मध्य प्रदेश, जिसे देश का ‘टाइगर स्टेट’ कहा जाता है, अब इस पहचान को लेकर गंभीर सवालों के घेरे में है। वजह है, इस साल अब तक राज्य में कम से कम 46–48 बाघों की मौत दर्ज की जा चुकी है, जो 2025 में किसी भी राज्य के मुकाबले सबसे ज़्यादा है। इस साल हुई बाघों की मौतें पिछले साल की संख्या को पहले ही पार कर चुकी हैं। नेशनल टाइगर कंज़र्वेशन अथॉरिटी (NTCA) के अनुसार, इस साल देशभर में बाघों की मौत का आंकड़ा 103 है, जिसमें अकेले मध्य प्रदेश का हिस्सा लगभग आधा है।
बाघों की ताज़ा मौतें और शिकार की आशंकाएं फिर चर्चा में
पिछले दो महीनों में ही मध्य प्रदेश ने आठ बाघ खो दिए हैं। इनमें सतपुड़ा, कान्हा और संजय डुबरी जैसे प्रमुख रिज़र्व शामिल हैं। सतपुड़ा टाइगर रिज़र्व में अगस्त में एक बाघ का शव बैकवॉटर से मिला था। फ्री प्रेस जर्नल की रिपोर्ट के मुताबिक संजय डुबरी में नवंबर की शुरुआत में एक बाघ को टुकड़ों में काटकर तालाब में फेंक दिया गया था। इस मामले में कई आरोपियों को गिरफ्तार किया गया है। हालांकि शुरुआत में स्थानीय अफसरों ने इसे “जंगली सूअर के जाल में फंसने से हुई आकस्मिक मौत” बताया था।
वहीं NTCA के मॉर्टैलिटी डैशबोर्ड के मुताबिक, अक्टूबर से कान्हा टाइगर रिज़र्व में मौतों का एक सिलसिला दिखा, जहां कुछ ही दिनों में चार बाघ मारे गए हैं। इनमें शावक और एक प्रमुख नर बाघ शामिल था जो इलाके की लड़ाई (टेरिटोरियल फाइट) में मारा गया था। यह घटनाएं एक ओर शिकार के खतरे को दिखाती हैं, तो दूसरी ओर बाघों के बीच बढ़ते इलाकाई संघर्ष को भी।
जांच रिपोर्टें और सिस्टम की खामियां
मध्य प्रदेश में बाघ सुरक्षा को लेकर सिस्टम की नाकामी पर चिंता तब और बढ़ गई जब एक विशेष जांच दल (SIT) ने 2021 से 2023 के बीच बांधवगढ़ टाइगर रिज़र्व और शहडोल फॉरेस्ट सर्कल में हुई 43 मौतों की जांच की।
रिपोर्ट में कई गंभीर बातें सामने आईं हैं जैसे कई मामलों में कमजोर जांच, कई शवों से गायब अंग, सबूत इकट्ठा करने में लापरवाही और अधिकारियों की जवाबदेही की कमी। इससे यह सवाल उठे कि कितनी “प्राकृतिक” या “अज्ञात कारणों” वाली मौतें असल में शिकार या लापरवाही के मामलों को छिपा रही हैं।
राष्ट्रीय स्तर पर, NTCA के विश्लेषण से पता चलता है कि जहां उम्र या इलाकाई संघर्ष जैसी प्राकृतिक वजहें बड़ी भूमिका निभाती हैं, वहीं काफी मौतें शिकार, करंट, ज़हर और रिज़र्व से बाहर के हादसों से जुड़ी हैं।
NTCA का टाइगर मॉर्टैलिटी पोर्टल, जिसमें हर मामले की तारीख, जगह और शुरुआती वजह दर्ज होती है, अब नागरिक समूहों के लिए प्रमुख स्रोत बन गया है ताकि वे मध्य प्रदेश जैसे उच्च जोखिम वाले राज्यों की स्थिति पर निगरानी रख सकें।
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