देश भर में चल रहे एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिविजन) अभियान ने बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) के लिए जानलेवा संकट खड़ा कर दिया है। 51 करोड़ से ज़्यादा मतदाताओं का डेटा अपडेट करने की जिम्मेदारी इन कर्मचारियों पर इतनी भारी पड़ रही है कि कई अपनी जान गंवा चुके हैं।
27 नवंबर की मीडिया रिपोर्ट्स चौंकाने वाली तस्वीर पेश करती हैं। मध्यप्रदेश में मात्र 22 दिनों में 9 मौतें दर्ज हुईं, जिनमें आत्महत्याएँ भी शामिल हैं। उत्तरप्रदेश में 3 BLOs ने आत्महत्या की और मरने से पहले वीडियो में बताया कि वे काम के दबाव को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे। पश्चिम बंगाल में करीब 9 मौतें हुईं जिनमें 6 आत्महत्याएँ थीं। राजस्थान, केरल में 2-3 और गुजरात में 4 BLOs की मौत हो चुकी है।
समस्या की जड़ में है अत्यधिक कार्यभार। BLOs को घर-घर जाकर वेरिफिकेशन, दावा-आपत्ति और डेटा एंट्री के लिए रोज़ 14-15 घंटे काम करना पड़ता है। ऊपर से अधिकारियों का दबाव और स्थानीय विवाद अलग से तनाव बढ़ाते हैं।
एसआईआर का दूसरा चरण 12 राज्यों में चल रहा है, जिसकी डेडलाइन 4 दिसंबर से बढ़ाकर 11 दिसंबर कर दी गई। लेकिन सवाल यह है कि क्या यह काफी है? क्या इतने बड़े काम के लिए अलग स्टाफ नहीं होना चाहिए?
जब शिक्षक BLO बनकर घर-घर घूमते हैं तो बच्चों को कौन पढ़ाता है? आशा कार्यकर्ता इस काम में लगी रहें तो उनकी मूल जिम्मेदारी कौन निभाए? यह कॉस्ट कटिंग देश की सुविधाओं और BLOs के जीवन पर बहुत महंगी पड़ रही है।
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