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Kantara Review: एक ऐसी फिल्म जो लंबे समय तक ज़हन में रहेगी

Kantara Review:  एक ऐसी फिल्म जो लंबे समय तक ज़हन में रहेगी
Kantara Review: एक ऐसी फिल्म जो लंबे समय तक ज़हन में रहेगी

Kantara Movie Review in Hindi: कन्नड़ फिल्म कांतारा अब हिंदी भाषा में भी रिलीज़ हो चुकी है, और जो भी इस फिल्म को देखकर आ रहा है, बस यही कह रहा है कि भाई फिल्में बनाने में अब साउथ का मुकाबला नहीं किया जा सकता. फिल्म में मुख्य किरदार में रिशभ शेट्टी हैं, उन्हीं ने फिल्म का निर्देशन किया है, स्क्रीनप्ले लिखा है और कोरियोग्राफ भी किया है। किरदारों का बेहतरीन अभिनय, आधुनिक बीट्स के साथ पारंपरिक कन्नड़ ध्वनियों से सजा बैग्राउंड म्यूज़िक फिल्म में जान डाल देता है।

थियेटर से बाहर निकलने पर फिल्म का म्यूज़िक और कोला नृत्य आपके ज़हन से निकल नहीं पाता। इतिहास, मायथोलॉजी, कल्चर, ड्रामा, एक्शन और हास्य से भरपूर कांतारा इस दशक की ज़रुर देखी जाने वाली फिल्मों में से एक है. अगर आईएमडीबी पर कांतारा को 9.5 रेटिंग मिली है, जो केजीएफ से भी ज्यादा है तो उसकी वजह वाजिब भी है। बात करते हैं फिल्म के प्लॉट की…

Kantara Trailer

कांतारा शब्द की उत्पत्ती कांतार शब्द से हुई है जिसका अर्थ होता है रहस्यमयी जंगल। तुलसीदास ने विनयपत्रिका में कांतार के विषय में विस्तार से लिखा है। यह भारत की बहुप्रचलित दंत कथाओं में से एक है। जिसपर फिल्म अधारित है।

कहानी

फिल्म की शुरुवात कोस्टल कर्नाटक के एक गांव की लोककथा से होती है। यहां का राजा मानसिक सुख शांती की खोज में निकलता है और कुन्दपुरा गांव के कुलदेवता ‘पनजूरली’ के समीप उस शांती का अनुभव करता है। गांव वालों से वो देवता को ले जाने के मांग करता है। दैव एक व्यक्ति के शरीर में आकर राजा से कहते हैं कि बदले में उसे अपनी ज़मीन गांव वालों को दान करनी होगी। राजा दैव को ले जाता है और सुखी हो जाता है।

वर्षों बीत जाने पर राजा के वंशज दान की हुई जमीन दोबारा हथियाने की कोशिश करते हैं। ज़मीन छीनने की कोशिश करने वालों को दैव सज़ा देते हैं। समय बीतता है देश में फॉरेस्ट राईट्स एक्ट लागू होता है। कुंदपुरा की ज्यादातर जमीन को रिजर्वड फॉरेस्ट घोषित करने के लिए सर्वे शुरु होता है।

कुंदपुरा गांव में रहने वाला शिवा जो फिल्म का मुख्य किरदार है, अपने जंगल और ज़मीन की रक्षा के लिए हर हद पार कर सकने वाला व्यक्ति होता है। जब फॉरेस्ट विभाग वाले गांव वालों को संरक्षित जंगल के कानून बताकर वहां से लकड़ी काटने और शिकार करने पर रोक लगाते हैं तो विवाद पैदा होता है। यहां बरसों से जंगलों पर लोगों के अधिकार के लिए चल रही भारत में लड़ाई की समझ पैदा होती है। फिल्म देखकर लगता है कि किस तरह रिज़र्वड फॉरेस्ट के नाम पर वहां रहने बरसों से रहने वाली जनजातियों को उनके अधिकार से वंचित कर दिया गया।

लेकिन फिल्म मोड़ लेती है और पहुंच जाती है राजा के वंशज द्वारा दोबारा जंगल की ज़मीन को अपने नाम करवाकर गांव वालों से छीनने की लड़ाई पर। कैसे शिवा और कुलदेवता गांव की ज़मीन को बचाते हैं, यही फिल्म की मोटी मोटी कहानी है।

लेकिन लोक रंग से सजी धजी इस फिल्म में कहानी के अलावा कई चीज़ें हैं जो इसे मस्ट वॉच बनाती हैं।

भूता कोला

क्या है भूता कोला परंपरा

फिल्म का मुख्य आकर्षण ‘भूता कोला’ प्रथा है। भूता कोला में दैवीय आत्माओं को पशु के रुप में पूजा जाता है। कांतारा की कहानी में भी ऐसे ही एक देवता है जिनका नाम पंजुरली है, यह एक जंगली सूंअर का रुप है। इस रुप को विष्णु के वारह अवतार से भी जोड़ा जाता है। लेकिन कुछ लोग इसे ट्राईबल्स के कल्चर को हिंदू धर्म से जोड़ने की साजिश भी मानते हैं।

यह प्रथा कर्नाटक में कई गांवों में की जाती है। एक विशेष दिन कोला करने वाला व्यक्ति दैवीय वेषभूषा धारण करता है, पारंपरिक आभूषण और ऋंगार उसे दैवीय रुप देते हैं। फिर यह दैव रुपी इंसान नृत्य करता है, इस दौरान उसके शरीर में दैव प्रवेश करते हैं और लोगों को निर्देश देते हैं, जिसे सभी को मानना होता है।

लोक संस्कृति में कोला करने वाले लोग अधिकतर एक ही परिवार से जुड़े लोग होते हैं जो एक दूसरे से सीख के इस कला में पारंगत होते हैं। शिवा का परिवार भी इन्ही में से एक होता है। फिल्म में शिवा का भाई गांव में कोला करता है, यह नृत्य बेहद ही आकर्षक होता है, कोला करने वाले के चेहरे के हाव-भाव आपके रोंगटे खड़े कर देते हैं। फिल्म की मुख्य कहानी को कोला के आसपास ही बुना गया है।

शिवा

शिवा का किरदार एक अल्हड़ व्यक्ति का है। कर्नाटक की संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले कंबाला खेल में शिवा गांव का चैंपियन होता है। कंबाला जिसे आप बैलों की दौड़ भी कह सकते हैं के दृष्य फिल्म में काफी अच्छे हैं। शिवा का किरदार रिशभ शेट्टी ने निभाया है।

कांतारा फिल्म में रोमांस

फिल्म के रोमांस सींस थोड़ा असहज करते हैं, कुछ डायलॉग्स मिसॉजनिस्टिक भी लगते हैं। बीच में फिल्म थोड़ी ठंडी ज़रुर पड़ती है लेकिन आखिरी 15 मिनट का क्लाईमैक्स रोंगटे खड़े कर देता है और दर्शक को दोबारा फिल्म में खींच लाता है, इस कदर की वो घर जाकर भी कोला के वीडियो यूट्यूब पर देखने लगता है।

कांतारा की सिनेमेटोग्राफी काफी सराहनीय है, हर दृष्य फिल्म को नया आयाम देता है। रिशभ शेट्टी की एक्टिंग आपको अंदर तक झंकझोर कर रख देती है। तो अगर आप एक अलग और नायाब फिल्म देखना चाहते हैं तो समय निकालिए और देख आईये एक्शन, ट्रेडीशन, हिस्ट्री और कल्चर से भरपूर एक रंगबिरंगी फिल्म ‘ कांतारा’

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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