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अपनी राग तलाशता मैहर संगीत घराना

अपनी राग तलाशता मैहर संगीत घराना
अपनी राग तलाशता मैहर संगीत घराना

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बीते महीने देश की राजधानी में आयोजित जी-20 सम्मलेन में ज्योति प्रकाश देश और विदेश से आये हुए मेहमानों के सामने अपनी प्रस्तुति देती हैं. वह एक ऐसे यंत्र के ज़रिए सुर साधने की कोशिश करती हैं जो देश के भी अधिकतर लोगों के लिए नया है. छोटी-बड़ी नलियों से बना यह यंत्र नल तरंग है जिसे उस्ताद बाबा अलाउद्दीन खान ने इजाद किया था. उस्ताद अलाउद्दीन खां को संगीत से ताल्लुक रखने वाले लोग अपने कान पर हाथ लगाते हुए उस्ताद बाबा अलाउद्दीन खां कहते हैं. वहीँ इस शहर के लोग उन्हें केवल बाबा कहते हैं. बाबा मैहर संगीत घराने से न सिर्फ ताल्लुक रखते हैं बल्कि इसे संवारने वाले भी वही हैं. बाबा को साल 1958 में पद्म भूषण और फिर 1971 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था. मगर मैहर में अब न बाबा हैं और न उनके जैसे संगीत के साधक.   

Ustad alauddin Khan Maihar

कौन थे बाबा अलाउद्दीन?

बाबा का जन्म मैहर के बजाए साल 1862 में बांग्लादेश के ब्राम्हनबरिया में हुआ. बाबा अलाउद्दीन खान संगीत के क्षेत्र में वह हस्ती थे जिन्होंने पंडित रविशंकर जैसे महान सितार/संतूर वादक को गढ़ा. निखिल बनर्जी, बसंत रॉय, पन्नालाल घोष, हरिप्रसाद चौरसिया, शरन रानी और जोतिन भट्टाचार्य किसी न किसी रूप में मैहर घराने से जुड़े. कोई बाबा का शिष्य हुआ तो कोई उनके किसी शागिर्द का शिष्य. मगर बाबा का परिचय इस तरह से नहीं दिया जा सकता. अलाउद्दीन महज आठ साल की उम्र में अपने घर से कलकत्ता संगीत सीखने के लिए भाग गए. वहां उन्होने सबसे पहले नूलो गोपाल से संगीत की शिक्षा प्राप्त की. इसके बाद उन्होने रामपुर के राज दरबार में सरोद बजाने वाले उस्ताद अहमद अली खान से सरोद सीखा. एक लम्बे संघर्ष के बाद संगीत सीखने के उनकी यात्रा में उन्हें मोहम्मद वज़ीर खान का सानिध्य प्राप्त हुआ. 

अपने तमाम गुरुओं से सीखने के बाद साल 1918 में बाबा मैहर आ गए. यहाँ वह 1972 में अपनी अंतिम साँस तक रहे. इस दौरान उन्होंने पंडित रविशंकर, अन्नपूर्णा देवी और अपने बेटे अली अकबर खां जैसे कई ऐसे शिष्य संगीत की दुनिया को दिए जिन्होंने मैहर घराने की मीनार सारी दुनिया में ऊँची की.

“मैहर घराना असल में मैहर सेनिया घराना है जिसका ताल्लुक ग्वालियर से है.”

भोपाल में स्थित उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के मोईन ग्राउंड रिपोर्ट को जानकारी देते हुए कहते हैं. वह आगे बताते हैं कि अलग-अलग वाद्य यंत्र बजाने वाले जितने बड़े कलाकार मैहर घराने से निकले उतना किसी भी अन्य घराने से नहीं निकले.

