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रानी दुर्गावती टाइगर रिज़र्व से आदिवासियाें की जबरन बेदखली की जांच

रानी दुर्गावती टाइगर रिज़र्व से आदिवासियाें की जबरन बेदखली की जांच

मध्‍य प्रदेश में रानी दुर्गावती टाइगर रिज़र्व और उसके आसपास के इलाकाें की वन भूमि पर रहने वाले 52 गांव के आदिवासियों को बाघ संरक्षण के नाम पर उनके घरों से जबरन बेदखल करने के प्रयास वन विभाग द्वारा किए जा रहे हैं। इन गांवों में रहने वाले आदिवासियों के एक समूह ने इस मामले की शिकायत केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MoTA) से की है। 

इस शिकायत पर संज्ञान लेते हुए केंद्रीय जनजातीय मंत्रालय (MoTA) ने मध्‍य प्रदेश सरकार को मामले की जांच करने व वन विभागों और संबंधित जिला कलेक्‍टरों के परामर्श से इसका समाधान कराने का आदेश दिया है। 

इस आदेश के बाद राज्‍य शासन ने रानी दुर्गावती टाइगर रिजर्व और उसके आसपास के क्षेत्रों से विस्‍थापन की प्रक्रिया पर जांच पूरी होने तक रोक लगा दी है। वहीं पत्र मिलने के बाद मप्र जनजातीय विभाग ने इस संबंध में जांच शुरू कर दी है।

केन बेतवा नदी जोड़ो परियोजना के कारण पन्‍ना टाइगर रिज़र्व में डूब जाने वाले लगभग 98 वर्ग किलोमीटर के जंगल की भरपाई के लिए रानी दुर्गावती टागर रिज़र्व साल 2023 के सितंबर माह में बनाया गया है। 

2339 वर्ग किलोमीटर में फैला यह टाइगर रिज़र्व प्रदेश का सबसे बड़ा टाइगर रिज़र्व है, जोकि रानी दुर्गावती और नौरादेही वन्‍यजीव अभयारण्‍यों के क्षेत्रों को जोड़कर तैयार किया गया है। 

आदिवासी समुदाय के आरोप

दमोह जिले के सेहरी गांव में रहने वाले आदिवासी प्रमोद गौंड़ कहते हैं 

“वीरांगना दुर्गावती टाइगर रिज़र्व के अधिसूचित किए जाने के बाद हमारे वन अधिकार दावों को अस्‍वीकार कर दिया गया और हम सभी को जबरन रिज़र्व से बाहर जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जोकि वन अधिकार अधिनियम (एफआरए), 2006 और वन्‍यजीव संरक्षण अधिनियम (डब्‍ल्‍यूएलपीए), 2006 के नियमों का उल्‍लंघन है।”

इधर, वन विभाग को बाघों के संरक्षण के लिए वन्‍यजीव संरक्षण अधिनियम 2006 अछूते (जो मानव बस्तियों से मुक्‍त हो) क्षेत्र में टाइगर रिजर्व बनाने का अधिकार तो देता है, लेकिन ऐसे रिज़र्व तभी बनाए जा सकते हैं, जब आदिवासी और वनवासी समुदायों के अधिकारों को मान्‍यता दी गई हो और उन्‍हें वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 और वन अधिकार अधिनियम 2006 (एफआरए) के प्रावधानों के अनुसार बसाया गया हो। 

नियमों के अनुसार वन अधिकारों की मान्‍यता देने के बाद भी ग्रामीणों को केवल तभी स्‍थानांतरित और पुर्नवासित किया जा सकता है, जब वे स्‍वेच्‍छा से ऐसा करना चाहते हों। 

गौंड़ आगे कहते हैं कि “इतना ही नहीं हम सभी ग्रामीणों को वन संसाधनों और वन उपज तक पहुंचने से भी रोका जा रहा है, जबकि खेती भी नहीं करने की दी जा रही हैं।”

इधर, मप्र सरकार को लिखे पत्र में भी एमओटीए ने कहा कि “समुदायों को एफआरए 2006 के तहत दिए गए अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता है और ऐसा करना अधिनियम का उल्‍लंघन है।” 

आगे में पत्र में कहा गया है कि राज्य सरकारों के पास ही एफआरए के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी हैं, इसलिए उन्‍हें वन विभागों, संबंधित‍ जिला कलेक्‍टरों और डीएफओ के परामर्श से मामलों की जांच कर समाधान क‌‌रना होगा।

इन्हें भी लिखा पत्र 

जनजातीय मामलों के मंत्रालय (MoTA) ने आवश्‍यक कार्रवाई के लिए जनजातीय कार्य मंत्रालय के अनुसूचित जनजाति आयोग प्रभाग व दमोह, सागर और नर‍सिंहपुर जिला कलेक्‍टरों को भी पत्र भेजा है। इसके अलावा, राष्‍ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को पत्र भेज कर वन्‍यजीव वार्डनों को उचित दिशा-निर्देश जारी करने के आदेश दिए है, ताकि आदिवासियों के हितों की रक्षा की जा सके।   

जांच के बाद ही होगी विस्‍थापन की कार्रवाई

वहीं नौरादेही वन्‍यजीव अभयारण्‍य के डीएफओ अब्‍दुल अलीम अंसारी कहते हैं कि

“टाइगर रिज़र्व के अंदर से 93 गांवाें काे विस्‍थापित किया जाना है। इनमें से 40 गांवों को साल 2014 में स्‍थानांतरित किया जा चुका है, जोकि मूल रूप से नौरादेही अभयारण्‍य क्षेत्र से हैं।”

वे आगे कहते हैं कि “विस्‍थापित होने वाले सबसे ज्‍यादा गांवों की संख्‍या दमोह में है, इसके बाद सागर और नरसिंहपुर में हैं। विभाग द्वारा नौरादेही क्षेत्र के आठ गांवों का विस्‍थापन जनवरी माह से किया जाना था, फि‍लहाल इससे रोक दिया गया है। जांच के बाद ही विस्‍थापन की प्रक्रिया पर काम शुरू किया जाएगा।”

एनएचआरसी ने मांगी एटीआर रिपोर्ट

इधर, राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने भी संज्ञान लेते हुए केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, राष्‍ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) और अन्‍य राज्‍यों के 591 गांवों के 65000 ग्रामीणों के विस्‍थापन के कारण होने वाले मानवीय कष्‍ट पर कार्रवाई रिपोर्ट (एटीआर) प्रस्‍तुत कराने के निर्देश दिए हैं। इस पर एमओटीए ने राज्‍य सरकारों को एक्शन टेकन रिपोर्ट (एटीआर) तैयार करने के लिए और बाघ अभयारण्‍यों में बेदखली कार्रवाई से पहले वन अधिकार अधिनियमों को पालन करने के निर्देश दिए हैं।  

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Pallav Jain

Pallav Jain

Pallav Jain is an environmental journalist and co-founder of Ground Report Digital, an independent environmental media organization based in Madhya Pradesh, India. Operating from Sehore city, he has dedicated his career to reporting on critical environmental issues including renewable energy, just transition, pollution, and biodiversity through both written and visual media.View Author posts