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मोरंड-गंजाल बांध परियोजना का हरदा के बोथी गांव में विरोध

मोरंड-गंजाल बांध परियोजना का हरदा के बोथी गांव में विरोध
मोरंड-गंजाल बांध परियोजना का हरदा के बोथी गांव में विरोध

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मध्यप्रदेश में नर्मदा घाटी परियोजना के अंतर्गत 29 बांधों का निर्माण होना है, इसी परियोजना का हिस्सा है नर्मदापुरम संभाग का मोरंड-गंजाल प्रोजेक्ट (Morand Ganjal Irrigation Project) । परियोजना के तहत सिवनी मालवा के गांव मोरघाट में मोरंड नदी और हरदा जिले के रेहटगांव स्थित जवर्धा गांव के पास गंजाल नदी पर बांध बनाये जायेंगे।

मोरंड-गंजाल परियोजना

  • शुरुवात- वर्ष 1972 में परिकल्पना
  • बजट- 2813 करोड़ रुपए
  • इन जिलों को लाभ– हरदा, खंडवा, होशंगाबाद और बैतूल
  • कितना क्षेत्र सिंचित होगा?
    कुल 52,000 हेक्टेयर क्षेत्र को लाभ होगा। होशंगाबाद के 28 गांव, 4,617 हेक्टेयर क्षेत्र
    खंडवा के 62 गांव, 17,678 क्षेत्र
    हरदा के 121 गांव, 29,910 हेक्टेयर क्षेत्र
  • गांव पूरी तरह डूबेंगे- 10 गांव, होशंगाबाद से 4, हरदा के 4 और बैतूल के 2 गांव
  • कानूनी केस
    वर्ष 2014 में जबलपुर हाई कोर्ट में पीआईएल दाखिल की गई थी, जिसे हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

यह परियोजना तीन हिस्सों में पूरी होगी पहले चरण में मोरंड बांध का निर्माण होगा, दूसरे चरण में नहर का काम होगा फिर तीसरे चरण में गंजाल नदी पर बांध बनेगा। परियोजना पहली बार वर्ष 1972 में प्रस्तावित हुई थी, इसी वर्ष हुए पहले सर्वे में सामने आया था कि मोरंड-गंजाल परियोजना की वजह से करीब 6-7 गांव पूरी तरह डूब जाएंगे, जिससे यहां रहने वाले कोरकू आदिवासी सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे।

आदिवासियों के विरोध के कारण यह परियोजना कई सालों से रुकी हुई थी, लेकिन अब इस (Morand Ganjal Irrigation Project) परियोजना को मध्यप्रदेश सरकार ने फिर से हरी झंडी दे दी है। जब कुछ अधिकारी मार्च में बांध निर्माण के लिए हरदा जिले के बोथी गांव (Bothi Village) का सर्वे करने पहुंचे तो उन्हें ग्रामीणों ने भागने पर मजबूर कर दिया।

क्या कहते हैं बोथी गांव के लोग?

ग्राउंड रिपोर्ट की टीम ने बोथी पहुंचकर ज़मीनी हालातों को समझने का प्रयास किया।


बोथी गांव हरदा जिले की टिमरनी तहसील से करीब 30 किलोमीटर दूर है, यह एक वनग्राम है जहां आदिवासी समाज के लोग कई पीढ़ियों से रह रहे हैं। मोरंड-गंजाल परियोजना के तहत डूबने वाले 6-7 गांव में बोथी का भी नाम है। यहां से 6 किलोमीटर दूरी पर ही गंजाल बांध का निर्माण होना है।

Bothi Village in Harda
Ladli behna form filling in madhya pradesh

150 घरों के इस गांव में गिने चुने पक्के मकान ही देखने को मिलेंगे, सरकारी योजनाएं बेहद धीमी रफ्तार से यहां पहुंच रही हैं। हालांकि ग्रामीण सुल्तान देवड़ा कहते हैं “हम जिस तरह रह रहे हैं खुश हैं, हम खेती और मज़दूरी करके जीवन यापन करने के सभी ज़रुरी साधन जुटा लेते हैं। हमें और कुछ नहीं चाहिए, हमारे लिए हमारे जल जंगल और ज़मीन से बढ़कर कुछ नहीं है।”

बांध बनने से बोथी गांव के डूबने की बात पर सरदार सिंह देवड़ा कहते हैं “हम पिछले 30 सालों से बोथी गांव को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, गंजाल नदी पर बनने वाले बांध में सबसे पहले हमारा ही गांव डूबेगा। हमने कई बार कलेक्टर और डीएम को ज्ञापन दिया लेकिन कोई भी यह बताने को तैयार नहीं है कि हमें हमारी ज़मीन के बदले कितना मुआवज़ा दिया जाएगा?”

