नोट – इस खबर में आत्महत्या का विवरण शामिल है।
शुक्रवार, 7 नवंबर 2025, राजस्थान से लगे हुए मध्य प्रदेश के श्योपुर में धान के सीजन के बावजूद फसल की आवक कम है। किसान संगठन भारतीय किसान संघ द्वारा आज बंद का आह्वान किया गया है। हालांकि मुख्य बाज़ार में इसका असर न के बराबर है। मगर लगभग 100 किसान नारे लगाते हुए कलेक्ट्रेट की ओर मार्च कर रहे हैं। सभी किसान कलेक्ट्रेट के गेट के सामने जमा हो जाते हैं और नारों का शोर बढ़ता जा रहा है।
इससे 9 दिन पहले 29 अक्टूबर को जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर सिरसोद गांव में कैलाश मीणा नाम के एक 50 वर्षीय किसान ने आत्महत्या कर ली। वह लगभग 7 बीघा में खेती करते थे। उनके बेटे बनवारी कहते हैं कि कैलाश बुधवार सुबह 7 बजे खेत में गए थे लगभग 2 घंटे बाद उनके खेत के पास ही काम कर रहे ग्रामीण ने उनके पिता की मृत्यु की सूचना दी। ग्रामीण जब वहां पहुंचे तो कैलाश का शव खेत में ही मौजूद एक पेड़ से लटका हुआ था।
घटना के बाद दैनिक भास्कर में प्रकाशित खबर में आत्महत्या का कारण बारिश के कारण फसल ख़राब होना बताया गया है। उनके बेटे बनवारी मीणा अपने पिता की मृत्यु से अब तक सदमे में हैं। वह घर के सामने वाले चबूतरे के कोने में शांत बैठे हुए हैं। आत्महत्या का कारण पूछने पर वह सिर्फ इतना कहते हैं कि उनके पिता परेशान थे। हालांकि उनके रिश्तेदार रामलखन मीणा (बल्लू) कहते हैं कि 25-26 अक्टूबर के बाद हुई बारिश के बाद क्षेत्र का हर किसान अपनी फसल ख़राब होने के चलते परेशान है।

स्थानीय कलेक्टर द्वारा कैलाश मीणा के परिवार को 2 लाख रूपए की मुआवजा राशि दी गई है। स्थानीय कांग्रेस विधायक बाबू जंडेल और एक अन्य स्थनीय नेता द्वारा एक-एक लाख रूपए की राहत राशि दी गई है। साथ ही परिवार को सीएम राहत कोष से 15 लाख रूपए की अतिरिक्त राशि और मृतक की पुत्रवधु को सरकारी नौकरी देने का आश्वासन भी दिया गया है।
मगर दूसरी ओर जिले के बाकी किसान जिनकी धान की फसल बारिश के बाद ख़राब हो चुकी है उनके लिए अब तक कोई राहत पैकेज का ऐलान नहीं किया गया है। स्थानीय कृषि विबह्ग के कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार बारिश के चलते 429 गांव प्रभावित हुए हैं। इस सभी गांवों में नुकसान का सर्वे किया जा रहा है।
कलेक्ट्रेट के बाहर प्रदर्शन कर रहे किसानों का कहना है कि सर्वे को जल्द पूरा किया जाए और 100% नुकसान मानते हुए किसानों को मुआवजा दिया जाए। किसान मंडी में धान के दाम पर भी चिंता जता रहे हैं। उनका कहना है कि हालिया नुकसान के बाद किसान क्रेडिट कार्ड का क़र्ज़, सहकारी बैंक से लिया क़र्ज़ और बकाया बिजली बिल चुकाना मुमकिन नहीं है इसलिए प्रशासन इसे भी माफ़ कर दे।
कैलाश मीणा की मौत के 3 दिन पहले रविवार, 26 अक्टूबर को केवल 9 घंटे में ही जिले में 2 इंच बारिश दर्ज की गई। ग्रामीणों के अनुसार तेज़ हवा के साथ हुई इस बारिश के चलते धान के खेतों में पानी भर गया जिससे पककर तैयार हुई फसल खेतों में ही बिछ गई। 5 नवंबर को जब हम सिरसोद पहुंचे तब भी ग्रामीणों के खेत में पानी भरा हुआ था। सिरसोद के रामलखन मीणा 35 बीघा में केवल धान की फसल ही उगाते हैं। वह लगभग 15 साल से धान की खेती कर रहे हैं। वह कहते हैं,
“बारिश के महीनों में फसल खराब होती तो समझ भी आता। लेकिन कार्तिक के महीने (23 अक्टूबर से 21 नवंबर 2025) में फसल कभी ख़राब नहीं हुई।”

