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सोयाबीन की ‘शवयात्रा’ निकाल रहे हैं मध्य प्रदेश के किसान

Production: Pallav Jain

मध्यप्रदेश के किसानों के लिए यह लगातार तीसरा वर्ष है जब प्रकृति की मार ने उनकी सोयाबीन की फसल को तबाह कर दिया है। अनियमित मौसम, अत्यधिक बारिश और यैलो मोज़ैक वायरस के कारण राज्य भर में सोयाबीन की फसल नष्ट हो गई है। इस बार स्थिति इतनी गंभीर है कि किसान अपनी खड़ी फसल की ‘शव यात्रा’ निकालने से लेकर ट्रैक्टर चलाने तक के कदम उठाने पर मजबूर हो गए हैं।

सीहोर जिला

सीहोर जिले के पीपलनेर गांव में ग्राउंड रिपोर्ट की टीम की पड़ताल में सामने आया कि यहां सोयाबीन की फसल में यैलो मोज़ैक वायरस का भयंकर प्रकोप है, जिसके कारण पौधों में फलियां नहीं आई हैं या दाना परिपक्व नहीं हो पाया है।

किसान राजमल ने सोयाबीन की 1135 वैरायटी लगाई थी, लेकिन अगस्त महीने से ही फसल की पत्तियां पीली पड़ने लगीं। कई तरह की दवाओं का छिड़काव किया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। प्रति एकड़ 10 हजार रुपए की लागत के बाद उन्हें उम्मीद है कि मुश्किल से एक क्विंटल प्रति एकड़ उत्पादन होगा, जबकि सामान्यतः 15-20 क्विंटल होना चाहिए। राजमल कहते हैं “सोयाबीन पिछले साल भी खराब हुई थी, लेकिन इस बार स्थिति बहुत ज्यादा खराब है।”

पीपलनेर गांव के किसान ज्ञानसिंह परमार की स्थिति और भी गंभीर है। उनका कहना है कि इस वर्ष लागत भी वापस नहीं मिलेगी। अगली फसल की बुवाई के लिए पैसे नहीं हैं। अब कर्ज लेकर पहले सोयाबीन की फसल कटवानी होगी, खेत खाली करना होगा, तब जाकर गेहूं की बुवाई हो पाएगी।

सीहोर जिले के लाड़कुई क्षेत्र में किसानों का गुस्सा फूट पड़ा है। अत्यधिक बारिश के कारण सोयाबीन की फसलों में फल नहीं बैठ पाया है। बीमा कंपनियों के रवैये से नाराज होकर किसानों ने अपने खेतों में खड़ी फसल पर ट्रैक्टर और कल्टीवेटर चला दिया। किसान मोहनलाल बताते हैं कि “रबी सीजन की तैयारी के लिए खेतों को खाली करना जरूरी हो गया है।”

झिरनिया गांव के कई खेतों में भी यही दृश्य दिखा। पिछले 5 वर्षों से लगातार नुकसान उठा रहे किसान अब पूरी तरह टूट चुके हैं। अपनी ही फसल को नष्ट करने का यह दर्दनाक दृश्य किसानों की मजबूरी और निराशा की पराकाष्ठा है।

केंद्रीय मंत्री के समक्ष गुहार

सीहोर में एक महत्वपूर्ण घटना तब घटी जब केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान भोपाल-इंदौर हाईवे से गुजर रहे थे। इछावर जोड़ पर किसानों ने उनका कारवां रोककर अपनी व्यथा सुनाई। लगातार खराब मौसम से तबाह हुई फसल की समस्या सुनकर मंत्री ने तत्काल कलेक्टर को फोन करके सर्वे के निर्देश दिए।

उज्जैन जिला

मुख्यमंत्री मोहन यादव के गृह जिले उज्जैन में भी हालात गंभीर हैं। किसानों ने ट्रैक्टर, बैलगाड़ी और मोटरसाइकिलों से खाचरौद पहुंचकर सोयाबीन की खराब फसल की ‘शव यात्रा’ निकाली। बस स्टैंड से तहसील कार्यालय तक यह मार्च निकालकर किसानों ने चक्काजाम किया, जमकर नारेबाजी की और अंत में अर्थी को आग लगा दी। इस प्रतीकात्मक विरोध के माध्यम से किसानों ने अपनी बर्बाद फसल का दर्द व्यक्त किया।

