मात्रा में रसायन का प्रयोग सही है।”

डॉ. एके सिंह सुझाव देते हैं, “सरकार को जैविक खेती को बढ़ावा देने के साथ रसायनों के उपयोग को सीमित करने की आवश्यकता है। इसके लिए मापदंड निर्धारित करने चाहिए।”

किसान नेता राहुल धुत की सिफारिशें व्यापक हैं,

“सरकार को जैविक खेती को बढ़ावा देना चाहिए। कीटनाशकों के उपयोग पर सख्त निगरानी, मौसम चेतावनियों का समय पर प्रसारण और फसल बीमा योजनाओं को प्रभावी बनाने की जरूरत है।” 

निष्कर्ष: अधूरी जीत और भविष्य के सवाल

मध्य प्रदेश के लाखों किसानों की उम्मीदों को बेमौसम बारिश, सरकारी नीतियों और जहरीली फसल के ठप्पे ने कुचलने का काम किया। किसानों की एकजुट आवाज के आगे सरकार झुकी और MSP पर खरीदी शुरू हुई, लेकिन यह केवल तात्कालिक राहत है।

मूल सवाल अब भी बरकरार हैं: क्या सरकार भविष्य में ऐसी अनिश्चितताओं को रोक पाएगी? क्या रसायनों के उपयोग पर वैज्ञानिक निगरानी होगी? क्या कीटनाशकों की बिक्री पर नियंत्रण लगेगा? या यह कहानी हर साल दोहराई जाएगी?

राज्य सरकार को तत्काल एक व्यापक नीति बनानी होगी जो किसानों को मौसम की मार से बचाए, रसायनों के सुरक्षित उपयोग के लिए दिशा-निर्देश दे और जैविक खेती को प्रोत्साहन दे। तभी किसानों की मेहनत का सम्मान हो सकेगा और उनकी आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी।


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