हालांकि वह यह ज़रूर कहते हैं कि अगस्त 2021 में आई बाढ़ से उन्हें इसी तरह का नुकसान हुआ था। 13 सदस्यीय परिवार का भरण पोषण करने वाले रामलखन कहते हैं कि उनके लिए यही मुख्य फसल है जिसको बेचकर वह अपना क़र्ज़ चुकाते हैं। हालांकि वह इस बात की साफ़-साफ़ जानकारी नहीं देते कि उनके ऊपर कितना क़र्ज़ है। वह कहते हैं,
“किसान क्रेडिट कार्ड, सहकारी सोसाइटी, बिजली का तो कर्ज है ही। मुझे एक ट्रैक्टर और एक गाड़ी की भी किश्त दिसंबर में देनी है। अब यह सब कैसे होगा मुझे नहीं पता। पेट पालना नहीं होगा बिल कहां से चुकाएंगे?”
रामलखन ने एक बीघा में औसतन 15000 रूपए की लागत लगाई थी। इस तरह अपने 35 बीघा के खेत में उन्होंने अनुमानतः 5 लाख 25 हज़ार रूपए निवेश किए थे। हमने देखा कि उनका खेत पानी से भरा हुआ है। खेत में मौजूद हैण्डपम्प से भी लगातार पानी निकल रहा है। ऐसे में लगभग 10 दिनों तक खेत दलदला होने के कारण बची हुई फसल की कटाई भी मुश्किल हो गई है। खेतों में मशीन उतर नहीं सकती इसलिए मजदूरों को ज्यादा पैसे देकर फसल निकलवानी पड़ेगी। वह कहते हैं कि ऐसी कटाई में एक बीघा में 5000 रूपए का अतिरिक्त खर्च आएगा।
मानपुर पंचायत के रामेश्वर गांव के बल्लू ने 24 तारीख़ को अपने 18 बीघा में से 7 बीघा धान काटकर खेत में ही रख ली थी। वह इसे बेचने के लिए कुछ ही दिनों में मंडी ले जाने वाले थे. मगर 25-26 की दरमियानी रात आई बारिश में उनका यह धान भी ख़राब हो गया। अब पानी के चलते यह धान भी अंकुरित हो गया है। बाकी 11 बीघा धान भी पानी में डूबी हुई है।
आमतौर पर इस समय तक खेतों से धान कटकर मंडी पहुंच चुका होता है। मगर बारिश के चलते धान की कटाई और उसी के चलते रबी के सीजन में गेहूं की बोवाई भी लेट हो गई है। किसान कहते हैं कि इसका सीधा असर उनकी रबी के फसल के उत्पादन पर पड़ेगा।

किसानों को हुए इस नुकसान पर श्योपुर कलेक्टर अर्पित वर्मा ग्राउंड रिपोर्ट से बात करते हुए कहते हैं, “हमने पहले दिन से ही सभी प्रशासनिक अमले को फील्ड पर उतार दिया था। भरी बारिश के बीच मैं खुद फील्ड पर था।”
हालांकि किसान मुआवज़ा मिलने में हो रही देरी पर सवाल उठा रहे हैं। किसानों का कहना है कि हाल ही में मूंग की फसल ख़राब होने पर भी इसी तरह सर्वे किया गया था मगर उसका मुआवज़ा अब तक किसानों को नहीं मिला। वर्तमान मुआवजे की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए बल्लू कहते हैं कि अब तक उनके खेत में कोई भी पटवारी सर्वे करने नहीं पहुंचा है।
स्थानीय कलेक्टर कार्यालय से सामने प्रदर्शन कर रहे भारतीय किसान संघ के जिला अध्यक्ष नरेंद्र सिंह चौधरी कहते हैं,
“नुकसान के 10 दिन बाद भी अब तक सर्वे ही किया जा रहा है। सोयाबीन और मूंग की क्षति का मुआवजा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुका है। अब किसानों को आशंका है कि इस आपदा के बाद भी या तो मुआवजा भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाएगा या फिर प्रशासन खानापूर्ति करता रह जाएगा।”
हालांकि प्रदर्शन कर रहे किसानों से बात करते हुए कलेक्टर ने बताया कि उनके द्वारा राजस्व पुस्तक परिपत्र 6-4 के अनुसार मुआवजे का प्रस्ताव भेज दिया गया है। उन्होंने बताया कि पटवारियों द्वारा क्षतिपत्र बनाए जा रहे हैं जिसके बाद मुआवजा वितरण की प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।

