आजकल खेती की दुनिया में एक नया शब्द खूब सुनाई दे रहा है – बायोस्टिमुलेंट्स। लेकिन यह चर्चा अच्छे कारणों से नहीं हो रही। हाल ही में केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कई बायोस्टिमुलेंट्स पर प्रतिबंध लगाकर इस मुद्दे को सुर्खियों में ला दिया है। मंत्री जी का गुस्सा वाजिब भी था – ये उत्पाद इतने महंगे थे कि गरीब किसान इन्हें खरीद ही नहीं सकते थे, और सबसे बड़ी बात यह कि सरकार को इनके बारे में पूरी जानकारी ही नहीं थी।
पहले समझें कि होता क्या है बायोस्टिमुलेंट
सरल भाषा में कहें तो बायोस्टिमुलेंट्स वे पदार्थ हैं जो पौधों की प्राकृतिक क्षमता को बढ़ाने का काम करते हैं। जब हम परंपरागत खाद की बात करते हैं तो यूरिया, डीएपी जैसे फर्टिलाइजर सीधे पौधों को नाइट्रोजन, फास्फोरस, पोटेशियम देते हैं। लेकिन बायोस्टिमुलेंट्स का काम अलग है – ये पौधों की मिट्टी से पोषक तत्वों को सोखने की प्राकृतिक प्रक्रिया को तेज़ करते हैं।
आसान उदाहरण से समझें तो अगर फर्टिलाइजर पेनकिलर हैं, तो बायोस्टिमुलेंट्स शरीर को प्राकृतिक रूप से दर्द सहने की शक्ति देने वाली दवा हैं। इनमें माइक्रोबियल इनोक्यूलेंट्स, ह्यूमिक एसिड, समुद्री शैवाल के अर्क, अमीनो एसिड और अच्छे बैक्टीरिया शामिल होते हैं।
फायदे तो हैं कई, लेकिन…
बायोस्टिमुलेंट्स के फायदे देखने में काफी आकर्षक हैं। ये पौधों में पोषक तत्वों का अवशोषण बेहतर बनाते हैं, बाढ़, सूखा, अधिक धूप जैसे मौसमी तनाव से निपटने की क्षमता बढ़ाते हैं, और फसल की गुणवत्ता में 5-10 प्रतिशत तक सुधार लाते हैं। पर्यावरण के लिए भी ये बेहतर हैं क्योंकि इनके इस्तेमाल से रासायनिक खादों और कीटनाशकों की जरूरत कम होती है।
लेकिन समस्या है इनकी कीमत। जहां यूरिया का 50 किलो बोरा 600-700 रुपए में मिल जाता है, वहीं बायोस्टिमुलेंट्स की कीमत 200 रुपए प्रति किलो है। छोटे और गरीब किसानों के लिए यह बहुत महंगा सौदा है।
सरकार ने क्यों लगाया बैन?
मुख्य समस्या यह थी कि बिना किसी नियमन या प्रमाणीकरण के ये उत्पाद बाजार में बेचे जा रहे थे। जब किसानों ने शिकायत की कि वादे के मुताबिक परिणाम नहीं मिल रहे, तब जाकर सरकार को पता चला कि कई नकली और अप्रमाणित उत्पाद बाजार में घूम रहे हैं।
बायोस्टिमुलेंट्स का प्रभाव फसल के प्रकार, मिट्टी की स्थिति और पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर करता है। बिना वैज्ञानिक परीक्षण और उचित निर्देशों के इनका इस्तेमाल किसानों को नुकसान पहुंचा सकता है।
आगे का रास्ता
सरकार अब केवल प्रमाणित बायोस्टिमुलेंट्स की बिक्री की अनुमति देगी। हालांकि भारत में यह उत्पाद नया है और इसका नियामक ढांचा अभी तैयार हो रहा है, लेकिन सख्त नियमों के बाद स्थिति बेहतर होने की उम्मीद है।
किसान भाइयों के लिए सबसे महत्वपूर्ण सलाह यह है कि कोई भी खाद या कृषि उत्पाद खरीदते समय हमेशा पक्का बिल लें। यह फसल खराब होने पर कंपनी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई में मददगार साबित होगा।
बायोस्टिमुलेंट्स निश्चित रूप से भविष्य की तकनीक हैं, लेकिन इनका सही और जिम्मेदार इस्तेमाल ही किसानों के हित में है।
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