किसान सुरपाल सिंह भाटी ने बताया कि उनकी मुख्य मांगें हैं: प्रति बीघा 10 हजार रुपए का तत्काल मुआवजा, बीमा कंपनियों की मनमानी पर रोक, बिना सर्वे के फसल बीमा की पूरी राशि, सोयाबीन का MSP से ऊपर दाम निर्धारण, त्वरित फसल सर्वे और भावांतर योजना में सुधार।

किसानों ने एसडीएम नेहा साहू को ज्ञापन सौंपकर 15 दिन का अल्टीमेटम दिया है। चेतावनी दी है कि मांगें नहीं मानी गईं तो प्रदेशव्यापी उग्र आंदोलन होगा।

मंदसौर जिला

मंदसौर जिले में मल्हारगढ़ विकासखंड के बिल्लौद गांव में जब राजस्व विभाग के अमले ने क्रॉप कटिंग सर्वे किया तो नतीजे चौंकाने वाले थे। ख्यालिराम पाटीदार के खेत से मात्र 200 ग्राम सोयाबीन निकली, जिसमें मिट्टी भी शामिल थी।

इस हिसाब से एक बीघा (25 आरी) में केवल 20 किलो सोयाबीन का उत्पादन हो रहा है। यह आंकड़ा इसलिए और भी चौंकाने वाला है कि किसान बोवनी के समय ही 25-30 किलो बीज प्रति बीघा डालते हैं। यानी उत्पादन बीज की मात्रा से भी कम है।

किसानों के अनुसार एक बीघा में बोवनी से कटाई तक 10-15 हजार रुपए की लागत आती है। वर्तमान बाजार भाव के अनुसार 20 किलो सोयाबीन से अधिकतम 800-1200 रुपए मिल रहे हैं। यह स्थिति सोयाबीन की खेती को घाटे का सौदा बना रही है।

शामगढ़ क्षेत्र के कुरावन गांव में किसानों ने अलग तरीके से प्रदर्शन किया। यहां भाजपा के बूथ अध्यक्षों के सामने ढोल बजाकर उन्हें जगाने का प्रयास किया ताकि फसल के शत-प्रतिशत नुकसान का मुआवजा मिल सके।

चुनौतियां

मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने 25 सितंबर को कहा कि “मध्यप्रदेश में जहां भी सोयाबीन की फसल अतिवृष्टि या यैलो मोज़ैक रोग के कारण खराब हुई है, ऐसे सभी क्षेत्रों में सर्वे कराया जा रहा है।” हालांकि, पीपलनेर गांव के किसानों का कहना है कि अभी तक सर्वे शुरू नहीं हुआ है, जबकि फसल काटने का समय आ गया है।

विभिन्न जिलों में कलेक्टरों के निर्देश पर फसल क्षति आकलन के लिए हल्का बार टीमें गठित की गई हैं। इन टीमों में राजस्व विभाग के पटवारी, कृषि विभाग के ग्राम सेवक, पंचायत विभाग के सचिव और उद्यानिकी विभाग के कर्मचारी शामिल हैं।

किसानों की मुख्य शिकायत यह है कि बीमा कंपनियां सर्वे के नाम पर केवल औपचारिकता कर रही हैं। फसल की वास्तविक क्षति का आकलन नहीं हो रहा है, जिससे उन्हें उचित बीमा राशि नहीं मिल पा रही है।

मध्यप्रदेश के किसानों के लिए यह केवल एक वर्ष की समस्या नहीं है, बल्कि लगातार तीन वर्षों से जारी संकट है। जलवायु परिवर्तन, अनियमित मौसम और बीमारियों का बढ़ता प्रकोप कृषि क्षेत्र के लिए गंभीर चुनौती बन गया है।

सरकार और प्रशासन के सामने तत्काल चुनौती यह है कि किसानों की वैध मांगों को पूरा किया जाए और भविष्य में ऐसी स्थितियों से बचने के लिए प्रभावी नीतियां बनाई जाएं। शव यात्रा से लेकर खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चलाने तक के कदम केवल प्रदर्शन नहीं हैं, बल्कि किसानों की गहरी निराशा और मजबूरी की अभिव्यक्ति हैं। राज्य सरकार को इस संकट का स्थायी समाधान खोजना होगा, वरना मध्यप्रदेश का कृषि संकट और गहरा सकता है।

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Author

  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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