मध्य प्रदेश वन विभाग एक महत्वाकांक्षी परियोजना की दिशा में कदम बढ़ा रहा है। देश में कुनो नेशनल पार्क के बाद गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य को चीतों के दूसरे घर के रूप में विकसित किया जा रहा है। यहां अप्रैल 2025 में दो नर चीते प्रभाश और पावक को लाया गया था। अब मानसून के बाद एक मादा चीते को यहां लाकर छोड़ा जाएगा। इसका उद्देश्य गांधी सागर अभयारण्य में चीतों के प्रजनन कार्यक्रम को आगे बढ़ाना है।
गौरतलब है कि चीते प्रभाश और पावक को 2023 में अफ्रीका के वाटरबर्ग बायोस्फीयर रिजर्व से कुनो नेशनल पार्क लाया गया था। अब इन छह वर्षीय दोनों चीतों को गांधी सागर भेजा जा चुका है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, छह वर्षीय नर चीते प्रभाश और पावक ने यहां की परिस्थितियों के अनुकूल स्वयं को ढाल लिया है। वे सफलतापूर्वक शिकार कर रहे हैं और वहां रहने में कोई चिंताजनक व्यवहार नहीं दिखा रहे हैं।
चीता परियोजना की अगली कड़ी में एक मादा चीते को कुनो से गांधी सागर में भेजने की योजना है। मानसून की बारिश कम होने पर यह कदम उठाया जाएगा। एक मादा की पहचान पहले ही की जा चुकी है।
तेंदुओं का स्थानांतरण
गांधी सागर अभयारण्य में चीतों का पुनर्स्थापन भारत की चीता परियोजना का एक अहम हिस्सा है। गांधी सागर को चीतों का दूसरा घर बनाने के पहले चरण में अभयारण्य से तेंदुओं को हटाया गया, ताकि चीतों का शिकार क्षेत्र स्वतंत्र रहे। इस तरह की तैयारी से नर चीतों को सहज परिवेश में शिकार करने का अवसर मिला और वन विभाग को उन्हें मॉनिटर करने का अनुभव भी प्राप्त हुआ।
कुनो की स्थिति
कुनो नेशनल पार्क में चीतों की संख्या 29 हो गई है, जिसमें 19 शावक और 10 वयस्क हैं, जो यहां के मौसमी हालात के अनुकूल ढल चुके हैं। शावक बाढ़ में नदियों में तैरते नजर आते हैं।
मई 2023 में कुनो में मादा चीता दक्षा की दो नर चीतों से झड़प हुई थी, जिसमें उसे गंभीर चोटें आईं और उसकी मृत्यु हो गई थी। इन घटनाओं से सीखे गए सबक के तहत अब प्रशासन चौबीसों घंटे स्टाफ और अनुभवी पशु चिकित्सकों की व्यवस्था कर रहा है। हालांकि, शिकार-पशुओं की संख्या पर चिंता बनी हुई है क्योंकि यह पर्याप्त नहीं है, और इसकी पूर्ति आवश्यक है।
गांधी सागर की विशेषताएं
गांधी सागर वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी 2,500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें घास के मैदान, शुष्क पर्णपाती वन और नदी किनारे की हरियाली शामिल है। यह क्षेत्र नामीबिया के मसाई मारा के समान आदर्श चीता आवास माना जाता है। वर्तमान में अभयारण्य में 10 चीतों के रहने की क्षमता है।
चुनौतियां
चीतों के लिए जरूरी शिकार-पशु जैसे कि चिंकारा, नीलगाय अभी काफी कम हैं। एक चीते के परिवार (कोएलिशन) के लिए लगभग 350 शिकार-पशुओं की आवश्यकता होती है। इसके अलावा, पर्यावरण में मानव बसावट और सड़कें भी खतरा हैं। मानसून के दौरान संक्रमण का जोखिम भी बढ़ जाता है, इसलिए मादा चीते को मानसून के बाद ही साइट पर भेजने की योजना बनाई गई है।
फेंसिंग, अस्पताल, स्टाफ प्रशिक्षण आदि के मामले में तैयारी जारी है। कुनो में बनाए जा रहे पशु चिकित्सा अस्पताल की गाइडेंस अभी गांधी सागर में लागू की जा रही है।
इन सबकी योजना का क्रम इस प्रकार है: 2022 में कुनो में चीतों की शुरुआत, 2023-24 में गांधी सागर के लिए संरचना तैयार करना और अब नए प्रजनन कार्यक्रम की तैयारी।
हालांकि, इस परियोजना में चुनौतियां भी हैं। ग्रामवासी 28 किमी लंबी फेंसिंग के विरोध में हैं, क्योंकि इससे उनके पारंपरिक पशुपालन में बाधा आती है। वन विभाग और NTCA इस संतुलन को लेकर विशेष सावधानी बरत रहा है।
यह परियोजना सिर्फ चीतों को बचाने तक सीमित नहीं है, बल्कि जैव विविधता के पुनरुत्थान का प्रतीक भी है। हाल ही में गांधी सागर में कैमरा ट्रैप से एक दुर्लभ कैराकल की तस्वीर खींची गई है। यह 20 वर्षों में पहली बार माना जाता है और इससे क्षेत्र की पारिस्थितिकी में सुधार के संकेत मिलते हैं।
मध्य प्रदेश सरकार ने गांधी सागर को देश का दूसरा चीता-घर बनाने की तैयारी पूरी कर ली है। नर चीते वहां पहुंच चुके हैं और प्रजनन के लिए मादा का इंतजार है। वन्य प्रजातियों की सुरक्षा, पर्यटन का विकास और स्थानीय समुदायों को लाभ – इन तीनों लक्ष्यों को संतुलित रखना इस परियोजना की सफलता निर्धारित करेगी।
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