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अंडमान में बनेगी वर्लड क्लास सिटी, पर्यावरण को होगा बेतहाशा नुकसान

अंडमान में बनेगी वर्लड क्लास सिटी, पर्यावरण को होगा बेतहाशा नुकसान
अंडमान में बनेगी वर्लड क्लास सिटी, पर्यावरण को होगा बेतहाशा नुकसान

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‘Holistic development of Andaman Nicobar Islands’: भारत सरकार के नीति आयोग ने अंडमान निकोबार आईलैंड में हॉंगकॉंग, सिंगापोर और दुबई की तरह दो वर्लड क्लास ग्रीनफील्ड कोस्टल सिटी डेवलप करने के लिए 75,000 करोड़ का प्रोजेक्ट तैयार किया है, जिसे सस्टेनेबल होलिस्टिक डेवलपमेंट ऑफ ग्रेट निकोबार आईलैंड का नाम दिया गया है।

इस प्रोजेक्ट के तहत इंटरनैशनल ट्रांसशिपमेंट टर्मिनल, ग्रीनफील्ड इंटरनैशनल एयरपोर्ट, थर्मल पावर प्लांट, सोलर पावर प्लांट और टाउनशिप बनाने का प्लान है।

इसका मकसद निकोबार आईलैंड को मैरिटाईम और कार्गों शिपमेंट इंडस्ट्री में मेजर प्लेयर बनाने के साथ मॉलडीव जैसी टूरिज़म इंडस्ट्री बनाना है। सरकार का अनुमान है कि इससे 30 साल के दौरान यहां डेढ़ लाख से ज्यादा नौकरियां पैदा होंगी।

लेकिन पर्यावरणविद और बायोलॉजिस्ट्स का कहना है कि यह प्रोजेक्ट अंडमान निकोबार आयलैंड को पूरी तरह बर्बाद कर देगा। तो आईये जानते हैं कि क्या है होलिस्टिक डेवलपमेंट प्लान ऑफ निकोबार आईलैंड्स और क्यों हो रहा है इसका विरोध?

अंडमान निकोबार का लगभग 82 फीसदी एरिया जंगल, नैशनल पार्क और रिज़र्वड जगहों से घिर है। इसका कुल क्षेत्रफल 910 स्क्वायर किलोमीटर है। यह प्रोजेक्ट 166 स्क्वायर किलोमीटर हिस्से में बनाया जाएगा। इसमें 130 स्कवायर किलोमीटर एरिया में घने जंगल हैं जिन्हें डेवलपमेंट के लिए डायवर्ट किया जाएगा। इस ज़मीन का 84 स्क्वायर किलोमीटर ऐरिया ट्राईबल्स के लिए रिजर्व रखा गया था जिसे डिनोटिफाय कर दिया जाएगा।

इस प्रोजेक्ट का सबसे ज्यादा विवादित हिस्सा है ट्रांस्शिपमेंट टर्मिनल का निर्माण जिसे गोलथिया बे पर बनाया जाएगा, जो एंडेनजर्ड लैदरबैक कछुओं का नेस्टिंग ग्राउंड है। टर्मिनल के बनने से कछुओं का एंट्री पैसेज छोटा हो जाएगा। नीति आयोग द्वारा तैयार कराई गई इनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट रिपोर्ट का कहना है कि नवंबर से फरवरी के बीच जब कछुओं का नेस्टिंग टाईम होता है तब यहां कामकाज रोक दिया जाएगा, टर्मिनल की लाईट्स डिम कर दी जाएंगी, साउंड मफलर यूज़ किए जाएंगे और डिफ्लेक्टर का प्रयोगा होगा। ताकि उनको डिस्टर्ब न हो। जायंट लेदरबैक टर्टर ग्लोबली एंडेजर्ड स्पीशीस हैं, ग्रेट निकोबार आईलैंड दुनिया में उन चुनिंदा जगहों में से एक हैं जहां इन कछुओं की नेस्टिंग साईट है।

इस प्रोजेक्ट से कोरल रीफ भी डिस्ट्रॉय होंगी जिन्हें दूसरी जगहों पर ट्रांस्पलांट करने का प्लान है।

टाउनशिप, एयरपोर्ट, थर्मल पावर प्लांट डेंस फॉरेस्ट कवर पर बनाए जाएंगे, जिससे बायोडावयवर्सिटी को नुकसान होगा। सरकार का कहना है कि जो जानवर और पक्षी इससे प्रभावित होंगे वो खुद ही माईग्रेट करके दूसरी जगह चले जाएंगे, जहां घने जंगल होंगे या फिर उनको रिलोकेट किया जाएगा।

थर्मल पावर प्लांट यहां की जनजाति शोंपेन के इलाकों के बिल्कुल करीब बनाया जाएगा। यह जनजाति बाहरी दुनिया से संपर्क नहीं रखती और अपनी ज़रुरतों के लिए पूरी तरह प्रकृति पर ही निर्भर है। अंडमान की कुल 8,000 आबादी में 237 लोग इस जनजाति के हैं। सरकार का कहना है कि प्रोजेक्ट के दौरान इन लोगों से छेड़छाड़ नहीं की जाएगी। कंटीले तार लगाकर उनका एरिया मार्क कर दिया जाएगा।

जो टाउनशिप बनाई जाएगी उसमें साड़े 6 लाख लोगों के रहने की व्यवस्था होगी। अभी अंडमान की कुल आबादी 8000 से थोडी़ ज्यादा है

इस प्रोजेक्ट का विरोध इसलिए भी हो रहा है क्योंकि सरकार ने जिस 16 मेंबर की टीम से इस प्रोजेक्ट की ईंवायरमेंट ईम्पैक्ट असेसमेंट रिपोर्ट तैयार करवाई है उसमें केवल एक सदस्य ईकोलॉजी और बायोडायवर्सिटी एक्सपर्ट था। इस रिपोर्ट में प्रोजेक्ट से पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर तार्किक बात नहीं की गई है। साथ ही अगर आने वाले समय में यहां 2004 जैसी सुनामी या कोई प्राकृतिक आपदा आई तो उसके लिए क्या प्लान है इसका भी ज़िक्र असेसमेंट रिपोर्ट में नहीं है। यह प्रोजेक्ट भूकंप प्रभावित क्षेत्र में बनाया जा रहा है, अगर यहां कोई आपदा आई तो सारा इनवेस्टमेंट पानी में बह जाएगा और उससे निकलने वाला कैमिकल और ऑईल बुरी तरह यहां के पर्यावरण को बर्बाद कर देगा जो अपनी बायोडायवर्सिटी के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है।

बड़ी मात्रा में पेड़ों के काटे जाएंगे, कोरल रीफ बर्बाद होंगी, 1700 से ज्यादा एनीमल स्पीशीज़ जो यहां पाई जाती हैं उनको नुकसान होगा और तो जिनकी असल में यह ज़मीन है शौंपेन जनजाति उनका जंगलों में घूमना फिरना प्रतिबंधित हो जाएगा। फिर भी सरकार इस प्रोजेक्ट पर आगे बढ़ेगी, आप और हम यह जानकारी देखकर फोन बंद करके सो जाएँगे। शेयर भी नहीं करेंगे। हमको क्या, मालदीव इंडिया में बनने वाला है, मस्त घूमने जाएंगे क्यों?

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  • Climate journalist and visual storyteller based in Sehore, Madhya Pradesh, India. He reports on critical environmental issues, including renewable energy, just transition, agriculture and biodiversity with a rural perspective.

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