संगीत के शहर में अकेलापन भोगती कब्र

Ustad alauddin Khan Maihar

मैहर शहर के अलाउद्दीन तिराहा के पास स्थित ‘मदीना भवन’ वह जगह है जहाँ बाबा रहते और रियाज़ करते थे. बीते 10 सालों से सरोद सीख रहे हिमांशु सैनी बताते हैं कि बाबा हर सुबह इसी घर की छत से पहले त्रिकूट पर्वत पर स्थित शहर के प्रसिद्द शारदा माता मंदिर के दर्शन करते थे और फिर रियाज़ शुरू करते थे. हिमांशु हमें मदीना भवन के अलग-अलग हिस्से की ओर ले जाते हुए बाबा के बारे में बताते हैं. हिन्दू धार्मिक त्यौहार नवरात्रि के गुज़र जाने के बाद भी अलाउद्दीन तिराहा से होकर शारदा माता मंदिर की ओर जाने वाली वाली भीड़ में कोई कमी नहीं आई है. मगर मां का यह साधक मौत के बाद अपने विशालकाय घर में बनी कब्र में अकेलापन भोग रहा है. यहाँ इस दिन हमारे सिवा कोई भी नहीं है. एक महिला ज़रूर है जो शायद मदीना भवन की देख रेख करती है. हिमांशू बताते हैं कि जब बाबा के परिवार के वारिस मैहर आते हैं तो यह घर गुलज़ार रहता है वरना ऐसे ही अकेलापन भोगता है.

शास्त्रीय संगीत में घटती रूचि

“मैहर में शासकीय संगीत विद्यालय तो है मगर यहाँ पढ़ाने वाले योग्य शिक्षक नहीं हैं.” इस महाविद्यालय की एक पूर्व छात्रा नाम न बताने की शर्त पर कहती हैं. उनका मानना है कि मैहर में संगीत की विरासत अब पहले जैसी नहीं रह गई है. “अब नई पीढ़ी क्लासिक के बजाए बॉलीवुड संगीत की ओर ज़्यादा आकर्षित हो रही है.” वह कहती हैं कि मैहर की संगीत विरासत को दोहरा आघात पहुँचा है. “एक ओर सीखने वाले कम हुए है वहीँ दूसरी ओर सिखाने वाले भी नहीं रह गए हैं.” उनका मानना है कि यदि शहार में सिखाने वालों की संख्या बढ़ती है तो लोगों की संगीत में रूचि भी बढ़ेगी.

मैहर का मशहूर बैंड 

रामायण प्रसाद चतुर्वेदी मैहर बैंड में सितार वादक थे फिलहाल वह रिटायर हो चुके हैं. बैंड के बारे में बताते हुए कहते हैं, “मैहर राजपरिवार के लिए जो बैंड बना था वह मैहर बैंड कहलाता था. मगर बाबा के आने के बाद उन्होंने इसे शास्त्रीय संगीत परंपरा में ढाल दिया.” दरअसल मैहर बैंड का इतिहास प्रथम विश्वयुद्ध से जुड़ा हुआ है. साल 1918 में जब विश्वयुद्ध अपने अंतिम चरण में था तब भारत सहित दुनिया के कई देश स्पैनिश फ्लू की चपेट में आ गए. इसी दौरान बाबा अलाउद्दीन खान ने अनाथ हो चुके बच्चों को अपने घर में पनाह दी. बाद में मैहर के राजा बृजनाथ सिंह ने उन्हें रहने के लिए एक स्थान प्रदान किया. यहीं बाबा ने बच्चों के साथ मैहर बैंड के पहले बैच का शुभारम्भ किया. इसके बाद मैहर बैंड ने देश के साथ ही विदेश में भी ख्याति प्राप्त की.

मगर रामायण प्रसाद चतुर्वेदी जैसे कलाकारों के धीरे-धीरे रिटायर हो जाने के बाद बैंड की मौजूदा हालत बेहद दयनीय हो चुकी है. चतुर्वेदी कहते हैं,

“अब बैंड में पुराने लोग नहीं रह गए हैं. जो नए आए हैं वह भी बहुत अनुभवी नहीं हैं. इसलिए बाबा एक ज़माने से लेकर हमारे ज़माने तक बैंड का जो स्तर रहा है वह अब नहीं है.” 

सरकार करेगी मैहर बैंड का पुनर्निर्माण 

सरकार द्वारा बीते अगस्त के महीने में मैहर बैंड को पुनः जीवित करने के लिए मैहर बैंड गुरुकुल की स्थापना करने का फैसला लिया गया है. इस योजना के तहत सरकार छात्रों को गुरुकुल के अंतर्गत सीखने के लिए प्रतिमाह 10 हज़ार की सहायता राशि प्रदान करेगी. वहीँ गुरुओं को 37 हज़ार 500 रूपए दिए जाएँगे. हालाँकि रामायण प्रसाद चतुर्वेदी का मानना है कि मैहर बैंड को पुनः उस स्तर तक लाने के लिए नए के बजाए बहुत सालों से सिखा रहे गुरुओं को बैंड में लाना चाहिए.

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  • Shishir identifies himself as a young enthusiast passionate about telling tales of unheard. He covers the rural landscape with a socio-political angle. He loves reading books, watching theater, and having long conversations.

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