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पानी को तरसते Samasgarh के आदिवासी, हैंडपंप से आता है लाल पानी

भोपाल से 24 किलोमीटर दूर फंदा के अंतर्रगत आने वाले समसगढ़ गांव (Samasgarh Village) में आदिवासी समुदाय के लोग कई पीढ़ियों से रह रहे हैं। मध्यप्रदेश की राजधानी के करीब होने के बावजूद यहां आदिवासी समुदाय मूलभूत ज़रुरतों के अभाव में गुज़र बसर कर रहे हैं।

30 वर्षीय मंजू कहती हैं -“हमारा पूरा बचपन कोसों दूर से पानी लाने में बीता, अभी भी समस्या जस की तस है। यहां से 3 किलोमीटर पैदल चल कर हम कुंए तक जाते हैं और फिर पानी लेकर आते हैं। बारिश में खेत में कीचड़ हो जाता है तब और ज्यादा समस्या होती है। कुछ दिनों पहले ही गांव के लोगों ने चंदा इकट्ठा कर पाईप लाईन बिछाई थी, हमें उम्मीद थी कि अब हमारी पानी की समस्या हल हो जाएगी लेकिन अभी तक उसमे मोटर नही लगी है, जिसकी वजह से समस्या वहीं की वहीं है।”

रामचंदर कहते हैं “कुछ लोगों के पास पैसा है तो उन्होंने अपने खेत से पाईपलाईन बिछा ली है, लेकिन हम गरीब हैं, हमारे पास इतना पैसा नहीं कि निजी पाईपलाईन बिछा सकें। हमारे घर की महिलाएं दिन रात पानी भरती हैं, तब जाकर परिवार का गुज़ारा हो पाता है। अगर सरकार थोड़ी मदद करदे और मोटर लगवा दे तो हमारे द्वारा चंदा इकट्ठा कर बिछाई गई पाईपलाईन से पानी आ जाएगा।”

संगीता बाल्टी मे रस्सी बांधकर 150 फीट गहरे कुंए से पानी खींचती हैं और गुस्से में कहती हैं कि” इस गांव में महिलाओं की ज़िंदगी बहुत कठिन है, सुबह घर का सारा काम निबटा कर हम शाम तक पानी भरते हैं, गांव में एक सरकारी हैंडपंप लगा है लेकिन उसका पानी पीने लायक नहीं है। हमारे घर के मर्द नशा करके घर में पड़े रहते हैं और हम रसोई के लिए पानी लाने और जंगल से लकड़ी लाने में अपना जीवन खपा रहे हैं।”

गांव के सरपंच ने ग्राउंड रिपोर्ट ने बताया कि वो समसगढ़ में पानी की समस्या से वाकिफ हैं, वो प्रयास कर रहे हैं कि गांव में एक पानी की टंकी रखवा दी जाए जिससे पानी की समस्या हल हो जाएगी। वो कहते हैं कि उन्होंने विधायक से बात की है उन्होंने आस्वासन दिया है कि यह काम जल्द हो जाएगा।

समसगढ़ गांव (Samasgarh Village) एक आदिवासी गांव हैं, यह जंगल से एकदम सटा हुआ है। यहां मुश्किल से ही कोई पक्का घर देखने को मिलता है। लोगों को पीएम आवास के तहत मिलने वाले घर भी नहीं मिले हैं। यहां मुश्किल से लोगों को सरकारी योजनाओं का लाभ मिल रहा है। विकसित होते भोपाल के करीब एक गांव का इतना पिछड़ा होना कई सवाल खड़े करता है।

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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