सीहोर के किसान एक बार फिर से सड़क पर हैं और इस बार इसकी वजह है फसल बीमा योजना। लगातार 5 साल से प्राकृतिक आपदा के कारण सोयाबीन की फसल चौपट हो रही है। लेकिन अब तक उन्हें प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना का सही लाभ नहीं मिल पाया। किसानों का आरोप है कि बैंक हर साल उनके खातों से बीमा प्रीमियम की कटौती जरूर कर लेते हैं, मगर जब फसलें बर्बाद होती हैं तो बीमा कंपनियां या तो कोई मुआवज़ा नहीं देतीं या फिर ऊंट के मुंह में जीरा जितनी ही राशि किसानों को थमा देती हैं।
इस समस्या को सरकार के सामने रखने के लिए सीहोर के किसानों ने विरोध के अनोखे रास्ते चुने हैं। सीहोर के छापरी और संग्रामपुर गांवों में किसान पेड़ों पर चढ़कर घंटियों की आवाज़ के जरिए सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश कर रहे हैं। चंदेरी, रामखेड़ी और कुलास खुर्द गांव में महिलाएं खेतों से निकली खराब सोयाबीन की बालियां हाथ में लेकर नारेबाज़ी कर रही हैं। वहीं कुलांस कलां, ढाबला और उलझावन में किसान पहले भी नदी में उतरकर जल सत्याग्रह कर चुके हैं, लेकिन अब तक नतीजा सिफर ही निकला है।
समाजसेवी एम.एस. मेवाड़ा के नेतृत्व में किसान लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं। उनका कहना है कि जब चुनाव आते हैं तो सरकार किसानों को याद करती है, लेकिन असली संकट के समय उन्हें अकेला छोड़ दिया जाता है। हालात यह हैं कि कई लोगों को बच्चों को भूखा सुलाना पड़ रहा है। किसानों का कहना है कि इतनी बड़ी तबाही के बाद भी मुआवज़े के नाम पर सिर्फ 1000-1100 रुपए मिले, जो उनके घाव पर नमक छिड़कने जैसा है।
दूसरी तरफ कृषि विभाग, सीहोर का दावा है कि स्थिति जल्द सुधर जाएगी। विभाग के एडीए अनिल जाट ने बताया कि वर्ष 2024 की खराब फसलों का बीमा राशि विभाग के पास आ चुकी है और आने वाले एक-दो दिनों में यह पैसा किसानों के खातों में ट्रांसफर कर दिया जाएगा।
लेकिन किसानों का भरोसा इससे नहीं जुड़ पा रहा। उनका कहना है कि बीमा योजना किसानों के लिए सुरक्षाकवच नहीं, बल्कि बोझ बन गई है। बैंक प्रीमियम की कटौती नियमित रूप से कर लेते हैं, कंपनियों का मुनाफा बढ़ता है, और नुकसान की मार किसानों पर ही टूटती है। यही कारण है कि प्रदर्शनकारियों ने चेतावनी दी है कि यदि उन्हें जल्द बीमा योजना का सही लाभ नहीं मिला तो वे और बड़ा तथा उग्र आंदोलन करेंगे। साथ ही उनका यह भी कहना है कि अगर सरकार राहत नहीं दे सकती तो कम से कम बीमा प्रीमियम की वसूली बंद कर दी जानी चाहिए।
सीहोर से इतर बांकी जिले के किसानों की समस्या है कि उन्हें अब तक फसल बीमा योजना की कोई राशि ही नहीं मिली है। रायसेन जिले के औबेदुल्लागंज के किसान पवन नागर ग्राउंड रिपोर्ट से बताते हैं कि, उन्हें अभी तक बीमा की कोई राशि प्राप्त नहीं हुई है। पवन के खाते से बीमा की किस्तें तो नियमित रूप से काट ली जा रही है। लेकिन तीन साल से बीमा की कोई भी राशि उन्हें नहीं मिली है। ठीक ऐसी ही स्थिति भोपाल जिले के मुंगालिया छाप गांव के किसान रामविलास पाटीदार की है। रामविलास को आखिरी बार 5 साल पहले यानि वर्ष 2020 में बीमा की राशि मिली थी।
भारत में 70 प्रतिशत ग्रामीण परिवार खेती पर निर्भर हैं, ऐसे में फसल बीमा किसानों के लिए सहारा होना चाहिए। लेकिन जमीनी हकीकत अलग है। किसान को भुगतान तो मिलता है, पर बहुत देर से। इससे बीमा का फायदा खत्म हो जाता है।
सीहोर जिले के नीलबड़ गांव के 85 वर्षीय करन सिंह ग्राउंड रिपोर्ट से कहते हैं,
फसल बीमा सिर्फ नाम का है। हमें आज तक कोई लाभ नहीं मिला। पहले नुकसान पर तुरंत मुआवज़ा मिलता था, जिससे अगली फसल बो पाते थे। अब बीज और खर्च के लिए कर्ज लेना पड़ता है।
आदर्श तौर पर जैसे कार का, घर का बीमा होता है तब क्षति होने के बाद जल्द से जल्द ही बीमा राशि प्रदान कर दी जाती है। लेकिन दुर्भाग्य से फसल बीमा के मामलों में ऐसा नहीं होता है। किसानों 4-5 सालों तक बीमा राशि का इंतज़ार करते रहते हैं। कई बार उनकी फसल पूरी तरह बर्बाद हो जाती है, और उनके पास अगली बुआई के लिए पर्याप्त पैसे नहीं होते हैं। ऐसी सूरत में उन्हें कर्ज लेना पड़ता है। अगर उनकी अगली फसल भी बर्बाद होती है तो वे कर्ज के दुष्चक्र में फंसते जाते है। जिस प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की किश्तें उनके खाते से नियमित रूप से कटती जाती है, जरूरत में वे उनके किसी काम नहीं आ पाती हैं।
प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की जटिल प्रक्रिया, अपारदर्शिता और राशि वितरण में होने वाली सालों साल की देरी जैसी समस्याओं को ग्राउंड रिपोर्ट ने विस्तार से कवर किया है जिन्हे आप हमारी वेबसाइट पर पढ़ सकते हैं।
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