मध्यप्रदेश के राजगढ़ जिले में पर्यावरण नियमों को ताक पर रखकर बनाया गया कचरा डंपिंग साइट ग्रामीणों की जिंदगी दूभर बना रहा है।
राजगढ़ जिले के नरसिंहगढ़ ब्लॉक की निपनिया चेतन ग्राम पंचायत में स्थित चांदबड़ली गांव आज एक गंभीर पर्यावरणीय संकट से जूझ रहा है। यहां कुरावर नगर परिषद द्वारा स्थापित ट्रेंचिंग ग्राउंड न सिर्फ ग्रामीणों की रोजमर्रा की जिंदगी बल्कि उनके जीवनयापन के मुख्य साधनों को भी खतरे में डाल रहा है।
समस्या की जड़ वर्ष 2022 में जाकर मिलती है, जब जिला प्रशासन ने कुरावर नगर परिषद को इस क्षेत्र में जमीन आवंटित की थी। लेकिन असली परेशानी 2025 के जुलाई महीने में शुरू हुई, जब नगरपालिका ने पुलिसबल की मदद से इस स्थान पर टिन की दीवार खड़ी करके शहर का कचरा यहां डंप करना शुरू कर दिया।
नियमों की अनदेखी
ट्रेंचिंग ग्राउंड स्थापित करने के मूलभूत नियमों के अनुसार, ऐसी सुविधाएं आबादी से दूर और पर्यावरण को नुकसान न पहुंचाने वाली जगहों पर बनाई जानी चाहिए। लेकिन चांदबड़ली में यह पूरी तरह उल्टा हुआ है। यहां गांव के बीचोंबीच, एक महत्वपूर्ण तालाब के ठीक बगल में कचरा डंपिंग साइट बनाई गई है।
गांव के निवासी असलम खान बताते हैं,
“यह तालाब हमारी जीवनरेखा है। जब यह भर जाएगा तो इसकी गंदगी सीधे तालाब के पानी में मिलेगी, जिससे हमारे कुएं और अन्य पेयजल स्रोत दूषित हो जाएंगे। इससे गांव में बीमारियों के फैलने का खतरा है।”
व्यापक प्रभाव क्षेत्र
यह समस्या केवल चांदबड़ली तक सीमित नहीं है। आसपास के लगभग छह गांव इस कचरे और बदबू से परेशान हैं। पास के मानपुरा गांव के दिनेश मीणा का कहना है, “यहां अनाज तौलने के लिए चबूतरा बनाया गया है। आने वाले समय में जब किसान यहां अपना अनाज लेकर आएंगे तो इस बदबू में वे कैसे बैठ पाएंगे?”
चांदबड़ली के सलीम खान की चिंता और भी गंभीर है। वे कहते हैं,
“जिस ट्यूबवेल के पास मैं खड़ा हूं, पूरा गांव इसी का पानी पीता है। कचरे और गंदगी से मिश्रित पानी हमारे जल स्रोतों को बर्बाद कर देगा।”
स्थानीय प्रशासन की उदासीनता
इस गंभीर समस्या के बावजूद स्थानीय प्रशासन का रवैया चौंकाने वाला है। ग्राम पंचायत के सरपंच प्रतिनिधि हरिप्रसाद बताते हैं कि न तो इस काम के लिए ग्राम पंचायत से अनुमति ली गई और न ही उन्हें इसकी जानकारी दी गई। “ग्राम पंचायत की अनुमति के बिना कोई काम नहीं हो सकता, फिर भी यह हुआ है, जो समझ से परे है।”
वहीं दूसरी ओर, सांसद प्रतिनिधि बाला प्रसाद चंद्रवंशी का दावा है कि उन्होंने सब कुछ नियमों के अनुसार किया है। उनका कहना है,
“हमें शासन से जमीन मिली है और न्यायालय से केस जीतकर आए हैं। हमने उस जगह को कवर किया है और केमिकल का इस्तेमाल करके कचरे को व्यवस्थित करेंगे।”
हकीकत बनाम दावे
लेकिन जमीनी हकीकत इन दावों से एकदम अलग है। ट्रेंचिंग ग्राउंड को केवल टिन की चादरों से घेरा गया है और कचरा खुले आसमान के नीचे डाला जा रहा है। यह पूरी तरह आबादी वाले क्षेत्र में स्थित है और गांव के लोग गंदगी व बदबू से परेशान हैं।
नगर परिषद कुरावर के सीएमओ लीलाधर सेन स्वीकार करते हैं कि उनके पास पर्यावरण की अनुमति या उससे संबंधित कोई रिपोर्ट नहीं है। इंजीनियर अमन मुद्गल बताते हैं कि नगरीय क्षेत्र से रोज 3-5 टन कचरा निकलता है, जिसे पहले शहर के बीच में डाला जाता था।
ऐतिहासिक महत्व का तालाब
गांव के सबसे बुजुर्ग व्यक्ति आसिम पटेल बताते हैं कि मानपुरा और चांदबड़ली के बीच स्थित इस तालाब को ‘बड़ा तालाब’ कहा जाता है। यह उस जमाने में बना था जब मशीनरी का चलन नहीं था। आसपास के 4-5 गांवों की खेती और पेयजल का यह मुख्य स्रोत है।
तालाब से 3 किलोमीटर लंबी नहर निकाली गई है और रबी की फसल के लिए कुएं खोदे गए हैं। तालाब के सहारे ट्यूबवेल खुदवाए गए हैं, जिनका पानी टंकियों में जाकर पूरे गांव में सप्लाई होता है। इसके अतिरिक्त, स्थानीय लोग यहां मछली पालन भी करते हैं।
कानूनी संघर्ष और भविष्य की चुनौतियां
2022 में जब यह जमीन नगर परिषद को आवंटित की गई थी, तब ग्रामीणों ने कलेक्टर, एसडीएम और न्यायालय में शिकायत की थी। ग्रामीणों के वकील दिनेश शर्मा बताते हैं कि उस समय उनका प्रकरण खारिज कर दिया गया था।
“मैंने ग्रामीणों से ऊपर की अदालत में अपील करने को कहा था, लेकिन किसी कारण उन्होंने अपील नहीं की।”
पर्यावरण कार्यकर्ता की चेतावनी
राजगढ़ में पर्यावरण के लिए काम करने वाले आरटीआई लीगल एंबिट के जयपाल सिंह खींची का कहना है कि ग्रामीणों के विरोध के बावजूद पर्यावरण अनुमति के बिना तालाब के कैचमेंट एरिया में ट्रेंचिंग ग्राउंड बनाकर पर्यावरण को प्रदूषित करने का काम किया जा रहा है। “इससे पानी तो प्रदूषित होगा ही, जलीय जीवों पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। हम इस मामले को ग्रामीणों के साथ मिलकर उचित मंच पर लेकर जाएंगे।”
निष्कर्ष
राजगढ़ के चांदबड़ली गांव का यह मामला दिखाता है कि कैसे प्रशासनिक लापरवाही और नियमों की अनदेखी से एक पूरे समुदाय की जिंदगी संकट में पड़ सकती है। पर्यावरण संरक्षण के नाम पर बनाए गए नियम तभी सार्थक हैं जब उनका सख्ती से पालन हो। अन्यथा, ऐसे मामले न सिर्फ वर्तमान पीढ़ी बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी खतरा बन जाते हैं।
गांव के लोगों का संघर्ष जारी है, और उम्मीद है कि न्यायिक प्रक्रिया से उन्हें न्याय मिलेगा। लेकिन सवाल यह है कि क्या तब तक बहुत देर नहीं हो चुकी होगी?
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