इस बीच किसान अपनी फसल मंडी में बेंचना शुरू कर चुके हैं। मगर किसानो का आरोप है कि उन्हें फसलों के बेहद कम दाम मिल रहे हैं। धर्मेन्द्र रावत श्योपुर तहसील के रन्नौद गांव से अपनी फसल बेचने श्योपुर कृषि उपज मंडी आए हैं। 6 नवंबर 2025 को उनकी एक ट्रॉली (लगभग 40 क्विंटल) धान की कीमत 1500 रु प्रति क्विंटल मिली है। जबकि प्रदेश में धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य ही 2369 रूपए है। रावत कहते हैं कि एक बीघा में औसतन 10 क्विंटल धान होता है जिसकी लागत 15 हज़ार रुपए प्रति बीघा आती है। उन्हें जो रेट मिला है उससे उनकी अनुमानित लागत के बराबर तो खर्च निकल जाएगा मगर इससे उनको कोई मुनाफा नहीं होगा।
मंडी में आए हुए किसान बताते हैं कि हर साल उन्हें औसतम 3100 रूपए प्रति क्विंटल धान का दाम मिलता था। मगर इस साल फसल ख़राब होने के कारण रेट में गिरावट आई है। लगभग सभी किसानों का कहना है कि धान की बोली 500 रूपए प्रति क्विंटल से शुरू की जा रही है।
यहां किसान जिस भाव का ज़िक्र कर रहे हैं वह 3 नवंबर को नागदा तहसील के हसनपुरा के किसान सत्यनारायण राव की फसल को मिला है। श्योपुर मंडी के अधिकारी हमें इस फसल का सैम्पल दिखाते हुए बताते हैं कि चूंकि संबंधित व्यापारी की फसल पूरी तरह पानी में भीगी हुई थी इसलिए उसे इसका यह रेट मिला है। मंडी प्रांगण के सहायक प्रभारी सूरज सिंह ने हमें बताया कि एक व्यापारी के अलावा सभी व्यापारियों को 1500 (प्रति क्विंटल) या उससे अधिक ही भाव मिला है।
श्योपुर मंडी इस क्षेत्र की प्रमुख धान मंडी है। अप्रैल से अक्टूबर 2025 तक के आंकड़ों के अनुसार अब तक मंडी में कुल 3,08,947 क्विंटल धान की आवक हो चुकी है। क्या हालिया आपदा से मंडी की आवक पर कोई असर पड़ेगा? इस सवाल का जवाब देते हुए सिंह कहते हैं कि चूंकि यहां आस-पास के क्षेत्र से भी धान आती है इसलिए आवक पर इसका असर न के बराबर ही होगा।

नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की हाल ही में जारी रिपोर्ट के अनुसार 2023 में देश में कृषि क्षेत्र से जुड़ी कुल 10,786 आत्महत्याएं हुई हैं। इनमें 4,690 आत्महत्याएं किसानों ने जबकि 6,096 आत्महत्याएं कृषि श्रमिकों ने की हैं। जबकि मध्य प्रदेश में 2023 में 94 किसानों ने आत्महत्या की है।
अगर इन आंकड़ों को 2022 के आंकड़े से तुलना करें 2023 में कृषि क्षेत्र में आत्महत्या के मामले कम हुए हैं। 2022 में भारत में कृषि क्षेत्र से जुड़े हुए कुल 11,290 लोगों ने आत्महत्या की। इसमें 5,207 कृषक शामिल थे। हालांकि मध्य प्रदेश के आंकड़ों में कुछ ख़ास बदलाव नहीं आया है क्योंकि 2022 में 92 कृषकों ने आत्महत्या की थी।

कैलाश के बेटे बनवारी अब तक खेत में अपना पूरा समय नहीं देते थे। अब सारी ज़िम्मेदारी उन पर ही आ गई है। उनके पिता ने हाल ही में 2.5 लाख रूपए का क़र्ज़ किसान क्रेडिट कार्ड के माध्यम से लिया है। इसके अलावा उनके परिवार पर कितना क़र्ज़ है इसका उनको कोई अंदाज़ा नहीं है। हमने पूछा कि अगर फसल अच्छी होती तो वो क्या करते? सवाल पूरा होने से पहले ही वह जवाब देते हैं, “क़र्ज़ चुकाते।” अब जब फसल ख़राब हो चुकी है तो कैसे क़र्ज़ चुकाएंगे? इस सवाल के जवाब में वो कुछ नहीं कहते।
विधायक की मांग है कि अगर प्रशासन जल्द सर्वे पूरा कर जिले के सभी प्रभावित किसानों को मुआवजा नहीं देगा तो वह इसके खिलाफ भोपाल तक ट्रैक्टर मार्च निकालेंगे। वहीं किसानों की समस्या के स्थाई समाधान के लिए भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के प्रदेश प्रवक्ता अनिल सिंह सी2+50% फ़ॉर्मूले पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) तय करने की बात करते हैं। वह कहते हैं कि किसान को उसकी लागत से 50% अधिक दाम मिलना चाहिए। साथ ही वह एमएसपी पर खरीदी को अनिवार्य करने की मांग दोहराते हुए कहते हैं कि सरकारी ख़रीदी के लिए प्रदेश के किसान पंजीयन तो करवाते हैं मगर 15 दिन ही खरीद होती है जिससे सभी किसान इस बिक्री में हिस्सा नहीं ले पाते।
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