मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में शुक्रवार 24 अक्टूबर से सोयाबीन की सरकारी खरीदी भावांतर योजना के तहत शुरू हो गई है। मंडियों में किसानों ने अपनी उपज लेकर पहुंचना शुरू किया, जहां जिनका पहले से पंजीयन था उन्हें दोबारा रजिस्ट्रेशन कराना पड़ा। लंबी लाइनों में खड़े होकर प्रक्रिया पूरी करने के बाद किसानों ने ट्रैक्टर-ट्रॉलियों में रखी फसल को खुली नीलामी में रखा।
ब्यावरा मंडी में योजना की शुरुआत प्रतीकात्मक रूप से पहले किसान को माला पहनाकर और मिठाई खिलाकर की गई। इसके बाद मंडी में मौजूद व्यापारियों ने बोली लगाना शुरू किया, जो 3,500 से 4,500 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंची। मंडी सचिवों ने इसे पारदर्शी और किसान हितैषी बताते हुए कहा कि कटाई को 20 दिन से अधिक हो चुके हैं, जिससे फसल की गुणवत्ता अच्छी है। उनका दावा है कि पंजीकृत किसानों के खातों में भुगतान शीघ्र किया जाएगा और उन्हें भावांतर का लाभ भी मिलेगा।
इसके बावजूद कई किसान इस प्रक्रिया से खुश नहीं दिखे। उनका कहना है कि फसल तैयार करने, परिवहन और मंडी पहुंचाने में प्रति क्विंटल लगभग 6,000 रुपये तक का खर्च आ चुका है, जबकि उन्हें बिक्री पर औसतन 4,000 रुपये ही मिल रहे हैं। कुछ किसानों ने आर्थिक मजबूरी के चलते योजना में पंजीयन किए बिना सीधे मंडी में नगद बिक्री करना चुना।
मंडी परिसर में लगातार घोषणा की जाती रही कि भावांतर योजना के तहत बेची गई फसल का भुगतान सीधे किसानों के बैंक खातों में किया जाएगा, नकद नहीं। किसानों की उम्मीदें बेहतर समर्थन मूल्य की थीं, लेकिन बाजार की बोली ने एक बार फिर उनके घाटे की चिंता बढ़ा दी है।
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