भारत की खेती के इतिहास में साल 2025 एक ऐतिहासिक मोड़ लेकर आया, जब कृषि मंत्रालय ने पशु-आधारित प्रोटीन हाइड्रोलाइसेट बायोस्टिमुलेंट्स पर बैन लगाने का बड़ा फैसला किया। यह कदम न सिर्फ वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, बल्कि धार्मिक और सामाजिक संवेदनशीलता के लिहाज से भी बेहद अहम था।
दरअसल, हाल के वर्षों में कई कंपनियां ऐसे बायोस्टिमुलेंट्स बना रही थीं जो गाय की खाल, मुर्गी के पंख या मछलियों के स्केल्स से तैयार होते थे। इन्हें भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) ने अगस्त 2025 में सूचीबद्ध किया था। लेकिन जैन समुदाय और कई धार्मिक समूहों ने इसका विरोध किया, यह कहते हुए कि ऐसे उत्पाद उनकी आस्था और आहारिक परंपराओं के खिलाफ हैं।
लगातार विरोध और जांच के बाद, 30 सितंबर 2025 को सरकार ने गजट नोटिफिकेशन S.O. 4441(E) जारी किया, जिसमें 11 पशु-स्रोत वाले उत्पादों को सूची से हटा दिया गया। अब केवल पौधों और सूक्ष्मजीवों से बने बायोस्टिमुलेंट्स को ही मंजूरी है।
इस बैन के बाद उद्योग जगत में हलचल मच गई। पहले जहां लगभग 30,000 उत्पाद बाजार में थे, अब संख्या घटकर करीब 650 रह गई। बड़ी कंपनियां जैसे कोरमंडल इंटरनेशनल और सिंगेंटा ने तुरंत अपने उत्पादों को पौधों पर आधारित बनाया। सरकार ने सख्त नियम लागू करते हुए ट्रेसबिलिटी और लेबलिंग को अनिवार्य कर दिया।
यह निर्णय दिखाता है कि भारत का कृषि क्षेत्र अब परंपरा और विज्ञान के संतुलन की राह पर बढ़ रहा है।
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