मध्य प्रदेश के बुरहानपुर जिले में इस साल केले की खेती बागवानों के लिए बेहद मुश्किल साबित हुई है। जिले के किसान पांडुरंग विट्ठल को सरकार ने हाल में 3 लाख 60 हजार रुपए का मुआवज़ा दिया है — जो इस साल प्रदेश में किसी एक किसान को मिलने वाला सबसे बड़ा मुआवज़ा है। लेकिन इतनी बड़ी राशि यह भी बताती है कि नुकसान कितना गहरा था।
बुरहानपुर के किसानों का यह दर्द केवल एक व्यक्ति की कहानी नहीं, बल्कि हजारों परिवारों की साझा हकीकत है। मई में फसल खराब हुई, फिर 27-28 अगस्त और 16-17 सितंबर को आए आंधी और तूफ़ान ने पीक सीजन की फसल बर्बाद कर दी। सितंबर माह में ही करीब 100 एकड़ में केले की फसल तबाह हो गई। कई किसानों ने सालभर की मेहनत के बाद भी लागत नहीं निकाली।
स्थिति तब और बिगड़ गई जब बाजार में केले के दाम बुरी तरह गिर गए। धीरे-धीरे उत्पादन लागत और बिक्री मूल्य के बीच की खाई इतनी चौड़ी हो गई कि किसानों को मजबूरन सड़कों पर उतरना पड़ा।
नेशनल हॉर्टीकल्चर बोर्ड के मुताबिक मध्य प्रदेश देश का छठवां सबसे बड़ा केला उत्पादक राज्य है, जहां करीब 35,000 हेक्टेयर में खेती होती है। अकेले बुरहानपुर जिले में 25,000 हेक्टेयर में सालाना 17 लाख टन केले का उत्पादन होता है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के ज़रिए 3.39 करोड़ रुपए के मुआवज़े की घोषणा की, लेकिन किसानों का कहना है कि यह स्थायी समाधान नहीं है।
सबसे बड़ी समस्या यह है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत केले की फसल को कोई बीमा नहीं मिलता। इस वजह से प्राकृतिक आपदा आने पर किसानों के पास कोई सुरक्षा कवच नहीं रहता। मौसम की मार से उत्पादन घटा और ट्रांसपोर्ट में रुकावट के कारण पंजाब, हरियाणा और जम्मू-कश्मीर जैसे प्रमुख बाज़ारों में सप्लाई कम हो गई। मांग घटने से अब किसान भारी नुकसान झेल रहे हैं।
किसान संगठनों का कहना है कि सरकार को केले पर 2000 रुपए प्रति क्विंटल की एमएसपी तय करनी चाहिए और भावांतर योजना लागू करनी चाहिए। साथ ही, अगर केंद्र सरकार सभी राज्यों के मिड-डे मील में केले को शामिल कर दे, तो मांग बढ़ेगी और उत्पादन का मूल्य स्थिर रहेगा। कर्नाटक, महाराष्ट्र और तमिलनाडु पहले ही इसकी शुरुआत कर चुके हैं, पर मध्य प्रदेश अब भी प्रतीक्षा में है।
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