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बीज उत्सव: परंपरागत बीजों की रक्षा का उत्सव

बीज उत्सव: परंपरागत बीजों की रक्षा का उत्सव

भारत डोगरा | स्रोत विज्ञान एवं टेक्नॉलॉजी फीचर्स | कृषि में जैव-विविधता को बचाने की ज़रूरत विश्व स्तर पर महसूस की जा रही है। एक समय जिन फसलों की सैकड़ों किस्में मौजूद थीं, अब उनमें से कुछ ही नज़र आती हैं। यहां तक कि खेती-किसानी के स्तर पर अनेक फसलें तो लुप्तप्राय ही हैं। इस तरह जिन खाद्य व पोषण स्रोतों को किसानों की कई पीढ़ियों ने सैकड़ों वर्षों में एकत्र किया था, उनका ह्रास हाल के दशकों में बहुत तेज़ी से हुआ है।

विश्व स्तर पर बीज सेक्टर पर चंद बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का नियंत्रण बहुत तेज़ी से बढ़ गया है। उनके लिए बीज मोटे मुनाफे का स्रोत हैं तथा वे ऐसे बीज बेचने में रुचि रखते हैं जिनसे उन्हें मोटा मुनाफा हो व साथ में रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों वगैरह की अधिक बिक्री हो। इस तरह स्थानीय किसान समुदायों के जो अपने बीज स्थानीय जलवायु व अन्य स्थितियों के अधिक अनुकूल हैं व जिनके आधार पर सस्ती व आत्म-निर्भर खेती संभव है, उनकी उपेक्षा हो रही है। विशेषकर आदिवासी क्षेत्रों में यह क्षति अधिक गंभीर है क्योंकि उनकी परंपरागत खेती बहुत विविधता भरी रही है। इस खेती के अनेक सार्थक व अति उपयोगी पक्ष हैं जिनसे बहुत कुछ सीखा जा सकता है।

हाल के वर्षों में आदिवासी क्षेत्रों में प्रयासरत अनेक कार्यकर्ताओं ने यहां के विविधता भरे देशी व परंपरागत बीजों की रक्षा का प्रयास आरंभ किया है। राजस्थान, मध्य प्रदेश व गुजरात के मिलन क्षेत्र की आदिवासी पट्टी में बीज-स्वराज के नाम से वागधारा संस्था का प्रयास विशेष तौर पर चर्चित रहा है। संस्था ने पदयात्राएं निकाल कर देशी परंपरागत बीजों का संदेश दूर-दूर के गांवों तक पहुंचाया। अनेक किसानों को देशी बीजों की रक्षा के लिए प्रोत्साहित किया व देशी बीजों के सामुदायिक बैंक भी स्थापित किए।

इसी सिलसिले में हाल ही में जून 2024 में वागधारा ने बीज उत्सव का आयोजन किया। बीज-रक्षा सभाओं का उद्देश्य बीज-रक्षा के महत्व को रेखांकित करना और दुर्लभ होती जा रही प्रजातियों के महत्व के प्रति जागरूकता लाना था। इस उत्सव के अंतर्गत लगभग 90 छोटे स्तर की बीज-रक्षा सभाओं का आयोजन विभिन्न गांवों में किया गया। इन सभाओं में आदिवासी महिला किसानों की भागीदारी विशेष तौर पर उत्साहवर्धक रही। विभिन्न जन-सभाओं में मौटे तौर पर 5 से 15 गांवों से 50 से 100 किसान एकत्र हुए। इस तरह इस उत्सव में लगभग 1000 गांवों के किसानों की भागीदारी हुई।

बीज-रक्षा सभाओं में आने वाले कुछ किसान अपने साथ कुछ बीज भी लेकर आए थे। जिनमें दुर्लभ हो रहे बीजों पर अधिक महत्व दिया गया। जब वे बीज-रक्षा सभा से लौटे तो अपने साथ उन बीजों को लेकर गए जिनकी उन्हें ज़रूरत थी। इस तरह बहुत सहज रूप से विभिन्न किसानों में परंपरागत देशी बीजों का आदान-प्रदान हो गया।

बीज उत्सव का आयोजन ऐसे वक्त हुआ जब खरीफ की फसल की दृष्टि से यह आदान-प्रदान विशेष उपयोगी था। (स्रोत फीचर्स) 

इस लेख में छपे विचार लेखक के निजी विचार हैं, एकलव्य या ग्राउंड रिपोर्ट का इनसे सहमत होना आवश्यक नहीं है। 

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Pallav Jain

Pallav Jain

Pallav Jain is an environmental journalist and co-founder of Ground Report Digital, an independent environmental media organization based in Madhya Pradesh, India. Operating from Sehore city, he has dedicated his career to reporting on critical environmental issues including renewable energy, just transition, pollution, and biodiversity through both written and visual media.View Author posts