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MSP पर सोयाबीन का उपार्जन लक्ष्य से 70 फीसदी पीछे, क्या हैं कारण?

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MSP पर सोयाबीन का उपार्जन लक्ष्य से 70 फीसदी पीछे, क्या हैं कारण?
MSP पर सोयाबीन का उपार्जन लक्ष्य से 70 फीसदी पीछे, क्या हैं कारण?

देशभर में सोयाबीन किसानों के विरोध प्रदर्शन के बाद केंद्र सरकार ने 25 साल बाद एमएसपी (मिनिमम सपोर्ट प्राईस) पर सोयाबीन के उपार्जन का फैसला लिया था। उपार्जन का कार्य कई राज्यों में अंतिम दौर में है तो मध्य प्रदेश में 2 जनवरी इसके लिए आखिरी ताऱीख थी। लेकिन किसान अपनी फसल एमएसपी पर बेचने में असफल रहे हैं इसकी तस्दीक NAFED नैशनल एग्रीकल्चरल कॉपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया) से प्राप्त आंकड़े करते हैं। इस वर्ष देशभर में सोयाबीन का उपार्जन लक्ष्य से 70 फीसदी तक कम है। 

उपार्जन लक्ष्य से मध्यप्रदेश 30 तो भारत 76 फीसदी पीछे  

मध्यप्रदेश सोयाबीन के उत्पादन के मामले में आमतौर पर शीर्ष स्थान पर ही रहा है। इसी ट्रेंड को देखते हुए जब देश भर में 25 साल बाद एमएसपी पर सोयाबीन के उपार्जन का फैसला हुआ तो केंद्र सरकार द्वारा मध्यप्रदेश में सर्वाधिक संग्रहण का लक्ष्य रखा। कुछ राज्यों को अपवाद के रूप में छोड़ दिया जाए तो देश और लगभग सभी राज्य अपने संग्रहण लक्ष्य से काफी पीछे हैं। 

केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश के लिए 13.68 लाख टन सोयाबीन के संग्रहण का लक्ष्य रखा था। राज्य में एमएसपी पर सोयाबीन के खरीद की प्रक्रिया 25 अक्टूबर 2024 को शुरु हुई और 2 जनवरी 2025 को समाप्त हो गई। इस अवधि में 3 लाख टन सोयाबीन का ही संग्रहण हो पाया है। कुल मिलाकर मध्यप्रदेश अपने संग्रहण टारगेट से लगभग 29 फीसदी पीछे है। 

मध्यप्रदेश के अलावा देश के अन्य सोया राज्यों की स्थिति भी कमोबेश ऐसी ही है। यहां तेलंगाना को अपवाद माना जा सकता है, जो अपने लक्ष्य से सिर्फ 6,916 टन पीछे है। तेलंगाना से इतर बांकी के राज्यों में लक्ष्य और वास्तविक संग्रहण के बीच एक बड़ा फासला है। वहीं अगर इस विषय को भारत के कुल संग्रहण के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो भारत में अब तक 8.12 लाख टन सोयाबीन का ही संग्रहण हो पाया है, जबकि भारत का लक्ष्य 33.85 लाख टन का है।

मौसमी अनियमितता ने बिगाड़ा खेत, खलिहान, और बाजार 

मध्यप्रदेश के किसान सोयाबीन की कीमतें बढ़ाने को लेकर लगातार शिकायत और विरोध प्रदर्शन कर रहे थे। किसानों की मांग थी सोयाबीन की खरीद एमएसपी पर की जाए और कीमत कम से कम 6000 रु. प्रति क्विंटल निर्धारित की जाए। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने भी इस मामले पर न्याय यात्रा निकालकर सरकार पर दबाव बनाने का काम किया। यह घटनाक्रम सितंबर माह के शुरूआती सप्ताह का है। इस दौरान अप्रत्याशित और लंबी बारिश की वजह से किसानों की फसलें प्रभावित हो रही थीं और उन पर खरपतवार इत्यादि का अतिरिक्त खर्च भी आ रहा था।  

 

इन्हीं घटनाओं को देखते हुए मध्यप्रदेश की कैबिनेट ने केंद्र सरकार के पास एमएसपी पर सोयाबीन की खरीद का प्रस्ताव भेजा। इस प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने सोयाबीन की एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर खरीद की  दे दी थी। मंजूरी

सितंबर माह में ही सोयाबीन के लिए समर्थन मूल्य 4892 रूपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया। साथ ही सितंबर 2024 के आखिरी सप्ताह में ही किसानों के लिए बिक्री हेतु पंजीयन शुरू कर दिया गया था, जिसमें प्रदेश के 3 लाख 44 हजार किसानों ने पंजीयन किया था। सफल उपार्जन सुनिश्चित करने के लिए प्रदेश भर में सोयाबीन की खरीद के लिए 1400 उपार्जन केंद्र निर्धारित किये गए। 

अंततः 25 अक्टूबर 2024 से 2 जनवरी 2025 तक सोयाबीन के लिए बिक्री की समय सीमा भी तय की गई। लेकिन तब तक मौसम सोयाबीन पर अपना कहर बरपा चुका था। मौसमी मार की वजह से सोयाबीन की यह फसल मात्रा में बेहद कम और गुणवत्ता में काफी खराब थी। 

क्या है सोयाबीन के सीमित संग्रहण के पीछे के कारण 

मध्यप्रदेश का मालवा क्षेत्र सोयाबीन की बम्पर उपज के लिए मशहूर रहा है। लेकिन इस वर्ष अनिश्चित मौसमी घटनाओं की वजह से मालवा, मुख्यतः सीहोर और नीमच जैसे क्षेत्र में सोयाबीन का उत्पादन बेहद सीमित रहा है। 