मुआवज़े पर वृद्ध ग्रामीण प्रेम सिंह कहते हैं कि “कोई मुआवज़ा हमारे नुकसान की पूरी भरपाई नहीं कर सकता। यहां की हवा पानी छीनकर हमें दूसरी जगह बसाया भी गया तो हम ज्यादा दिन जी नहीं पाएंगे। समझ नहीं आता सरकार आदिवासियों के बारे में क्यों नहीं सोचती? लोगों को पानी देने के लिए हमें विस्थापित किया जाएगा। हम मर जाएंगे लेकिन अपना गांव नहीं छोड़ेंगे।”

सुल्तान देवड़ा कहते हैं “बोथी गांव में हम तीन फसले उगाते हैं, खाली समय में मज़दूरी करते हैं और जंगल से महुआ, तेंदूपत्ता तोड़कर लाते हैं। इससे हमारा गुज़ारा हो जाता है। यहां से विस्थापित होने के बाद हमारी किसान और आदिवासी होने की पहचान मिट जाएगी, हम केवल मज़दूर बनकर रह जाएंगे।”

बोथी बचाने की लड़ाई के बारे में प्रेम सिंह बताते हैं कि “जब इंदिरा सागर बांध के कारण डूबने वाले गांवों के लिए आंदोलन हो रहा था तब हम विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए थे। हमें उम्मीद है कि जब हमारा गांव डूबेगा तो वहां के लोग हमारा साथ देंगे। नर्मदा बचाओ ज़िदगी बचाओ अभियान का समर्थन हमें मिला हुआ है, इसके तहत सारे आदिवासी मिलकर सरकार को अपना फैसला पलटने पर मजबूर कर देंगे।”

हरदा की 100 फीसदी ज़मीन सिंचित करने का लक्ष्य

बोथी गांव के लोग गंजाल बांध परियोजना (Morand Ganjal Irrigation Project) को हर कीमत पर रोकना चाहते हैं वहीं उधर सरकार भी इस मामले में सख्त नज़र आ रही है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हरदा जिले की 100 फीसदी ज़मीन सिंचित करने का लक्ष्य रखा है।

मध्यप्रदेश किसान कल्याण तथा कृषि विकास मंत्री कमल पटेल ने 1 नवंबर 2022 को परियोजना की समीक्षा करते हुए नर्मदा वैली डेवलपमेंट अथॉरिटी और हरदा जिले के अधिकारियों को समय पर सिंचाई परियोजना पूरी करने की हिदायत दी है।

मोरंड गंजाल परियोजना (Morand Ganjal Irrigation Project) की परिकल्पना वर्ष 1972 में की गई थी, इसके तहत मोरंड और गंजाल नदी पर बांध बनाने का प्रस्ताव रखा गया। परियोजना के लिए पहला सर्वे भी वर्ष 1972 में हुआ जिसमें 6-7 आदिवासी गांवों के डूबने की बात कही गई। तबी से परियोजना का विरोध शुरु हुआ इसमें नर्मदा बचाओ संघर्ष समिति का साथ आदिवासियों को मिला। पिछले कई वर्षों से ठंडे बस्ते में पड़ी इस योजना को साल 2014 में जबलपुर हाई कोर्ट में इस योजना के खिलाफ लगाई गई पीआईएल को जबलपुर हाई कोर्ट ने खारिज कर दिया था, जिसके बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मोरंड गंजाल परियोजना को हरी झंडी दिखाई। साल 2019 में कमलनाथ सरकार ने भी योजना को जारी रखने का फैसला लिया। शिवराज सिंह चौहान ने दोबारा सत्ता में लौटकर मोरंड गंजाल परियोजना को जल्द से जल्द पूरा करने का फैसला किया है।

सरकार के मुताबिक इस परियोजना से 4 जिले हरदा, खंडवा, होशंगाबाद और बैतूल को फायदा होगाष कुल 52 हज़ार हेक्टेयर जमीन को सिंचाई के लिए पानी मिल सकेगा।

जंगल और वन्य प्राणियों को भी नुकसान

परियोजना से कुल 10 गांव डूब सकते हैं, इसमें होशंगाबाद से 4, हरदा के 4 और बैतूल जिले के 2 गांव पूरी तरह डूब जाएंगे। हालांकि सर्वे रिपोर्ट में 6-7 गांवों की बात ही की गई है। इससे केवल आदिवासियों का विस्थापन ही नहीं होगा बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान होगा। डूबने वाली 3158 हेक्टेयर ज़मीन में 2286 हेक्टेयर वन भूमि है। इस बांध का बैकवॉटर नर्मदापुरम के सतपुड़ा और महाराष्ट्र स्थित मेलघाट टाइगर रिजर्व को जोड़ने वाले कॉरिडोर को भी डूबो देगा जिससे बाघों का एक जगह से दूसरी जगह मूवमेंट रुक जाएगा जो बाघों के संरक्षण के लिए बेहद ज़रुरी है।

बांध के लिए टेंडर और वर्क ऑर्डर जारी हो चुका है अब नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ को तय करना है कि वो इजाज़त देता है या नहीं।

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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