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मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कछुए की कथित तांत्रिक हत्या पर जांच के लिए वन विभाग को दिया निर्देश

मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने कछुए की कथित तांत्रिक हत्या पर जांच के लिए वन विभाग को दिया निर्देश

मध्यप्रदेश र उच्च न्यायालय की इंदौर खंडपीठ ने एक चौंकाने वाले मामले में महत्वपूर्ण फैसला दिया है। न्यायालय ने राज्य के वन विभाग को एक ऐसी घटना की गहन जांच के निर्देश दिए हैं, जिसमें कथित तौर पर एक कछुए की तांत्रिक विधियों द्वारा हत्या की गई थी।

मुख्य न्यायाधीश सुरेश कुमार कैत और न्यायाधीश विवेक रूसिया की खंडपीठ ने अभिजीत पांडेय की जनहित याचिका पर संज्ञान लिया। न्यायालय ने स्पष्ट निर्देश दिया है कि संबंधित अधिकारी वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत इस मामले की विस्तृत जांच करें। इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता अभिनव धनोडकर और राज्य की ओर से अधिवक्ता सुदीप भार्गव वकालत कर रहे थे। 

याचिका में दावा किया गया है कि सोशल मीडिया पर दो वीडियो सामने आए, जिनमें तीन व्यक्ति इंदौर के जिला अस्पताल परिसर में संदिग्ध तरीके से कुछ दफन कर रहे थे। याचिकाकर्ता का आरोप है कि ये व्यक्ति वित्तीय लाभ के लिए तांत्रिक क्रिया द्वारा कछुए की हत्या कर रहे थे।

25 मई, 2024 को याचिकाकर्ता ने रालामंडल अभयारण्य के अधीक्षक को शिकायत की। इसके बाद वन विभाग ने जांच शुरू की और मृत कछुए को बाहर निकाला गया। फोरेंसिक जांच के लिए कछुए को जबलपुर के नानाजी देशमुख पशु चिकित्सा विश्वविद्यालय भेजा गया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पाया गया कि कछुए पर पूरे शरीर पर कुमकुम लगा था। याचिका में तर्क दिया गया है कि कछुा भारत में पूजनीय जानवर है और इसके साथ क्रूरता वन्यजीव संरक्षण अधिनियम तथा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम के विपरीत है।

याचिकाकर्ता ने न्यायालय से अधिकारियों को जांच पूरी करने और उचित कार्रवाई करने का निर्देश देने की मांग की थी। न्यायालय ने संबंधित एजेंसियों को वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 के तहत इस मामले की जांच का आदेश दे दिया। हालांकि इस मामले की हकीकत जांच के बाद ही स्पष्ट हो पाएगी। 

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Chandrapratap Tiwari

Chandrapratap Tiwari

Journalist, focused on environmental reporting, exploring the intersections of wildlife, ecology, and social justice. Passionate about highlighting the environmental impacts on marginalized communities, including women, tribal groups, the economically vulnerable, and LGBTQ+ individuals.View Author posts