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लगातार हुई बारिश से लबालब सोयाबीन के खेत। स्त्रोत: ग्राउंड रिपोर्ट 

सितंबर माह के अंत में लगातार बारिश होने की वजह फसल में रोग लग गए, इससे फसल को बचाने के लिए किसानों ने जो खरपतवार डाले वे भी पत्तियों पर बारिश की वजह से नहीं टिक पाए। 

हमने सीहोर, भोपाल और देवास जिले के कई किसानों से बात की। बारिश की वजह से सभी का उत्पादन औसतन 8 क्विंटल प्रति एकड़ से गिरकर 1 एकड़ प्रति क्विंटल पर आ गया था। इसके साथ ही जो सोयाबीन उत्पादित हुआ उसका स्टैंडर्ड सरकार द्वारा एमएसपी पर खरीद के लिए तय किये गए मानकों के मुताबिक नहीं था। ऐसे में किसानों ने सरकार की जगह फसल निजी व्यापारियों को ही बेच दी। 

सीहोर के थूना गांव के किसान मनोहर पटेल को 6 एकड़ से 8 क्विंटल सोयाबीन उत्पादित हुआ। इस 6 क्विंटल सोयाबीन की भी गुणवत्ता इस लायक नहीं थी कि वे इसे एमएसपी पर बेच सकें। वो कहते हैं

हमने 3800 रु. प्रति क्विंटल में अपनी फसल निजी व्यापारियों को बेची है। अब जब कुछ उत्पादन ही नहीं हुआ है तो क्या मंडी ले जाकर एमएसपी पर फसल को बेचें। 

क्या थे सरकार द्वारा तय किये गए मानक?

दरअसल सरकार जब भी किसानों से अनाज खरीदती है, अनाज की गुणवत्ता के लिए कुछ मानदंड निर्धारित करती है। सोयाबीन के लिए निर्धारित मानकों के अनुसार, विजातीय पदार्थ और अशुद्धियाँ 2%, सिकुड़ी, फीकी और अपरिपक्व फलियां 5%, घुन लगी हुई फलियां 5%, और नमी की मात्रा 12 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चहिये थीं। 

लेकिन मौसमी घटनाओं से प्रभावित प्रदेश के किसानों की सोयाबीन इन मानकों पर खरी नहीं उतर रही थी। हमने कृषि उपज मंडी में अपनी फसल बेंचने आए किसानों से बात की। किसानों ने बताया कि सीहोर कृषि उपज मंडी में ख़राब गुणवत्ता की सोयाबीन के मात्र 2800 रु. बस मिल रहे हैं। ऐसे में किसानों की अपेक्षा थी कि इन नियमों में थोड़ी ढील दी जाए ताकी उनकी फसल भी उचित दामों में बिक सके। 

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बारिश से प्रभावित सोयाबीन की फसल। स्रोत: ग्राउंड रिपोर्ट 

हालंकि इन शर्तों में थोड़ी दी भी गई। मसलन नमी की सीमा को 12 प्रतिशत से बढाकर 15 प्रतिशत किया गया। लेकिन यह प्रयास भी अपर्याप्त रहा क्यूंकि किसानों की फसलें बड़े पैमाने पर प्रभावित हुईं थीं। 

इसके अतिरिक्त तकनीकी खामियां भी कई किसानों की राह में रोड़ा बनीं। दरअसल पंजीकृत किसान को अपने निकटतम खरीद केंद्र में बिक्री के लिए स्लॉट बुक करना होता है, लेकिन मध्यप्रदेश इ-उपार्जन की वेबसाइट में उपयोगकर्ताओं को तकनीकी दिक्क्तों का सामना करना पड़ा।

सीहोर के जमुनिया गाँव के किसान नवदीप पहले ही बिक्री की कड़ी शर्तों और खराब फसल को लेकर निराश थे। तकनीकी खराबियों नवदीप की परेशानी और बढ़ा दीं। अपने अनुभव साझा करते हुए नवदीप कहते हैं कि,

एक तो इनकी शर्तें इतनी कड़ी है और इनकी साइट चल नहीं रही है। हम पिछले चार दिनों से स्लॉट बुक करने का प्रयास कर रहे है लेकिन स्लॉट बुक नहीं हो रहा है। 

दूसरी ओर कृषि उपज मंडी प्रशाशन भी सोयाबीन की सरकारी मंडी में सीमित बिक्री से हैरान था। सीहोर कृषि उपज मंडी के सचिव नरेंद्र कुमार माहेश्वरी को उम्मीद थी की किसान मंडी में बड़े पैमाने पर अपना माल बेचेगा लेकिन ऐसा नहीं हुआ। हालांकि माहेश्वरी इसके पीछे की वजह कुछ और मानते हैं। माहेश्वरी बताते हैं, 

किसान अपना दागी और हल्का माल ही बेंचना आ रहा है। किसान ने अच्छा माल रोक कर रखा है और वह इसे एमएसपी पर भी नहीं बेचना चाह रहा है। किसान सोच रहा है जब सोयाबीन का दाम 6000 रु. (प्रति क्विंटल) हो जाएगा वह उसे तब बेचेगा। 

अब जबकि मध्यप्रदेश में सोयाबीन की बिक्री बंद हो चुकी है, और महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना में भी यह जनवरी के तीसरे सप्ताह तक बंद हो जाएगी। गौरतलब है की भारत में सोयाबीन संग्रहण लक्ष्य से लगभग 76 फीसदी कम हुआ है। अब जबकि अधिकांश राज्यों में एमएसपी पर खरीद समाप्ति के कगार पर है, ऐसे इस लंबे फासले तय करना मुश्किल दीख पड़ता है।  

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  • Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.

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